Book Title: Jain Gotra Sangraha
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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(१७४) कार्य संपूर्ण थइ गयुं, तथा भमतीनी बन्ने चोमखोपरनी शिखरो अने तेना उपरना भागना रंगमंडपो तथा झरुखाओ जेटलुंज कार्य बाकी रहा, त्यारे तेओए उमदा पापाणआदिकनी पांचसो एक प्रतिमाओनी आचार्य महाराज श्रीकल्याणसागरजी पासे अंजनशलाका करावी. मळगंभारामा एकसरखा प्रमाणवाळी श्रीशांतिनाथजीनी त्रण प्रतिमाओनी विक्रम संवत १६७६ना वैसाख सुद ३ बुधवारे पहेली प्रतिष्टा, तथा संवत १६७८ ना बैसाख सुद ५ शुक्रवारे भमती विगेरेमा बीजी प्रतिष्टा श्रीकल्याणसागरसूरिजीना हाथथी करावी. ते वखते तेओए घj द्रव्यदान करी बहु घुण्य उपार्जन कयु. त्यारबाद तेओए शत्रुजयपर, मोडपरमा, तथा छीकारीमा जिनमंदिरो बंधावी जिनप्रतिमाओनी प्रतिष्टा करावी.
वळी तेओए नीचेमुजब रत्नोनी जिनप्रतिमाओ पण भरावी.
वर्धमानशाहे नवहजार मुद्रिका खरचीने रिष्टरत्ननी श्रोनेमिनाथ प्रभुनी एक प्रतिमा करावी.
पद्मसिंहशाहे नवहजार मुद्रिका खरचीने माणेकरननी श्रीवासुपूज्यस्वामिनी एक प्रतिमा करावी.
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