Book Title: Jain Gotra Sangraha
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 236
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१८४) एवी रीते अनेक प्रकारनां सुकृतोबडे पोताना आ. माने पवित्र करी श्रीवर्धमानशाह शेठ पोतानुं ब्यासी वर्षोनुं आयुष्य संपूर्ण करी आराधनापूर्वक भद्रावतीमां स्वर्गे गया. तेमना अग्निसंस्कारनी जगोए तेमना भक्तिवंत लधुबंधु पद्मसिंहशाहे त्रण लाख मुद्रिका खरचीने एक अतिकारिगिरीवाळी विशाळ वाव बंधावी, के जे वाव हालमा महोटी सेलरवावना नामथी ओळखाय छे, तथा ते वावना किनारापर एक शांतिनाथ प्रभुनी देहेरी बंधावी, तथा तमना कारजमा वार लाख मुद्रिका खरचीने समस्त कच्छ तथा हालारने मिष्टान्न भोजन कराव्यु.. त्यारबाद पद्मसिंहशाहे पण पोतानो अंतसमये पोताना वडिलबंधु वर्धमानशाहना वीरपाल, विजपाल, भारमल्ल तथा जगडु नामना चार पुत्रोने, तथा पोताना श्रीपाल, कुरपाल तथा रणमल्ल नामना त्रण पुत्रोने पोतानी पासे बोलावी द्रव्यआदिकना भागोमाटे तेओनो अभिप्राय पूछयो. त्यारे तेओए कयु के, अमो सर्वने हवे जूदा थवानी इच्छा छे, माटे द्रव्यनो भाग व्हेंची आपो ? ते सांभळी पद्मसिंहशाहना ह दयमा जरा खेद तो थयो, परंतु तेओनी इच्छा विभक्त थवानी होवाथी चित्रावेलनी जडीयुक्त For Private And Personal Use Only

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