Book Title: Jain Gotra Sangraha
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 186
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेल्हाणी ओडकना सहजाशाहे कीडाणामां नकटीने काठे बाव बंधावी छे, तथा सात जमणवार करी. संवत १७४५मा भोरालामाँ थयेला भोणा विगेरे त्रण भाइओए पोतानी भारी मातानी शिखरबंध देरी करी देशतेडं करी बसो मण घृतनुं वरच कयु, तथा संघ कहाडी शत्रुजयनी गात्रा करी. देसलपुरमा थयेला देवने त्या उपाश्रय कराव्यो छे. संवत १७६८मा देसलपुरमा जेताशाहे शत्रुजयनी यात्रा करी और आवी वाव बंधावी छे. भुजपरमां सागरना पुत्रो जगा तथा कालाए देशतेडं करी, सजनसारणा करी बाव बंधावीने, तथा याता करी घणु द्रव्य धर्मकार्योमा खरच्यु. संवत १७६४मां भुजपरमां लुभाना पुत्र रणमल्ले धर्मकार्योमा घणुं धन खरची देशतेडुं कर्यु हतुं, मां तेणे सातसो मण घृत वापर्यु हतुं, तथा ते रणमल्लने कच्छना राओ श्रीदेसलजी तरफथी घणु सन्मान मळ्युं हतुं. सं. १६४५मा गजणना बेराजामा वसनारा मांगीयाथी लघुसजनीयनी (दशानी) शाखा निकळी छे. सं. १६४७मां भोजाए बलाहीयाथी माडीनी वाटे भोजावाव बंधावी छे. संवत १७३७मा देवन तथा सोजाए लुअडीमा मेलो करी घणु द्रव्य धर्मादामां. खरच्यु, संवत १६७४मा भणाना For Private And Personal Use Only

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