Book Title: Jain Gotra Sangraha
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 234
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८२ ) छनो विवाह त्रण लाख मुद्रिका खरचीने कर्यो. आवमानशाहनुं संस्कृत चारित्र रचनार महाकवि श्री अमरसागरसूरिजीने आचार्य पदवी आपवामां ते बन्ने भाइओए बेलाख मुद्रिकानुं खर्च कर्यु. पोताना साधर्मिओना उद्धार माटे श्रीकल्याणसागरसूरिजीना उपदेशथी ते बन्ने भाइओए सर्व मळी सात लाख मुद्रिका खरची. एक वखते श्री कल्याणसागरजी महाराजे ते बन्ने:भाइओने कहुँ के, आ भद्रावती नगरी बहु प्राचीन के, प्रथम तेनुं कोशांबी नगरी नाम हतुं, तथा अहिं आ श्रीमहावीर प्रभुतुं प्राचीन जिनमंदिर संप्रतिराजानुं बंधावेल ते जिनमंदिरनो प्रथम घणी वखत जीर्णोद्धार थयेलो छे, अने हाल पण तेना जीर्णोद्धारनी जरुर छे. ते सांभळी आ बन्ने भाग्यशाली भाइओए दोढ लाख मुद्रिका खरचीने तेनो जीर्णोद्धार कराव्यो. त्यारबाद तेओए बंधावेला नवानगरना श्रीशांतिनाथजीना देरासरनुं अपूर्ण रहेलं कार्य संपूर्ण करवामाटे त्यां रहेता पोताना त्रीजा भाइ चांपसीशाहने वे छाख मुद्रिका मोकलावी, परंतु भाविप्राबल्यताथी ते कार्य संपूर्ण श्रयुं नहीं, तेमज तेओए ते विशाळ जिनमंदिरना हमेश माटेना For Private And Personal Use Only

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