Book Title: Jain Granthavali
Author(s): Jain Shwetambar Conference
Publisher: Jain Shwetambar Conference Mumbai

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Page 11
________________ प्रस्तावना. कहीए छीए के आगमोमां जगाता फेरफारो तथा पृथ्वी आदिकनी बाबतमा केटलाक सुलासाओ हालना समय प्रमाणे थइ शकता नथी ते मात्र आपणा असद् भाग्यने लीधे भागमोमां थएला मोटा घटाडाने तेमज आपणी अल्प समज शक्तिने आभारी छे, अने तेथी वेनापर अविश्वास न करता आप्तना वचनमा फेर होयज नहीं एम मानी कर्तव्य परायण यह बाकी रहेला ज्ञाननी बने तेटली रक्षा करी तेनाथी सत्यार्थ साधवा तरफ लक्ष राखवू एज उचित छे. पूज्यवर्य देवर्धिगणि महाराजना पुस्कारूद करावेला आगमना ग्रंथोनी प्रतो पण हाल नजरे पडती नथी. एम कहेवं पडे छे, कारण के प्राचीनमा प्राचीन पुस्तक लख्यानी साल पण संवत् १००० नी अंदरनी मळती नथी. धारोके कागळ आटलो होबो वखत न रही शके, पण ताडपत्रने रहेवामां बांधो देखातो नथी छतां पण हाल जे ताडपत्रोनी नकलो मळे छे ते पण ते समयनी मळती नथी. जे साहित्यपर अनेक प्रकारनी आफतो पड़ी होय तेमां जो काइ पाठांतर देखाय अथवा अमुक बाबतनो समयने अनुसरीने खुलासो न देखाय तो पण पोताना भाग्यनो दोष गणीने वांचनारे शंकाथी लाभ नथी एम विचारी तत्वपर नजर करी हवे अवशेष रहेला साहित्यनी रक्षामां कटिबद्ध थq एज उचित लागे छे. अत्रे कहेवानी जरूर छे के कोन्फरन्से हजु तमाम साहित्यनो शोध पूरो कर्यो नथी. तो कोइ महाशयने संवत् ५२३ नी अगर ते अरसानी कोइपण प्रत उपलब्ध थाय तो ते जनसम्हनी जाण माटे कोन्फरन्स ओफीसने सवा कृपा करशे. आगमो माटे आटली टुंक हकीकत लखी हवे आपणे आगमनी टीकाओ तथा बीजा प्रथो तरफ दृष्टी फेरवीए. भगवानना निर्वाण बाद त्रण पाटसुधी कैवल्य ज्ञानी भगवंतो हता. त्यारपछी छ सुतकेवळी थया छे. त्यारपछी देवर्द्धिगणी महाराज सुधी पूर्वनुं ज्ञान हतुं परंतु आवा रंभर पूर्वाचार्योना करेला अंथो पण विशेष दृष्टिगोचर थता नथी. जे* ग्रंथो जणाय छे तेमां श्री भद्रबाहुस्वामीना, श्रीसिद्धसेन दीवाकरना, श्रीकाळीकाचार्थना अने एवा पांच सात आचार्योना करेला ग्रंथोज हालमां जणाय छे. पण स्थूळभद्रनी अने तेमना पछी बयेला वीजा आचार्योनी कृती समुळगी जणाती नथी. आवा महान धुरंधर पंडितो अने प्रेम शील केवळ परमार्थ करवानुंज हतुं तेवा महाशयो पोतानी आखी जीदगीमां छती *महावीर स्वामीमा हस्तदीक्षीत शिष्य श्री धर्मदासगणिनी करेली उपदेशमाळा सौथी प्राचीन के.

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