Book Title: Jain Granthavali
Author(s): Jain Shwetambar Conference
Publisher: Jain Shwetambar Conference Mumbai

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Page 16
________________ मस्तावना. जैन साहित्यने झीलवाना शोखीनने आ एक उमदा मानस सरोवर हाथ लाग्यं छे. जैन साहित्य हालमां केटलं अने क्या क्या विद्यमान छे. तेनी जिज्ञासावाळा महाशयाने. आ ग्रंथावळी बनता लगण चोकस माहिती मेळवी आपवामां अद्वितीय साधन धयु छे. या ग्रंथावळीमा मात्र संस्कृत अने मागधी साहित्यज दाखल करवामां आव्यं छे. गुजराती लेखको पण जैन धर्मनी अंदर घणा थया छे, अने तेमांना केटलाक लेखको तो हालमा गजरातीना सारा गणाता लेखकोथी पण विशेष चडता छे. तेओना अलंकारभूत गणाता कादंबरीनी जेवा लेख कविताना रूपमां शुद्ध गुजरातीमां लखी गया छे. गुजराती साहित्य जो के १००० मा संवत् पहेलानुं मळतुं नथी तोपण एक हजार पछी, पणुं साहित्य मळे के. आ साहित्यमां संस्कृत कथाओ उपरथी रचाएला रासो, भगवाननी स्तवनाओ, सझायो, अने बालावबोध ( भाषांतरो ) नजरे पडे छे. अत्यार सुधीमा वेपारार्थे पुस्तको छपावनाराओए आवा रासो, स्तवनो, स्तुतिओ विगेरे जुदा जुदा रूपमा छपावी प्रसिद्ध करी पुस्तक प्रसिद्धिना कार्य साथे धन मेळववानुं पण कार्य साध्यं छे. पण बीजाओ करे छे तेम कोइपण कर्ताना समन लेखो अगर तेवा लखाण उपर सारी टीका अगर लेखकनो इतिहास विगरे आपी सारा टाइपथी अने सारा कागळोधी पुस्तक छपावी तेने प्रसिद्ध कर्यानु देखातुं नथी. भीमशी माणेके छापेला रासो विगेरे आमां अपवाद रूप छे. कारण के ते सारा टाइपने सारा कागळ उपर बनता सुधी शुद्ध करीने छापेला छे अने अत्यारे बहोळी संख्या हजु तेवीज बहार पडेली छे. आवा पुस्तको छपाववाना कार्य तरफ हालमां श्री जैनधर्मप्रसारक सभा, विद्याप्रसारकवर्ग, ज्ञान प्रसारक मंडळी विवो उधोग करे छे. अने ते ग्रंथो भाषामां होवाथी तेनी नकलो पण सारी खपे छे. तेथी कोन्फरन्से ते माटे प्रयास करवानो मुलतवी राख्यो छे. पण आ ठेकाणे कह्या विना चालतुं नथी के हालमा जेम श्री त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र मूळने भाषांतर सफाईदार कागळ उपर छपायु छ तेम बीजा रासा विगरे पण एकत्र करी विवरण साथे गुजरातीना काव्य दोहननी पेठे छपाववानी जरूर छे. पूर्वोक्त मंडळीओए गुजराती साहित्यनी जेम बने तेम ताकीदे शोध अने उद्धार करवानुं काम हाथमा लेवानी जरूर छे. हालमा जेम एकवार छपायेला रासो विगेरे पाछा फरीने छपाय छे तेम न करतां जुदा जुदा भंडा. रोमां शोध करावी गुजराती साहित्यनी नोंध करी तेमाथी जरूरी जे अनुकूळ अने जेमां तत्वनो समावेश होय तेवा ग्रंथो प्रथम प्रसिद्धिमा लाववानी जरूर छे. आम करवाथी धर्म अने अर्थ बने सधाशे. एकतो साहित्यनी शोध थशे अने तेम करतां कांइ अपूर्व ग्रंथो हाथ लाग्या तो तेनाथी द्रव्यपण मेळवाशे. आ मंडळोथी जुदो जुदो प्रयास न थाय तो फाळाप्रमाणे पैसा आपवानी व्यवस्था करी हालमां संस्कृत प्राकृतना उद्धारपर लक्ष आपती आ कोन्फरन्सने ए काम करवामां मदद आपवा कमर बांधशे एवी आशा

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