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JAIN
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श्री जैन गोत्र संग्रह. (प्राचीन जैन इतिहास सहित)
--*- @@@------*------संग्रह करी छपावी प्रसिद्ध करनार--- पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज लालन.
(जामनगरवाळा)
Test
वीर सं. २४४९ विक्रम सं. १९८० सने १९२३ । श्री जैन भास्करोदय प्रिन्टिंग प्रेसमां छाप्यु
जामनगर.
..
........
सर्व हक स्वाधीन. किम्मत रु. २-००
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आ पुस्तक सने १८६७ ना २५ मा एक्ट मुजब रजीस्टर कराव्युं छे.
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अनुक्रमणिका.
Prasangaon
BP
IN
Songs
Frujeppapers
शाना
प्रस्तावनानी अनुक्रमणिका. नंबर. विषय. १ चोर्यासी गच्छोनी स्थापना...... २ चोर्यासी गच्छोना आचार्योनां नामो . ३ गच्छोनों नामो..... .... ४ भिन्नमालनो इतिहास .... ५ भिन्नमालना चार नामो .... ६ विजयंत राजानुं जैनी थई..... ७ विजयंत विगेरे जैनी राजाओ ८ भाण राजाना संघनो परिवार ९ कुलगुरुओ माटे निर्णय .... १० कुलगुरू माटे करेली मर्यादा ११ कुलगुरुओए करेली इतिहास लखवानी
शिरुआत .. .... .... ..... भाण राजाना ओशवालनी कन्या साथे लग्न श्रीमाली जैनोनी उत्पत्ति १०
.
.
.
२०..
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1465
Mewapsargerage
fel .
नेवर.
विषय १४ श्रीमालीओना बासठ गोत्रोना नाम १५ पोरवाड श्रावकोनी उत्पत्ति..... .... २६ १६ भिन्नमाल नगरनी चडती पडती .... २६ १७ नाणक तथा वल्लभीगच्छनी पटावली ..... १८ विधिपक्ष तथा अंचलगच्छ.... .... १९ जयसिंहसूरि विगेरे आचार्योए प्रतिबोधे
ला गोत्रो ..... २० ओशवालोनी उत्पत्ति २१ ओशवालोना गोत्रो २२ श्रीमालीओनां गोत्रो २३ अग्रवाल विगेरे ज्ञातिओनां गोत्रो २४ जैनोनी मुख्य ज्ञातिओ
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( 2 )
गोत्रोनी अनुक्रमणिका.
विषय.
नंबर. २५ हरियाण गोत्र..
२६ गाल्हा गोत्र
२७
नागडा गोत्र
२८ लघु नागडा गोत्र
२९
मीठडीया गोत्र....
३० वडोरा ( वडेरा ) गोत्र
३१ हथुडीया राठोड गोत्र
३२ पडाइया गोल ....
३३ वाहणी गोत्र
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३४ जासल गोत्र
३५ बोहड गोत्र
३६ कामसा गोत्र
३७ चहुआण गोत्र....
००००
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2
पृष्ट.
१
१०
१९
२०
२४
३३
३४
३७
३९
४१
૨
४४
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( ४ )
नंबर.
वियष.
३८ कटारीआ गोत्र
३९
कात्यायन गोत्र
४० सांडसा गोत्र....
४१ भादरायण गोत्र
४२ आग्नेय अने जाजा गोत्र
४३
काश्यप गोत्र.....
४४
वारध गोत्र....
४५
पारायण गोत्र
४६ वंसीयाण गोत्र....
४७ खोडायण गोत्र....
४८ लोढायण गोत्र....
४९
पारस गोत्र
५०
लाछिल गोत्र
५१ चंडीसर गोत्र ५२ विषापहार गोत्र....
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....
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0000
10
पृष्ट.
४६
४८
५०
५४
५७
६०
६४
६६
७०
७४
७७
७९
८१
८४
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पृष्टः
१०३
0.00
नंबर.
विषय. ८५३ गांधी ( सहसगुणा ) गोत्र.... ५४ देवाणंदसखा गोत्र ६५ गतौम गोत्र .... ५६ लोलाडीया गोत्र.... ५७ देहिल गोत्र .... ५८ महालक्ष्मी गोत्र.... ५९ पापच गोत्र .... ६० पुष्पायन गोत्र .... ६१ कारीस गोत्र ६२ कांटीया ( गोखरू) गोत्र .... ६३ देढीया गोत्र .... ६४ बोरीचा गोत्र .... ६५ स्याल गोत्र .... ६६ महाजनी गोत्र ..... ६७ महुडीया गोत्र ....
१२२
१२३
१३५
.
.
.
.
.
१३९
1008
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नंबर. विषय
पृष्ट.. ६८ सोनगिरा गोत्र.....
१४४ ६५ केसवाणेचा गोत्र
१४५ ७० सीसोदीया गोला.... ७१ निधुया गोत्र .... ७२ काश्यप गोत्र ..... ७३ मांडलकोटा गोत्र .......... .... १५३ ७४ काला परमार गोत्र ..... .... १५४ ७५ लालण गोत्र
...... १५५ ७६ वर्धमानशाह तथा पद्मसिंहशाहनु वृत्तांत. १६२
.
.
.
॥
3 उपर जणावेला गोत्रोनी शाखाओ तथा पेटा शाखा
ओना नामो ते ते गोत्रोना वृत्तांतनी शिरुआतमा आपेला छे.
।
प्रसिद्ध कर्ता
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प्रस्तावना
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सुज्ञ वाचकोने विदित थाय के आ " जैन गोत्र संग्रह " नामना पुस्तकमां जैनोना संबंधवाळी प्राचीन इतिहासिक बraat घणा श्रमयी संग्रह करी उपयोगी जाणी प्रसिद्ध करेली छे, जे वांचवायी मालुम पडशे, प्राचीन काळमां जैनोनां गोत्र, कुल, वंश तथा तेओना वंशजोनां नामो तेओना कुलगुरुओ लखता हता. हालमां पण केटलाक देशोमां तेवा भाट आदिकथी ओळखाता वइचाओ विगेरे ते पद्धतिने अनुसरी तेम करता देखाय छे. अने एवी रीतना प्राचीन इतिहासनो लोक भाग जळवाइ रहेलो छे, परंतु तेवो इतिहास फरू तेओना चोपडा अथवा टीपणा जेवा लोग खरड मोर्या अव्यवस्थित हालतमां तेओ पासेज दोवाची वीजा कोइनी पण जाग आवी शकतो नथी, तेम पोतानी आजीविका एकशानी थवाना भयथी तेओ ते छपावी प्रसिद्ध करवामां संकोचाय के अने तेथी तेवी प्राचीन इतिहासिक हकीकत जं धारामांज रही लोकोपयोगी थती नथी. अमोए वणा श्रमथी जैनोनी तेवी प्राचीन इतिहासिक हस्तलिखित हकीकतो मेळवी तेनो संग्रह करी आ पुस्कर्मा छापी
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( २ )
प्रसिद्ध करी छे, जेने उपयोगी जाणी जैनो तेनो लाभ लेशे तो हुं मारा आ श्रमने सफल थयेलो जाणीश.
जैनोमां आवी रीतनो कुलपरंपराओनो इतिहास लखवानी शिरुआत विक्रम संवत ७७५ ना चैत्रसुदी सातमथी श्रीवर्धमानपुरमा थयेली छे, अने ते संबंधि नीचे मुजब इतिहास एक प्राचीन हस्त लिखित लेखमां खेलो मल्यो छे.
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श्री चोर्यासी गच्छोनी स्थापना,
श्री महावीर प्रभु पछी १९९३ ना वर्षमां अने विक्रम संवत ७२३ मां ( मतांतरे १४६४ - ९९४ ) मां श्री उद्योतनसूरिना नीचेमुजब चोर्यासी शिष्यो हता, तथा तेओ सघळा महाविद्वान हता, अने तेओ सर्वे सूरिपदने लायक हवा, गुरुए तेमने पूछवाथी तेओए कां के अमो सर्वने सूरिपद मेळवावानी इच्छा छे पछी गुरुमहाराज ते सर्व शिष्यो साथै विहार करता मित्रमाल नगरनी पासे बटगाम नामना गाममां आव्या, ते गामनी उत्तर दिशामां एक महान वडनुं वृक्ष हतुं, ते नीचे विश्राममाटे
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१ सर्वदेवमूरि २ प्रभानंदमूरि. ३ हरियाणंदमूरि
४ शिवदेवसूरि.
५ जिनेंद्रसूरि.
६ दयानंद सूरि.
७ गजें.
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( ३ )
गुरुमहाराज शिष्योसहित बेठा, त्यारे शासनदेवता तरफथी एवी आकाशवाणी थह के, जो अहीं सूरिपदनी स्थापना थशे, तो तेओनो विस्तार सेंकडोगमे शाखाओश्री वृद्धि पामशे. ते सांभळी गुरुमहाराजे पोताना ते चोर्यासी शिष्योने सूरिपद आप्यां. ते चोर्यासी आचायोनां नामो नीचेमुजब हर्ता, *
८ आणंदसूरि. ९ धर्मानंद सूरि.
१० राजाणंदसूरि.
११ सौभाग्य चंद्रसूरि.
१२ देवेंद्रसूरि.
रि.
१३ स १४ प्रज्ञाणंदसूरि.
जे प्राचीन हस्तलिखित लेखपरथी आ नामो
छापी प्रसिद्ध कर्यां छे, ते लेखनो केटलोक भाग जीर्णताने लीधे फाटी गयेलो होवथी केटलांक नामो संपूर्ण छापी प्रसिद्ध करी शकार्या नथी.
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१५ सर्वाणंदमूरि. १६ संघाणंदमूरि. १७ सोमाणंदमूरि. १८ यक्षायणमूरि. १९ सूरि. २० सामंतसूरि. २१ शिव प्रभसूरि. २२ उदयराजमूरि २३ देवराजसूरि. २४ गांगेयसरि. २५ प्रभसूरि. २६ धर्मसिंघसूरि. २७ संघसेनसूरि. २८ सेनतिलकसूहि २९ चारित्रसूति. ३० भानु. ३१ नृसिंघसूरि. ३२ विनयसूरि. ३३ विजयाणंद सूरि,
३४ बल्लभमूरि. ३५ दानदेवसूरि. ३६ मान. ३७ राजदेवसूरि. ३८. जोगाणंदमूरि. ३९ भीमराजरि. ४० सोमनभसूरि. ४१ कृष्णमूरि. ४२ नसूरि. ४३ पमाणंद सूरि. ४४ नारायणमूरि. ४५ कर्मचंदसूरि. ४६ भावदेवमूरि. ४७ देवस. ४८ इल्लसूरि. ४९ नगराजसरि. ५० पांडसूरि. ५१ पुष्कलसूरि. ५२ डोडसूरि.
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५३ खीमसूरि.
६९ प्रज्ञाप्रभसरि. ५४ य
७० ब्रह्ममूरि. ५५ सोवीरसूरि. ७१ रत्नराजसूरि. ५६ मथुरामूरि.
७२ भसूरि. ५७ मंगलसूरि.
७३ कर्णसूरि. ५८ जिनसिंघसूरि. ८.४ मेघाणंदमूरि. ५९ वीरसूरि.
७५ भजराजमूरि. ६० वृद्ध.
७६ सारिंगमूरि. ६१ शीलदेवसरि. ७७ रंगमभरि. ६२ शांवरि.
लहरि. ६३ प्रियांगसूरि.
७२ गोकर्ण सूरि. ৪ আহাখাঁহি, ८० सहदेवरि. ६५ रामसूरि.
८१ भूतसंघसरि. ६६ रवि.
८२ बाहटसूरि. ६७ प्रभासेनसूरि. ८३ लाडण मूरि. ६८ आणंदराजमूरि. ८४ राजमूरि.
एवी रीते चोर्यासी आचार्योने वडना वृक्ष नीचे सूरिषद आफ्वाथी तेओन वडगच्छ नाम पड्यु, हवे त्यां. थी विहार करी तेओमाना जे आचार्य प्रथमनं चतुर्मास
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जे गाममा कयु, ते गामना नामथी तेओनो गच्छ शिरु थयो. तेओमाना पेहेला आचर्य श्रीसर्व विहार करताथका गुजरातमा वढीयार देशमा आवेला शंखेश्वर गा
ॐ आ चोर्यासी गच्छोना कयां कयां नामो हतां, ते हजुसुधी मने उपलब्ध थयों नथी, परंतु जैन ग्रंथोमां, तथा शिलालेखो विगेरेमा प्रायें करीने नीचे जणावेला गच्छोनां नामो हालमा जोवामां आवे छे. १ अंचल
१३ कोटिक ২ ঞ্জামাস্কি ।
१३ खरतर ३ उपकेशीय
१४ चंद्र ४ उत्तराध
१५ चंद्रप्रभ ५ उकेश
१६ चित्रवाल ६ कडुआ
१८ छोलीवाल झाडापल्लीय ८ कृष्णर्षि
१९ तपा ९कोरंट
२० तावकीय १० कुतुबपुरा
२१ त्रिभक्यिा
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(७) ममा आवी चतुर्मास रह्या, अने तेथी तेमना गछर्नु ।
शंखेश्वर गच्छ" नाम पाडयु. ते गाममा सोलंकी वंशनो सांख्यकुमार नामे क्षत्रिय तेमनो शिष्य थयो, तथा केटलेक काळे ते विद्वान थवाथी आचार्यश्रीए तेने
२३ देवानंदित १४ धर्मघोष २५ नागेंद्र २६ निवृत्ति २७ नाणकीय ৫% লিল २९ निग्रंथ नाणावाल ३० नागपुरीय ३१ पल्लीवाल ३२ प्रवीर्य ३३ पार्श्वनाथ ३४ पिप्पल ३५ पूर्णिमा पालीताणीय
ও যথা ३८ ब्राह्मण ३९ बृहद् ४० ब्रह्माणीय ४१ बीजमत ४२ वृहत्वरतर ४३ भावडार ৪৪ মিগান্ত ४५ मलधारी ४९ महाहडीय ४७ महुकर ४८ यशसूरि ४९ रुद्रपल्लीय
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ANTA
विक्रम संवत ७४५ मां रिपद शंखेश्वर गाममाज आबीने आप, तेनु बीज नाम बहादेवसूरि शल्यु. तेनी पाटे विक्रम संवत ७७२ मा श्रीउदयमभरि थया.
५१ लुपक ५२ विद्याधर ५३ वल्लभी - ५४ विवंदणीक ८५५ विभावक ५६ विजय ८५७ विधिपक्ष ५८ वृद्धपोसल ५९ वेषधर ६० वाणिज्य ६१ बज्रय
६३ चायड ६४ सा डर ६५ सरवाल ६६ संडे रक &ও হতে ६८सिद्धांति ६९ सार्थपूर्ण मीयक ७० सरस्वती ७१ शंखेश्वर ७२ पंडिल्ल
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७४ हर्षपुरीय
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( ९ )
# जिन्नमालनो इतिहास.
विक्रम संवत २०२ मां मारवाडमां आवेला भिन्नमाल नामना नगरमा सोलंकी वंशनी अजितसिंह नामे राजा राज्य करतो हतो, ते नख भीरमामोची नामना म्लेच्छे ( मुसलमान राजाए ) ते नगरपर चडाइ करी तेनो घणे भागे विनाश कर्यो, लाखो माणसो त्यां मराणा, तथा ते अजितसिंह राजा पण मार्यो गयो. पछी ते स्लेच्छो त्यां लुटफाटकरी वाली गयावाद पाहुं ते नगर
* आ नगरनां चार युगोमा जूदां जूदां श्रीमाल, रत्नमाल, पुष्पमाल अने मित्रमाल एम चार नामो थयेलां है, तेमज ते नगरनी अत्यंत जाहोजलाली घणा काळधी प्रसिद्ध छे. ते माटे उपदेशकल्पवलीना कर्ता श्रीहंसगणी लखे के-के
श्रीमालमिति यन्नाम | रत्नमालमिति स्फुटं ॥ पुष्पमालं पुनर्मित्र - मालं युगचतुष्टये ॥ १ ॥ चत्वारि यस्य नामानि । वितन्वंति प्रतिष्ठिति ॥ अहो नगरसौंदर्य - महार्य त्रिजगत्यपि ॥ २ ॥
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॥ इत्यादि ॥
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वस्यु, ते वखते त्यां श्रीश्रीमाली ब्राह्मणोना एकत्रीस हजार घरो हता. अनुक्रमे संवत ५०३ मा ते भिन्नमाल नगरमां सिंहनामे राजा राज्य करतो हतो, ते राजाने पुत्र न होवाथी तेणे पोतानी खीमजदेवी नामनी गोत्र. देवीनुं आराधन कयु, सात दिवसो सुधी जलरहित उपवास करी दर्भना संथारापर ते सूतो त्यारे देवीए प्रत्यक्ष थइ कयुं के तारा भाग्यमां पुत्र नथी, माटे जो तारे पा. लक ( दत्तक ) पुत्र जोइतो होय तो महारी बहेन जइयाण देवी तुं आराधन कर ? ते तने तेचो पालक पुत्र आपशे, वळी ते जयाणदेवीनो पासाद अहींथी पूर्वदिशामा छे. पछी राजाए तेणीनुं वचन स्वीकारीने प्रभाते त्यां जइ ते जयाणदेवीनी स्तुति करी. प्रसन्न थयेली देबीए प्रत्यक्ष थइ कयु के तारी पुत्रनी वांछा हुं संपूर्ण करीश. एम कही ते देवी पोताना शानना उपयोगथी अवंती नगरीना मोहल नामना क्षत्रियना तुरतना जन्मेला पुत्रने लावी, अने पोताना निर्माल्य एवां पुष्पोना समूहमा मूक्यो. पछी तेणे ते सिंहराजाने कयु के मारा निर्माल्य पुष्पोना समूहमां जे बाळकने में मूक्यो छे, तेने लेइने तारे मारा नामथी तेनु जइआणकुमार नाम राख, ते बालक
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यौवनवय पामी तारां राज्यनों धुरंधर थशे. पछी ते सिंहराजा ते बाळकने लेइ घेर आव्यो, तथा स्वजनवर्गने एकठा करी महोत्सवपूर्वक ते बाळकनुं तेणे जइआणकुमार नाम पाडयु. एवी रीते संवंत ५२७ मां ते जइआणकुमार भिन्नमालनो राजा थयो, तेने. अहावीस राणीओमाथी नवाइ नामनी राणीने श्रीकर्णआदिक सात पुत्रो थया. तेओमाथी संवत ५८१ मा श्रीकर्ण तेनी गादीए राजा थयो, तेने पंचावन राणीओमाथी सोमावाइ नामनी राणीना मूलजीआदिक पांच पुत्रो थया. तेओमाथी मूलजी संवत ६०५ मा तेनी गादीए राजा थयो. तेने पंचावन स्त्रीओमाथी सोनाइ नामनी पटराणीनो गोपाल पुत्र थयो, अने ते संवत ६४५ मां तेनी गादीए राजा थयो. तेने पचीस राणीओमाथी लक्ष्मीबाई नामनी पटराणीना रामदासआदिक एकवीस पुत्रो थया. तेजोमाथी संक्त ६७५ मा रामदास तेनी गादीए राजा थयो. तेने पांच राणीओमाथी श्रीवाइ नामनी पटराणीनो सामंत नामे पुत्र थयो. ते बेनातट नगरना चहुआणवंशी रत्नादित्य राजानी मानवाइ नामनी पुत्रीने परण्यो हतो. संवत ७०५ मां ते भिन्नमाल नगरनी गादीए राजा थयो,
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तेनी पचीस राणीओमाथी पटराणी मानवाइने जयंत अने विजयंत नामना चे पुत्रो थया, तओ बन्ने सरखा तथा महातेजस्वी हता. त्यारे ते सामंत राजाए पोताना राज्यना विभाग पाडी बने पुनोने यांच्या जयंतने मुख्य भिजमाल राज्य आरण, अजे विजयंतने लोहिआण नामना नगर राज्य आम्. एबी रोते संवत ७१९ मा ते जयंत अने विजयंत राज्यगादीपर बेठा. एवामां पिताना मृत्युनाद जयंतशजाए पोताना भाइ निजयंतन लोहिआग नगर राज्य बलात्कारे उचनी लीधुं, त्यारे विजयंत नातटमा पोताना मामा अने रत्नादित्य राजाना पुत्र रामसिंहमारी घोताने मोशा नाशी गयो, अने त्यां जइ तेणे जयंतनो अम्लाम कही संभळाव्यो. ते सायली सेना मामार तेने आशासन आपी कयु के हमणों तो वकाल नजीक छे, माटे हमणी तारे शंखेश्वर गाममा रहे, चतुर्मास पछी हुँ तने तार लोहियाण नगरर्नु राज्य पात्र असावीत. एवी रीतर्नु पोताना मामा सन्चन स्वीकारीने ते होताना परिवारसहित शंखेश्वर गाममा गयो, अने त्या मुखे समाधे पोतानो बखत गाळया लाग्यो.
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विजयंत राजानु जैनी थ. एबा तेशलेश्वर शासमा यहाहसीय श्रीसर्वदेवसरि चलनास राहता, तथालाई निमामा पारंगानी महाअतिशत हता. एक सोते आचार्य भाग बहार स्थंडिल गया हता, तेवदते ते विजयत राजा पण शिकारमाटे से भागे अतो हतो, तेने के आचार्य सन्मुख मळया. ते मिथ्यात्वी राजा अपका मानी आचार्यने मारवामाटे पोतानो हाथ उचो कर्यो, परंतु गुरुमहाराजना अतिशयथी तेलो ते हाथ मज उंचो रही गयो, आने सेना शारीदमा तेथीगणी वेदना थवा लागी. त्यारे राजाए जाणु आकोइ महाचमत्कारी पुरुष छे, एम विचारी ते बोलाउपरथी नीचे उत्तरी गु. रुना चरणाला घडी विनति करवा लाग्यो के, हे भगवन् ! आप मादा अपरावनी क्षमा करो? अज्ञानताने लीधे में आपनो अविनय का , एवो रीते क्षमा मागवाथी तेलो हाथ पाडो यथास्थित थाइ गयो, तथा शरीरनी वेदना पण दूर थइ. पछी ते विजयंत राजाए धर्मसंबंधि हकीकत पूछवाथी आचार्यश्रीए तेने दयामूल जैनधर्मनो उपदेश कर्यो अने तेथी ते विजयंत राजाए
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विक्रम संवत ७२३ मागसरसुदी १० गुरुवारे जैनधर्म स्वीकार्यो, अने सम्यक्त्वसहित श्रावकना बार व्रतो अंगीकार कर्या. पछी तेना मामाए जयंतने पाछो लोहियाण नगरनी राज्यगादीपर स्थापन कर्यो. हवे ते विजयंत राजानी खीमजा नामे मिथ्यात्वी गोत्रदेवी हती, अने तेणीने चैत्र तथा आसुनी पूर्णिमाने दिवसे सात पाडा, एकवीस बकरी अने सात मण मंदिरानुं बलिदान अपातुं.परंतु आचार्य महाराजे तेणीने प्रतिबोधीने ते जीवहिंसा अटकावी, तथा तेने बदले त्रणशेरीआ एकवीस लाडवा,सात पण खजुरनुं पाणी तथा सात मण टोपरानुं बलिदान अपावी संतुष्ट करी. तेणीनी चार भुजावाळी तथा वाघना आसनवाळी सुवर्णमय मूर्ति छे, तेणीना
हाथमा वींझणो, बीजामां कातर, त्रीजामा त्रिशूल अने चोथा हाथमा खपर छे.
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( १५ )
विजयंत विगेरे जैनी राजान
हवे ते विजयंत राजाने देमाई, सोमाई, कस्तूराई, श्रीबाई. कपूराई, राजबाई, लखमा अने पुनाई नामनी आठ राणीओ हती. तेमां देमाईनो जयमल्ल, सोमाइनो जादव, पुनाईनो जोधा, अने श्रीबाईना जोगा अने जयवंत नामे पुत्रो हता. तेओमांथी जयमल विक्रम संवत ७३५ मां विजयंत राजानी राज्य गादीवर बेठो, तेनी गादीए संवत ७४१ मां तेनो भाइ जोगा बेठो. तेने पूराईआदिक सात राणीओ हती, तथा शिवा अने देवा नामे बे पुत्रो हता, तेओमांथी शिवा शस्त्रघातथी मरण पाम्यो, अने देवा नपुंसक होवाथी ते जोगानी गादीपर तेनो भाइ जयवंत संवत ७४९ मां बेठो. तेने संपू, रमाई अने जीवाई नामे त्रण राणीओ हती. तेओमांथी संपूनो श्रीमल्ल नामे, तथा रमाईनो वना नामे पुत्र हतो. ते वना कोइक कारणथी जलम पडी मरण पाम्यो, अने श्रीमल्ले नागेंद्र गच्छमां चारित्र लीधुं, अने तेनुं सोमप्रभाचार्य नाम पाडवामां आवणुं. अने तेथी घनानो पुत्र मागनी राज्यगादीवर विक्रम संवत ७६४मां
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बेठो. हवे एवामा भित्रमाल नगरनो उपर पूर्णवेलो जयंत राजा पुत्ररहित मरण पायो, अने तेथी तेना राज्य माटे सर्व गोभियोमा क्लेन थयो.तेजोइ बलकान एवा भागाराजाए से भिन्नमालनु राज्य पण पोते लेइ लीवू, अने ते राजा महामतापी थयो, तेनु राज्य छेक गंगानदीला किनारासुधी विस्तार पान्धु हतुं. एवी रीते ते माणराजाने राज्यासनपर आगे अग्यार वर्षों वील्यावाद ( संसारीपणाना तेना काका) नागेंद्रगच्छीय श्रीसोमप्रभाचार्य भित्रमालमा पधार्या, अने तेमणे पोता. ना सर्व कुटुविओबचेनो क्लेश दूर करायो, राजा भाणे धणी बिनति करीने पोताना काका पवा ते श्रीलोमनमाचार्यने त्या चतुर्मास राख्या, अने तेमना उपदेशथी भाणा रानाए संघसहित भानुजय तथा गिरनारनी यात्रा करवानी मनोरथ कयों, तथा सोमप्रभाचार्यजीने पण संवसाये पधारमा विनंति करी, तेम बीजा गच्छना पण पणा आचार्याने संघमा आववा माटे राजा माणे विनंति करी बोलाव्या, ते साथे पोताना कुलपरंपराना गुरु श्रीउदयनमसूरिजीने पण बोलाव्या.
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(१७) जाणराजानोसंघपरिवार ते भाण राजांना संघमा सात हजार रथ, सवालाख घोडा, दश हजार अग्यार हाथी, सात हजार पालखी, पचीस हजार भार उपाडनारा उंट, पचास हजार बळद, अने अग्यार हजार गाडओ हता.
कुलगुरुङमाडे निर्णय हवे राजाभाणने संघवी पदर्नु तिलक करवा वखते #ী অঅঙ্গসুজি হালাল বিষ্ণঃ স্ব ঘাট ৰ অাহ অত্য, एकामा राजाना काका श्रीसोमप्रसाचार्य का के, आ माणराजा मारो मत्रीजो थाय छे, माटे संघपति तिलक
तेने करीश. आथी करीने तेओ बच्चे परस्पर विवाद थयो त्यारे भाणराजाए बीजा गच्छोना संघसाथे जवामाटे पधारेला सर्व आचार्योने एकठा करी घूछेयु के, मातिलक करवामाटे कोनो हक छ ? त्यारे तेओए का के परंपरामा चाल्या आवता कुलगुरूनो तिलक कर बामाटे हक छे, बीजानो हक नथी, एवी रीते निर्णय थवाथी श्रीउदयप्रभसूरिजीए भाणराजाले तिलक वधाव्यु.
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(१८) कुलगुरुमाटे करेली मर्यादा. त्यारवाद ते भाणराजाए पूछयु के अमुक आचार्य अमुक माणसनो कुलगुरु छे, एवी खातरी हवेथी शीरीते करवी ? त्यारे ते सर्व आचार्योए मलीने एवी मर्यादा बांधी के, आजथी मांडीने जे कोइ आचार्य जेने प्रतिबोधे, ते आचार्य ते माणसना पत्रआदिक सर्व परिवारनां नामो एक वहीमा लखवा.
कुलगुरुर्चए करेली इतिहास
लखवानी शिरुआत. आवी रीते नामोविगेरे लखपाथी परदेशमा रहेलाने पण खातरी थाय के आ आक गुरुनो श्रावक छे. बळी बीजी एवी पण मर्यादा बांधी के कोइ आचार्य बीजा ग
छना कोइ श्रावने प्रतिबोधी दीक्षामाटे तैयार कर्यो, त्यारे सेना परंपराना कुलशुरुनी आज्ञा लेइने तेने दीक्षा आपवी, परंतु जो कुलगुरू आज्ञा न आपे तो न आपबी, तेमज प्रतिष्टा, संघवीपद तिलक अने व्रतोच्चारआदिक
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कार्यों पण कुलगुरुपासेज करावा. कदाच कुलगुरु परदेशमा होय तो तेमने त्यांथी बोलाववा, अने एवी रीते आमंत्रण कर्या छतां पण जो ते न आवे, तो पछी बीजा गुरुपासे ते प्रतिष्टाआदिक धर्मकार्यों करावयां, अने त्यास्थी जेणे प्रतिष्टाआदिक कयों, तेज तेना कुलगुरु थया. आवी रीतना करेला निर्णयना लखाणपर नागेंद्रगच्छीय श्रीसोमनभाचार्य, उपकेशगच्छीय श्रीसिद्धसरि, निवृत्तिगच्छीय श्रीमहेंद्रसरि, विद्याधरगच्छीय श्रीहरियाणंदसूरि, ब्रह्माणगच्छीय श्रीजजगसूरि, सांडरगच्छीय श्रीईश्वरसूरि तथा बृहद्गच्छीय श्रीउदयप्रभसूरि विगेरे चोर्यासी ग
छोना नायकोए सही करी, अने तेगा राजाभाणे साक्षी करी. उपर प्रमाणेनी मर्यादानो छेवटनो निर्णय श्रीवर्धमानपुरमा विक्रम संवत ७७५ ना चैत्रसुदी सात कों.
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(२०) जिन्नमाखना नाणराजाना ओशवालनी
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संघ सहित यात्रा करी ते भाणराजा पोताना मित्रमाल नगरमा आव्यो. ते भाणराजाने त्रणसो पचीस राणीओ हती, परंतु तेओमाथी कोइने पण संतान नहोर्नु, त्यारे राजाए पोताना कुलगुरुने ते माटे पूछतां तेमणे क के उपकेश नामना नगरमा जयमल्ल नामे उपकेश (ओशवाल ) ज्ञातिनो शेठ वसे छे, तेने रत्नाबाइ नामनी उत्तम गुणवाली पुत्री छे, तेणीनी साथे लग्न करवाथी तमोने पुत्र थशे. ते सांभळी भाणराजाए खुशी थइ तेणीनतेना पिता पासेमा करा, परंतु ते वणिके क्षत्रियराजाने पोतानी पुत्री आपी नही, बलात्कारे पण ते कन्या मलबी अशक्य लागबाथी राजाए ते कन्या मेळ वा माटे सभा भरी बीईमुक्यं, परंतु कोइए ते बीडं उपाड्युं नही. पाछळयी त्यांनी एक वेश्याए गुप्त रीते ते बीडु राजापासेवी ग्रहण कर्यु. पछी ते वेश्या जोगणनो वेश पहेरी उपकेश नगरमा आवी, अने त्यां ते कोटीध्वज जयमल्ल नामना नगरशेठने घेर भिक्षा लेवाने बहाने गइ.
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(२१) पछी धीमेधीमे ते हमेशा त्यां जइ शेठनी पुत्री ते रत्नाबाई साथे वार्तालाप करी तेणीने खुशी करे. एवी रीते छमास वीत्याबाद तेणीए लाग जोइ एक बखत रत्नाबाइने कह्यु के, तुं भिन्नमालना भाणराजानी पटराणी था? कन्याये कडं के ते राजाए मारा पितापासे मार मागुं कराव्युं हतुं, परंतु मारा पिताए ते कबुल कयु नही. त्यारे फरीथी ते जोगणे कडं के जो तारी इच्छा होय तो हूं ते कार्य करावी आ. कन्याए कडं के जो ते राजा मने एक वचन आपे, तो हुँ गुप्त रीते तेनी साथे लग्न करूं. जोगणे तेम करावी आपवानी कबुलात आपवाथी कन्याए पण हा पाडी. पछी ते जोगणे मिन्नमाल जइ भाणराजाने ते सर्व हकीकत जणावी. ते सांभळी खुशी थयेलो भाणराजा वेष बदली गुप्त रीते उपकेश नगरमा आव्यो, तथा त्यां तेने रत्नाबाइ साथे गुप्त मेलाप थयो. रत्नाबाइए कडं के तमारे बीजी घणी राणीओ छे, अने हालमा जोके तेओने कंई संतान नथी, परंतु कदाच आगामिकालमा संतान थाय, तो तेने राज्य मले, अने मारा संतानने तो राज्य मले नही तो पछी अमो बन्ने मातापुत्रनी शी दशा वाय ते सांभळी भाणराजाए तेणीने बचन 'आयु के
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(१२). जो तने पुत्र थशे, तो हुँ बीजा कोइने पण राज्य नहीं आपतां तारा पुत्रनेज राज्य आपीश, एवी रीते राजाए वचन आपी ते माटे देवगुरुनी आणा करी. त्यारे ते रत्नाबाइ गुप्त रीते राजा माणसाथे मिन्नमाल आवी, अने त्यां महोत्सवपूर्वक तेओनां लग्न थयां. ते वखते रत्नाबाइनी उमर फन तेर वर्षोनी हती. पछी रत्नाबाइए ते हकीकतथी पोताना मातापिताने पण वाकेफ का. लभ पछी पांच वर्षों वीत्याबाद रत्नाबाइए पोताना पिताने घेर एक पुत्रने जन्म आप्यो. अने त्यारपछी तेणीए एक बीजा पुत्रने पण जन्म आप्यो. तेओ बन्नेना राणा अने कुंभा नामो हता. हवे पुत्रोना जन्मबाद माणराजाने जैनधर्मपर अत्यंत श्रद्धा थइ,अने तेथी तेणे पोताना कुल. गुरू शंखेश्वरमच्छीय श्रीउदयमभगुरुपासे श्रावकना पार व्रतो अंगीकार कर्या. तथा विक्रम संवत ७९० ना मागसर सुदी दशम रविवारे तेणे नगरमा एवी उद्धोषणा करावी के, जे कोइ माणस मारो साधर्मिक थशे, तेना सर्व मनोवांछित हुं संपूर्ण करीश.
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( २३ ) श्रीमाली श्रावकोनी उत्पत्ति.
हवे ते समये ते भिन्नमाल नगरमा श्रीश्रीमाल ब्राहाण ज्ञातिना बासठ करोडपति नगरशेठो वसता हता. भाणराजा तेओने घणुं सन्मान आपता हता, अने तेओ पण तेना आदरमानथी संतुष्ट थइ राजापर घणोज प्रेम राखता हता. पोताना राजा भाणने एवी रीते परमजैनी थयेलो जाणीने तेओने पण शुद्ध दयामय जैन धर्म स्वीकारवानी इच्छा थइ. अने तेथी त्यां विचरता शंखेश्वरगच्छीय श्री उदयप्रभसूरिए ते बासठ शेठीयाओने प्रतिबोधी वासक्षेप नाखी विक्रम संवत ७९५ मां श्रीमाली जैनो ( श्रावको ) कर्या. ते बासठ करोडपति शेठोनां नामो तथा तेमनां गोत्रोनां नाभो नीचे जणाव्या मुजब हर्ता.
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गोत्रनुं नाम. शेठनुं नाम. १ गौतम - विजया
२ हरियाण - संख
६. काश्यप- झूना
७ वारिधि - राजा
( २४ )
३ कात्यायन - श्रीमल्ल
४ भारद्वाज ( भादरायण ) - नोडा
५ आग्नेयवधा
८ पारायण - सोमा
९ वंसीयाण - भूमच १० खुड्डीयाण ( खोडायाण ) - जोगा
११ लोढायण - सालिग
१२ पारस - तोला
१३ चंडी सर-नारायण १४ देहील-झंबा
१५ पापच - समधर
१६ दाडिम- शंकर
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गोत्रनुं नाम. शेठनुं नाम. १७ सांख्य-मना
१८ महालक्ष्मी - मना
१९ वीजल - वर्धमान
२० लाछिल - गोवर्धन
२१ द्वीपायन - गोधा
२२ पारध - भीम
२३ चक्रायुद्ध - सारंग
२४ जांगल - रायमल्ल
२५ वाछिल - धना
२६ मादर - जीवा २७ तुंगीयाण-विजय
२८ पायना - वायड
२९ एलायन - कडया ३० चोखायण - झांझण
३१ अक्षायण - पोषा
३२ प्राचीन - राजपाल ३३ कामरू - सहदेव ३४ भोमान - कर्मण
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३८ राजल - विष्णु ३९ स्वस्थित - देपा
गोत्रनुं नाम. शेठनुं नाम. ३५ चंद्र - मोका
३६ टाटर- आदित्य
३७ छाहिल - हरखा
४० अमृत-चंड
४१ चामल - नाना ४२ कौशिक - हरदेव
४१ बहुल-भुभच ४४ नागड - भोला
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४५ झायण - सीपा ४६ डोड - नथुय ४७ जीतघर - हाथी
४८ जालंधर - घोड
( ३५ )
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गोत्रनुं नाम. शेठनु नाम.
४९ तक्षक-हुँज
५० खागिल-सांतू ५१ वायव - लखु
५२ सारधि - डूघा ५३ धीरध-वधा
५४ आत्रेय - श्रीपाल ५५ आहटा - कीका ५६ कर्कस - गोना
५७ बंबायन - सहसा
५८ कुंभक-भीम ५९ दीर्घायण - हपा
६० तोतिल - रंग
६१ बटुसर- धरण ६२ वर्णिका - गोवींद
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पारवाम श्रावकोनी उत्पत्ति. त्यारबाद तेज श्रीउदयप्रभमूरिजीए त्यो वसनारा माग्वाट ब्राह्मण ज्ञातिना आठ शेठोने विक्रम संवत ७९५ना फागण सुद बीजने दिवसे प्रतिबोधिने जैनी कर्या, अने तेओ प्राग्वाट ( पोरवाड ) ज्ञातिना श्रावको थया. ते शेठोना तथा तेमना गोत्रोना नाम नीचे सुजव छे. गोत्रन नाम. शेठनुं नाम. गोत्रनुं नाम. शेठनु नाम. काश्यप नरसिंह पारायण नाना पुष्पायन माधव कारिस नागड आग्नेय
वैश्यक रायमल्ल वच्छस माणिक माढर
त्यारवाद ते श्रीमाली तथा पोरवाड ज्ञातिना जै. नोए साये मळीने श्रीभिन्नमाल नगरमा श्रीशांतिनाथ प्रभुनो प्रासाद बंधाव्यो.
___-- --- --- निन्नमाल नगरनी चमती पमती
एवी रीते विक्रम संवत ७९५ मा ते प्राचीन भिन्नमाल नगरनी घणीज जाहोजलाली हती, केमके
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ते वखते तेमा करोडपति व्यापारीओ वसता हता, तथा परमजैनी भाणराजा त्यां राज्य करतो हतो.श्रीयाली तथा पोरवाड विगेरे जैनोनी त्यां वसति हती, अने तेओ सर्वे सुखी जींदगी गुजारता हता. एवी रीते दिन प्रतिदिन ते नगरनी वृद्धि पामेली जाहोजलाली दुनियामा प्रसिद्ध थइ. छेवटे संवत ११११ मां ते नगरनी समृद्धि लुंटवाना लोभथी मुसलमान राजाए * ते भिन्नमालपर, चडाइ करी लुटीने तेनी जाहोजलालीनो नाश कर्यो, लाखोगमे माणसोने मारी नाख्या, तथा घणाओने केद करी वटलाव्या, तथा तेमनुं द्रव्य विगेरे लुटी पायमाल का. जे कोइ जुज माणसो ते बखते त्यांथी नाशी बीजे जता रह्या, तेओज जीवता रह्या. इतिहासमा जोता एम जगाय छे के आ भिन्नमाल नगरे पोतानी जाहोजलालीनी घणी वखत चडती पडती अनुभवेलीछे.
एवी रीते सर्व मळी सीतेर गोत्रोने प्रतिबोधनारा श्रीउदयप्रभसूरिना प्रभानंदररि तथा वल्लभमूरि नामे
हस्तलिखित प्राचीन लेखोमा आमुसलमान राजानं नाम 6 बोडी मुगल "लखेल छे.परंतु ते कोण अने क्यांनो राजा हतोते संबंधि इतिहास मळी शक्यो नथी.
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(२८) बे शिष्यो आचार्यपद पाम्या. तेओमाना प्रभानंदरिजीने नाणकपुर गामना नगरमा जिनदास आदिक श्रावकोए महोत्सवपूर्वक सूरिपद आप्यु, तथा त्यांना शत्रुशल्य राजाने ते मूरिजीए प्रतिबोधी जैनी कर्यो, ते राजाए तेमना उपदेशथी संघसहित शत्रुजयनी यात्रा करी साधार्मिकोमा सोनामहोरोनी ल्हाणी करी जैनधर्मनी घणी उन्नति करी. ते प्रमाणंदमरिजीने घणा शिष्यो हता, अने तेमनो परिवार नाणकगच्छना नामथी प्रसिद्ध थयो. नाणकगच्चनी तथा वहनीगच्बनी
पटावली. नाणकगच्छना आचार्योनुं नाम. मूरिपदनो विक्रम संवत. १ प्रमाणंदसूरि
८३२ २ धर्मचंद्रमूरि
८८० ३ सुमिणचंद्रसूरि
९२२ ४ गुणसमुद्रसूरि
९५७ ५ विजयप्रभसूरि
९९५ ६ नरचंद्रसूरि
१०१३ १ धीरचंद्रसरि
१०७१
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८ मुनितिलकसरि
११०२ ९ जयसिंघसूरि (विधिपक्ष अंचलगच्छ)* ११३३ १० आर्यरक्षितमूरि
११६९ ११ जयसिंहमूरि
१२०२ १२ धर्मघोषसूरि
१२३४ १३ महेंद्रसिंहसूरि
१२६३ १४ सिंहप्रभसूरि *
१३०९ १५ अजितसिंहमूरि १६ देवेंद्रसिंहसूरि १७ धर्मप्रभसूरि १८ सिंह तिलकसूरि
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* शासनदेवीए आ गच्छन । विधिपक्षगच्छ" नाम आयुं. तथा कुमारपाल राजाए तेनुं "अंचलगच्छ" नाम आप्यु छे.
* वल्लभीगच्छना छेल्ला पंदरमा नंबरना सिंहप्रमसरि आ गच्छमा आचार्य पदवीपर आववाथी ते वल्लभी शाखा त्यांथी बंध पडीने तेना परिवारनो समावेश सं. १३०९मां आ विधिपक्षगच्छमा थइ गयो.
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१९ महेंद्रमभसूरि २० मेरुतुंगसूरि २१ जयकीर्तिमूरि २२ जय केसरी सूरि २३ सिद्धांतसागरसूरि २४ भावसागरसूरि २५ गुणनिधानसूरि २३ धर्ममूर्तिसूरि २७ कल्याणसागरसूरि २८ अमरसागरसूरि २९ विद्यः सागरसूरि
आचार्यतुं नाह १ वल्लभसूरि २ धर्मचंद्रसूरि
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३ गुणचंद्रमूरि
४ देवचंद्रसूरि ५ सुमतिचंद्रसूरि ६ हरिचंद्रसूरि
( ३० )
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वल्लनी गच्छ.
सूदिपदनो विक्रम संवत
८३२
८३७
८६९
८९९
९२५
९५४
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७ रत्नसिंहमूरि
९७० ८ जयप्रभसूरि
१००६ ९ सोमप्रभसूरि
१०५१ १० सूरमभमूरि
१०१४ ११ क्षेमप्रभसूरि
११४५ १२ भानुप्रभसूरि
११७७ १३ पुण्यतिलकसूरि
१२०७ १४ गुणप्रभसूरि
१२५९ १५ सिंहमभसूरि
संवत ११७२ मां श्रीआर्यरक्षितसूरिजीए सीधल परमारवंशना राउत धर्मदासने प्रतिबोधी जैनी कर्या, अने तेनो परिवार " मीउडीया गोत्रथी प्रसिद्ध थयो.
तेमनी पाटे थयेला श्रीजयसिंहमूरिजीए संवत १२०८ मां हथुडीआ राठोड वंशना अखयराजने प्रति. बोधवाथी " हथुडीया " गोत्र, संवत १२२४ मा राठोड राउ फणगरने प्रतिबोधवाथी 6 पीडाइया " गोत्र, संवत १२२८मा परमारवंशी राउ श्री मोहनने प्रतिबोवाथी "नागडा" गोत्र, संवत १२२९मा सोलंकी परमार राउश्रीलालगने प्रतिबोधवाथी "लालण" गोत्र,
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संवत १२३१ मा डीडुज्ञातिना चौधरि बिहारीदासने प्रतिबोषवाथी " गांधी " ( सहसगणा ) गोत्र, तथा संवत १२५५मा जेसलमेरना चावडावंशी राउश्रीदेवडने प्रतिबोधवाथी " देढीया ( दुढीया)" गोत्र, एम सर्व मळी तेमणे छ गोत्रोने प्रतिबोधी जनी कर्या.
तेमनी पाटे थयेला श्रीधर्मघोषसूरिजीए विक्रम संवत १२४६ मां ( उपाध्यायपदे हता त्यारे ) राउत श्रीबोहडने प्रतिबोधी जैनी कर्यो, तेथी " बोहडसखा" गोत्र थयुं, तथा संवत १२५५ मां औदिच्य ब्राह्मण देवाणंदने प्रतियोधी जैनी करवाथी " देवाणंदसखा" गोत्र थयु, तथा १२६५ बहुआण वंशना राउश्रीमीमने प्रतिबोधी जैनी करवाथी चहुआण" गोत्र थयु,. तथा संवत १२६६ मा तातोला परमारवंशीय राउश्रीरणमल्ल तथा तेना पुत्र हरियाने प्रतिबोधवाथी " हरिया" गोत्र थयु. एबी रीते चार गोत्रोने श्रीधर्मघोषसूरीश्वरजी. ए प्रतिबोधी जैनी कया.
ते धर्मघोषमूरिनी पाटे संवत १२६३ मा श्रीमहेंद्रसिंहसूरि थया, ते खंभातमा पhषणा पर्वमा कल्प सूत्र वाचतां देवलोके गया. त्यारे तेमनी पाटे संघे एकठा
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थइने वल्लभीशाखाना श्रीसिंहप्रभसूरिजीने योग्य जाणी संवत १३०९ मा स्थापन कर्या.
हवे वल्लभीशाखामा थयेला श्रीरत्नसिंहमूरिजीए संवत १००५ मां डीड ज्ञातिना धांधल नामना शेठने प्रतिबोधी जैनी करवाथी “कांटीया" गोत्र थयु. तेमनी पाटे थयेला श्री जयप्रभमूरिजीए संवत १००७ मा परमार वंशीय राउत सोमकरणने प्रतिवोधी जैनी करवाथी " वडेरा" (वडोरा) गोत्र थयु.
वळी तेज परंपरामां थयेला श्रीपुण्यतिकसरिजीए संवत १२११ मा डोडीया परमार वंशना राउश्री सोमिलने प्रतिवोधी जैनी करवाथी " वाहणी" गोत्र थयु, तथा संवत १२४४मा चहुआण वंशना राउश्री वणवीरने प्रतिबोधवाथी "जासल" गोत्र थयु.
ओशवालोनी उत्पत्ति. श्रीवीरप्रशु पठी बावन वर्षों वीत्याबाद श्रीपाचनाथजीथी छठी पाटे तेमना संतानमा उपकेश गच्छा श्रीरनप्रभसूरिजी आचार्यपदपर आव्या. त्यारपछी अढार वो वीत्याबाद एटले श्रीवीरप्रभुथी सीतेरमे वर्षे ते
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मारवाडमा आवेली औश्या नगरीमा पधार्या. त्यां तेमणे चामुंडराय आदिक एक लाख एंसी हजार राजपुत्रोने एटले क्षत्रिओने प्रतिबोधीने जैनी कर्या, अने ते ओश्या नगरीना नामपरथी तेमनी ज्ञातिर्नु नाम " ओशवाळ" पाड्यु. ते माटे कोइ प्राचीन कविए नीचेमुजब कवित्त कहेलु छे.
कवित्त. श्रीवर्धमानजिनथकी वरस बावन पद लीयो। ताहुं अठदश वरस नयर ओसीईये इयो । प्रतिबोधे नाम चामुंड श्री सिद्धाचल पायो। अति अतिसयवंत अति तपसी केवायो। एक लाख असीसहस राजपुत्र प्रतिबोधीया। ॐ श्रीरत्न शेखरें ओसवाल ओसीइयें थप्पीया ॥१॥
ए रीते जैनी ओशवाळोनी उत्पत्ति क्षत्रिओमाथी आजथी लगभग चोवीससो वर्ष पहेलां थयेली संभवे छे. ते ओशवालोमा अनेक गोत्रो छे, तेमाना नीचेमुजब गोत्रोना नामो शास्रो तथा शिलालेखो विगेरेमा हालमा जोवामां आवे छे.
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জাস্বামী आदित्यनाग জাম आकोदडीया आंचलीया उसतवाल उसम उचितवाल ओहड कुर्कट कातेल কা केसवाणेचा कचरा
कांकरीया कांग कमल काबरीया कंबेडीया कोठारी कतकपुरा कठोड कुभटा कोहेचा कावडीया कात्रेला कोचर জ্বাই कांटीया कंठोतीया कठारा काकरेचा कसारा
खीमसरा खटोड खांटेड खामइया खारीवाल खढवढ জাম্ব गादइया गोलेछा गडीया गुजराणी আলহানী गोठी गांधी गांधीमोती गुगलीया गहेलडा गौतम गोखरू
कुकडचोपडा कटारीया कर्णावट
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Pumpyaropaumya
जारोडीया
घोडावत धीया धुलीया . चोरडीया चरवडीया चतकरीया चोरवेडीया चंडालीया
तातेड. तिलाणी तिलहरा तीवट देसरला
चोपडा
আর चुदालीया
जोरुडा জাতীয় झांबड झांगडा टप टोडरवाल डुंगरवाल डागा डफरीया डाकुलीया डागलीया दुबरीया डीडु, डंड ढीक डेढीया देलडीया
दरडा देवाणंदी दोसी दुधवेडीया देवलसखा दुधीयागांधी देवाणंदसखा देढीया दणवट दुधेडीया दुधीया
छाजेड
छजलाणी छन्त्रवाल छाव जांगडा जडीया जनाणी
धनेरीया
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पालणेचा पघला
बर्धन बरुडीया बहुरा बावेला
धोखा धाडीवाल धाडेवा धीर नाहटा नाहार नाबरीया नवलखा
बाभ
पीहरेचा पोसालेवा बोथरा बाफणा बलदोहा
बंब
बेछाच भाइचणा भूटी भंडारी भडगतीया भंडावत भेलडीया भणसाली
बांठीया
नागडा पावेचा
बुरड
बूटीया
पोहकरणा
बगाणी
पुगलीया पारिख पीपाडा पगारीया, पठाण
बोकडीया बंबोरी बोहड बोरीचा
मोर मोढा मोगर मानी मगथीया
बरडा
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(३८)
मुहणोत
माल्हु माल्हणु मुसल मघासरीया मुंडणेचा मीठडीया महोता मंहोरा मंडोवरा मूधाला राजडा
लुणावत लुणीया लालण ललवाणी लोढा लूसड़
वरमेचा वाहणी वरलद्ध वलही वाहडा वारडेचा वालत्य विदाणा वीराणी वेलहस
बोहोरा
वेगड
रांका रातडीया
बाघमार वीनायकीया वाघ वाघरेचा बंका वडेरा वणवट वरढीया
वेदमहता वोहराकाग सोनगिरा सहसगुणागांधी साल्हणेचा स्याल सीरोह्या संघवी
राठोड रोठोडीया
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श्रीमाल
सीरोह्यासंघवी संखवालेचा सोलंकी सुराणा सूणवाल सीसोदीया समुद्रडीया सांबरा सावलसंखा
सोनी सचेती सांडा समदडीया संखवाल
शंखला शंखी शेठ शेठीया हीरणा हथुडीया हरीया
सर
सिंघाडीया सोधिल श्रीश्रोमाल
श्रीमालीओनां गोत्र श्रीमालीओना प्रथम जे बासठ गोत्रो जणावेला छ, ते शिवायना नीचेमुजब श्रीमालीओनां गोत्रो अथवा ओडको पण प्राचीन ग्रंथो तथा शिलालेखो विगेरेमा जोवामां आवे छे.
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गोवलीया
धेवरीया: चंडालेचा
जंबहरा
जरगड
टांक
डरडा
डोर
दोसी
धामी
धीश्रीद
नलुरीया
पल्हड
पाताणी
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( ४० )
पापड
फोफलीया.
बदलीया
बहरा
भांडावत
भांडीया
महुवीया
मेहेता
महरोल
माथलपुरा
मौठिप्पा
वहकडा
साहु
सिंधुड
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लींबडीया सींदडीया
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तलाजीयागांधी
सालगिरा
गोरसीया
वारीया
सरकडीया
पुनातर
मणीयार
झूझाणी
वोरा
मघासर
चुकडीया
पोरवाड ज्ञातिमां आ पुस्तकमा जणाव्या शिवायना बीजां नीचे मुजवना गोत्रो अथवा ओडको पण प्राचीन शिलालेखो विगेरेमां जोवामां आवे छे-झूलर, मुंटलीया, लींगा, मांडलीया, कुणगिरा, पटेल, नखत, लोलाणीया, पोरुआ विगेरे.
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अग्रल ज्ञातिमा गोत्रो अथवा ओइको--गांगल, गोयल, पिपल, वासिल विगेरे.
अत्तालज्ञातिना-गोपल, क्रूर विगेरे. खंडेलवाल ज्ञातिना-गोधा विगेरे. संडिल्लचाल तथा जेसबालना-कष्टहार विगेरे.
नीचे जणावेला जैन गोत्रोअथवा ओडकोमाची ना जैन शिलालेखो विगेरेमा देखाय छे, परंतु तेनी ज्ञाति ते लेखोमा जणाती नथी-उजावल, उसियड, मोष्ट, काणा, काद्रडा, खांदडा, स्वरज, घेवरीया, घोरवडा, जीजीयाणा, जलहरु, जाड, दुताड, द्रानाडा, दुल्लह, बांध, नानाडा, मालिडीया, भांडीया, मुंडतोड, रोहदीया, वायडा, बोरठेच, वार्तिदीपा, सयल, मोट, प्रतिहार फसला, मिधुज, रायभंडारी, राउआ, रहुराली, बणागीया, वपुराणा, स्त्रवाणा, सीह, शानापति, फंडरेक विगेरे
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२
जैनोनी मुख्य शातिओ. नीचे जणावेली जैनधर्म पाळनारी ज्ञाति प्रो प्राचीन शिलालेखो ग्रंथो विगेरेमा जोवामां आवे हे---- ओशवाल-वृद्धसजनीय, अथवा वृद्धशाखा-वीसा)
(लघुसजनीय, अथवा लघुशारखा-दसा ) श्रीमाली--( वृद्धसजनीय, अथवा वृद्धशाखा-वीसा)
(लघुसजनीय, अथवा लघुशारखा-दशा) माबाट (बुद्धशाखा---वीसा) (पोरवार) (लघुशाखा ---दशा)
अग्रवाल, अत्ताल, खंडेलवाल, संडिलबाल, जैसवाल, बर्कट, नना, नागर, नारसिंह, नीमा, पल्लीवाल, पापडीवाल, मंत्रिदलिय , महतियाण, राजपुर, बरवाल, हुबड विगेरे.
उपर जणाव्या मुजब नामोवाळ प्रायें करीने ओसवाल ज्ञातिमा मूळ गोत्री प्रसिद्धमा आवेला देखाय छ, ते शिवायना बीजा पण मूळ गोत्री होवानो संभव छ, पायें करी ते मूळगोत्रोमाथी धंधाने अंगे, कोइ गामना अथवा देशना रहेबास ने अंगे, बंशमा श्रयेला कोइ मुरलय पुरूप ने अंगे बगी धनी शाखाओ, तुग्रो, ओडको विगेरे
sangram
.
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निकळेली छे, जेमके " झवेरी ", "पारकरा", "सरवाणी" विगेरे
परंतु साधारण रीते जोती ओशवाळ ज्ञातिमा मुख्य वे शाखाओ जोवामां आवे छे. १ वृद्धसजनीय एटले वीसा ओशवाल तथा २ लघुसजनीय एटले दशा ओशवाल, एटले के मूल उत्पत्ति समये सर्व ओशवालो बीसा ओशवाल हता, परंतु पंचमकालना माहात्म्यमी समय वीत्ये ते ओशवालोमाला जे गोत्रना जे माणसे पुनलग्न ( घरघेणु-संग्रहणं) कयाँ, ते माणसथी तेना वंशजो दशाओशवाळ ज्ञातिना थया, अने ए रीते मूल वीसा ओशलाल ज्ञातिना घणा माणसोए करवाथी तेओमी पण महोटी संख्यावाळी ज्ञाति थइ. अने ते दशा ओशवाळना नामथी प्रसिद्ध थइ. हवे हालमा आसुधरता जमानाने अनुसरी ते दशाओशवाळनी ज्ञातिमाथी पण ते घर घेणानोरीबाज घणाखरा देशोमाथी नाबुद थयो छे. आ दशा ओशवाळो “ऋच्छी महाजनना" बामथी पण ओळखायछ, केमके तेओनी बालछमां घगी वसति छे, ते झातिना व्यथा साहसिक व्यापारीओ मुंबई आदिक शेहेरोमा बसे छे, तथा सारु द्रव्य कमाइने तेओए बणा या मार्मिक कार्यो करेलाई
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(92) श्रीमालोओमां पण उपर जणावेला पुनयना का रणथी वीसा श्रीमाली, अने दशाश्रीमाली एम के मुख्य शाखाओ थयेली है. परंतु हालमा से दशाश्रीमालीओमांथी पण ते पुनर्लननो रीवाज घणावरा देशोमांथी निकली गयेलो .
आ पुस्तकमा जे जे गोत्रनी जे जे गोनदेवीना करो विगेरे लख्या के, ते करो ना माचीन लेखने अनुसारे
मी जेवा लख्या हता तेवा वाप्या है, परंतु से सैकडो व पीपलानां मूल करो है. आज काल घृणा गोत्रोनी गोदना ने करो विगरेमा कालने योगे कोह कोह कारणोथी वो फेरफार वयेलो जणाय थे, माटे तेना संववमा विश्रममां नही पडवा सर्व भाइओने विनंति है. ली. का पुस्तक छापी मसिद्ध करनार पंडित श्रावयः हीरालाल हंसराज लालन
जामनगरवाळा )
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|| श्री जिनाय नमः ॥
श्री जैन गोत्र संग्रह.
X
संग्रह करी छपावी त्रसिद्ध करनार पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज ( जामनगरवाळा- लालन )
हरियाण गोत्र. ( श्रीमाली ) ( मुख्य शाखाओ )
वृद्धसजनीय ( वीसा ), लघुसजनीय ( दसा ) ( पेठा शाखाओ )
आंबलीआ, मणीयार, वहोरा, वींछीवाडीआ, सहसा, गुणा, कका, ग्रथलीया, अन्ना विगरे.
आ गोत्रनी उत्पत्ति - विक्रम संवत ७९५ मां भिन्नमाल नगरमां श्रीमाली ज्ञातिनो अग्यार कोड द्रव्यनो मालिक ia नामे वैष्णव शेठ रहतो हतो. तेने उदयप्रभसूरिए प्रतिबोधीने जैन कर्यो, तेना वंशमां विक्रम संवत ११११
"
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( २ 2 )
मां सहसाशाह नामे शेठ थयो. ते वखते भिन्नमाल नगरनो मुगलोए नाश करवायी ते सहसाशाह त्यांथी नाशी थिरा दिमां (थरादमां ) आवेला अचवाडी गाममां आवी वस्यो. तेना वंशर्मा थयेला महीपति नामना शेठनी जोगिणी नामनी स्त्रीथी आका, वांका, नाका तथा नोडा नामे चार पुत्रो थया. तेथी वांकानो पुत्र काला, अने ते कालानो वइजा नामे पुत्र उमटा नामना गाममा आवी वस्यो. ते वइजाने संतान न होवाथी तेणे पोतानी चामुंडा नामनी गोत्र देवीने आरावी. त्यारे देवीए प्रत्यक्ष थह कधुं के जो तुं अहीं मारुं मंदिर बंधावी तेमां मारी सुवर्णमय मूर्ति स्थापन करे तो तने संतान थाय. तेने ते कबुल करी देव. नो प्रासाद ते उमटा गाममा करावी तेमां एक मण सुवर्णनी पोतानी गोत्रदेवीनी प्रतिमा करावी स्थापन करी. अने त्यारबाद विक्रम संवत १३११ मां ते वइजाने पुत्र थयो. त्यावाद केटलेक दिवसे ते गाममां यवनो आव्या, ते वखते ते गोत्रदेवोनी मूर्ति उछलीने कुवामां पडी. रात्रिए वइजाने स्वप्तामां आवी कछु के, हवेथी हुं मारां ते मंदिरनी पासे आवेला आंबलीना वृक्षर्मा रहुं छं, से दिवसथी ते देवीतुं 'आंवलीआवी ' नाम प्रसिद्ध थयुं,
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अने ते वइजाना वंशजो त्यारथी "आंबलीया" कहेवाणा. आ गोत्रमा उत्पन थयेला केटलाकमणीयार" नी अडकथी पण ओळखाय छे.
मलदेवी-चामुंडा, तेत मक स्थान मिन्नमाल नगरमा उत्तर तरफना दरवाजा बहार वाराहीना पाडा पासे चामुंडानी डुंगरीपर छे. तेनी मूर्ति चार हाथवाळी, वाधना आसनपर बेठेली छे. पाछळथी-तेणीनु " आंबलीश्रावी" नाम थयुं, तेणीनुं स्थान ऊमटा गामना छे तेनी मूर्ति पण चार हाथवाळी तथा बाधना आसनपर बेठेली छे. पूजाविधि-पूर्व सन्मुख पाटलापर ते देवीनी रूपानी अथवा त्रांचानी भूर्ति पासे, अथवा बीटसहित पीपळतुं पान राखी ते पर एक लीटी कंकुनी करवी. अढीशेर घीनी लापसी, अने नव पूडलाचं निवेद करवू. एक श्रीफल बधारचु, तेमाथी अर्ध श्रीफलना छ टुकडा, सवायज कपहुं तथा चार पीरोजी (चलणी सिका) एटलुं फइने आप एरीते दर वर्षे आसुसुदयां चम, अथवा आम तथा चैत्र सुद पांचम अथवा आठसे पूजन करचुं. तेमज तेज विधिथी पुत्रना जन्मे, परणे तथा त्रिजडवासणीए करवं. पुत्री गाटे तेथी अर्थ, एटले सवाशेर घीनी लापसी
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( ४ )
अथवा लाडवा करवा. जलनी त्रण धारावडी देवी.
आ आंवलीया गोत्रना वंशजो इलीचपुर, लोलीयाणा, बीवडा, पाडला, पाटण ( फोफलीपाडो ), अहमद - नगर, वीजापुर, तारापुर चंदनथोरी, मेहेसाणा तथा मा. तर, कुणगिरि, कपडवंज विगेरेमां वसे छे. आ वंशमा भावडथी लघुसजनीय ( दशा ) थया छे. मेसाणाम मणीयार अडकवाळा वसे छे.
आ वंशमां कुणगिरि गामम थयेला धोकाशाह नामना शेठे विक्रम संवत १३२५मां श्रीयुगादिदेवनुं जिनमंदिर बंधाव्यं, तथा तेनी प्रतिष्ठा अंचलगच्छना श्रीदेवेंद्रसिंहसूरए करी. बळी सलखणपुरमां वसनारा सांगाशाह नामना शेठे विक्रम संवत १४६८मां अंचलगच्छना श्री मेरुतुंगसूरिना उपदेश थी जिनमंदिर बंधाव्यं. आ वंशर्मा अकाना वंशजो वहोरानी अडकवाळा छे. वींछीवाडाना रहीस वहोरा पदमसीए त्यां सां. १४३९मां श्रीमुनिसुव्रत स्वामीनो जिनप्रासाद कराव्यो, तेनी प्रतिष्टा श्रीमेरुतुंगसूरिए करी, तेमज दानशाळा करावी. आ हरियाण गो मां वींछीवाडीया, सहसा, गुणा, कका, ग्रथलीया, तथा अन्ना विगेरे घणी शाखाओ छे.
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गाहा गोत्र. (ओशवाल)
(मुख्य शाखाओ) आथा, समरखी, बुहड, वहंद, कटारीया, अधोइया, भुगतरीया, घलइया विगेरे.
(पेटा शाखाओ) हापाणी, नागार्जुनाणी, वाघाणी, वीसाणी, सिवाणी,
जेसंगाणी, वागडेचा, देधराणी, चाचिगाणी विगेरे. .. पूर्व यदुवंशमा थयेला श्रीकृष्णथी नवमी पाटे थयेला খুশী নাগলা বাসায় প্রাণী জাৰী মহল লাহ वसाव्यु. तथा तेनी गोत्रदेवी वीसहत्थी विसलदेवी नामे हती. त्यारपछी ते यदुवंशमा शोळमी पाटे राउल जेसलजी थया, तेमणे जेसलमेर बसाव्युं. त्यारपछी तेज बंशनी पचीसमी पाटे थयेला रावल शिवराजे कोटडा वसाव्युं. एवीरीते ते यदुवंशमां सोमचंद्र नामनो राजा त्रीसमी पाटे सिवकोटडामा राज्य करतो हतो. तेनी पासे पांच हजार सुभटोन सैन्य हतुं. ते सैन्यसहित चोतरफ तेलं. हफाट करतो. हवे एवामां अंचलगच्छना श्रीजयसिंहमरि पांचसो शिष्यो सहित अमरकोटमा आव्या. त्यां तेमना
rer
8
Tal
Padmeparaapa
RD
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( ६ ) ;
उपदेशथी मोणसीशाहे अजितनाथना बिंबनी स्थापना करी. त्यांथी विहार करीने ते आचार्यना शिष्यो ज्यारे. जैसलमेरतरफ आवता हता, त्यारे मार्गगां ते सोमचंद्रे, तेमने लुंट्या. आचार्यजीने खबर पडयाथी तेमणे पोतानी विद्याना प्रभावथी ते सोमचंद्र ने तेना सुभटोसहित मार्गमां स्तंभी राख्यो. त्यारे सोमचंद्रनी माता सरुपदेए ( मिणलदेए ) गुरुपासे आवी क्षमा मागी, अने सैन्यसहित पोताना पुत्रने मुक्त करवा विनंति करी. जय सिंहसूरिए कधुं के जो तारो पुत्र कुटुंबसहित जैनधर्म स्वीकारे, अने लुटफाट करवाना प्रत्याख्यान करे तो हुं तेने मुक्त करूं, तेणीए तेम करवा कबुल कर्यु, तथा ते माटे पारकरनो परमारवंशनो चांदण राणो जामीन पड्यो . त्यारे गुरुए स्तंभन विद्याने. पाछी. खेंची लेइ पांच हजार उमटोसहित सोमचंद्रने मुक्त कर्यो.. पछी ते सोमचंद्र परिवार सहित गुरुने वांदवा माटे जेसमेरमा आव्यो. त्यां श्रीजयसिंहसूरिना उपदेशवी ते. सोमचंद्रने परिवारसहित विक्रमसंवत १२११मां ओशवालोए पोतानी ज्ञातिमां दाखल कर्यो. पछी सोमचंद्रे ते. आचार्यश्रीना उपदेशथी कोटडामा श्रीपार्श्वनाथनुं तथा पोतानी गोत्रदेवी वीसल ( शिवया ) मातानुं, एम. वे
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शिखरबंध मंदिर बंधाव्या. पांच लाख द्रव्य खरच्यु, तथा सवामण सुवर्णनी शांतिनाथजीनी प्रतिमा तेणे करावी, अने तेनापर हीरामाणेक जडेलु सुवर्णतुं छत्र कराव्युं. ते सोमचंद्रनो गाल्हा नामे पुत्र थयो. ते वखते मुगलोए कोटडानो नाश करवाथी ते गाल्हा सिंघमा गयो. अने तेना वंशजो "गाल्हागोत्रीथी" प्रसिद्ध थया. ते गाल्हाथी दशमी पेढीए रुअड नामे पुरुष थयो, तेनी स्त्री
भइने नीचे मुजब सात पुत्रो थया. आथल, समरखी, बुहड, वहंदीओ, कटारीओ, अधोईओ ( तेनुं बीजुं नाम भुगतरीओ) अने घलईओ, ए सातेना नामथी तेमना वंशजो आथागाल्हा, समरखीगाल्हा, बुहडगाल्हा, वहंदगालहा, कटारीआगाल्हा, अधोइआगाल्हा अथवा भुगत. रीयागाल्हा, अने घलईआगाल्हाना नामथी मसिद्ध थया. बळी तेओमा हापाणी, नागार्जुनाणी, वाघाणी, वीसाणी, सीवाणी, जेसंगाणी, वागडेचा, देधराणी, चाचिगाणी विगेरे ओडको पण छे.
गोत्रदेवी-विसलमाता (शिवया माता) चार हाथवाळी छे. तेनुं मूळस्थान शिवकोटडागां खीजडाना शुक्षपासे छे तथा तेनुं बीजं स्थान नगरपारकरमांछे. गा
H
नगरपारकर
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लहाना सर्वे वंशजो बने तो त्यांजइ वाळकना बाळमोवाळा उतारे. अथवा कंई चग ( बाधा ) राखी ज्यां होय त्यां खीजडाना झाड आगळ उतारे.
पूजाविधि -- जन्मे, मुंडणे अने परणे खीजडाना झाड आगळ अठार पाली जुवार, एक मण घी अने बारशेर गोळनुं निवेद करें, तथा पाली एक घहुंना मैदाना खाज करे, श्रीफल बधारी तेनी शेष नियाणीने आपे, तथा जमाडे, अधरणी वखते उपरना करशिवाय साडात्रण गज चोळीयुं कापड, श्रीफल एक, तथा पायलुं नियाणीने आपे. दर वर्षे दीवाळीने दिवसे वे टोकडीयांना दळना लाडुनुं निवेद करे, तथा बे राती घडीमां बशेर खांड नाखी तेने दोरीथी बांधी अत्यजने आपे, अने तेनी पाछळ बे उंबाडां नाखे. भाइयो जूदा थती वखते पण ते कर करे.
आ गाल्हागोत्रना वंशजो चोरवाड, तिथ (वागड ) कोहाडा, विडा, बाडा, देसलपुर, रतनाणी, फरादी, भुजपर, वीजरखी, आसंबीया, कोडाइ, वडाला, बराहीया, खाखर, बेराजा, गलीचुरा, तेरा, बीसरा, टंडली, छसरा, रतडीया, डोण, गुंदाला, वीसोतरी, आरीखाणा, भोजय, लोठीया, लाखापर, वांकी, सरमतबेराजा, झांखर, ला
4233
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कडीया, कांडाकरा, कालुसबगडा, रायणा, लाइजा, नाराणपुर, चांगणाइ, पुनडी, बाडा, कुंदरडी, डुमरा, सेरंडी, दलनी तुंबडी, डबासंग, वसइ, चेला, कटारीया, जोगवड, भारापर विगेरे घणा गामोमा वसे छे.
आ वंशमा बिदडामा (कच्छमां) विक्रम संवत १६७२ मां थयेला खीमानी स्त्री खीमीए पंदर हजार कोरी खरचीने विदडामा पश्चिम तरफ वाव बंधावी. वडालामा (कच्छमां) थयेला खेतसी, पेथा अने देपाल नामना त्रणे भाइओए साठ हजार कोरी खरचीने घणां पुण्यना कार्यो विक्रम संवत १९६६ मा कां. देसरे गुंदालामा तलाव बंधाव्यु. संवत १९९६ मा माणके पीछणमा तलाव बंधाव्यु. जेसंगे पथदडीयामा सं. १५८५ मां वाव करावी. संवत १५९० मा वीरानी स्त्रीए पुत्र न होवाथी यक्षद् आराधन कयु, तेथी तुष्टमान थयेला यक्षना वरदानथी तेणीने छ पुत्रो थया. अने तेथी तेना वशमा थयेला जेसंगाणीओ अखात्रीजने दिवसे चारपवालांना खाजलांवडे ते यक्षनुं निवेद करे छे, तथा भादरवामां सोमवारे चार पायलांनी खीरमा साथीयो करी निवेद करे छे. ते छए भाइओनो परिवार बीसोतरी, खाखर, हाला तथा झांखर
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विगेरेमा छे. समरखीमां हेमल पुरिसो थयो, अने तेना. वंशर्मा ते गोत्रजपासे पूजाय छे, तेमज तेना वंशजो आसु बद १४ ने दिवसे बाळकना वाळ उतरावे छे, परणवाने दिवसे रात्रिजागरण करेछे, बे टोकडीयांनी लापसी करी सहुने वेंचे छ, तथा बे टोकडीयांना तलवट करी क्षेत्रपालने जुहारे छे, वळी तेओना गोत्रजना कर तो पूर्वे कह्या मुजब छे. विक्रम संवत १६६७ मां खाखरमां थयेला माडणे जिनमंदिरनी प्रतिष्टा करावी, तथा घl द्रव्यदान दीधुं.
नागडा गोत्र (ओशवाल)
(मुख्य शाखाओ.) गुजरनागडा, कच्छी महाजन नागडा. (कच्छी महाजन गागडाओनी मुख्य शाखाओ.)
वृद्धसजनीय (वीसा), लघुसजनीय (दसा) (कच्छी महाजन नागडाओनी पेटा शाखाओ.) डाकराणी, लालाणी, मेलाणी, नायकाणी, गेलाणी, वीसराणी, बोचाणी, आसराणी, घरमाणी, वीराणी,
पुनीआणी, नागीयाणी विगेरे,
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( ११ ) "थरपारकरमां आवेला उमरकोट शहरमां परमार वंशनो मोहनसिंह रावत नामे क्षत्रिय हतो, परंतु तेने संतान नहोतुं. एवामां विक्रम संवत १२२८मां, मतांतरे ( १२६५ ) मा विधिपक्ष गच्छना श्रीजयसिंहसूर त्यां चतुर्मास रह्या हता. मोहनसिंहे ते आचार्यजीने पुत्र माटे प्रश्न कर्यो. गुरुए कहां के जो तमो जैनधर्म स्वीकारीने विधिपगच्छनी समाचारी करो तो तमोने चार पुत्रो उपर पांचमो नागपुत्र थशे. रावत मोहनसिंहे तेम कर्यु. अने त्यारवाद तेने देवकरण, देवसी, उदेसी, तथा ल खमण नामे चार पुत्रो थया, अने ते जैन धर्म पाळवा लाग्या. पांचमो नागपुत्र थयो, तेने रात्रिंदिवस करंडीयामां राखे, तथा दूध पाइने उछेरे पछी रावत मोहणसिंहे पोताना द्रव्यना चार भागो चार पुत्रो माटे तथा वे पोताना मळी छ भाग कर्या, त्यारे ते नागे त्यां आवीने पोतानी पुंछडीनी झापट मारीने ते सघळा भागो विखेरी नाख्या. त्यारे एक नागनो भाग वधारे करीने तेना सात भागो सरखा कर्या. त्यारे ते नागे पोतानो. भाग फणथी खेसवीने पोताना पिताना भागसाथे मेळवी. दीधी. हवे एक दिवसे ते नाग ठंडीने लीधे रात्रीए गरम राखवाळा चुल्हामां सूतो हतो. एवामां मोहणासिं
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हने पेटपीड थवाथी शेकमाटे तेनी पुत्रीए चुल्हामा अग्नि सळगाव्यो, जेथी ते नाग बळी मूओ, अने व्यंतर देव थइ पोताना भाइओना ते कुटुंबने दुःख देवा लाग्यो. पछी तेणे प्रगट थइ का केमारी थापना करीने तथा मारा नामथी वंश स्थापीने भने पूजो, कुटुंबिओए ते कबुल कयु. तोपण ते नागदेवे एवो श्राप आप्यो के, आनागडावंशनी पुत्री सुखणी न थाशो. अने त्यारथी ते चारे भाइओना वंशजो नागडा गोत्रथी प्रसिद्ध थया. तथा श्रीजयसिंहमूरिजीए तेमने ओशवाळ ज्ञातिमा उमरकोटमा दाखल करावी दीधा. आ वंशमां घेणाणी, मेलाणी विगेरे अडको पण छे.
मूल स्थान उमरकोटमा ते नागनी देरी आथमणी दिशाए शेहेर बहार खीजडाना वृक्षनीचे छे, अने तेमा नागनी उभी फणवाळी मूर्ति छे. नागडा गोत्रना वंशजो त्यां जइ बाळमोवाळा उतरावे. अथवा कंई अड राखी पोते ज्यां रहता होय ते शेहेरनी बहार आथमणी दिशाए खीजडाना झाडनीचे नागनी रुपानी अथवा त्रांबानी मूर्ति राखीने त्यां तेनी पूजा करीने वाळमोवाळा उतरावे.
पूजाविधि--जन्मे, मुंडणे, पाणिग्रहणे, एम अण
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मायाल
0
RaveenpanceOppya
रासस
पुरसीओ करे. अने नागक्षेत्रपाल आगळ धरे, उपराउपर श्रण प्रणा लाडवा विगेरे चडावी तेनी निवेदनी हार करे. ___ आ गोत्रना वंशजो मोरबी, नवानगर, सुरत (गोपीपुरा), सुंदरा, अंजार, भुज,गोधरा, मांडवी, पोरबंदर, वेराबल, बख्खा , पाटण, वीरमगाम, पारकर, चोरवाड,प्रभासपाटण,दीव,खजुरडा,भोजाय,रतडीओ,कोटडी,वाढ,वीसोतरी, लाखाबावर, डबासंग, भद्रेसर, सोनारडी, पडधरी, मेमाणा, भातेल, चंगा, सेरडी, तरधरी,धानुंगाम, बारांभडी वाराही, पडाणा, चांगणाइ, मोडकुबा, मोडपुर, नागना, दोढीया, शफुदड, चेला, भुजपर, आसंबीया, वांकट, पीपली, धानेगाम, लुस, सरमत, तुंगी, मंजल, साभराइ, डुमरा, मांदा, बेडी, झाखर, पडाणा, बेराजा, कपाइया, विगेरे गामोमा वसे छे.
आवंशमा नगरपारकरमा विक्रम संवत १३९८माँ थयेला भोजा, उदयवंत तथा मेघाजल नामना त्रण भाइ. ओए वीस लाख पीरोजी वरचीने घण घणां धर्मना कायो कर्या छे. विक्रम संवत १६२४मा नवानगरमा थयेला तेजसीसाहे श्रीशांतिनाथजीन शिखरबंध मंदिर बे लाख
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कोरी खरचीने बंधाच्यु. त्यारबाद विक्रम संवत १६४८ मां बादशाह अकबरनासुबा खान आजमे मुजफरनीवती सैन्या लावी नवानगरपर चढाइ करी, अने हालारदेश मांज्यो, तेथी तेजसीशाह कच्छमांडवी नाशी गया. शांतिनाथजीनी ते प्रतिमा यवनोने हाथे खंडित थइ गइ, तथा देरासरमां पण घणी भांगत्रुट थइ. बीजे वर्षे तेजसीशाह पाछा मांडवीथी नवानगरमा आव्या, तथा सोरठ देशथी बीजी नवी शांतिनाथजीनी मूर्ति मगाची तेषां स्थापन करावी. पछी तेजसीना पुत्र राजसी तथा नेणसीए पोताना पिताए करेला ते खंडित प्रासादनो उद्धार करावी पितानी कीर्ति अजवाळी. तथा ते प्रासादने फरती बावन देरीओ अने शिखरनी पाछळ उपशउपर ऋण चोमख बांधीने ते पर सुंदर ढंक करावी, तेमा तेना वेवाइ लालणमोत्रीय चापसिंहे त्रीजा भागनुं खरच पुण्यनिमित्ते आप्यु, सर्व मळी तेमांत्रण लाख कोरी खर्च थयु. तेमा श्रीअंचलगच्छनायक श्रीकल्याणसागसूरिजीए सर्व विबोनी प्रतिष्टा करी. त्यारवाद नेणसीशाहे पोताना पुत्र रामसी, सोमसी तथा करमसीनी साथे मळीने व्रण लाख कोरी खरचीने श्रीसंभवनाथजीनी शिखरबंध सुंदर चो
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( १५ )
मुख प्रासाद बंधाव्यो, अने सहसफणा पार्श्वनाथना प्रासाद सुधी लावीने ते प्रासादने राजसी तेजसीना प्रासाद साथे मेळवी दीधो. वळी तेओए कालावड, मर्याांतरा, अने मांढा तथा भलसाणमां जिनप्रासाद तथा उपाश्रयो बंधाव्या. राजकोटना ठाकोर विभाजीना आग्रहथी तेओए त्यां श्रीकृष्णनुं मंदिर बंधाव्यं, देहरीयाना रस्तामां महादेवनुं मंदिर बंधाव्यं. नदीपर लोकोना सुखमाटे पांच देरी बंधावी, तेमज वीजा पण वीसामा विगेरे घणा नंधाव्या, गोडीचा, गिरनार तथा शत्रुंजयनो संघ कहाड्यो, सदावतो बांध्या, पुस्तको लखावी तेना भंडार कराव्या. अंचलगच्छ नायक श्री कल्याणसागरसूरिजीना उपदेशथी संभवनाथ आदिक पांचसो एक जिनप्रतिमानी प्रतिष्टा करी, नवानगरमां सर्व ज्ञातिओने इच्छाभोजन जभाड्यां. देशपरदेशमां अंचलगच्छीय सर्व श्रावकोमां घरदीठ लां कर्यु, अने तेमां नव लाख कोरी खरची. वादशाह जहांगीरना राजमांथी गुजरातमां सर्व यतिओने नास पड्यं, ते वखते चोरासी गच्छना नवसो यतिओने सात वर्ष सुधी आश्रय आप्यो. एवी रीते तेओए पोतानुं नाम अमर राख्युं छे.
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( १६ )
वाळी आ नागडावंशमां विक्रम संवत १४६५मां नगरपारकरमा थयेला मुंजाशाहे अंचलगच्छाधीश श्री मेरुतुंगसूरिना उपदेशथी श्रीपार्श्वनाथनुं मंदिर बंधावी तेमां पित्तलनी प्रतिमा स्थापी, विक्रम संवत १५३९मां नगरपारकर मां लखराजआदिक चारे भाइओए श्रीअभिनंदन स्वामितुं जिनमंदिर बंधाधुं. वळी आ नागडावंशर्मा ते लखराजआदिक चारे भाइओ नगरपारकरना राजा साथै अणबनाव थवाथी पोताना परिवारसहित चोरवा - डमां आवी वस्या, अने त्यां तेमणे चोरवाडी देवीने पोतानी गोत्रज स्थापीने तेना नीचे मुजब कर करवा मांड्या. दीवालीने दिवसे सूर्य सन्मुख कंकुनी लींटी १० करी पान १०, सोपारी १०, चोखानी ढगली १०, खाजला १०, फाफडा, १०, लाडवा १०, घारी १०, asi १०, सांकली १०, दीवा १० करे छे, एवी रीते दीवासे, बलेवे तथा होळीए पण करेछे. अने तेओ चोरवाडीया कहेवाय छे, तेमाना केटलाक प्रभासपाटणमां पण पाछळथी आवी वस्या छे. आ नागडा वंशमां थयेला उदेसीनो परिवार कच्छमां वस्यो. अने तेओ कच्छी महाजन थया. सहदेना वंशजो महावीर
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( १७ )
क्षेत्रपालनो दश पाली घडना लाड, तथा एक पालीना खाजलांनो कर करेछे. वाकटना वंशजो तेना कर तरीके दीवालीए सवा पालीना तलवट, नव पुडला, तथा पुत्र जन्मे तो लापसी तथा सुंवाळी वे पालीनी करीने लाय छे. आ नागडावंशनी साभराइमां ओधरणनी स्त्री गांगी संवत १७११ मां, तथा डुमरामां देधरनी स्त्री सती थइ छे, आ नागडावंशना वणा फांटाओ थया छे, अने तेओमांना केटलाक कच्छी महाजन थया छे. तथा तेओम वाकटनो कर इत्यादि गोत्रजना जूदा जूदा प्रकारना करनी प्रवृत्तिओ कालांतरे थयेली देखाय छे.
सं. १९२१ मां कच्छी महाजन नागडा लघुसजनीय शाखाना नलीयाना रहीश शेट हीरजी नरसीनी स्त्री पुरवाइए श्री अंचगच्छीय भट्टारक श्रीरत्नरागरसूरिजीना उपदेशथी पार्श्वनाथनी प्रतिमा भरात्री, तेमज त्यां तेज वंशना शा. राघव लखपगनी स्त्री देमतबाइए अभेचंद पुत्रना पुन्यार्थे शांतिनाथजीनी प्रतिमा भरावी. आ कच्छीनागडा वंशर्मा कच्छ नलीयामां सं. १९२० मां थयेला, तथा मुंबइना महान व्यापारी शेठ नरसी नाथाए शत्रुंजयपर महान् जिनमंदिर बंधाव्युं छे, जे शेठ नरसी नाथानी
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(१८) टुकथी ओळखाय छे. तेमज पालीताणामां तेमणे महोटी धर्मशाळा बंधावी छे. इत्यादिक धर्मना कार्योमा तेमणे घणुं द्रव्य खरच्यु छ. गुजर नागडावंशमां नवानगरमा (जामनगरमा) थयेला, अने मुंबइना व्यापारी शेठ. शोभागचंद कपुरचंदे पालीताणमा विशाल धर्मशाळा संवत १९६० नी लगभगमां बंधावी छे, तेमज बीजु घणु द्रव्य धर्म मार्गमा वरच्यु छ, उत्तराध्ययनसूत्रनी लक्ष्मीवल्लभीटीकानी अढीसो नकलो साधु साध्वीओना उपयोगमाटे छपावी प्रसिद्ध करी हती, तेज कल्पसूत्रनी सुबोधिका टीका पण छपावी प्रसिद्ध करी छे, जामनगरना शेठ वधमानशाह तथा रायसीशाहना देरासरोना जीर्णोद्धारमा पण तेमणे द्रव्य आयु छे.
आ नागडावंशना केटलाक भाग्यवंत वंशजो माटे कोइ प्राचीन कावए नीचे सुजन कवित्त कहेलं छे.
उदयवंत उदिल्ल जास कुल मुगुणह जाणो । मुटासुतसमरत्व वली नरसिंग वखाणो । वीरपाल वडवीर वली छे भरमो चारू । जगमा जयवंत हीर सकल जेणे कीधो वारु ।। अनुक्रमे वली मौन अली मंत्री मंडणो ।
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जयवंत सुत जाणीय भोजाणी भूपत भला बसुधामाहे वखाणीयें ॥ १ ॥
लघु नागमा गोत्र (ओशवाल)
(मुख्य शाखाओ) वृद्धसजनीय ( वीसा), लघु सजनीय (दसा).
नागडागोत्रमा पूर्वे भिन्नमाल नगरमा थयेला धनदत्तशेठनो जे परिवार हालारमा आवी वस्यो, तेना वंशजो लघु नागडा गोत्रथी ओळखावा लाग्या. तथा तेओए पोतानी गोत्रजा अंबाइदेवीने स्थापी. तेओ चैत्र. मासना नोरतामा, तेमज जन्मे, मुंडणे अने परणे त्यारे लापसी तथा पुडलानुं निवेद करे छे, काष्टनी गोत्रजानी मूर्तिपर चंदरचो बांधे छे, अने एक द्राम यूकी बे श्रीफल वधारे छे.
आ लघु नागडाना वंशजो जसापुर, जख्खौ, सा. धाण, नलीया, सायरा, चडोपरी, वालपद् तथा परजाउ विगेरे गामोमां बसे छे.
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(१०) मीडीया गोत्र (ओशवाल )
(पेटा शाखाओ) सोनी, देवाणी, तालाणी, भाराणी, सरवाणी,
___ वहोरा विगेरे. विक्रम संवत ११७२मा पारकर देशमी आवेला सुरपाटण गाममा दधिपत्र बंशना सोहा परमार ज्ञातिना महीपाल नामे क्षत्रिय राज्य करता हता. त्या घणा द्रव्यवान व्यापारीओ वसता हता. हवामां कोइक यो कोपायमान थइ ते गाममा मरकीना रोगनो महोटो उपद्रव कर्यो, राणा महीपाले शांति माटे घणा यज्ञआदिक कर्या, पग मरकी शांत थइ नही. एवामा त्यां श्रीअंचलगच्छना आचार्य श्रीआयरक्षितरिना उपाध्याय श्रीजयसिंहसरि पधार्या, त्यारे राणाए पोताना मंत्री धरणानी सलाहथी भरकीनी शांतिमाटे गुरुश्रीने विनंति करी. आचार्यश्रीए चक्रेश्वरी देवी आराधन करवाची तेणीए कयुं के तळावपर जेनु देहेरुं छे, ते यक्ष राजापर कुपित थयो छे, अने तेणे आ मरकी फेलावी छे, प्रभाते श्रीआर्यरक्षितसरि अहीं पधारशे, तेमना चरणोदक.नो छोटो शेहेरमा नाखजो
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( ३१ ) जेथी शांति थशे. पछी रात्रिए ते देवीए स्वप्नमां ते हकीकत महीपाळणाने जणावी, प्रभाते गुरुश्रीए पण तेज हकीकत कही. पछी त्यां आर्यरक्षितसूरि पधारवाथी तेमना चरणोदकवडे शेहेरगां छंटकाव करवाथी मरकी शांत थइ. पछी ते महीपाल राणो घणुं द्रव्य, झवेरातआदिक भेट लइ गुरुने वांदवा आव्यो, पण गुरु निस्पृही होवाथी तेणे कई लीधुं नही. त्यारे आचार्यश्रीना उपदेशथी तेणे ते द्रव्यमांथी श्रीशांतिनाथजीनुं जिनमंदिर बंधावी प्रतिष्टा करावी. अंबाइमाताने गोत्रजा स्थापी पुत्रना जन्मे, मुंडणे परणे एक गदीयां हेम तथा माणा एकना पुरसइना मोदकथी गोत्रज घरे जुहारे. महीपाल राणो पोताना पुत्र धर्मदास सहित वारव्रतधारी परम जैनी श्रावक थयो, मंत्री धरणे तेने पोतानी पुत्री परणावीने गुरुना उपदेशथी ओशवाल ज्ञातिमां दाखल कर्यो. हवे ते राणा महिपालना धर्मदास नामना पुत्रने चंदेरी नगरनुं राज्य मळयुं, अने ते पण वारव्रतधारी परम जैनी श्रावक थयो. ते प्रथम अपुत्र हता, परंतु गुरुना उपदेशथी गोत्रजानुं तेमणे आराधन कर्यु, तेथी पाछळथी तेमने पांच पुत्रो थया. ते धर्मदासने दिल्हीना राजा पृथ्वीराज
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(२२) तरफथी घणु सन्मान मळयु हाँ. अने धर्मदासे वर्णवेला गुरुश्रीना माहात्म्यथी खुशी थयेला पृथ्वीराजे श्रीआर्य रक्षितसरिजीने घणुं सन्मान कयु हतुं. ते धर्मदासना चालता वंशमा केटलीक पेढीओ गयाबाद (आ पेढीओनां नामो तेसना आंबामां आप्यां छे.) हमीरना पुत्र रायमल दिल्लीमाया. वखते श्रीमेरुतुंगसूरि खंभातमा चतुर्मास हता, तेमने वांदवा माटे चक्केसरी देवी आव्यां, तेमणे गुरुने कां के आजथी एकवीसमे दिवसे दिल्लीपर मुगलयवनो हल्लो करी घणो उपद्रव करशे, माटे तमारा उपाध्यायजी के जे हाल दिल्हीमा छे, तेमने तेडावी लेवा. गुरुए ते वात श्रावकोने कहेवाथी खंभातना संघ त्यां खेपीयो मोकली उपाध्यायजीने ते बात जणावी. त्यारे उपाध्यायजीए त्यां रहेता धिपकनमीठडीया, तातोल परमार,गोखरू अने देवाणंदसखा,एम मली चार गोत्रनाश्रावकोने रावणपार्श्वनाथनी यात्राना मिषे दिल्ही बहार आण्या. तेओ साथे ते रायमल्ल पण त्यांथी निकळी नागोरमा आवी वस्या. एक वखते अलाउद्दीन बादशाह नागोरमा आव्यो, तेने रायमल्ले चोयीसी जातनी स्वादिष्ट मीठाइ भेट करी, ते खाइने बादशाह घणो खुशी थयो, अने
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तेनी मीठडीया ओडक स्थापीने चोरासी गाम भेट तरीके रायमल्लने आप्या. पछी रायमल्ले मीठडी गाम बसावी त्यां जिनप्रासाद करावी रावणपार्श्वनाथनी मूर्ति स्थापन करी, अने त्यारथी तेना वंशजो जन्मे, मुंडणे अने वीवाहे पार्श्वनाथजीनी स्नात्र करे छे. ए रायमल्लनु बीजु नाम नरसंघ हतुं तेना वंशजो मीठडीयाथी ओळखावा लाग्या. एक वखते ते रायमल्ल पोताना पुत्र लखराजने परणाव. वा माटे नागोरथी जान लेइ बाडमेर जता हता, त्यां बच्चे रेतीनुं रण आव्यु, जानना लोको तरस्या थया, कुवानी तपास करी तो तेनुं पाणी खारूं होवाथी रायमल्ले पोतानी साथे लीधेली खांडमाथी एकसो मण खांड ते कुवामा नखाची पाणी मीठं करी लोकोने पायु. वळी विक्रम संवत १४०२मां तेणे संघ कहाडी गोडीपाचनाथनी यात्रा करी, ते वखते कुवामा खारं पाणी होवाथी तेमा बत्रीससो छांट भरेली खांड कुवामां नखावी, अने त्यारथी तेना वंशजो शुद्ध मीठडीया ओळखावा लाग्या. आवंशर्मा देवाणी, तालाणी, भाराणी, सरवराणी, वहोरा विगेरे ओडको छे.
आ मीठड़ीया गोत्रना वंशजो सूरत, खडकी, पादण
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(३४) ( खराकोटडीपाडो विगेरे ), अमदावाद ( झवेरीवाडो विगेरे ), नागोर, मंडपदुर्ग, दीव, खंभात, नवानगर जेसलमेर विगेरे गामोमा वसे छे.
आ वंशमां संवत १९४५मां नवानगरमां थयेला वोरा अजरामल हरजीए हरजीवाग, हरजी जैनशाला, तथा आदीश्वरप्रभुनु शिखरबंध देरासर नवानगरमा (जामनगरमा ) बंधावेला छे, तेमज बीजं पण घणु द्रव्य धर्ममार्गमा खरच्यु छे. तेनां वंशजोमा हालमा विद्यमान मुंबइना व्यापारी वोरा टोकरसी देवसीए जागनगरना शेठ वर्धमानशाह तथा रायसीशाहना जिनमंदिरना जीर्णोद्धार माटे हजारो रूपीया खरच्या छे.
वडहरा (वडोरा-वडेरा) गोत्र. (ओशवाल)
(मुख्य शाखाओ.) वृद्धसजनीय (वीसा), लघुसजनीय (दसा).
पेटा शाखाओ. सेल्होत, दोशी, पीपलीया, छकलसीया, पारेख, विगेरे
विक्रम संवत १००७मा श्रीभिन्नमाल नामना नगरमा परमार वंशनो राउ श्री सोमकरण नामे राजा राज्य
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करतो हतो. तेने शंखेश्वरगच्छनी वल्लभी शाखाना श्रीजयप्रभसूरिनामना आचार्ये मतिबोधिने परगजैनी कों, तथा तेना वंशजो पण जैनी थया. त्यारपछी विक्रम संवत ११११ मां मुगलोए आवी भिन्नमालनो नाश कर्यो, त्यारे तेना वंशना राय गांगा त्यांची नाशी बाहडमेर गया. त्यां परमार वंशनो देवड नामे राजा हतो. त्यां ते गांगा रायना पुत्र मुनिचंद्रने ते राजाए " सेलहोत " पद आपुं. ते मुनिचंद्रना गुणचंद्र नामे पुत्र थया. एवामां त्यां विधिपक्षगच्छ संस्थापक श्रीविजयचंद्रसूरि ( आर्यरक्षितसरि ) पार्या. तेमना उपदेशथी तथा तेमना शिष्य श्रीजयसिंहसरिनी मेरणाथी त्यांना संघे ते गुणचंद्रने विक्रम संवत १२१६ मा ओशवाल ज्ञातिमा मेळव्या. अनुक्रमे तेमना वंशमां किराइ नामना गाममा आसानी स्त्री चांदादेना आल्हा नामे पुत्र भाग्यशाली धनवान थया, ते गाममा सातसो पचीस ओशवालोनां घर हता, तेमा आल्हानुं घर तथा कुटुंब बटुं कहेवातुं. एवामांत्रण वर्षीसुधी उपराउपर दुष्काळ पड्यो, अने अन्नविना माणसो मरवा लाग्यो, त्यारे आल्हाए त्यां दानशाळा मंडावीने पहेले वर्षे दररोज एक कलशी, बीजे वर्षे दररोजन बे
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कलशी, तथा त्री जे वर्षे दररोजर्नु त्रण कलशी अन्न आपी घणा लोकोने उगार्या. त्यां तेनी कीर्ति सांभळी घणा परदेशी दुकालीया क्षुधातुर माणसो आवता, अने त्यांना लोकोने पूछता के अन्न क्या मळे छे ? लोको कहेता के वडेरा आल्हानी दानशालामा मळे छे. अने त्यारथी तेना वंशजो बडेरागोचना नामथी प्रसिद्ध थया, अने आछतदेवी तेनी गोत्रजा थइ. तेना कर-जन्मे, मुंडणे, परणे पुरसइना लाड करे, अने कुटुंबमा लाय, तथा रातीजगो करे, केटलाक दिवसोबाद ते आल्हाने त्यांना ठाकोर साथे अणबनाव थयो, तेथी रात्रिए घरमां दीवो मूकीने त्यांथी नाशी पारकरमा गया, त्यांना श्रीचंदराणाए तेमने घणुं सन्मान आप्पु, तथा पोताना प्रधान करी स्थाप्या. तेना वंशमा अनुक्रमे साल्हा नाले पुरुष थया, ते जेसलमेरथी धन कमाइने ज्यारे पारकरतरफ आवता हता, त्यारे तेना साथमा आवतो सोनारनी दानत बगडी, अने तेथी ते सोनारे साल्हापर तलवारनो घा कर्यो, साल्हाए पण पडता पडता ते सोनारपर तलवारनो घा करी तेने मारी नाख्यो, अने साल्हा पण शुमध्यानथी मरी देव थयो, ते साल्हानो पालीओ गोडीपार्श्वनाथनी
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(२७) जात्राए जती मार्गमा आवे छे. ते मार्गेथी जो कोइ बडेरावशनो जाय, तो तेना पालीया आगळ ते एक श्रीफल वधारी अढीशेर वृततुं निवेद धरावे, तेनापर ते साल्हादेव तुष्टमान थइ तेना मनोवांछित पूरे छे. त्यां ते सोनारनी जगोए इंटनी ढगली छे, त्यां इंट (अथवा नाळीयेरना काचलां) नाखी सोनारने मारे. आ वंशमा गांधी, दोशी, विगेरे अडको छे.
आ बडेरा गोत्रना बंशजो राधनपुर, मोरबी, पडधरी, भागवड, डबासंग, घोबा, राजकोट, मंजल, खेरालु, झींझुवाडा, अंजार, अमदावाद, भुज, धुंबाव, आसालडी, धमकडा, सूराचंदा, नवानगर, कोठारा, सेखपाट, वीरमगाम, नगरपारकर, चकासर, नसरपुर, अमरकोट, सीहु, बाहडमेर, जेसलमेर, मांडवी, कोहरी, भाद्रेसी, नागोर, मुलतान, राइद्रह, कालावड, पाटण, गोवलकुंडा, बुरान. पुर, दीव, जुनागढ, वणथली, राणपुर, खंभात, अमरेली, जसदण, धारी विगेरे गामोमा बसता हता.
आ वंशमां आल्हाना वीजा पुत्र साजगना काजल, उजल, अने सामल नामे त्रण पुत्रो थया. तेमाथी काजलनो मेघा नामनो देवाण दसग्वागोत्रनो बानेवी हतो.
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( २८ )
तेने काजले पोताथको पाटणम व्यापारमाटे मोकल्यो हतो, त्यारे ते मेघो पाटणथी अतिशय प्रभाववाळी श्रीपार्श्वनाथनी प्रतिमा लामो त्यारे काजले तेने कहां के, मने ते प्रतिमा आपो, के जेथी हुं प्रासाद बंधावी तेमां ते प्रतिमा स्थापन करूं. पण मेवाए ते आपी नही. पछी स्वप्नामां जैम प्रतिमाए कर्त्तुं तेम मेवे कर्यु, जेथी निधान प्रगट थयुं. मेघाए प्रासाद बंधाववा मांड्यो, मूल गंभारी शिखरबंध थयो, एवामां मेवे काल कर्यो. पंछी काजले पोतानी बेहेनने समजावीने ते प्रासाद संपूर्ण कराव्यो. पछी काजले शत्रुंजय तथा गिरनारनो संघ कहाडी घणुं द्रव्य खरची संघपतिपद प्राप्त कर्यु. वळी आ वंशमा थयेला समरसी राधनपुरथी आवीने दीवमां वस्या, ते महाधनवंत तथा धर्मक्रियामां घणा चुस्त हता. तेमणे श्रावकनी अगीयार प्रतिमा वहीने घणुं द्रव्य खरच्युं, पूज्य श्री धर्ममूर्तिसूरीश्वरजीने दीवमां पधरावी सर्व आगमो सांभळयां. वळी आ वंशमां वीरगाममां थयेला उजलना पुत्र माणिकशेठे विक्रम संवत १५१५ मां श्रीसुमतिनाथआदिकना घणा जिनंबिंगो भराव्यां, तथा ते पर सोनारूपाना छत्री कराव्यां. श्रीजय केसरिसूरिना उपदेशथी
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संघ कहाडी प्रतिष्टाओ करीने घणुं द्रव्य खरच्यु, तथा मुगलोने द्रव्य आपी धगा बंदिवानोने छोडाव्या. आ वंशमा अमरकोटमा थयेला शा. आसकरण बाल ब्रह्मचारी बार व्रतधारी शुद्ध श्रावक हता, तेमणे पारकर विगेरे देशोमा थाळी, रुपीया तथा सवाशेरना मोदकनी ल्हाणी करी घणु द्रव्य खरच्यु. संवत १५४१ मां भुजमा थयेला चांपाशाहे श्रीजयकेसरिरिना उपदेशथी श्रीकल्पसूत्रनी चोर्यासी प्रतो लखात्रीने सर्व आचार्योने वहोरावी.
आ वंशमा विक्रम संवत १२९५मा जावडना भाइ भावड राधनपुरथी पाटण पासे कुणगिरिमा आवी वस्या. तेनी त्रीजी पहेडीए कुंपानो राणा नामे पुत्र थयो. हवे ते कुणगिरिमा लघुसजनीय ओशवाळ श्रीपालनी पुत्री लक्ष्मीवती पोतानी सखीओ सहित रमती हती. ते वखते ते कुंपानो महास्वरूपवंत पुत्र राणो घोडे चडी पोताना सेवको सहित रमवा माटे वाडीए जतो हतो. तेने जोइ ते लक्ष्मीवती तेनापर मोहित थइ, अने सखीओने कह्यु के तमारे मारी माताने कहे के लक्ष्मीवती आ राणाने परणशे. मातपिताए पुत्रीने कयु के राणो वृद्ध सजनीय छे, अने आपणे लघुसजनीय छीये, माटे ते वीवाह थशे नही. पण
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कन्याये हठवाद लीयो के एम नहीं थाय तो हुँ अग्निमां बळी मरीश. त्यारे श्रीपाले महाजन मेळवी राणाने धणी विनति करी, पण राणाए मान्य नाही. एवीरीते ते कन्या अढार वर्षीसुधी कुंवारी रही. पछी ते कन्या बळी मरवा माटे शेहेर बहार आवी. ते बखते ते कन्यानी धारणी नामनी डाडी पोताना धरना गोखपर चडी कन्याने जोवा लागी, एवामां ते त्यांथी नीचे पडीने मरण पामी, अने व्यंतरी देवी थइ. नगरना राजाने ते वातनी खबर पडवाथी ते लक्ष्मीवती कन्याने पाछी वाळी बळाकारे राणासाथे परणावी, तथा राजाए पांच गाम कन्यादानमा तेने आप्या. पछी ते धारणी देवीए प्रगट थइ राणाने कडं के हवेथी तमो मने गोत्रजा थापजो हुं तमारो उदय करीश. एवीरीते संवत १३३५मा पैसाक सुदी पांचम् गुरुवारे वडेरानी लघुशाखा राणाथी निकली छे. पाटणमा वडेरा वंशमा विक्रम संवत १५७८मां अंचलगच्छना श्री भावसागरसूरिना उपदेशथी सुरचंद तथा सुरादासे कुईबना श्रेयमाटे श्रीपार्श्वनाथनाविनी प्रतिष्टा करावी, अने ते कानजी हंसराजना घरमा पूजाय छे. ..: विक्रम संवत १५२५ मा देवचंदविगेरे बडेराना
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वंशजो वांकानेरेमाथी जुनागहना नवाबने जोइता उंचा वस्त्रो आप्या, तया जुनागढमा वस्या, त्यारथी तेओ दोशी ओडकी ओळवावा लाग्या. पीपलीमा वसनारा पीपलीया ओडकवाला छ, तेमज झालोरवासे भालणीना रहेवासी भींचाशेठ पासे छ कलसी धन होवाथी तेना वंशजो छकल सीया ओडकथी प्रसिद्ध थया. वडेरानी गोत्रजा अछुप्ता चार हाथोवाळी छे. ते ओमां जन्मे, मुंडणे तथा परणे सरखा कर छे. बडो पुत्र आवे त्यारे एक तो. लानी रुपानी गोत्रजानुं फलं करावे बीजा पुत्रने क्षौर न करे त्यां लो चोटी राख, जन्मे पुरसेइनो दल घउंनो चोवीस पालीनो करे, तेमा दश शेर धी तथा खांड अढीशेर नाखे, ते दलनो थाल भरी गोत्रजा आगल सके. पाली एकनी लापसीनो लोट गोळ शेर एक नाखी करे. बे श्रीफल मूके. घीनो दीवो करे, ते रात्रिए अखंड राखे. बाळकना मातपिता चोथु व्रत पाले, भूमिमर सुए, प्रभाते ते दशशेर धीमाथी घी लेइ ते लापसीना लोटनी एक शेर गोळवाली लापसी राधे पछी पवित्र थइ गोत्रजाने पूजे, तथा ते श्रीफल वधारे, भूमि लौंपी पाटलापर कंकुनो साथीयो करी त्रण ढगली चोखानी मूके.
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मुंडयो पण एज रीति जाणवी, लेमा एटलं विशेष के बालकने कोरी आंगी अने ननी पगरखी तथा नबी पाघडी पहेरावे, रातिजगो करे, तंबोल देइ प्रभाते रवू मानाडानी चारे दिशाए तरणी बाँचे, वच्चे ते बाळकने वेसाडी पीठी करी पछे माथे जडवासो करे, चोटी उतारता एक गजर्नु कपडं लेइ तेमा केश नाखी फइने ( सुहासणने) आपे, तथा ते साये रूपाना' आपे, पछी ते बाळक फइने पगे लागी गोत्रजाने पगे लागे. पछी देहेरे दर्शन करी गुरुने वादी, पुस्तक पूजा करी गीत गातां घरे आवे, तथा जाचकने दान आपे.
संवत १४९९मा पारकरमा थयेला ठाकरसीना पुत्र खीमसीए शत्रुजय तथा गिरनारनो संघ कहाडी घणु द्रव्य खरच्यु छे. संवत १५२७मा लोलाडाना रहीस भलाशेठे श्रीपाश्वनाथजीनी प्रतिमा भरागी तनी भाभचलगच्छाधीश श्रीजयकेसरिसूरिजीना उपदेशथी प्रतिष्ठा करावी. छे. संवत १५१५ मां कोटडाना रहीस खीमाशेठना पुत्र श्रीकर्ण, महीकर्ण, डीडा तथा मेघाए मळी श्रीशांतिना. थजीनो शिखरबंध प्रासाद कराव्यो. पाटणमा कोकाना पाडाना रहीस धनजी तथा मनजी नामना बन्ने भाइओना
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परिवारमा पारेखनी ओडक थइ छे. तेमना वंशमा अमदावादमा थयेला पारेख लीलाधरे श्रीकल्याणसागरसूरिजीना उपदेशथी शत्रुजय तथा गोडीपार्श्वनाथ आदिकनो संघ कहाडी संवत १७१२ मा घणु द्रव्य धर्ममार्गमा खरच्यु छे.
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हथुमीया राठोड गोत्र ( ओशवाल) (आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमां कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो, कि. रू. ४---0) विक्रम संवत १२०८ मतांतरे ( १२२४) मा हस्ततुंड नामना नगरमा राठोड क्षत्री राउत अनंतसिंह मतातरे (अखयराज) राज्य करता हता. तेमने श्रीमेदपाटीय शाखाना अवलगच्छीय जयसिंहमारिए मतांतरे ( जयअभरिए) प्रतिबोधीने जैनी कर्या. ते अनंत सिंहे शजपनी यात्रा करीने हस्ततुंड नगरमा श्रीवीरमथुनो प्रासाद कराव्यो. तेना वंशजो हथुडीया राठोड गोत्रथी प्रसिद्ध
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(३४) थया तेमनी गोत्रजा देवी समकीतधारी उच्छिता नामनी छे.
आ हथुडीया गोत्रना वंशजो केरवाडा, नांडलाइ, बगडीया, चंदेरी, खडी, चुडली, नारगाम विगेरे गामोमां बसे छे.
पडाश्या गोत्र (ओशवाल)
पेटा शाखाओ.
तिलाणी, मुमणीया. (आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमां कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४-0-0) विक्रम संवत १२२४मा लोलाडा नगरमा राठोड वंशना राउत फणगरने अंचलगच्छना श्रीजयसिंहमारिए मतांतरे ( श्रीजयप्रभसरिए) प्रतिबोधी जैनी करी ओशवाज ज्ञातिमा मेळव्यातथा सचिआवि देवीने तेनी गोत्रजा स्थापी. तेना कर-श्रीफल एक, कपडं एक तथा घृत शेर सवानी लापसी जन्मे, मुंडणे तथा परणे त्यारे करे
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(३५) तेमांधी अर्ध सुहासणीने आपे, तथा सहरखी एक सुहासणीने आपे आ वंशमा तिलाणी, मुमणीया विगेरे ओडको छे.
आ गोत्रना वंशजो विशाला, राडद्रा, बाहडमेर, नगरपारकर, जेसलमेर, बीलाडा विगेरे गामोमा वसेछे.
आ बंशमा थयेला समरसीए विक्रम संवत १४५२मा लोलाडानगरमा श्रीशांतिनाथनो प्रासाद कराव्यो, तथा एक लाख द्रव्य खरचीने शत्रुजयनी यात्रा करी. विक्रम संवत १५०८मा अचलगच्छाधीश श्रीजयकेसरिसूरिजीना उपदेशथी श्रीशीतलनाथजीतुं विव करावी बाहडमेरमा प्रतिष्टा करावी. विक्रम संवत १४८४ मा आ वंशना जिनदासना पुत्र सादा तथा समरथ साचोरामा वसता हता. एवामा त्यांना ठाकोरनो पुत्र राज्य मेळववाना लोमथी पोताना पिताने मारी नाखवा माटे रात्रिए चोरनो वेष करी राजाना धरणांपेठो, त्यारे ठाकोर जागी ऊठवाथी तेने चोर जाणी खड्ग लेइमारवा दोड्यो स्यारे ते बुचर अगासीपरथी ठेक मारी पाछळ सादाना घरमा पड्यो, सादाए तेने झाल्यो, तया ओळख्यो, अने राजानो पुत्र जाणी छोडी दीयो, तेथी ते नाशी गयो.
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एवामा राजाना चोकीदारोए त्या आधी सादाने पूछयु के ते ए कया चोर ने कहाडी मुक्यो ? परंतु सादे जवाब आप्यो नही. त्यारे तेओए राजाने कहेबाथी राजाए सादाने बोलाची पूछ\ पण सादो अणबोल्यो मुंगो रह्यो. त्यारे राजार क्रोधायमान थइ कहुं के खरेखर आ मुमणो (मुंगो) चोरोने आश्रय आपी पोतार्नु घर भरे छे, माटे चोरने बदले आनेज मारो? महाजने पण एकठा था सादाने घगो समनाव्यो केतुं चोरनुं नाम दे, केजे थी तुं जीवतो रहे. सादे का मार थी ते नाम बोलासे नही. पछी राजाना माणसो ज्यारे तेने मारवा माटे लेइ चाल्या, त्यारे कुंवरने खबर पाडवायी तणे ते माणसो पासेथी सादाने लेइ पोताना घरमा राख्यो. राजार घणा आग्न. हथी ते मुमणीआने कुंवर पासेथी माग्यो, पण तेणे आप्यो नही. एवी रीते केटलाक दिवसो गयाबाद राजाना मृत्युबाद ते कुंवर राजगादीए बेठो, अने ते सादा मुम. णीयाने पोतानो मंत्री की स्थाप्यो, अने तेथी ते सादाना वंशजो मुमणीयानी ओडकथी ओळखावा लाग्या. ते सादाना पुत्र मंडलीके विक्रम संवत १५४८ वैसाख सुद दशमे इत्या रमां अंचलगच्छेश श्रीसिद्धांतसागरसूरिना
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( ३७ ) उपदेशथी श्री सुमतिनाथजीनुं विंब करावी प्रतिष्ठामां अग्यार हजार पीरोजी खरची, तेमज संवत १५५२मां तेज आचार्यना उपदेशथी कारोला गाममां तोलाक शेठे श्रीपप्रभुजीना बिंबनी प्रतिष्ठा करावी.
वाढणी गोत्र - ( ओशवाल ) ( आ गोवमां तथा तेनी शाखाओमां कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाणवा माटे आ त्रोत्रनो आंबो (वंशावली) मगावो. कि. रु. ४-०-० )
विक्रम संवत १२२१मां श्रीअंचलगच्छती वल्लभी शाखाना पुण्य तिलकमूरिए विणपनगरमा चतुर्मास रही त्यांना परमार डोडीया रजपुत राउत नगराजने प्रतिबोधी जैनी कर्या, तथा ओशवालमां मेळव्या. नगराजना सोमल पोताना चार वहाणथी वेपार करता हता, पुत्र तेथी तेना वंशजो वहाणी कहेवाया. तेनी गोत्रजा उच्छितादेवीनी मूर्ति रुपानी अश्वना वाहनवाळी छे.
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अपुन
तेना कर जन्मे, मुंडणे, परणे त्यारे घृत शेर दशना लाड कुटुंबमा लाहे, तथा फहने सहरवी ने आये. बीजो छोकरो परणे अने तेने जड वासे त्यारे शेर घृतनी लापशी तथा नालीयेर एक वधारे, सुहासणने साडी तथा कापडं आपे, पहेलो छोकरो जन्मे परणे तथा जडासे श्रीफल एक, कापडं गज एक तथा सोपारी सात पाटला उपर मूके, तथा ते श्रीफल वधारे. पुरसी गुजरी मागा पांचनी करे. छोकराने प्रथम पगर्माडणे नव हाथ लुगडं पाथरी उपर घउंना मांडा पाथरे. अने ते पर बाळकने या मंडावे माणा पांच गुजरीना मांडा करी मोत्री कुटुंबने जमाडे, सवासेर घृत अने सवासेर गोळनी लापसीन निवेद करी श्रीफल एक वधारे, सोपारी सात तथा पगमांडणीनी पछेडी सुहासणने आपे.
आ गोनना वंशजो नरता, सरथला, भिन्नमाल, साचोरा, राङद्रह, सीधासुइ, बाघोडी, सेली, खंभात, दासप, सुगाली, झालोर, मूली, थावर, धणेरा, तथादीताआदिक गामोमा बसता हता..
आ वंशमां थयेला सोमिलशेठे चार लाख पीरोजी खरचीने श्रीशर्बुजय तथा गिरनारनी यात्रा करी, बे लाख पीरोजी खरची दानशाबा मंडावी. विक्रम संवत १५०५
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( ३९ )
मां बीजरोलमा थयेला भीमा तथा रामाए श्रीपार्श्वनाथजी नी प्रतिमा करावी घणुं द्रव्य खरच्युं. संवत १६२७ मां वरजांगे घणुं द्रव्य खरची झालोरी, साचोरी, राडद्रही अने सीरोही, ए चार देश जमाड्या झालोरमां थयेला कमाए घणां धर्मकार्यो द्रव्य खरची कर्या छे. मूळीमां थयेला नोडाशाहे त्रण हजार माणसोनो संघ कहाडी घणुं द्रव्य खरची श्रीशत्रुंजयनी यात्रा संवत १६११ तथा १६१५ मां करी. संवत १६१३ मां सीहाआदिक भाइओए श्रीधर्ममूर्तिसूरीश्वरना उपदेशथी श्रीसुमतिनाथना बिंबनी घणुं द्रव्य खरचीने प्रतिष्टा करावी.
ऐसे कह *
जासल गोत्र - ( ओशवाल ) ( मुख्य शाखाओ . )
वृद्ध सजनीय ( वीसा ), लघुसजनीय ( दसा ) ( या गोत्रमां तथा तेनी शाखाओमां कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थथा ? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली) मगावो. कि. रु. ४-0-0 )
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(४०) विक्रम संवत ११४४ मा हस्तितुंड नगरमा चहुआण वंशना श्रवणवीर नामे राजा हता. तेना पुत्र श्रीमालदेव कुमारने बनमा क्रीडा करता यंतरे छल्यो, राजाए धणा उपाय कर्या, पण कुंवरने समाधि थइ नही, पण मरवा पड्यो. एवामां श्रीअंचलगच्छनी बल्लभी शाखाना महा प्रभाविक आचार्य श्रीपुण्यतिलकसरि त्यां पधार्या, तेमने प्रभाविक जाणी वणवीर राजा तेमने वांदवा आव्या, तथा पुत्रनी हकीकत कही. गुरुए कधं तमो जिन धर्म स्वीकारो तो तमारा पुत्रले समाधि थइ जशे. राजाए तम करवानी कबुलात आपवायी आचार्यश्री तेमने घर पधार्या तेमने जोइ ते व्यंतर कुमारना शरीरमाथी निकळी गयो, अने कुमारने समाधि थइ. व्यंतर प्रगट थइ गुरूने नम्यो, अने कहूं के हवे आ वणवीर राजाने मारा नामथी गोत्रजा स्थापना कहो, हुँ तेमसानिध्य करीश. गुरुना बच. नथी राजाए तेम कर्ये, ते व्यंतरतुं नाम जासल हाँ, अने तेथी ते वणवीरना वंशजो जासलगोत्रधी प्रसिद्ध थया. जासा (जापा) देवी नामनी गोत्रजा स्थापी. तेना कर-जन्मे, मुंडणे, परणे त्यारे शोळ पालीना लाडु करे, त्रणवाल रूपानी वारी चडावे, तथा कपडं गज अढी,
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श्रीफल अने घृत शेर अढीनी मात्र करी गोत्रजा जुहारे, तेमांथी अर्थ सुहासणीने आपे, बाकीनु घरमा वापरे, गाय भैस वीआय त्यारे प्रथम क्लोणाना घृतर्नु नीवेद करी गोत्रजा जुहारे, गुरूना उपदेशथी वणवीरने ओशवाळनी पंक्तिमा दाखल कर्या..
आ जासल गोत्रना वंशजो दांतीवाडा, मंडाहड, उंड, फीचाली, मंडपाचल, अहमदपुर, पाटण, साचोर, राधनपुर, कुणगिरि, संघाणा, भीलडी, वडनगर, सहसपुर, इडर, डडाहड विगेरे गामोमा वसे छे.
आवंशमा उडना रहवासी वनाशेठथी लघुसजनीय शाखा निकळेली छे.
बहुल ( बोहड ) गोत्र-(ओशवाल ) ( आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमां कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. रु. कि. रू. ४-0-0)
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विक्रम संवत १२४६ मा श्रीअंचलगच्छाधीश श्रीधर्मघोषसरि मोहलगाममा चतुम डोडीया रजपुत राउत श्रीवाहोलने प्रतिबोधी जैनी कर्या, तथा ओशवालज्ञातिमा दाखल कर्या. तथा बोहोल(धोलही) नामथी तेनी गोत्रजा स्थापी.
आ गोत्रना वंशजो मोहल, धगही तथा खीमली विगेरे गामोमा वसेछे.
आवंशमा थयेला खीमाए धणणी (नग)गाममा विक्रम संवत १३६५ मा ऋषभदेव प्रभुनो प्रासाद कराव्यो. तथा १३५५ मां लाखाए लाखा (लाखाइ ) गाममा श्री अजितनाथप्रभुनो प्रासाद कराव्यो.
कामसा गोत्र-ओशवाल. (आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमा कया कया गामोमां कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि, रू. ४-०-०)
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(४३) आ कामसा गोत्र ए बहुल ( बहोल-बोहल ) गोत्रनी शाखा छे. बहुल गोत्रमा थयेला सोमानो पुत्र धुंभच सोजत नगरना राणा श्रीजगानो प्रधान थयो. एक दिवसे ते महा तेजस्वी स्वरूपवाळा मुंभचने राणानी कुंवरी लखमादेए जोवाधी तेनापर मोहित थइ, अने तेनेज परणवानी तेणीए हठ लीधी, तथा अन्नपाणीनो त्याग कयों. त्यारे राणाए पराणे पोतानी ते पुत्रीने झुंभचसाथे परणावी, अने विक्रम संवत १३८५मा तेने कामसा गाम आप्युं. अने त्यारथी ते भुंभचना वंशजो कापसा गोत्रथी प्रसिद्ध थया. तेनी गोत्रमा तथा कर बहुल गोत्र प्रमाणे जाणवा.
आ गोत्रना वंशजो कामसा, इंद्रबाडा, कलवइ, सिरीयारी, नांडलाइ विगेरे गामोमा वसता हता.
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( ४४ )
चहुआण गोत्र - ( ओशवाल ) ( पेटा शाखाओ ) डोडीयालेचा, गोपाउत, सुवर्णगिरा, संघवी, पालणपुरा, सिंघलोरा विगेरे. ( आ गोलमां तथा तेनी शाखाओमां कया कया गामोमां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४-०-० )
विक्रम संवत १२६५ मतांतरे ( १२७५ ) मां झा लोर नगरमा राजश्री कान्हडना राज्यमा चहुआण वंशी भीम नामे रजपुत वसता हता. ते वखते श्रीअंचलगच्छना श्रीधर्मघोषसूर ( भतांतरे ) श्रीमहेंद्रसिंहसूर विहार करता त्या पधार्या. भीभ चहुआण तेमनो उपदेश सांभळी प्रतिबोध पामी परम जैनी व्रतधारी श्रावक थया, तथा गुरुए तेमने ओशवाळमां मेळव्या. तेमनी गोत्रजा अंबाइदेवी स्थापी, तेनुं स्थान भिन्नमाल नगरमा खीमजा
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डुंगरीए गाजणा टुंकपर प्रासाद छे. तेना कर-चैत्र तथा आसुनी पांचमे घृतसहित चोळा चोखानुं निवेद करे, फदीयां आठ अने जमणीनुं कापडं फइने आपे, ए पूर्वनी स्थिति कही. त्यारपछीनी जन्मे, मुंडणे परणे त्यारे, तथा दीवाळीए दोढ पालीना लाडु तथा दोढ पालीनी लापसी करे. बालकना वाळ पारकरे उतारे, त्यारे पाली एकना लाडु तथा पाली एकनी लापसी करी गोत्रजा जुहारे. ते भीमे डोड गाममा श्रीवासुपूज्यजीतुं जिनमंदिर अंचलगच्छीय श्रीजयमभसरिजीना उपदेशथी बंधाव्यं, अने ते गामन अधिकारीपणु मळवाथी तेना वंशजो डोडीयालेचा कहेवाया. आ वंशमा गोपाउत, सुवर्णगिरा, संघवी, पालणपुरा विगेरे ओडको छे. ___ आ गोत्रना वंशजो झालोर, डोड, दुजाणा, गुंदा लीया, गुदवची, घाणील, राडबरा विगेरे गामोमा वसे छे. आ वंशमां थयेला वीराशेठे झालोरमां श्रीचंद्रप्रमस्वामीजीनो प्रासाद बंधाव्यो. संवत १५०५ मा कोरंडाना वासी महिराज शेठे अभिनंदनस्वामिजीतुं बिंब भराव्यु, तथा तेनी प्रतिष्टा अंचलगच्छीय श्रीजयकेसरीसूरीश्व. रजीए करी.
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Prepar
कटारीया गोत्र-(ओशवाल ) (आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमा कया कया गामोमां कोण कोण पुरुषो थथा ? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४----) विक्रम संवत १२४४मा पुजवाडा नगरमा सीसोदीया रजपुत राणाश्री उदयसिंह राज्य करता हता. ते वखते ते नगरमा चहुआण रजपुत राउत कटारमल्लनी पासे घणुं द्रव्य ह. रामाने विवाहमां द्रव्यनो खप होवाथी तेनी पासेथी ७८७ साइ काठग सुधी भरीने उछीनी पीरोजीओ लीधी, अने पाछी सगसहित तेटली सइ भरीने पीरोजी आपवानुं राजाए बचन आयुं, तथा ते कटारमलने ते धन वहोरवाथीवहोरा करी बोलाव्या, जेथी तेनी वहोरा अडकथइ. एवामा त्यो श्रीअंचलगच्छाधीश श्रीजयसिंहसरि पधाया, तेमणे ते कटारमलने प्रतिबोधीन जैनी कर्या,अने चक्रेश्वरी देवी ने तेनी गोत्रजा स्थापी, तथा
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(४७) ओशवाळ ज्ञातिमा मेळवी दीधा. ते कटारमल्लना वंशजो कटारीया गोलथी ओळखावा लाग्या. ते कटारमल्लजीए गुरुना उपदेशथी हस्ततुंडनगरमा श्रीमहावीरप्रभुनो जिनप्रासाद कराव्यो.
आ गोत्रना वंशजो रोहड, पाली, सीरोही, नांडलाइ, वेधरी, दूधवडी, लाखणी, भालणी, मोरसीम, द्रुमडी, धाणसा, पारकर, राहुली, करपा, कोरटा विगेरे गामोमा बसता हता.
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आ वंशना रोहड गामना रहेवासी श्रीकरणना पुत्र वीरजीए विक्रम संवत १२९६मा रत्नपुरमा श्रीमहेंद्रसरिजीना उपदेशथी श्रीशांतिनाथजीनुं जिनमंदिर बंधाव्यु, तथा शत्रुजयनो संघ कहा ड्यो, तथा सर्व मळी सात लाख पीरोजी धर्म कार्यमा खरची.
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amang
(४८) कात्यायन गोत्र-( श्रीमाली. ) (आ गोलमां तथा तेनी शाखाओमां कया कया गामोमां कोण कोण पुरुषो यथा? ते जाणवामाटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४-0-0) विक्रम संवत ७९५मां भिन्नमाल नगरमा श्रीशांतिनाथजीनो गोष्टिक श्रीमल्ल नामे सात कोड द्रव्यवाको व्यापारी हनुमंतना पाडामा वसतो हतो, ते श्रीउदवसभरि पासे प्रतिबोध पामी जैनी थयो. तेनी गोत्रमा नवदुर्गादेवी स्थान नगरथी दक्षिण दिशाए नवख गी बाव पासेले. तेना कर-वैत्र तथा आसुमासनी दशमने दिवसे रूपानी गोत्रजा जुहारमी, हाजर न होय तो नव लीटी कंकुनी करवी. जन्मे, परणे, मुंडणे सेइना लाडु, फइने चार फदीया, साडात्रण गज लुगडु, मागा चार चोखा अथवा घउ तथा नालीयेर बेफइने आपे. लाडुनी नव पींडली गोत्रजा पासे भूके, बाकी कुटुंबमा लाहे.
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( ४९ ). आ गोत्रना वंशजो सीहोर, हलवद, घनेरा, थराद, राधनपुर, अमरेली पासे सेलडी, मोरबी, सोही, भंभोड, ऊना, मीडाउ, पीपरडी, जसदण, लाठी, तेरवाडा, खंभात, पाटण, आदिक गामोमां चसेछे, तेमाना केटलाक कडवामति छे.
आ वंशमां भरोल गाममां थयेला शेठ मुंजाए विक्रम संवत १३०२ मां अंचलगच्छनी वल्लभीशाखाना श्रीपुण्यतिलकसूरिजीना उपदेशथी शिखरबंध जिनमंदिर बंधाव्युं, तथा प्रतिष्टा करावी, अने बाव बंधावी. सर्व मळी सवाक्रोड द्रव्य धर्मकार्योम खरच्युं. विक्रम संवत १४६८ मां शेठ लींबाए पाटणमां दुकाळ वखते घणुं द्रव्य खरची घणा लोकोने उगार्या.
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सांडसा गोत्र-(श्रीमाली-कात्यायन
गोत्रनी शाखा)
( मुख्य शाखाओ) वृद्ध सजनीय ( बीसा ), लधुसजनीय ( दशा)
(पेटा शाखामो) गोदडीया, कडयामती, भायता विगेरे. (आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमा कया कया गाममा कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४-5--0) विक्रम संवत १३२५ मां कात्यायन गोत्रमा शीहोर गामना सामंतशेठ नागे शाहुकार थया. दुश्मनना वचनथी त्यांना सोमराजाला पुत्र जेताजीए तेना पर क्रोधायमान थइ तेने बंदिवानामा नाख्यो, तथा द्रव्य मारयु, पण सामंतशेठे आप्युं नही, त्रीने दिवसे तेने बंदिखानामाथी बहार कहाडी राजाए घणो भय बताव्यो, तोपण ते द्रव्य आपनाने कबुल थयो नही. त्यारे राजाए सांडसा
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(चीमटा) मगावी ते बडे तेलु मांस तोडवानो हुकम कर्यो, परंतु सामंतशेठ तेथी जरा पण डों नही. त्यारे राजाए तेनी हिमतथी खुशी थइने तेने का केतुं खरेखर सांढनी पेठे महाहिमतवालो हुं, ताराजेवा पुरुषो राजना स्तंभसरखा छ, एम कही तेने पोषाक आपी छुटो कर्यो, तथा सांडसो कही बोलायो, त्यारथी तेना बंशजो सांडसागोत्रथी ओळवावा लाग्या. तेओनी गोत्रजा नवदुर्गा छे, तथा तेना कर कात्यायनगोत्रमा लख्यासुजवना छे. __ आ सांडसा गोत्रना बंशजो शीहोर, घनेरापसे सांकडा, थराद, राधनपुर, डोडु, अमरेलीपासे सेलडी, मोरबी, सोही, भंभोड, उना, भीडाउ, पीपरडी, जसदण, लाठी, तेरवाडा, खंभात, भीनमाल, पाँचसेरी, पाटण, बेणप, आरसण, खेरालु, तारापुर, साधोसर, जोटा', चंगा (चरोतर) कपडज तथा काणली विगेरे गामोमा बसे छे.
आवंशमा लघुसजनीय अग्ने वृद्धसजनीय एमबे शाखाओ छे. आ चंशना केटलाक माणसो कडवामति पण छे. आ वंशमां थमेला मेघाशेठथी तेना बंशजोनी.
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खंभायती अडक थइ छे. आ वंशमा जिनदासशेठ बेणषमा वसता हता, ते वखते विक्रम संवत ११४५ मा त्यां भीमराजा नामे राणो राज्य करतो हतो, तेने संतान न होवाथी पोताना प्रधान जोगानी पुत्री मानाने पुत्री करी राखी हती. एक वखते दिवाळीने दिवसे ते राजा ते मानाने पोताना खोळामा लेइ राजसभामां बेठो हतो, ते वखते ते जिनदास राजाने जुहार करवा आव्या, तेनुं रूप जोइ माना तेनापर मोहित थइ, राजाए तेणीने जिनदाससाथे परणवामाटे त्रग चार वखत पूछ्युं, त्यारे सघळी वखत तेणीए हा पाडी. राजाए जोशीने बोलावी लग्न लीधुं. पण जिनदासे कयु के अमे वीसा श्रीमाली छीये, अने आ मानाना पिता दशाश्रीमाली छे, जेथी ते विवाह थाय नही. परंतु राजाए बलात्कारे तेणीना लग्न जिनदासनी साथे कर्या, पछी ते जिनदास शेठ त्यांथी निकळी आरासणमा जइ वस्या. अने तेना वंशजो एवी रीते विक्रम संवत ११८५ थी लघुसजनीय शाखाबाळा थया. केटलाक वषाँबाद आरासणमा अंबादेवीना कोपथी मरकी फेलाणी, अने घणा स्त्रीपुरुषो मरवा ल ग्या, एक दिवसमा चौद मण त्रण शेर जेटला
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सुवर्णनी घुघरीवाला स्त्रीओना वेडला उता, त्यारे आरासण उज्जड थयु, अने तेथी मंत्री नायक सर्व कुटुंबसहित इडरमा जइ वस्या, तथा ल्यारथी तेना बंशजो बाळकने घुघरीवाळू घरेणु पहेरावे नही. पछी ते नायके खेरालुमा अंचलगच्छाधीश श्रीसिंहप्रभसूरिजीना उपदेशथी विक्रम संवत १३०१मां श्रीयुगादिदेव शिखरबंध मंदिर बंधाव्युं, तेमज सूर्य, नारायण तथा ईश्वरना मंदिरो बंधाव्या, अने वाव, कुवा विगेरे बंधावी सर्व मळी त्रण क्रोड द्रव्य खरच्यु. विक्रम संवत १३३६मां दुकाळ वखते तेणे घणु द्रव्य खरची लोकोने उगार्या. संवत १३११मा भरथानी स्त्री झालीए अंचलगच्छीय श्रीसोमतिलकसरिजीना उपदेशथी पार्श्वनाथनुं शिखरबंध मंदिर तथा झालेश्वर तळाव बंधाव्यु. आ वंशमां पाटणमा गोदडने पाडे वसनारा जेराजना वंशजो गोदडीया अडकथी ओळखाय छे.
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( ५४ )
भा (रदा) दरायण गोत्र ( श्रीमाली ) ( मुख्य शाखाओ . )
वृद्धसजनीय ( वीसा ), लघुसंजनीय (दसा ) . ( पेटा शाखा ) डहरवालीया. ( आ गोत्रमां तथा तेनी शाखाओमां कया. कया गामोमां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली) मगावो. कि. रु. ४-0-0 )
विक्रम संवत ७९मां भिन्नमाल नगरमा भादरा यण गोत्रनो नोडानामे श्रीमाली पांच कोडनो वेपारी. बसतो हतो, ते श्रीदामआचार्यना प्रतिवोधथी जैनी थयो, अने अंबाइमाता तेनी गोत्रजा थइ. तेनुं स्थान भिन्नमालनी पूर्वनी पोळे शेर बहार गोलाणी सरोवरपर fara fare areaाडीमा छे. ते देवी चार हाथवाळी छे. ते गोत्रजानी रुपानी मूर्ति करावी जुहारे, ते न होय तो पाटलापर कंकुनी त्रण लींटी करे. तेना कर - जन्मे,
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मुंडणे, परणे तेमज चैत्री तथा आमुनी नोमने दिवसे लापसी, पुडला तथा जवारना खीचडार्नु निवेद करे. जमणीनु कपडं तथा सेरखी फइने आपे. दीकरी जन्मे तो अर्ध कर करे.
आ गोत्रना वंशजो पाटण, मोढेरा, क्लाइ, वाटरी, कालहरी, घुदण, नंदासण, वणथली, नवानगर, भेंसदडी, ध्रोल, अमदावाद, बलवाणा, राणपुर, पीपरडा, सरपदड, भाणवड, खंभात, दमणपासे रामपुर तथा वडोदरा आदिक गामोमां बसे छे.
आ वंशमा विक्रम संवत १३१३मा पाटणमा फोफलीयावाडामा बसता मूला शेठे आदिजिननी प्रतिमा भरावी श्रीअंचलगच्छाधीश श्रीअजितसिंहमूरिने हाथे प्रतिष्टित करावी. विक्रम संवत १४४५मां मोढेरावासी भावडशेठे श्रीमेरुतुंगसूरिजीने हाथे चोवीसीनी प्रतिष्टा महोत्सवपूर्वक करावी. गोहेलवाडमां वलामां थयेला आगमगच्छी हीराना परिवारमा पांजरी नाम लेइ गोत्र जुहारे छे, तथा मुंडणे, परणे चार माणाना लाड कुटुं. बमा लाहे छे, अने बसेर लाडु तथा सेरखी एक फइने आपे छे. आ वंशमां सोमाथी सं. १४४१ थी लघु
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शाळा निकली छे, ते पाटणमा वसे छे. विक्रम संवत १३४५मा चाणसमामा वसता वर्धमान तथा जयताये श्रीयार्श्वनाथर्नु जिनमंदिर बंधाव्यु, अने तेनी श्रीअंचलगच्छाधीश अजितसिंहसूरिए प्रतिष्टा करी. वैजलकीना रहेवासी वाछा शेठे श्रीपार्श्वनाथनुं मंदिर बंधाव्युं, तथा तेनी प्रतिष्टा अंचलगच्छीय श्रीभुवनतुंगमूरिए करी. आ वंशमा विक्रम संवत १४४५मां गोहेलबाडमा पीपरडी गामना रहेवासी गोगनशेठे सर्व गच्छना मुनिओने गामोगाम वाणोतर मोकली कपडा वहोराव्या, जेथी तेना वंशजो "डहरवालीया " नी पण ओडक धरावे छे. गोभलेज (वरोतरमा मातरपासे) गामना रहेवासी भादा शेठे शत्रुजयपर जिनप्रासाद बंधावी तेमां श्रीपार्श्वप्रभुनी प्रतिमा बेसाडी. खेरालुमा थयेला झालाशेठ बहु धनाढ्य हता, तेमणे विक्रम संवत १४२५मां दुकाळ पडवाथी घणुं द्रव्य दानशालामा वापयु, अने लोकोने उगार्या, एक सरोवर बंधाव्यु, शत्रुजयपर आदिनाथजीतुं विशाल मंदिर बंधाव्यु, सर्व मळी अग्यार करोड द्रव्य खरच्यु.
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(५७) आग्नेय अने जाजा गोत्र-(श्रीमाली)
(मुख्य शाखाओ.) वृद्धसजनीय (वीसा), लघुसजगीय ( दशा)
(पेटा शाखाओ) भुहरलाभूत, भुरोल वहोरा, खोखोत्रा, थावलेचा
वहोरा, सिंहवाडीया, कोठारी, विगेरे. ( आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमां कया कया गामोमां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४-0-3) विक्रम संवत ७९५ मा श्रीमालीज्ञातिनो श्रीशांतिनाथनो गोष्टिक चौद क्रोड द्रव्यनो व्यापारी वधानामे शेठ भिन्नमाल नगरमा मातरना पाडामा बसतो हतो. ते श्रीउदयप्रभसूरिपासे प्रतिबोध पामी जैनी थयो. तेनी गोलजा वैरोट्या नामे देवी हती. तेनुं स्थान गोलाणी सरोवरनी पाळे पश्चिम दिशामा हतुं, ते चार हाथवाळी
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(५८) तथा महिपना आसनवाळी हती, तेनी रुपानी मूर्ति करावी जुहारवी, ते हाजर नहोय तो पीपळना पानपर कंकुनी त्रण लीटी कहाडवी. तेना कर-जन्मे, मुंडणे, परणे तथा चैत्र अने आसुसुद आठमने दिवसे लापसी अने खीरवडार्नु निवेद करे. फइने फदीयां चार, श्रीफल बे अने जमणीतुं कपटुं आये. विक्रम संवत ११११ मां मुगलोए ( मुसलमानोए) भिनमालनो नाश करवाथी तेना वंशना सोमारोठ त्यांथी नाशी अहरिली गाममा चस्या, तेने घेर पुत्रना लग्न वखते पोताना जमाइ जाजाने नोताहतो. ते जाना ज्यारे स्नान करना बेठो त्यारे तेनी सालीए हाँसीमा तेनी पीठ पर उन ककळतुं पाणी रेड्यु, तेथी तेनो पासो दाशीने पाकी षड्यो, अने तेथी ते मृत्यु पामी व्यंतर थयो. ते पोताना ससरा सोमाना शरीरमा दाखल थइ कहेला लाग्यो के, तमो जो हवे मारा नामाथी गोत्रजा नहीं स्थापोतो हुँ तमारा कुटुंबनो घात करीश. तेथी ते सोनार तेना नामथी पोतानी जाजा नामनी गोत्रमा स्थापी. त्यारथी तेना बंशजो जाजा गोत्रीना नामथी ओळखावा लाग्या. तेना कर-जन्मे, मुंडणे परणे त्रण खेइनी पीनी मात्रा, तेमज चैत्र तथा
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आसुसुद नोमने दिवसे पण ते प्रमाणेज निवेद करे छे, वधारामां पुडला करवा. फइने साडी, कापडं, नाळीयेर बे तथा सात सोपारी आपा. तेना बंशमा काजानो पुत्र भूता शरीरे भूरो हतो, तेथी तेना बंशजो भूहरलाभूत ओडकथी ओळवाय छे, आ बंशना केटलाक लघुसजनीय पण छे.
आ गोत्रना बंशजो लोलीयाणा, साचोरा, भरोल, सीहवाडा, देभावसी, रामसी, मालपुरा, बीसलपुर, धोलकापासे रंगपुर, जारोलपासे खरहोल, अयाली, खीजडा, लोलाडा, अमलेसर, अहमदपुर, सुंजपुर विगेरे गामोमा बसे छे.
आ बंशमा सिंहनामामा थला पाताशाहे श्रीमेरुतुंगसूरिना उपदेशाथी विक्रम संवत १४५६ मां श्रीआदिनाथजीनु मंदिर बंधा छे. विक्रम संवत १५१७ मां आउआ गाममा थला इलाक नामना शेठे श्रीवासुपूज्यन बिंब कराव्यु, तथा तेनी प्रतिधा श्रीजयकेसरीसरिजीए करी. आबशमा लोलीआणापासे छमाली गाममा थयेला खोखावटी खोखोमा नामनी ओडक थइ, तेणे पाटणमां चोर्यासी पापयशालामा चोर्यासी कल्पसूत्रो
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बंचाव्यां, तथा घणुं द्रव्य खरची स्वामिवात्सल्य कया. आ वंशमा लोलाडामा बसता जगाशेठथी लघुसजनीय शाखा निकळी छे, अने त्यारथी तेना वंशजो पाटणमा शाहवाडामा वसे छे. आ वंशमा भमरोला वहोरा, सुरोल वहोरा तथा थावलेचावहोरा सिंहवाडीया, कोठारी विगेरे पण ओडको छे.
काश्यप गोत्र-( श्रीमाली-ओशवाल)
( मुख्य शाखाओ) ओशवाल, श्रीमाली.
(पेटा शाखाओ) लाछी, गटा, संघवी, आभाणी, गदा, साहुला,
गुगलीया, साचोरी विगेरे. ( आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमां कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवा माटे आत्रोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रू. ४----1)
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· विक्रम सं. ७९५मां भिन्नमाल नगरमा श्रीशांतिनाथजीनो गोष्टिक श्रीमाली ज्ञातिनो झुना नामे काश्यपगोत्रनो शेठ ईशान तरफनी पोळपासे वसतो हतो. ते श्रीउदय प्रभमरिपासे प्रतिबोध पामी जैनी थयो, तेनी खीमजा नामे गोत्रदेवी हती. तथा तेनुं स्थान खीमजा डंगरीपर हतुं, ते आठ हाथवाळी तथा महिषना आसनवाळी हती, तेनी रूपानी मूर्ति करावी जुहारवी. ते हाजर न होय तो पाटलापर एक कंकुनी लींटी करवी. तेना कर ---जन्मे, मुंडणे, परणे पूरसेइना लाड करवा, तथा चैत्र अनेआसुनी पांचमने दिवसे लापसीखें निवेद करवू. फइने सहरखी बे, नालीयेर वे, सोपारी सात तथा जमणीनं कपडु आपq. कोठीवडांनी काचरी पाणीयारे मूकमी. दीकरीना जन्मवखते अरधा कर करवा. विक्रम संवत ११११ मा मुसलमानोए भिन्नमाल नगरनो नाश करवायी आ वंशना शेठ अना त्यांथी नाशीने अचवाडी गाममा वस्या, विक्रम संवत ११५५ मा तेमणे सुवर्णगिरिपर प्रासाद करावीने तेमा अढारभार पीतलनी जिनप्रतिमा भतिष्टित करी. आ वंशमां अचवाडी गामा थयेला लिलाना पुत्र अमरा ओशवालज्ञातिनी स्त्री परण्या, अने
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( ६२ )
तेनो पुत्र खेतसी मामचोरी गाममा मोशाळमां उछयो, अने तेणे मोशाळनी लाछी नामनी गोत्रजा स्थापी, अने त्यारथी तेना वंशजो ओवाळ हातिना लाठी गोत्रीओ कहेवाणा. तेना कर --जन्मे, धुंडणे, परणे पांच माणाना पुरसेइना लाडु करे. अवरणी करे नही.
आ गोत्रमां मामचीरि गाममा ऋषभशेठना पुत्र उदेसी नामे थया, तेथे चउटा हांसीहोडथी पचास मण रुनी गांडी उपाडी, जेथी लोको तेने गटो कहेबा लाग्या, अने तेना वंशजो गटागोत्रथी प्रसिद्ध थया.
आ गोत्रना वंशजो मोरसीम, इडर सींहवाडा, भिनमाल, साचोरीपासे चीरहडा, दाउया, पाता, थलवाडा, तडाव, धांणता, जोधपुरपासे सालवी, झालोरि गोइल, राणपुर, सादरी, काहालरी, मलातिज विगेरे गामोमां वसे छे.
आ वंशमां भिन्नमाल नगरमा विक्रम संवत १५५५ मां थयेला लोलाशेठे शत्रुंजय अने गिरनार तथा जीरावला पार्श्वनाथन संघ कहाड्यो, अने तेमां घणुं द्रव्य खरचवाथी. संघवी थया, अने तेना वंशजो संघवीनी अड
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कधी ओळखाय के. बळी ने लोला संघवीए वावीश हजार द्रव्य खरचीने अचलगढनी चोमखमां ने कासगीया कराव्या. गोदा नामना शेठे सवालाख द्रव्य खरबीने शत्रुंजयनी यात्रा करी. आ वंशर्मा थयेला झांझणशेठे मोडीगामपा से भाद्रही गाममा विक्रम संवत १५४३ मां श्रीविमलनाथजीनो प्रासाद अंचलगच्छना श्रीजयकेसरीसूरिना उपदेशथी करावी तेमां तेमनेज हाथे प्रतिष्ठा करावी. आ वंशम संवत १२१५ नी सालथी गांधीनी ओडक निकळी छे. वळी आ लाछी गोत्रनी ओशवाळनी आभाणी, गदा, साहुला अने गुगलीया तथा साचोरी नामनी पांच शाखाओ पण छे. आभाणी शाखाना वंशजो जन्मे, मुंडणे तथा परणे त्यारे श्रीमहावीरप्रसुनी प्रतिमा आगळ छकडो मूके छे, अने सवाशेर वीतुं दीवेल पूरे छे. तथा दोह गज को कपड़े सुहासणने आपे छे. संवत १२५५म आभाणी शाखाना आधुशेठे माहुडका गाममा श्रीमहावीरप्रभुनो प्रासाद बंधाव्यो, तथा शत्रुंजयनो महोटो संघ कहाडी संघवीनी पदवी लीधी.
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( ६४ )
वारध गोत्र - ( श्रीमाली )
( मुख्य शाखाओ ) वृद्धसजनीय ( वीसा ), लघुसजनीय ( दसा ) ( पेटा शाखाओ ) भोपला अथवा भोपाल विगेरे आ गोत्रमां तथा तेनी शाखाओमां कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४-०-० )
विक्रम संवत ७९५ मां भिन्नमाल नगरमा श्रीमा: लज्ञातिनो वारधिगोतनो दक्षिणनी पोळपासे पीपलाने पाडे अढार कोड द्रव्यवाळो राजा नामे शेठ वसतो हृतो. ते उदयप्रभसूरिपासे प्रतिबोध पामी जैनी थयो. तेनी पापच नामे गोत्रदेवीतुं स्थान गोलाणी सरोवरे दक्षिण दिशातरफनी पावडीओना सात आरा मेलीने अग्यार गज लांबी पहोळी जयतु नामनी शिलापर डाबी बाजुए छे. तेनी मूर्ति काउसगीवारूपे रूपानी करें,
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अने ते हाजर न होय तो पाटलापर कंकुनी लीटी त्रण करे. जन्मे, मुंडणे, परणे तथा चैत्र अने आसुमासनी दशमने दिवसे सेइना लाडु, तथा लापसी अने शोळ पुडला करी गोत्र जुहारे, ते दिवसे घरमां बीजें कई राधे नही. फइने एक दोकडो साडलो तथा जमणीनुं कपडं आपे. संवत ११११मा भिन्नमालनो नाश मुसलमानोए करवाथी ते वंशना शेठ समरथ त्यांथी नाशी तेरवाडे आवीने वस्या.
आ गोत्रना वंशजो तेरवाडा, कुआरोद्र, राधनपुर, धोली, कटारीया, काकर, सलखणपुर, लोहाणु, जुनागढपासे वणथली, सीहोद्डी, धारुका तथा मातर पासे आंबलीआली विगेरे गामोमा वसे छे..
आ गोत्रनी पण वृद्धसजनीय अने लघुसजनीय एमबेशालाओछे. विक्रम संवत १४७५मां आ वंशना देवरशेठे कुंआरोद्रि गाममा एक जिनमंदिर तथा पौषधशाळा बंधावी घणु द्रव्य वरच्यु, तथा तेनी प्रतिष्टा श्रीअंचलगच्छाधीश श्रीमेरुतुंगररिजीए करी. आ वंशमा खेडगामना रहेवासी देवा अने देपाथी लघुसजनीयनी शाखा निकळी, तेथी तेना वंशजो दशा थया. वळी संवत
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१४४५मा देधरनो भाइ देवा जुनागढमा आवी वस्या, तेना वंशमा भोपाल ( भोपला ) ओडक थइ.
पारायण गोत्र-(श्रीमाली)
( मुख्य शाखाओ) वृद्धसजनीय ( बीसा) लघुसजनीय (दसा)
(पेटा शाखाओ) कुडशिखा, ईसराणी, ब्रह्मशांति, जाखडेचा,
झांखरीया, बालकुआ विगेरे (आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमां कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवा माटे आत्रोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४---10) विक्रम संवत ७९५ मा श्रीमालीज्ञातिनी वृद्धशाखामा पारायणगोत्री एकवीस क्रोडनो व्यापारी सोमा नामे शेठ नैऋत्यदिशानी पोलपासे महालक्ष्मीने पाडे मिन्नमाल नगरनां वसतो हतो. ते श्रीउदयमप्रसारिपासे प्र
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तिबोध पामी जैनी थयो. तेनी गोत्रजा झांखडी देवी हती, तेनुं स्थान नगरथी दक्षिण दिशाए आंबलीयावावना चोथा मंडपपर छे. ते देवीन महिषर्नु वाहन छे. तेना कर--जन्मे, मुंडणे तथा परणे चैत्र अने आसुनी चोथने दिवसे मोदक करे, तथा बुडलापर खांड पाथरे, अने कतलीनुं शाक करे. जमणीनु कपडं गज सवा, सहरखी एक तथा नालीयेर एक फइने आपे. विक्रम संवत ११११ मां मुसलमानोए भिन्नमाल नगरनो नाश करवाथी ते वंशना शेठ तिहुअणसी त्यांथी नाशीने बेनप (बेणातट) मां आव्या.
आ गोत्रना वंशजो थरादपासे वाव, महिधाणी, गाहाली, बजाणा, सांतलपुर, माडका, सत्यपुर, निंबावसी, थराद, तीलोडीया, वेणप, भरोल, इटा, असार, भाटकी, सीरोही, तिलाडा, झुझाणीया, गोहिलवाडे पीपराली, मोढना, अधार, गेरवलं, खंभात, बजाणा, पाटडी, नंदायण, कोठारीया, कोलीयाणा, वीरमगाम, कपडवंज, पाटण, कणोद, बढवाणपासे मालुद्री, तथा द्वारका विगेरे गामोमा बसे छे. आ बंशमाथी पण लघुसजनीय एट ले दशानी शाखा निकळी ले.
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( ६८ )
आ वंशर्मा विक्रम संवत १९८५ मां शंकाना पुत्र कपर्दी ( कुडव्यवहारी ) गुजरातना राजा सिद्धराजना दंडनायक हता, तेने राजाए खुशी थइ बार गामो आप्यां हता. तेने घेर एक वखते एकीहारे पांचसो घोडी वीआइ, जेथी तेनुं नाम कुडीव्यवहारी पड्यं हतुं तेणे विक्रम संवत १९८५मां पाटणमा महोदुं जिनमंदिर बंधाव्यं, जेनी प्रतिष्टा श्रीअंचलगच्छेश श्रीजयसिंहसूरिजीए करी. तेमज तेणे वार कुवा तथा बार वावो बंधावी. तेना वंशजो कुडशिखानी अडकथी पण ओळखाय छे. आ वंशर्मा थयेला सोमानी पुत्री सोमाइ के जे सवालाखनी किमतनी वाणी पगमां पहेरती तेणे पोतानी पचीस सखी साथे श्री आर्यरक्षितसूरि पासे दीक्षा लीची, अने घणुं द्रव्य धर्म मार्गे खरच्युं, तथा ते श्रीनामे महत्तरा थइ. नाना वीसले एक लाख द्रव्य खरची एकवीस जणसाथे अंचलगच्छेश धर्मसूरिजी पासे दीक्षा लीधी. बजाणामां थयेला थावरशेठे इलीमां जिनमासाद बंधाव्यो. आ वंशना सत्यपुरना केटलाक रहेवासी ईसराणी अडकथी ओळखाय छे. आ वंशमां पाटणपासे मोढनगरमां वसनारा रहीयाना पुत्र नामे ब्रह्मशांतिथी विक्रम संवत १३१३मां ब्रह्मशांति
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( ६९ )
गोत्रनी शाखा निकळी छे. आ वंशमां विक्रम संवत १३७५म कोलीयाणा गाममां करमाशेठथी लघुसजनीय एटले दशानी शाखा निकली छे, अने तेना वंशजो अधरणी करता नथी. विक्रम संवत १४१८मां आ वंशर्मा थला मेघाशेठे श्रीपार्श्वनाथनी प्रतिष्ठा श्री मेरुतुंग सूरिजीने हाथे करावी. विक्रम संवत १३२५मां पांचाडाना रहेवासी नागडशेठे श्रीआदिनाथना चिंबनी प्रतिष्ठा अंचलगच्छीय श्रीअजितसिंहसूरिपासे करावी. आ वंशम विक्रम संवत १४८५मां वेणपमां थयेला मंत्री रूपाए कूवो बंधाव्यो, पण तेमाथी पाणी निकळएं नही, रात्रिए पाइ नामनी देवीए मंत्री रूपाने कहुं के जो तारा पौत्र कानानो बलिदान आपे तो कुवामां पाणी आपुं. आवीज रीतनुं स्वप्न तेणीना भुआ सारंगने पण आव्युं. त्यारे शेठ चिंतातुर थया. एवी रीते पांच दिवसो वीत्याबाद ससराने चिंतातुर जोइ वहुए तेनुं कारण पूछतां ते वात कही. बहुए खुशीथी पुत्र आप्यो. त्यारे शेठे महाजन एकटुं करी ते कानकुंअरने पालणामां सुवाडी ते सूका कुवामां संध्याकाळे सूक्यो. सर्व कोइ लोको पोतपोताने घेर गया. प्रभाते कुओ जलथी उमराइ गयो, अने पालं उपर तरी
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निकळ्यु, जेमा ते बाळक रमतो दीठो. रूपामंत्रीने लोकोए वधामणी आपी के तारो पौत्र जीवतो छे. पछी ते बाळ. कने घेर लाव्या. त्यारथी तेना वंशजो बालकुआना नामथी ओळखावा लाग्या. तेना वंशमां बाळकना बाळ उतारे त्यारे बालकुआन नाम लेइ निवेद घरे. आ वंशमा शांडीथलीना रहीसरीडाए पुनर्लग्न करवाथी तेना वंशजो लघुसजनीय एटले दसा थया.
वंसीयाण गोत्र-( श्रीमाला)
(मुख्य शाखाओ.) .. वृद्धसजनीय (वीसा), लघुसजनीय (दशा)
(पेटा शाखाओ) वसा, दाधेलीया, घीया, गांधी, दोशी, नाखुया विगैरे. ( आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमा कया कया गामोमां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रू. ४-0-3) ... विक्रम संवत ७९५ मा श्रीमालीज्ञातिनो वृद्धसज
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(७१) नीय शाखानोश्रीशांतिनाथनो गोष्टिक भिन्नमाल नगरमा पूर्वतरफनी पोळपासे कोटमां खोडीयारने पाडे वंसीयाण गोत्रनो सात कोडनो मंत्री सुभच नामे व्यापारी वसतो हतो, ते श्रीउदयप्रभसूरिपासे प्रतिबोध पामी जैनी थयो. तेनी गोत्रजा नायणी देवी हती. तेनुं स्थान खीमजा डुंगरीनी हेठे झेझु नामना कुवाना काठापर नागडी नामे यक्षना स्थानपासे हतुं. ते देवी शोळ सुजावाळी महिना वाहनपर बैठेली हती. तेनुं रूपानुं फलं करी जुहारवी, ते न होय तो पीपळाना पानपर कंकुनी एक लींटी करीने, आसु तथा चैत्रनी पांचम अथवानोमे तथा जन्मे मुंडणे अने परणे त्यारे लापसी,खीचडी,पुडला खाटा,गळ्या तथा बाकुला करी जुहारवी, फइने सहरखीचं कापडं आपे. दीकरी जन्मे अर्ध कर करे. संवत ११११ मा मुगलमुसलमानोए भिन्नमालनो नाश करवाथी तेना वंशना शेठ संघराज त्यांथी नाशीने बेवठणमा वस्या.
आ वंशना वंशजो महेसाणा, राजनगरमा पतासानी पोळमा, मांडवीनी पोळमां, घोघा, खानदेशमा गागडी, राहोली, चरोतरमा काणली, कांसरी, पेटलाद, महेमदाबाद, हालारमा खभालीया, वागड, थान, कंडोरणा,
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( ७२ ) लोलीआणा, वरल, उना, लखतर, वणथली, वढवाण, पाटण, मोढपुर, मोढेरा, मूली, सोजीत्रा, मुलीपासे खरसल, कपडवंज, तारापुर, जेतपुर, देपाव पालीताणा पासे तथा वर विगेरे गामोमा वसे छे.
आ वंशमां महिटाल गाममां वसनारा सुराए पुनलग्न करवायी तेना वंशजो लघुसजनीय एटले दशा थया. आ वंशम थयेला वर्धमानशेठे महिवाल गाममा श्रीआ - दिदेवजीनुं जिनमंदिर तथा एक वाव बंधाव्यां, अने तेमां त्रण लाख द्रव्य खरच्यं. आ वंशमां थयेला जगमाल शेठ एक वखते मथुरा गयेला, त्यां स्वममां श्रीमुहरी पार्श्वना अधिष्टाय के तेने कछु के अहीं ठाकरना घरमा जे पार्श्वप्रभुनी मूर्ति छे ते तारे तेने दाम आपी लेइ जवी. ते स्वप्नने अनुसारे ठाकरने पांच सोनैया आपी ते मूर्तिने से खंभातमा लाव्या, तथा एक लाख द्रव्य खरची प्रासाद बंधावी तेमां ते मूर्ति स्थापन करी. आ वंशमा थयेला देवसीनो परिवार घोघामां वस्यो, अने तेना वंशजो नाखुयानी अडकथी ओळखावा लाग्या. ते देवसीए रत्नभय जिनबिंव भरावी शत्रुंजयनी यात्रामां घणुं द्रव्य खरच्युं, तथा दर वर्षे ते स्वामिवात्सल्य करता. आ वंशमी
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( ७३ ) बेवठणमा वसनारा शेठ खीमाए धर्ममार्गमां घणुं द्रव्य खरच्युं, तथा शत्रुंजयपर इंद्रमाल पहेरी. आ वंशमां पाट
मां गुणाशेठ घणा द्रव्यवान हता, तेणे पोताना पुत्रना लग्न वखते नगरना तमाम माणसोने पकवान जमाडी घणुं खरच कर्यु. ते पकवानो करतां अठार मण जेटलुं दाधेल ( दाझे ) घी वध्युं, ते सधळु घी जाचकोने पीरस्युं, तेथी ते लोकोमां अतिसार, खांसी विगेरे रोगो फेलाणा अने तेथी ते जाचकोए कविताओ जोडी तेने दाधेलीआनी उपमा आपी, पछी ते जाचकोने खुशी करवा माटे तेणे त्रण गामो आप्यां, परंतु तेना वंशजो त्यारथी दाघेलीयानी ओडकथी प्रसिद्ध थया. आ वंशर्मा थयेला श्रीवंत तथा झाला नामना बने भाइओए चुडामां अधिकारपद मेळवी त्यां श्रीपार्श्वनाथजीनुं जिनमंदिर तथा एक वाव बंधाव्या, अने ते जिनमंदिरनी प्रतिष्टा संवत १३५१मां अंचलगच्छाधीश श्री अजित सिंहसूरिजीए करी. आ वंशमां पाटणयां थयेला जसाभाइथी तेना वंशजोमा दोशीनी अडक थयेली छे. आ वंशमां कपडवंजमा थयेला देवाशेठना कुटुंबमां गांधीनी अडक थयेली छे. आ वंशमां चालहुरमा चहुआणना राज्यमां वसनारा
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घरमसीशेठ घृतपूरआदिक बनावीने वेचता होवाथी तेना वंशजो घीया ओडकथी प्रसिद्ध थया छे. आ वंशमा चुडाना रहीस हीराशेठे पुनर्लग्न करवाथी तेना वंशजो लघुसजनीय एटले दशा थयेला छे.
खोडायण (खुड्डियाण ) गोत्र-(श्रीमाली)
(मुख्य शाखाओ.) वृद्धसजनीय (वीसा), लघुसजनीय (दसा)
(पेटा शाखा)
पीपलीया, शेठ विगेरे (आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमां कया कया गामोमां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४-0--) विक्रम संवत ७९५ मा भिन्नमाल नगरमा श्रीमालज्ञातिनोवृद्धसजनीय शाखानो शांतिनाथनो गोष्टिक खुडायन गोत्रनोजोगा नामे शेठ बार कोडनो व्यवहारी वसतो
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हतो. तेनो निवास उत्तरादि पोळे गणेशने पाडे हतो, ते उदयमभसूरि पासे प्रतिबोध पामी जैनी थयो हतो. तेनी गोत्रजा ढावरी नामनी देवी हती, तेनुं स्थान गोलाणी सरोवरपर दक्षिण दिशाए गणेशना देहेरांपासे हतुं. तेना कर-पुत्रना जन्मे, मुंडणे अने परणे त्रिपुरसे. इना लाडु घृत शेर पांचना करी कुटुंबमा लाहे. आसु चैत्रमा तेनुं निवेद नथी. फइने सहरखी बे तथा जमणीनुं कपडं आपे. संवत ११११ मां मुगल मुसलमानोए भिनमालनो नाश करवाथी ते वंशना मोहना नामना शेठ त्यांथी नाशीने डोड गाममा वस्या.
. आ गोत्रना वंशजो वीजापुर, डोड, सरा, बजाणा, जांबु, साणी, धंधुका, खंभात, गुंदी, वढवाण, गुदवच, अंजार, अमदावाद, अरथाली, वांसावाड, वगथली, गोआणा, नवानगर, आजुली, माडी, नरालीया, पीपली नारीचाणा, धंधुका, राणपुर, पालीयाद शेखपुर, नागरका विगेरे मामोमा बसे छे.
आ वंशमां बेनातट (वेणय बंदरमा) थयेला व्यापारी जगदेवशेठे जगातमाटे त्यांना राजा साथे बांधो पड़ता अढार लाख लहारी खरचीने ते बंदरपासेनो सात
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गाउसुधीनो समुद्र किनारो पत्थर, कचरो विगेरे भरावीने बरावी नाख्यो, के जेथी त्यां कोइ पण व्यापारीनं वहाण ते बंदरमा जइ शक्युं नही, जेथी ते बंदरमा व्यापार न चालवाथी उजड थह गयुं, व्यापारी सर्वे नाशीने बीजां शेहेरोमा चाल्या गया. विजापुरमा बसेला ते जगदेवना पुत्र सोमचंद तथा गुणचंद्रे मळीने आबुपरना वस्तुपाल तेजपालना जिनमंदिरनो मुसलमानोए पाडेला केटलाक भागनो जीर्णोद्धार कराव्यो, जांबुगाममा थयेला शेठ धरणे श्रीअंचलगच्छनाश्रीगुणनिधानसरिजीना उपदेशथी संवत १५६५ मां घणुं द्रव्य खरची घणां धर्मकार्यों कर्या. झालावाडमा थयेला भोजाशेठ त्यांना राजाना अधिकारी हता. जुनागढना राजा रामंडलीके तेनुं अपमान करवाथी ते भोजाशेठे गुजरातना राजा महमदसाथे मली जा जीर्णदुर्गपर चडाइ करावी तेनो नाश कराव्यो. आ वंशमा मुलीना रहीस धरणे संवत १४२५ मा पुनर्लग करवाथी तेना वंशजो लघुसजनीय एटले दशा थया, अने तेनो पुत्र नरद बजाणापासे पीपली गाममा वसवाथी तेना बंशजो पीपलीया ओडकथी ओळखावा लाग्या. शेठ लुभाए श्रीजयकेसरीसरिजीना उपदेशथी बेला गाममा
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पीतलनी जिनप्रतिमा स्थापन करी. जाणाशेठे संवत १२९५मा ऊस गाममा श्रीमहेंद्रसिंहमूरिजीना उपदेशथी एक मासाद बंधावी तेमा चोवीसे जिनश्वरोनी प्रतिमा स्थापी. आ वंशमां थयेला शेठ वेला तथा शिवजीने शाहजहान बादशाह तरफथी घणुं मान मळयुं हतुं, तथा तेने शेठनी पदवी आपी हती, अने तेओए राणपुर गाम वसाव्यु हतु, अमदावाद विगेरे शेहेरोमा घणु द्रव्य तेओए धर्मकार्योमा खरच्यु हतुं तेना वंशजो शेठनी ओडकथी पण ओळखाय छे.
लोढायण गोत्र-(श्रीमाली)
(पेटा शाखा)
पाटलीया. (आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमां कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४-०-3) विक्रम संवत ७१५ मा श्रीश्रीमालज्ञातिनो, वृद्ध
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सजनीय शाखानो, शांतिनाथजीनो गोष्टिक, लोढायण गोत्री शालिगनामे चार क्रोडनो व्यवहारी शेठ पश्चिमनी पोले वसतो हतो. ते श्रीउदयमभरिपासे प्रतिबोध पामी जैनी थयो. तेनी गोत्रजा वडखीण नामनी चार हाथवाळी देवी हती, तथा तेनु स्थान आंबिला नामनी वावनी पश्चिम दिशाए हतुं. तेना कर-दरवर्षे आसु तथा चैत्रनी सातमने दिवसे तथा जन्मे, मुंडो अने परणे खीचडी अने पुडलाथी गोत्रजा जुहारे, फइने साडी तथा कापडं आपे. संवत ११११ मा मुगल मुसलमानोए भिन्नमालनो नाश करवाथी ते वंशना शेठ नरदेव त्यांथी नाशी पाटणमा जइ वस्या. मुंवत १२९५ मा ए वंशना शेठ नरा पाटडीमा जइ वस्या, त्यारथी तेना वंशजो पाटलीया अडकथी ओळखाया छे.
आ गोत्रना वंशजो पाटण, पाटडी, लखतर, नवानगरपासे वणथली, थान पासे शाहापुर, साटुडी, धनुआणु, जांबुपासे कारीहाणी, असाली, वढवाण, राणपुर, खेरालु, गोधाबी, जोटाणा, जयतपुर विगेरे गामोमा वसे छे.
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(७९) पारस गोत्र-(श्रीमाली)
(पेटा शाखाओ)
महेता, छुटसखा विगेरे ( आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमां कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४--0) विक्रम संवत ७९५मा श्रीमालज्ञातिनो वृद्धसजनीय शाखानो श्रीशांतिनाथनो गोष्टिक, पारसगोत्री ने क्रोडनो व्यवहारी तोला नामे शेठ भिन्नमाल नगरमा नारायणने पाडे ईशानखूणानी पोळे रहेतो हतो. श्रीउदयप्रभसरि पासे प्रतिबोध पामी जैनी थयो. तेनी गोत्रजा चंडीदेवी आठ भुजावाळी महिपना वाहनपर बेठेली त्रिशूलवाळी हती, तेनुं स्थान गोलाणी सरोवरनी पाळे पूर्व दिशा तरफ हतुं. तेना कर-चैत्र तथा आसुनी आठमे तथा जन्मे, मुंडणे अने परणे आठ पुडला खाटा तथा गोळना करी जुहारे, गोत्रजानुं रूपार्नु फरूं न होय तो पाटलापर
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कंकुनी लींटी एक करे. श्रीफल एक तथा जमणीनुं कपर्दू फइने आपे. संवत १११*मां मुगल मुसलमानोए भिन्नमालनो विनाश करवायी ते वंशना शेठ नरीया त्यांथी नाशीने छेक्टणमा जइ बस्या. ते वंशमां जगदे नामना शेठथी महेता ओडक थइ छे.
आगोत्रना वंशजो पाटणमा फोफलीयाने पाडे, खंभात, अमदावाद, बुरानपुर, भलसाण, मांढा, कवेली, तेरकाडापासे बडसरा, खेरालु, मेमदावाद, मोरबी, कचेली, अधार, पाटडी, भटासणा, ऊना, मोरवाडा, समी तथा पानसीणु विगेरे गामोपां बसे छे.
आ वंशमा थयेला मनाशेठ बालपणामां नगरनी बहार वावपासे ज्यारे रमता हता, त्यारे कोइ धुतारोए आबी तेनो कान तोडी माथी ओगनीओ ( मुवर्णर्नु तंगल जेवू आभूषण झोंट भारी लेइ लीधो. एवामा ते बाळनी बूमी त्यां घोडा खेलवता राउल पायके ते धूतारा चोरने तलवारथी भारी नाख्यो, ते भरीने छूटसख नामे व्यंतर थइ मनाना सर्व कुटंबने दुख देवा लाग्यो. पछी बलिदानथी प्रत्यक्ष थइ ते व्यंतरे कयु के हवेथी तमारा वंशजो मारा नामथी छुटसखानी ओडक धारण
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(८१) करे, तथा कानमा आभूषण न पहेरे तो हुँ दुःख देश नही. तेना कुटुंबे तेम करवातुं कबुल राखवाथी तेना वंशजो छुटसखाना नामनी ओळवावा लाग्या. विक्रम संवत १४४५मा पाटणना रहेवासी देवसीशेठे श्रीशजयनो संघ कहाडी श्रीअंचलगच्छाधीश श्रीरंगरत्नमरिजीना उपदेशथी घj द्रव्य खरच्यु. तथा हीराना भाइ वीराए संवत १४४६मां श्रीलोमतिलकपूरिजीना उपदेशथी फोफलीयावाडामा पौषधशाळा बंधावी.
लाछिल गोत्र-(श्रीमाली)
(पेटा शाखा)
वहोरा, पारिख विगेरे. (आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमां कया कया गाममा कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४----3) विक्रम संवत ७५५ मा श्रीमालज्ञातिना वृद्धसन. जीयशाखाना श्रीशांतिनाथजीना गोष्टिक लछिलगोत्री
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(८३) पांच क्रोडना व्यवहारी भिन्नमाल नगरमां गोवर्धन ना. मना शेठ पूर्वनी पोळे सदेवत्तीपाडे वसता हता, ते श्रीउददयप्रभरिपासे प्रतिबोध पामी जैनी थया. तेनी गोत्रजा
अधिकादेवा हती, तेनु स्थान गोलाणी सरोवरथी उत्तर दिशाए नैऋतीया कुवा पासे हतुं. से चार भुजावाळी वेठा आसने छे. तेना कर-जन्मे तथा परणे त्यारे, अने चैत्र तथा आसुनी नोम अने दशमने दिवसे, एम एक वर्षमा चार वखत लापसी अने पुडलाथी जुहारे. रुपार्नु फरूं न होय तो पाटलापर कंकुनीत्रण लींटी करे. फदीयां दश तथा जमणीनुं कपडं फइने आपे. संवत ११११ मा मुगल मुसलमानोए भिन्नमालनो नाश करवाथी ते वंशना शेठ श्रीचंद त्यांथी नाशीने तेरवाडापासे वडसरा गाममाँ जइ वस्या.
आ गोत्रना वंशजो वडसरा, खेरालु, वाराही, मेमदावाद, मोरबी, कचेली, आधा, पाटडी, भटासण, उनाउ, तेरवाडा, समी तथा पानसीणा विगेरे गामोमा वसे छे.
आ वंशमा खेरालु गाममा थयेला वर्धमान शेठे विक्रम संवत १३४५ मा श्रीआदिनाथनो प्रासाद करा
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व्यो, तथा तेनी प्रतिष्टा अंचलगच्छेश श्रीधर्मप्रभमूरिजीए करी. वळी तेमनाज उपदेशथी श्रीशनुजयनो संघ कहाड्यो, तथा गोत्रदेवीनो पण प्रासाद कराव्यो. सर्व मळी त्रण क्रोड द्रव्य खरच्यु. संवत १३९५ मां वारहीमा वसनारा धनाशेठना वंशजोमां वहोरानी अडक थयेली छे. वीराशेठे हरियापुरमा पार्श्वनाथन मंदिर तथा पौषधशाळा बंधावी छे, तथा जयकेसरीमूरिजीए तेनी प्रतिष्टा करेली छे. संवत १४२५ मा पाटडी गाममा थयेला गोपालशेठ झालाराज्यमा कारभारी हता, अने तेना वंशजोमा पारिखनी ओडक थयेली छे.
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(८४) चंडीसर गोत्र-(श्रीमाली)
(मुख्य शाखाओ) वृद्धसजनीय (बीसा), लघुसजनीय (दशा)
पेटा शाखाओ.
सेल्होत, घोषा, जांबुआ विगेरे. (आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमां कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४--) विक्रम संवत ७९५मा भिन्नमाल नगरमा श्रीमाल. ज्ञातिनो श्रीशांतिनाथनीनो गोष्टिक चंडीसर गोत्री त्रण कोडनो व्यवहारी नारायण नाने शेठ वसतो हतो, ते श्रीउदयामसूरि पासे प्रतिबोध पामी जैनी थयो. तेनी गोत्रजा भद्रवासणा नामे देवी हती, तेनुं स्थान देवादित्यनी वाडीमा बेहेडांना वृक्षपाले हाँ. पछी तेनुं बीजें स्थान बेणपना पादरमा थयु छे. तेना कर-जन्मे, मुंडणे, परणे अने अधरणीए फक्त सेवथी गोत्र जुहारे, अने
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पासे कटारी राखी तेने पण पूजे. परण्या पछी तथा जन्म पछी जे पेहेली दीवाळी आवे ते दिवसे पण गोत्रजा जुहारे. चैत्री आसुनी स्थिति नथी. संवत ११११ मा भिन्नमालना नाश पछी शेठ परखा बेणपमां आवी वस्या.
आ गोत्रना वंशजो बेणप, जांबु, मंडपाचल, मातर, रोही, एचब, सीहोर, घोघा, वरतेज, नवानगर पासे खीमराणा, अरणीआला सोरठमां, नवानगर पासे बाडा, मोडा, पुरद, भोइका, लींबडी, पालीयाद, सोजीत्रा, मोरवी, मूली, पुनासा, अमदावादमा शाहापुर, ऊनाऊ, भागसीणीआ, मेसाणा, फुदडी, कासरी, जालोर, धाणसा, पुनासी, खंभात, कोयरी, डीसापासे दामइ, राडद्रा, धराद, कूका, केसवाण विगेरे गामोमा वसे छे..
आ वंशमां थयेला वीरदास शेठ बेणपमा लाखणराणाना कारभारी हता, अने राणानी सोनानी कटारी ते मेंठमा बांधता. एक वरवते नजदीकना भरडुआ गामना सांखलु नामना भिल्ले तेना घरमाथी ते कटारी चोरीने सोही गामपासे एक महोटां वृक्षना थडनीचे दाटी. बीजे दिवसे ते भिल्ल थरादमां चोरी करतां तलवारना घाथी मार्यो गयो. हवे शेठे कटारीनी घणी शोध करी पण
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( ८६ ) मी नही. ते भिल्ल मरीने व्यंतर थयाबाद तेणे शेठने स्वप्नमां ते कटारीनी चोरीनी हकीकत कहीने ज्यां दाटी हती ते स्थान बताएं, अने लाखणराणार पण तेवुंज स्वप्न जोयुं. पछी प्रभाते वीरोशेठ तथा राणो बन्नेए परिवारसहित त्यां जइ जमीन खोदी तो ते कटारी दिवाळीने दिवसे सात वर्षोवाद मळी आवी, अने वाजते गा.. जते ते कटारी घेर लाव्या. त्यारथी तेना वंशजो गोत्रजा साथै कटारीने पण पूजे छे, आ वंशमां मंडपाचलमांथी जांबुमां बसेला मेघा शेठथी तेना वंशमां सेल्होत ओडक निकली छे, तेओ पण कटारी पूजे छे, सुथण पहेरता नयी, वांझणी घुघरी न पहेरे. प्रथम पुत्रना जन्म वखते चार माणानुं दळ गोत्रमां लाहे छे, तथा रुपीयो एक फइने आपे छे. बीजे पुत्रे लापसी करे छे, तथा फइने एक रुपीओ आपे छे. दीकरी जन्मे दोट कोरी आपे छे, अने अधरणी पांच महीने करे, एटलो सेल्होतनो कर छे, आ वंशर्मा थयेला जगा शेठे संवत १३९५ वैसाक सुद ११ से पुनासा गाममां जिनमंदिर बंधाव्युं, अने तेनी अंचलगच्छेश श्रीमहेंद्रप्रभसूरिजीए प्रतिष्टा करी. संवत १५९७मां पोपारोठे पुनासा गाममां श्रीसंभवनाथ
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जीनो प्रासाद बंधाव्यो, तथा श्रीमरुतुंगारिजीए तेनी प्रतिष्टा करी. आ वंशमा संवत १४५५मा मोवीमा वसनारा देल्हाशेठे पुनर्लग्न करवाथी तेना वंशजो लघुसजनीय एटले दशा थया. आवंशमा मेघाशेठथी जांबुआ ओडक पण थइ छे.
आ वंशमा झालोरमा थयेला राज्याधिकारी जोगा शेठे घणां धर्म कार्यो का छे. आ वंशमा सं. १६४४मा चयेला धरमसीथी घोघानागनी पूजा थवा मांडी छे, तेथी तेना बंशजो घोघा अडकथी पण ओळखाय छे.
विषापहार गोत्र-(ओशवाल ) (आ गोलमां तथा तेनी शाखाओमां कया कया गामोमां कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवामाटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४-०-०) विक्रम संवत १४४७ चैत्र वद ११ गुरुवारे थराद पासे पालती नामना गाममा तथा थोडा वर्ष पछी कंट
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(८८) ली गाममा सहसा नामे ओशवाळ ज्ञातिना शेठ वसता हता. अने तेनी अछुमा नामे गोत्रदेवी हती. तेना करमाटे एक दिवस. घरमा पक्वान था हतु, त्यारे घरना छापरामा रहेला कोइक सपन गरल तेमा पड्यं, तेनी कोइने खबर पडी नही, ते पकान खावाथी धरना घणा माणसो झेर चाडबाथी भूति थयां, एक सहसा शेठ अने तेनी माताए ते न खावायी जीवता रह्या.. एवामा त्यां श्रीअंचलगच्छना आचार्य श्रीजयकीर्तिसरि मासक्षमण रह्या हता. सहसानी माताए गामना मनुष्यो सहित तेमनी पासे जइ विनंति करवाथी गुरुमहाराजे विषापहारमंत्रवडे सर्वने जीवता को, अने त्यारथी ते सहसाशेठना बंशजो अंचलगच्छनी सामाचारी पाळवा लाग्या. अने त्यारथी ते सहसाना वंशजो विषापहार गोत्रंथी प्रसिद्ध थया. ___ आ गोत्रना वंशजो सइलबाडा, कुंआरडा, कोटडा, अमरकोट, पोकारण, फलोधीपासे आउ, झुंझाणी, साचोर, राडद्रह, मोरसीम, सीरोही विगेरे गामोमां वसे छे.
विक्रम संवत १४९३ जेठ सुद १० मे सइलबाडामा थयेला हालिंगशेठे अंचलगच्छीय श्रीजय कीर्तिमरिना
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( ८९ ) उपदेशथी श्रीशांतिनाथआदिक पचीस जिनबिंबो नवां भराव्यां, तथा सत्यपुरमा आवी त्यां श्रोवीरप्रभुनो जिनप्रासाद बंधावीने ते गुरूने हाथे प्रतिष्टित करावी पचीस हजार पीरोजी खरची.
वीजल गोत्र - ( श्रीमाली ) ( या गोत्रमां तथा तेनी शाखाओमां कया कया गामोमां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाणवा माटे या गोत्रनो आंबो (वंशावली ) मगावो. कि. रु. ४-०--०)
विक्रम संवत ७९५ मां श्रीमालज्ञातिनो शांतिनाथनो गोष्टिक चौद कोडनो व्यापारी वर्धमान नामे शेठ दक्षिणनी पोळे महामायाना पाडामां भिन्नमालमां वसतो हतो, ते श्रीउदयमभसूरिपासे प्रतिबोध पामी जैनी थयो. तेनी गोत्रजा वीजलदेवी नामे हती. तेनुं स्थान गौतमेश्वर सरोवर तथा बीजा जुगमां ते सरोवरनुं नाम गोलाणी सरोवरपर एकसमी देरीमां हतुं, ते देवी चारभुजावाळी सिंहना वाहनवाळी हती. तेनुं रूपानुं फरूं करी पूजे, ते
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(९० )
हाजर न होय तो पीपळनुं पान पाटलापर मूकी ते पर कंकुनी त्रण लींटी करीने जुहारे, तेना कर-जन्मे, मुंडणे, परयो, अने चैत्र तथा आसुनी आठमने दिवसे सड़ना दरना लाड, लापसी तथा खीरवडांना निवेदथी पूजे. नालीयेर एक तथा जमणीनुं दोढ गज कापडे, साडी तथा फदीयां चार फइने आपे. दीकरी जन्मे अर्ध कर करे. संवत ११११ मां भिन्नमालनो नाश थवाथी ते वंशना शेठ शोभा त्यांथी नाशीने समुद्र किनारे बेनपपासे भुहिरोली गाममां जइ वस्या.
आ गोत्रना वंशजो भुहिरोली, थालाज, काकरेची विगेरे गामोमां बसे छे.
आ वंशमां काकरेचीमां थयेला धारा तथा धनराज शेठे एक लाख द्रव्य खरचीने श्री ऋषभदेवप्रभुनो प्रासाद कराव्यो, तेनी प्रतिष्टा श्रीजिनेंद्रसूरिए करी, तेमज
ओए एक वाव तथा दानशाळा करावी वणुं द्रव्य खरच्युं. संवत १२८२ मां थयेला बछराज, विजय तथा जादव शेठे अर्धलक्ष द्रव्य खरचीने शत्रुंजयनी यात्रा करी संघवीपद मेळव्यं, तथा दानशाळा करावी.
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गांधी ( सहसगुणा )-(ओशवाल ) (या गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमा कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४---0) . विक्रम संवत १२१०मा मरुधर देशमा आवेला भिन्नमाल नगरनी पासे रतनपुर नामना नगरमा परमार वंशना हमीरजी नामना राउत राज्य करता हता. तेने जेसंगदे नामे राज्य धुरंधर कुमार हतो. तेना समयमा पारकर देशमा आवेला भुदेसरनगरमा राणा श्रीभारमल्ल राज्य करतो हतो. तेनी सुहदे नामनी राणीनी कुलिए सरस्वती नामनी घणीज विनयवाळी तथा विद्यावंत पुत्रीनो जन्म थयो हतो. तेणीना लग्न ते जेसंगदे राजकुमार साथे थयां हतां, तथा ते वखते नव लाख पीरोजीनो खर्च थवाथी ते कुमारिका नवलखी नामथी प्रसिद्ध थयेली हती. तेणीनी कुक्षिए अभिचि नामना शुभ नक्षत्रे एक पुत्रनो जन्म थयो. हवे ते समये सिंधदेशमा मुगल
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गोठ नामना नगरमा एक बलोचाणी स्त्री वसती हती, ते पोतानी मंत्रशक्तिथी घणा बालक, पशु, स्त्री, पुरुषनी हिंसा करती हती, अने तेथी लोकोमा घणो त्रास वरती रहेलो हतो. तेणीए पोताना मंत्रालथी सीकोत्तरी देवीने आराधयाथी ते प्रत्यक्ष थइ कहेवा लागी के, मने जो कोइ अभीचि नक्षत्रमा जोला बत्रोस लक्षणा बाळकनुं बलिदान आपे तो हुँ तारापर प्रसन्न थाउं. त्यारे ते बलो. चण तेवो बाळक मेळववा माटे मंत्रशक्तिथी समळीनुं रूप करी घणा देशोमा फरती करती रतनपुरमा आवी. त्यां ते बाळकने जोइ बीलाडीचं रूप करी घरमा पेसीने ते बाळकने लेइ गइ. प्रभाते राजद्वारमा तथा नगरमा घणो हाहाकार थइ रह्यो. एवामां श्रीअंचलगच्छनायक श्रीआर्यरक्षितरि त्यां पधार्या. तेमने सर्व संघे महोत्सवपूर्वक नगरमां पधराव्या, परंतु संपना लोकोने उद्विग्न जोवाथी आचार्यश्रीए पूछता राजकुमारना हरावानी वात तेओए कही संभळाली. पछी तेमने महाप्रभाविक जाणीने राउत हम्मीरजी गुरुपासे आधी वंदन करी पौत्रने कोह पण उपायथी शोधी कहाडवा विनति करी, तथा ते मळे तो जैनधर्म स्वीकारवानी कबुलात आपी. त्यारे गुरु
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महाराजे मंत्रबळथी चामुंडानु (महाकाली) आह्वान कयु. तेज वखते महिषवाहनपर बेठेली तथा दरेक हाथी खड्ग, खप्पर, कातर तथा उमरुने धारण करनारी महा विक्राल स्वरूपथी ते देवी प्रत्यक्ष थइ, तथा गुरूने नमीने कहेवा लागी के मने शामाटे बोलावी छे ? गुरुमहाराजे कडं के अहींना राजा राउत हम्मीरनो अभीचि नक्षत्रमा जन्मेलो पौत्र कोणे हरण करेलो छ ? तेनी तपास करी अहीं पाछो लावी आपो ? त्यारे ते देवी गुरुनी आज्ञा प्रमाण करीने ते मुगलगोठ गाममा तेबलोचण ने घेर आवी, अने जोयुं तो ते वाळकने बाजोटपर सुवाडीने चार बलोचणो मंत्राराधन करे छे. त्यारे देवीए ते बलोचणोने चपेटा मारीने, ते बाळक लेइ लीधो, अने तुरत गुरु पासे आवी गुरुने सोंपी दीधो, तथा तेना ललाटमा तिलक करी, चोखा चोडीने आभूषणो पहेरावी गुरुने सौंपी देवी अदृश्य थइ, गुरुए पण तेने खोलामो लेइ तेनामस्तकपर वासक्षेप नाख्यो, तशा एवी आशीष आपी के जे कोइ रोगी माणसपर आ बाळक हाथ फेरवशे, तेनो रोग दूर थशे, तेमज सर्व प्रकारचं विष दूर थशे. पछी गुरुए राउत हम्मीरजी तथा जेसंगजीने बोकावीने ते
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(१४) बाळक सोंपी दीधो, हम्मीरजीए कुटुंबसहित जैनधर्म स्वीकारी बार व्रतो धारण कयाँ, तथा ते बाळकनुं सखतसंघ नाम पाग, महाकाली ( चामुंडा) ने गोत्रजा करी स्थापी, नगरना लोको पण हर्षित थया. पछी ज्यारे ते महोटा थया त्यारे हजारो गमे लोको ते सखतसंघना गुणो बोलवा लाग्या, अने तेथी तेना बंशजो सहसगुणा गांधीथी ओळखावा लाग्या. राउत श्रीजेसंगे शत्रुजयतीर्थनो संघ कहाडी घणुं द्रव्य खरच्युं, सोना महोरोनी लहाणी करी, गुरुए तेमना परिवारने वृद्धसजनीय ओशवाळमा मेळवी दीधा. श्रीजेसंगजीए चोर्यासी गच्छोमा पहेरामणी करी आगमोना पुस्तको लखावी घणो यश संपादन कर्यो. गोत्रजा महाकालीनो ( चामुंडानो) कर-जन्मे, मुंडणे, परणे सवासेर घृतनी लापसी, सवा. सेर बाकुला करी जुहारे. पछी भारमल्ले व्रतउच्चार कर्यो, त्यारथी ते कर न कों परंतु यथाशक्ति आसु वद् चौदसे गोत्रजापासे दीवा भरे छे.
आ गोत्रना वंशजो रतनपुर, चित्तोड, मालपुर, मेवाडमां बडरोदा, किसनगढ, पारकर, आमोद, सुई, आधी, रव, वागड, भुज, अमरकोट, बाहड़मेर, आसो
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(५५) तर, वीकानेर, गूढा, पाटण, अमदाबाद, गोलकोंडा, थराद, अंजार, आसोणा, धीणस, सुराचंद, साचोर, गणोद, राधनपुर, बुरानपुर, मंगाणी, नागोर, कालु, उदेपुर विगेरे गामोमां बसे छे.
आ वंशमा विक्रम संवत १३४१ मा रतनपुरमा थयेला गोविंदशेठे शिखरबंध बहोतेर जिनालयो श्रीआदिनाथ प्रभुनो अद्भुत प्रासाद बंधाव्यो, तथा तेनी प्रतिष्टा श्रीअंचलगच्छाधीश श्रीजयशेखरखरीश्वरजीए करी, शत्रुजयनो संघ कहाडी त्यां तेमणे ध्वजा चडावी, साकरनी परब बांधी, माल पहेरी, संघवीपद प्राप्त कयु, संघने जमाडी जणदीठ एकेक रूपीयानी प्रभावना करी घेर आवी देशते९ करी सर्वने पक्वान्न जमाडी धर दीड एक साडी, एक थाळी तथा तेमा एकेक रुपीयो अने एक शेरनो मोतीचुरनो लाडु नाखी आखा शेहरमा लाणी करी घणु द्रव्य खरच्यु, तेम बीजां पण घणा धमैना कार्यो का. पारकर देशमा वसनारा आ गोत्रना वंशजो जन्मे, मुंडणे तथा परणे अने आसु वद चौदसे लापसी, वडा तथा तलवटथी धूप दीपसहित गोत्रजा जुहारे छे, तथा आगळ साडात्रण फदीयां मूकी अने
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श्रीफल वधारे छे. आ वंशमां संवत १७५३ मां पारकरमा थयेला तिलाशाहे ज्ञानपंचमीठें उजमणुं करी घणु द्रव्य धर्म कार्योमा वरच्यु. बीकानेरमा थयेला खेनदासशेठ घणा दातार थयाछे, तेमणे नेवुहजार पीरोजीनुदान देइ दीक्षा लीधी हती. आवंशमा गोलकंडागाममा थयेला धनाशेठ चारित्र लेइ श→जयपर पचीस दिवसोनुं अनशन करी देवलोके गया. कालुगामगा थयेला पोमा शेठे पोतानी स्त्रीसहित दीक्षा लेती वेळाये घणुं द्रव्यदान कर्यु छे. उदेपुरमा थयेलो सादूल सन्यस्त लेइ पचीस दिवसन अनशन करी शत्रुजयपर धर्मध्यानथी देवगत थयो.
Saamana
D
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( ९७ ) देवादसखा- ( ओशवाल )
( मुख्य शाखाओ ) वृद्धसजनीय ( वीसा ), लघुसजनीय ( दसा ) ( पेटा शाखाओ ) गोसलीआ गोठी विगेरे ( गोसलीयानी पेटा शाखाओ ) चोथाणी, वीसलाणी, हीराणी, देसलाणी, भुलाणी, कोकलीया, मूलाणी, थावराणी विगेरे. ( आ गोलमां तथा तेनी शाखाओमां कया कया गामोमां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली) मगावो. कि. रु. ४-०-० )
विक्रम संवत २०२५मां गंगाना किनारापर मुक्तेसरगढमां नागरज्ञातिना गौतम गोत्रीय घणा विप्रो वसता हता. त्यां समस्त भरतखंडना घणा दुःखीया लोको आवी ते विप्रो पासे पोताना मस्तकपर करवत मूकाची आपघात करता हता. ते विप्रोना वंशम संवत १२५२
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(९८) मतांतरे ( १२५५ )मा औदिच्य ब्राह्मण ज्ञातिना दिनकरभट्टआदिक ते करवत मेलवान कार्य करता हता. एवामा अंचलगच्छाधीश श्रीधर्मघोषसरि विहार करता मुक्तेसरमा पधार्या, अने एवी रीते मनुष्यवध न करवा माटे तेमणे तेओने उपदेश को. विमोए कहा के तमो जो कंइंक तमारा धर्मनो चमत्कार बतावो तो अमो तमारो अहिं. सामय जैनधर्म स्वीकारीयें, पछी गुरु उपराउपर एकसो आठ कामळीओ पाथरी तेपर हाथमा नवकारावली लेइ मंत्र जाप करता वेटा. एकेके मणीए तेना शिष्या एकेकी कामळी तेमनी नीचेथी कहाडता गया. एवी रीते नवकारावळीना एकसो आठ मणका गणायाबाद सर्व कामकीओ कहाडी नाखवाथी गुरुमहाराजने अघर आकाशर्मा आसन वारीने बेठेला ते विनोए जोया, जेथी मनमा चमत्कार पाम्या. तेवारपछी ते दिनकरभट्ट, तेना पुत्र प्रभाकर, गोविंद, गोवर्धन, गोकलचंद तथा पुण्यचंद आदिक घणा विमो जैनी थया. अने पोतानी पचास मण वजननी ते मनुष्यवध करनारी करवतने गंगाना प्रवाहमा फेंकी दीधी. तेओनी गोत्रजा भूडीयांणची नामनी देवीने पण प्रतिबोधीने गुरुए समकीती करी,
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तथा तेणीना निवेद माटे आसु तथा चैत्रनी पुनमे एकसो आठ नालीयेरनो होम करे. त्यारवाद ते दिनकरभट्टना कुटुंबने बीजा तेनी ज्ञातिना ब्राह्मणोए ज्ञातिवहार कयु. तेथी संवत १२६१मा आचार्यश्रीए दिल्हीना संघने एकठो करी ते कुटुंबने ओशवाळज्ञातिमा मेळवी दीधुं. तेना बंशमा दिनकरभट्टथी त्रीजी पहेडीए थयेला बायाणंदना देवाणंद तथा तेना रामा, रामचंद्र, वीजयचंद्र, बयरसी, रुपसी, छजु, गनु, रायमल, जयमल, जेसल, अने गोसल नामना अग्यार पुत्रो थया, तथा तेओ सघळा दिल्हीमा आवी वस्या, एवीरीते देवाणंददादानो घणो परिवार होवाथी तेना वजो देवाणंदसिखाथी ओळखावा लाग्या. पछी अंचलगच्छीय श्रीमेरुतुंगभूरिजीना उपाध्यायजीना कहेवाथी दिल्हीमा संकट फेलाबार्नु जाणी बीजा मीठडीया आदिक ऋण कुटुंगोसाथे ते देवाणंदशिखागोत्रना माण सो पण दिल्ही छोडीने संवत १४१५मा जूदाजूदा गामोमां वस्या, तेमाना एकना वंशजो झालोरमा, बीजाना सीरोहीमा, त्रीजा रामचंद्रना शीहोरीमा (सीहोरमा), वीरचंदना प्रभासपाटणमा, एकना पारकरमा गोठी ओडकवाला, रूपसीना टोडीमां,
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(१००) छजुना बुरानपुरमा तथा गोसलना कच्छमा अने हालारमांछे, तथा बीजाओ बीजे वस्या छे..
एवी रीते आ गोत्रना वंशजो सीरोही, राडद्रह, भापीपासे वामी, कारी, भिन्नमाल, जुनागढ पासे जोसीपुर, गुढा, भाटइ, पानेली, पोकरण, जेसलमेर, पाटण विगेरे गामोमां बसे छे, गोसलनो परिवार कच्छ तथा हालारमा मांढा, वसइ, लुयडी, चंगा, भणगोल, साम राइ, कोटडी, राफुदळ, डबासंग, चेला, डुमरा, खंभालीया, सरमत, तरधरी, मुडाटोडा, कोकली, आरीखाणा, कोझ, पडाणा, सांगणनी लुस, साभराइ, गोधरा, हालापुर, त्राही, रंगपर, घोल, सखपर, बीदडा, जोगवड, खाखर, वीरमर्नु गाम, भागनी वीसोतरी, सोनारडी, पारही, बेराजा, मुंदरा, खोडाया, नाराणपुर, खीडोइ, कोटडी, सुजयर, लाखावावर, हापा, छीकारी, खडबा, वीपल, सीण विगेरे गामोमा बसे छे.
आ वंशमा संवत १४७३मा सत्यपुरमा थयेला मंत्री मेघाए श्रीमहावीरप्रभुना बिबनी प्रतिष्टा करावी छे. सं. १५७२मां सीरोहीमा थयेला भींदा तथा नेताए श्रीवासु . प्रज्यस्वामिनी प्रतिमा भरावी, अने तेनी प्रतिष्टा अंचल
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(१०१) गच्छीय श्रीभावसागरसूरिजीए करी छे. आ वंशमा गोसलाणी ( गोसलीया-कच्छी हालाइ ओशवाल ) ते क्षेत्रपालना तथा डाडीना बगलपासे डाडलमाताना कर करे छे, अने बाळकना वाळ त्यां उतरावे छे. वरसुंदीये एक पालीना पुडला, एक पालीना कोरा बाकुला, अने सवा पालीनो पीडो करी जुहारे छे, तथा गोत्रजाना अगीयार पालीना लाडवा करे छे. तथा हालारना गोसलीया पुत्र जन्मे आसापुरा तथा रोझीने जुहारे छे, एवी रीते आ गोसलना वंशमां चोथाणी, वीलसाणी, हीराणी, देसलाणी, भुणा(ला)णी, कोकलीया, मुलाणी, थावराणी विगेरे घणी ओडको कच्छी ओशवाळोमा छे. जोगवडा चांपाथी तथा मांढामां देवाथी लघुसजनीयनी (दशानी) शाखा निकळी छे. भणगोलना रहेवासी नागाजणे अमरसागरसूरिना उपदेशथी घणां धर्मकार्यो द्रव्य खरची कर्या छे. मांढा निवासी वीसाए तथा खेताए त्यां वावो बंधावीने स्वामिवात्सल्यमा घणु द्रव्य खरच्युं छे. कच्छ नलीयाना रहीस मूलाशाहे मूलासर नामर्नु तलाव बंधाव्युं छे. कच्छ साभराइमां थयेला भावडना पुत्र पदमसीए संवत १७४५मा त्यो सुविधिनाथनो शिखरबंध मासाद
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(१०२)
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बंधाव्यो. संवत १७३१मां साभराइना शा. कानडे शत्रुंजय तथा गोडीचानो संघ कहाडी घणुं द्रव्य खरच्युं, तथा सदावतो बंधाव्यां संवत १७४३मां कच्छ गोधराना रहीस गोवर, लखा तथा नरसीए घणुं द्रव्य खरची स्वामिवात्सल्य कधी. संवत १३५१मां घोलना रहीस देराजे त्यां सेलरखाव बंधावी. संवत १७३७मां कच्छ वाराहीना रहीस आसगे त्यां वाव बंधावी, तथा ते लघुसजनीय (दशी ) थयो.
శ్రీ
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200
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(१०३) गौतम गोत्र-(श्रीमाली-तथा ओशवाल )
(मुख्य शाखाओ) वृद्धसजनीय (वीसा), लघुसजनीय (दशा)
(पेटा शाखाओ.) महोता, यशोधन, भणसाली, वीसरीया, शंखेश्वरीया, पुराणी, धुरीयाणी, भरकीयाणी, घट्टा, छे
वहाणी, पबाणी, मालाणी घेलाणी विगेरे । (आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमां कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४-४-०) विक्रम संवत ७५५ मा श्रीमिन्नमाल नगरमा श्रीशांतिनाथना गोष्टिक विजयनामे शेठ वसता हता. ते. मने श्रीउदयप्रभसूरिजीए प्रतिबोधीने जैनी कर्या. तेनी गोत्रजा गाजणा नामे देवी हती, तेनुं बीजं नाम नारायणी देवी हतुं. तेनुं स्थान खीमजा डुंगरीपर गाजणाढुंके हवं. तेना कर-आसु तथा चैत्रनी पांच मे चोळा चोखानुं
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( १०४ )
घृत नाखी निवेद करे. फइने आठ फदीयां तथा जमणीनुं कापडुं आपे. एवीज रीते जन्मे, मुंडणे तथा परणे कर जाणवा. दीकरी जन्मे अर्ध कर करे. ते विजयशेठ पूर्वनी पोळतरफ समरसंघ नामना पाडामां वसता हता, तथा चार क्रोडना व्यापारी हता. संवत १९११ मां मुगलमुसलमानोए भिन्नमाल नगरनो नाश करवाथी तेना वंशना शेठ सहदे त्यांथी नाशीने चांपानेर पासे भालेज नगरमा वस्या. त्यां ते छत्रीस जातना करीयाणानो व्यापार करता होवाथी तेमनी भांडशाली ( भणसाली ) ओडक थइ. तेमने संवत १९७९ मां श्रीउदयप्रभसूरिए सर्वथी प्रथम प्रतिबोध्या, अने तेथी श्रीमाली ज्ञातिना ते सर्वथी प्रथम जैन श्रावक थया. ते सहदेना यशोधन अने सोमानामे वे पुत्रो थया.
भकुं नगर भालेज वसे भणसाली भुजबल । तास पुत्र जयवंत जसोधन नामे निरमल || पात्रे परवत जात्र काजे आवीआ गहगटी । नमी देवी अंबावि आवी रहीया तलहट्टी || आत्रीया सुगुरु एहवे समे आर्य रक्षित सूरिवर । धन धन जसोधन पय नमी चरण नमे चारित्रधर |१|
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धरी भाव मन शुद्ध बुद्धि पय प्रणमे सहि गुरु । आज सफल मुजा दिवस पुण्ये पामीयो कल्पतरू । जन्म मरण भय भीति रिति सावयवय साखे । समकीत मूल सुधाधु देव गुरु धर्मह आपे । परिहरी पाप शुभ आचरे धरे ध्यान धर्म महोता। ए श्रीमाली धुरसखा धन धन जसोधन ए सखा ॥२॥
उपरनी प्राचीन कविताथी एम जणाय छे के अंचलगच्छीय श्रीआर्थरक्षितसूरिजीना उपदेशथी भालेज नगरना भणसाली वंशना जसोधन नामे शेठ सम्य क्त्वधारी शुद्ध श्रावक संवत ११६९ मां ( पाठांतरे ११७९) मां थया. अने लेमनाथी यशोधन शाखाना श्रीमाली वंशजो थया. तेमन भूल गोत्र गौतम, तथा पछी महोता नामथी प्रसिद्ध हतुं. तेनी पाछळथी गोत्रजा अंबावी देवी हती, तेमना यशोधन शाखावाळाना कर-जन्मे, मुंडणे, परणे त्यारे तेर मोटी पालीना लाडवा गोत्रजाआगळ धरावे. जमणीनु कपडूं जरदोरीयो रातो, नीलो के पीलो चडावे. चैत्र आसुनी आठमे दोढ पालीनी लापसी करे, तथा दीवेल घृत शेर दोढ चडावे. अधरणीमा छ पालीना लाडवा, दोढ पालीना तलवटथी गोत्रजा जुहारे अने
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( १०६) दोढ पालीना बाकुला करी क्षेत्रपालने चडावे. वीसरीया महोताना पण तेज कर छे.
आ गोत्रना वंशजो मांडल, उजेणी, छीकारी, पडधरी, फीफावदर, राणपुर, धुंवाव, देदानी कुंदरडी, कच्छ भाडीया, लाइजा, माडी, बीसर, बलाहीया, फरादीया, वागडमां सेइर, सोइ, रताडीओ, वडाला, विदडा, भाणनी वीसोतरी, देढीआ, नाडरी, गोधरा, लुअडी, कुंबरनी वीसोतरी, भलसाण, भुजपर, मुंडाटोडा, तणुआणा, कोठारा, गोआणा हाले, रामपुर, तेरा, सुथरी, प्रजाउ, टींबडी, नलीया, भाचुडा, सुखपर, रायघणझर, पीपटोडा, गोमाणा, मोडकुवा, वांकी, कुफी, फरादीया, रापर, सायरा, नवानगर, कटारीया तथा खारडीया विगेरे गामोमां बसे छे. आ वंशर्मा घणी शाखाओ निकळी छे, तथा तेना करो जूदाजूदा छे.
आ वंशमां थयेला मंत्री सलखुए जार्णदुर्गमां (जुना - गढमा ) आदिनाथ प्रभुनो शिखरबंध जिनप्रासाद बंधाव्यो, तथा पाटणम चोर्यासी पौषधशाळाओमां कल्प महोत्सव करावी घणुं द्रव्य खरच्युं छे. संवत १५६०मां बैसाख खुद बीजे मांडलना रहीस वाघा तथा हरखचंदे
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(१०७) अंचलगच्छावीश श्रीभावसागरजीना सूरिपद महोत्सवम पचास हजार द्रव्य खरच्यं. संघवी भीमाना भाइ भाणाना संतानो कच्छी ओशवाल यया, अने तेओ वीसलदेव राजाना कारभारी होवाथी बीसरीयामेता कहेवाणा. सं. १२३६मा घुमलीगां थयेला जेता शेठे दोडलाख टंक खरचीने वावगंधावी, तथा त्यांना विक्रमादित्य राणा तरफथी तेने घणुं मान मळ, ते वाव जेतावावना नामथी ओळखाय छे. आ वंशर्मा पुराणी, धुरीयाणी, छेवठणीया, पवाणी, मालाणी, बेलाणी, भरकीयाणी, घट्टा विगेरे ओडक छे. आ वंशमां तणुआणाम थयेला मांडणनो परिवार लघुसजनीय एटले दशा थयेलो के . आ वंशमां घणाओए कच्छना गामोमां जूहीजूदी सालोमां देशतेडां, घीना लहाणां विगेरे करेला छे, अने तेमां घणुं धन खरच्युं छे. आ वंशना प्रथम पुरुष यशोषने भालेजआदिक सात गामोमां सात जिनमासादी बंधाव्या छे. आ वंशमां शंखेश्वरीयानी अडकवाळाओ पुत्र जन्मे त्यारे शंखेश्वरजीना प्रासादमां लण गज कपडांनी झोळी बांधे छे, अने मां श्रीफल एक, सात सोपारी अने वे माणा चोखा नाखे छे, अने ते बाळकने ते झोळीमां हींचोळे ले, बा
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(१०८) लकना मस्तकपर साथीयो करी चोखाथी बधावे छे. तथा महोटा पुत्रनो एक कान बींधे छे, फइने चार फदीया अने सात सोपारी आपे छै, तथा गोरणी जमाडे छे. संवत १२९५मा थयेला रीडाना पुत्र जीवाशाहे शंखेश्वरजीना प्रासादनो उद्धार कराव्यो छे, आ वंशमा वासरोडाना रहीस पर्वते पुनर्लग्न करवाथी तेना वंशजो दशा थया छे. संवत १३९५मां घोलकामा थयेला सालींगनी स्त्री सुहवदेए " नाइणी फई" नामनी गोत्रजाने जुहावाथी तेना बंशजो ते गोत्रजा जुदा करथी जुहारे छे. संवत १३७५मा वर्धमानशेठ मोडलमा आवी वस्या, तथा तेओ त्या महत्पदे स्थित थयेला होवाथी तेना वंशजो महोता ओडकथी ओळवावा लाग्या. संवत ११९५मा भालेजमां थयेला अभाशेठनो परिवार ओशबाल थयो छे.
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लोलाडीया गोत्र-(श्रीमाली)
(मुख्य शाखाओ.) वृद्धसजनीय (वीसा), लघुसजनीय ( दसा)
(पेटा शाखाओ)
___ पारेख, कोठारी. (आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमा कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४-०-०) वृद्धसजनीय श्रीमाली ज्ञातिना भालेज पासे नापा गाममा लूणग नामना शेठने संवत १२२० मां अंचलगच्छेश श्रीजयसिंहसूरिए प्रतिबोधीने जैनी कर्या. तेमणे नाणावाल गच्छना श्रीरामदेवभूरिजीने आचार्यपदवी आपवामां जयसिंहसरिना उपदेशथी एक लाख द्रव्य खरच्यु, तथा चक्रेश्वरी देवीनी प्रतिमा, जीरावला पार्वनाथनी प्रतिमा, तथा जीवंतस्वामिनी प्रतिमा भरावी. तेना वंशजो लोलाडा गाममा वसवाथी लोलाडीया गोतथी प्रसिद्ध थया.
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( ११०)
आ गोत्रना वंशजो लोलाडा, वीरमगाम, पाटला, वडारुआ, राणकपुर, आंबु, वाराही, राधनपुर, समी, कटारीया, घोल थराद, देगाम, भालेज, खंभात, पाटणपासे वसई, डभोई, सब्खड, पाटण, नवानगर, गंधार विगेरे गामोमा बसे छे.
9
आ वंशमा पारेख, कोठारी विगेरे अडक छे तेमज मां वृद्धसजनीय (वीसा), तथा लघुसजनीय (दशा) नी पण शाखाओ है. आ वंशमां थयेला नाथाशेठे घोलमां शिखरबंध जिनप्रासाद कराव्यो. संवत १४४५मां बॉभणोली गामना रहीस जेठाशेठे पुनर्लश करवाथी तेना वंशजो लघुसजनीय ( दशा ) थया. संवत १४०५मां जीर्णदुर्गना रहेवासी वीरमशेठना वंशजो पण दशा थया.
देहिल गोत्र - ( श्रीमाली )
( आ गोत्रमां तथा तेनी शाखाओमां कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली) मगावो. कि. रु. ४-०-1 )
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विक्रम संवत ७९५ मा श्रीमाली ज्ञातिनो वृद्धसजनीय देहिल गोत्री झवा नागे शेठ भिन्नमालमांत्रण कोडनो व्यवहारी बसतो हतो, श्रीउदयमभरि पासे तेप्रतिबोध पामी जैनी थयो, तेनी गोत्रजा देहिली देवी चार भुजावाळी हती. तेनुं स्थान गोलाणी सरोवरपर हतुं. तेना कर-जन्मे, सुंदणे, परणे तथा आसु अने चैत्रनी आठमे सवा त्रण पालीनी लापसी, अने पुडला करे. श्रीफल तथा जमणीनु कपडं फाइने आपे. संवत ११११ मां भिन्नमालनो नाश थवाथी ते वंशना शेठनमा त्यांथी नाशी खंभातपासे भलाडा गाममा वस्या.
आ गोत्रना बंशजो भलाडा, कुकडा, अधार, गांफ, अरघाला, तारापुर तथा कालावड विगेरे गामोमां रहे छे.
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(११२) महालक्ष्मी गोत्र - ( श्रीमाली ) ( मुख्य शाखाओ . )
वृद्धसजनीय ( वीसा ), लघुसजनीय ( दशा ) ( आ गोलमां तथा तेनी शाखाओमां कया कया गामोमां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाणवामाटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली) मगावो. कि. रु. ५ - 0 - 0 )
विक्रम संवत ७९५ मां भिन्नमाल नगरमा श्रीमाली ज्ञातिनो वृद्धसजनीय शाखानो मना नामे शेठ महालक्ष्मीना पाडामां वसतो हतो, ते श्रीउदयप्रभसूरिवासे प्रतिबोध पासी जैनी थयो. तेनी गोत्रजा महालक्ष्मी देवी हती. तेना कर — चैत्र तथा आसुनी आठम बलेव तथा महाखुद आठमे चोला, चोखा, लापसी, घारड, वड, पुडला तलेली काचरी अने बाकुलानुं नैवेद्य करी जुहारे, तथा कुटुंबालाहे. फइने साङलो तथा कपडुं आपे जन्मे, मुंडणे, परणे त्रण सेइना लाडवा कुटुंबमां लाहे तेना वंशमा थयेला मोहननी स्त्री पद्मापर लक्ष्मीदेवी तुष्टमान
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थयेली हती, श्रेष्टी अनाना पुत्र आभड घणा द्रव्यवान थवाथी शालिभद्रनीपेठे सुख भोगवता, तेने शोळ स्त्रीओ तथा आडनीस पुत्रो हता, अने तेथी तेनो वंश बहु वृद्धि पाम्यो. तेना बंशमां थयेला हामा शेठे महालक्ष्मीना मंदिरमा धोतीयु पहेरतां ते पडी जवाथी नग्न थवाने लीधे तेनापर देवी कोपायमान थया. तेथीते त्यांथी निकळी हारिजमा आवी वस्या, आ वंशमा थयेला आभाना पुत्र चांपाशेठ वनराज चावडाना अणहिल्लपुरपाटणमा प्रधान थया, आ बंशमा पाटणमा थयेला जोगीशेठ महाभाग्यशाली तथा द्रव्यमान थया, जेना ना. मथी पाटणमा जोगीवाडो प्रसिद्ध छे.
आ गोत्रना वंशजो हारिज, पाटणमा जोगीवाडे, राजकावाडे, सिद्धांतिनेपाडे, हाथीजणपासे वाडली गाममा पडावल, राधनपुर, जुनागढ पासे गलोल, आधावारु, वळा, बोरीआवी, कपडबज पासे खडावल, सलखणपुर विगेरे गामोमां बसे छे.
आ बैशमा सलखणपुरमा बसनारा लखाशेठना वंशजो पुनर्लग्न करवाथी लघुसजनीय एटले दशा थयेला छे, झालावाडमा खोडीझरमां बसनारा संघाना पुत्र
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( ११४), वासाना वंशजो पण एते दशा थया छे. झवाशेठे एक लाख द्रव्य खरची शत्रुंजयनो संघ कहाड्यो हतो. बोरीआबीना वासी कुराशेठे पण पुनर्लन करवाथी तेना वंशजो पण दशा थया छे. तेथे पाटणमां आवी चोर्यासी उपाश्रयमां चोर्यासी कल्पसूत्रो लखावीने रखान्यां, तथा एक वाव चणावी.
पापच ( पारायण) गोत्र - प्राग्वाट ( पोरवाड ) ( पेटा शाखाओ ) दोशी.
( आ गोत्रमां तथा तेनी शाखाओमां कया कया गामोमां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली) मगावो. कि. रु. ४- 1 - 0 )
*
विक्रम संवत ७९५मां मित्रमाल नगरमा श्रीमाली ज्ञातिनो वृद्धसजतीय शाखानो पापवगोत्री समधर नामे ब्राह्मण शेठ पांच क्रोडनो व्यवहारी वसतो हतो. तेनी
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गोत्रजा अवाइ देवी हती. तेनुं स्थान गोलाणी सरोवरपर चंपकवाडीमा हतुं. तेना कर-चैत्र तथा आसुनी पांचमे पांच पुडला करी जुहारीयें, ते समधरशेठना नाना नामना पुत्रना पुत्र कुरजीने सिकोतरी मातानो वरगाड हतो. तेथी ते घणुं कष्ट पामी भरवा पड्यो. ते वखते शंखेश्वर गच्छना श्रीउदयप्रभसूरि विहार करता भिन्नमालमा पधार्या. तेमने प्रभाविक जाणी कुरजीना पिता नानाशेठे पोताना पुत्रनु कष्ट दूर करवा विनंति करी. गुरुए कयु के जो तमारो ते पुत्र अमोने वोरावो तो हुँ उपाय करी तेनुं कष्ट दूर करुं. शेठने जो के ते एकनो एकज पुत्र हतो, परंतु पुत्र जीवतो रहेशे एम विचारी साक्षिपूर्वक ते कबूल कर्यु. गुरुना मंत्रजापथी ते सीको. त्तरी सात दिवसो सुधी उधे मस्तके तेना घर आगळ टींगाइ रही, तथा पछी डरीने तेणीए ते कुरजीना शरीरने छोडी दीवू, तया तेथी ते सावधान थयो. पछी पोताना वचनने अनुसरी नानाशेठे ते बाळकने गुरुने सोपी दीधो. गुरुए तेनो डायो कान वींधी तेमा लींबडानी सळी नाखी. ते कुरजीनी उमर तेर वर्षनी हती, अने तेना लग्न ते गामना एक शाहुकारनी पुत्री साथे थयां
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हता. ते कन्याने खबर थइ के मारा भारने आ जतिओ जति करशे. एम जाणी ते बुद्धिवंत तेर वर्षनी बालिका पोताना मातपिताने का विनाज शरम भूकी उपाश्रये आवी गुरुने नमी कहेवा लागी के गुरुजी! हुं आपनी पासे कंइंक मागवा आवी छु, गुरु तेणीने ओळखता न होवाथी बोल्या के मारी पाले जे हशे ते हुँ तने आपीश. एवीरीते गुरूने वचनथी बांधीने ते बालिकाए का के आ बाळक मारो भतार छे, माटे मने ते आपो ? त्यारे गुरुए विचारना पडी का के, जो तारा मातापिता सहित तुं मिथ्यात्व छोडीने जैनधर्म स्वीकारे तो हुँ तने आ बाळक पालो आ. पछी ते कन्याए धेर आवी ते हकीकत योताना मातपिताने कही, त्यारे पुत्रीना आग्रहथी तेओए शुद्ध श्रावक धर्म स्वीकार्यो. तेज वखते जूदा जूदा गोत्रवाळा ते शेठना पांच मित्रोए पण मिथ्यात्व छोडी जैनधर्म स्वीकार्यो. तथा तेमने गुरुए पोरवाड ज्ञातिमा भेळव्या, अने एबी रीते नीचे मुजब प्राग्वाट ( पोरवाड) ज्ञातिना सर्व मळी सात गोत्रो जैनी थयां.
पापच गोत्री-शेठनाना, पुष्पायनगोत्री-शेठ माधव, कारिस गोत्री-शेठनागड, आग्नेय गोत्री शेठ जना,
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( ११७) वैश्यायन गोत्री शेठ रायमल्ल बत्स गोत्री शेठ माणीक, तथा माढर गोत्री शेठ अनु. तेमाना पहेला पापच गोत्रीय शेठ नानानी गोत्रजा चामुंडादेवी (बीजुं नाम फलदेवी) थइ. ते आठ भुजाओवाळी, तथा महिषना वाहनवाळी छे. तेना कर-जन्मे, मुंडणे, परणे त्यारे लापसी करी गोत्र जुहारी कुटुंबमां लाहे. बशेर घी, चार फदीयां तथा श्रीफल बे फइने आपे रुपातुं गोत्रजानुं फर्रु हाजर न होय तो पाटलापर कंकुनी सात लींटी करी जुहारे, चैत्र तथा आसुनी दशमे पण उपर मुजब निवेद करी गोत्र जुहारे, अने पुत्रनो एक डावो कान वींधे. संवत १९९१मां भिन्नमालनो नाश थवाथी ते वंशना शेठ रुपा त्यांथी नाशीने कौलीहारामाना भीलडीगाममां आवी वस्या.
आ गोत्रना वंशजो भीलडी, खंभात, घोळका, वेजलपुर, लोलीयाणा, सुरत, चोडोत्तरी, धोलका, असाउल, वढवाण पासे सालु, डेडाद्रा, लखतर, वीरमगाम, मांडल, अमदावाद, वडोदरा, तथा वढवाण विगेरे गा मोमां वसे छे.
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आ वंशम वासण गामना रहीस द्रोणाशेठे श्री
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(११८) शांतिनाथप्रभुनी प्रतिमा भरावी, अने तेनी प्रतिष्टा संवत १२८२मा अंचलगच्छीय श्रीउदयमभसूरिजीए करी. आ वंशमा वेजलपुरवासी सुराशेठ जैनधर्म छोडी मिथ्यात्वी थयो, परंतु तेम करतां रात्रिए व्याछमा गरोली पडवाथी समजीने पाछो जैनी थयो, तथा श्रीमेरुतुंगररिजीना उपदेशथी तेणे जिनप्रतिमा भरावी, ते कापडनो व्यापारी होवाथी तेना वंशजोमा दोशी अडक थइ. आसाउलीमा वसनारो देवराज झवेरातनो वेपार करतो, परंतु धुताराओए तेनु अढार लाखनी किमतर्नु झवेरात ठगी लेवाथी ते लाचार बनी गाम छोडी बढवाण पासे सालु गाममा आवी वस्यो. तथा तेनो पुत्र हांसो (बीजु नाम डायो) वढवाणना श्रीधर जोशीनी सोबतथी मिथ्यात्वी थइ गयो, अने तेना वंशजो पण मिथ्यात्वी थया.
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पुष्पायन गोत्र-( पोरवाम)
(मुख्य शाखाओ) वृद्धसजनीय (वीसा), लघुसजनीय (दशा)
(पेटा शाखाओ.)
पारेख, द्रोण, झवेरी विगेरे. (आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमा कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४-0-0) पापच गोत्रमा जणावेला अने संवत ७९५ मा प्रतिबोध पामी जैनी थयेला पुष्पायन गोत्रवाळा, अने शेठ नानाना वेवाइ शेठ माधव, तेनी मूल गोत्रजा अंबा. देवीचें मूळस्थान गिरनार पर छे. अने पाछळथी खीमजा गोत्रजानुं स्थान भिन्नमालपासे खीमजाइ डुंगरीपर छे. तेना कर-चैत्री तथा आसुनी पांचमे, तथा जन्मे, मुंडणे, परणे लापसी पुडलाथी गोत्रजा जुहारीयें, रुपानी भूर्ति तैयार न होय तो पाटलापर अरधो गज रातुं लु.
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(१२०) गहुँ पाथरी ते पर राखेला पीपळना पानपर ऋण लीटी कंकुनी करी जुहारे, गिरनारसन्मुख पांचशेर घी राखीयें फइने यथाशक्ति आपे, संवत. ११११ मा भिन्नमालनो नाश थवाथी ते वंशना संघाशेठ त्यांशी नाशी पाटणमा जइ वस्या. त्यां तेना वंशमा थयेला शेठ खेतसीए संवत १२९५ मा खेतलवसही स्थापी, अने तेमा श्रीअंचलग
छीय श्रीपुण्यतिलकसरिजीए पार्श्वनाथजीनी प्रतिमा प्र. तिष्टित करी. तथा तेमर्नु खेतसीपारेख नाम प्रसिद्ध थयु. तेना वंशजोनी पारेख ओडक छे, __आ गोत्रना वंशजो पाटण, चंपदुर्ग, कालुपुर, सादी, वडोदरा, नीझरी, वांकानेर, सुरतपासे तलाव, गोरखीआ[, वीरमगाम, जोटाणा, दहथलीयाणा,महेसाणा, जांबूसर, मांडवी विगेरे गामोमा वसे छे.
आ वंशमां सलखणपुरपासेना दहीथली गामना रहेवासी नरसंग लघुसजनीयनी पुत्री परणीने संवत १२९५ मा लघुसनीय थया. तथा. तेनी स्त्री सोमाइए पोताना पीयरनी सल नामनी गोत्रजा स्थापी. ते गोत्रजानुं स्वरूप चार हाथवाळु तथा महिषना वाहनवाळु हतुं. तेना कर-तेनी रूपानी मूर्ति आगळ, अथवा ते हा
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(१२१)
जर न होय तो पीपलना पानपर ऋण लींटी कंकुनी करे. चैत्र, आसु, माहे अने बले, अने जन्मे, मुंडणे परणे त्यारे लापसी अने खीचडीना नैववयी जुहारे. श्रीफल बे, जमणीनुं कपड़े अने चार फीयां फहने आपे. एवी रीते ते नरसँगना वंशजो गोत्र जुहारे छे. ते नरसंगना पुत्र वर्धमाननी गर्भवती स्त्री मानाए स्वनमां हाथी जोयो, अने तेथी तेणीना पुत्रतुं नाम हाथी पाड्यं यौवनवये ते बाघेला मंडलीक राजानो मंत्री थयो. अने तेथे अंचलगच्छाधीश श्रीमहेंद्रसूरिजीना उपदेशथी दथलीमाँ युगादिजिननो मासाद कराव्यो, शत्रुंजय आदिक तीर्थेना संघ कहाडी यात्रा करी सर्व मळी अठार लाख द्रव्य तेणे बिसलपुर आदिक गामोमां धर्मकार्योमां खरच्युं. जोटाणागाममा वसनारा मणोरसीए पात्रीस लाख द्रव्य खरचीने घणां धर्मकार्यो कर्यां. जांबूसरमां वसनारा द्रोण शेटथी द्रोणशाखा निकळेली छे. पाटणमां वसनारा जयवंतशेठ झवेरातनो व्यापार करता, तेथी तेना वंशजो झवेरी अडकथी प्रसिद्ध थया.
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कारिस गोत्र-(पोरवाड) (आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमा कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवा माटे आगोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४-0-0)
पापच गोत्रमा जणावेला कारिसगोत्री शेठ नागडनी गोत्रजा कालीदेवी हती, अने ते विक्रम संवत ७९५ मा प्रतिबोध पामी जैनी थया. ते गोत्रजाना कर-जन्मे, प. रणे सेइना लाडु गोत्रमा लाहे, तथा फइने साडी अने कापडं आपे. तेना दरवर्षे कर नथी. संवत ११११ मा भिन्नमालनो नाश थवाथी ते वंशना शेठ लटकण त्यांची नाशी कोलीहारमा आवेला घनेहरा गाममा वस्या. ___आ गोत्रना वंशजो धनेरा, फुलाणा, सोजत, अक्षयगढ, वडगाम, कालुआ, पीपली, सेजा पासे मांडवी, सीहोर, खंभातमा सालवीवाडे, जोटाणा, जीवापुर, सेलाधूमा विगेरे गामोमा वसे छे.
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कांटीया* ( गोखरू ) गोत्र-(ओशवाल)
(पेटा शाखा) लींबडीया, सोनी, झवेरी विगैरे. (आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमा कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४-0-0) विक्रम संवत १०४५मां रणथंभोर पासे आछबू नामना गाममा डीडु नामे वणिक जातिनो धांधलशेठ रहेतो हतो, तेनी उच्छुसा नामनी गोत्रदेवी हती. ते वखते वल्लभीशाखाना श्रीरत्नसिंहमूरि त्यां पधार्या. ते धांधलने त्रण स्त्रीओ हती, परंतु पुत्र नहोतो, त्यारे ते रत्नसिंहमूरिने प्रभाविक जाणी ते धांधल तेमनी सेवा करवा लाग्यो. एक बखते तेणे पोते हुं संतानरहित छु एम जणावी गुरूने प्रश्न कर्यो. गुरुए कह्यं तमो जो मिथ्यात्वनो त्याग करी जैनधर्म स्वीकारशो, तो जरूर . गोखरू कांटावाळू होवाथी कांटीया पण कहेवायछे,
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(१२४) तमोने संतान थशे. धांधलशेठ पण गुरुना वचनपर विश्वास लावी मिथ्यात्व तजी जैनधर्म सेवन करवा लाग्यो. त्यारबाद तेनी गोत्रदेवी उच्छमाए सवनमा धांधल शेठने का के हवे तमोने पुत्र थशे. प्रभाते शेठ पोतानी ते गोत्रदेवीना मंदिरमां ज्यारे आव्या, त्यारे फूलबाळी गोखरुनी एक डाखरी कोइए तेणीना हस्तमा मेलेली दीठी. शेठ ते गोखरुनी डासरी लइ धेर आव्या. वळी रात्रिए देवीए तेने स्वममा कयुं के तने जे पुत्र थाय. तेनुं गोखरू ( कांटीओ) नाम पाडजो, तथा आजथी हुंउच्छुप्तादेवी पण गोखरु नामथी तमारा वंशमां पूजाइश. तेना कर-चैनी, आसो, महा तथा बैसाखे, तेमज जन्मे, मुंडणे अने परणे त्यारे खीर, लापसी, कुर, मग, वडां, पोळी, पुडला, वाकुला तथा सालणां ( रायतुं ) ए नव वस्तुना निवेद करवां जमणी कपडं फइने देवू. पुत्री जन्मे अर्ध कर करवा. पछी गुरुए ते बांधलशेठना परिवारने ओशवाल ज्ञातिमा मेळवी दीधा. तेना वंशमा सं. ११६५मा थयेला सोमाशेठने शरीरे पित्तनोविकार थवाथी औषध माटेलींबडाना वृक्षनीचे तेलीबोडी बीणवा बेठो. एवामां घणो पवन वाचाथी ते लींबडानुं झाड पडवाथी
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ते मरण पामी व्यंतर थयो, तथा लीवडानो अधिष्टायक थयो. तेणे तेना पुत्रने स्वनमा कछु के, हवेथी तमो मारा नामथी पण असाड तथा कार्तक सुद पांच दन्ना लाउवा करी कुटुंब जमजो, त्यारथी ते सोमाना वंशजो लीबडीया ओडकथी भसिद्ध श्या. संवत १३३५मां सुलतान अलाउदीने रणथंभोरनो नाश करवाथी ते वंशना शेठ भाणा चांपानेरमा आवी वस्या आ वंशमा अमदावादमां थयेला नगाशेठ सोनानो व्यापार करता होवाथी तेना वंशजो सोनीनी अडकभी ओळखावा लाग्या. केटलाक वर्षाबाद तेमना वैशमाना देवसीशेठ झवेरातनो वेपार करता होवाथी तेना बंशजोझवेरी ओडकवाळा थया.
आ गोत्रना वंशजो अमदाबाद, खंभात, त्राणज, सिंधुवास, झाझडी, बीकानेर, जोधपुर, मेडता, नागपुर, पाली नवानगर विगेरे गोमोमा वसे छे.
. आ वंशमा थयेला संवाशेठे संवत १५२१मा श्रीआदिनाथना बिबनी अंचलगच्छीय श्रीजयकेसरीसरिना उपदेशथी प्रतिष्टा करी छे. आ वंशमां थयेला संग्राम सोनीए शत्रुजयपर चोमुख जिनमासाद बंधाव्यो छे,
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हरिया गोत्र-(ओशवाल)
(मुख्य शाखाओ.) वृद्धसजनीय (बीसा ), लघुसजनीय (दशा)
(पेटा शाखाओ) सहसगणा, कका, सांइया, अथलीया,
मस्थलीया विगेरे.
(परपेटा शाखाओ) वीजल, पांचारीया, सरवण, नपाणी, साइया, कपाइया, दिनाणी, कोराणी,वकीयाणी, नकीयाणी, पंचायाणी माणकाणी, खेतलाणी, सोमगाणी, सधराणी, कायाणी, हरियाणी, हरगणाणी, पेथडाणी, सायाणी, पेथाणी, आसराणी, अभ
राणी, ढासरीया विगैरे. ( आगोत्रमा तथा तेनी शाखाओमा कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४-०-०)
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(१२७), मारवाडमा आवेला झालोर नामना शेहेरपासे लाखणाभालणी गाममा तातोला परपारवंशना दधिचंद्रना पुत्र रणमल्लनो नवो परणेलो पुत्र हरिओ खाटलापर सूतो हतो. त्यारे तेनी स्त्रीने चोटलेथी चडेलो सर्प तेने डंसवाथी ते मृतकनी पेठे मूर्छित थइ पड्यो. तेने मृत्यु पामेलो जाणी स्वजनवर्ग श्मशाने लेइ चाल्या. एवामा अंचलगच्छीय श्रीधर्मघोषरिए ते मार्गे आवता लोकोनो विलापस्वर सांभळ्यो, तथा कोइने पूछवाथी ते हरिया कुमारनी हकीकत जाणी. त्यारे आचार्यश्रीए पोताना शिष्यने मोकली ते मृतकने पाछु वळाव्यु, तथा हरियाने खाटलापर सुवाडी गुरुए गारुडी मंत्रजाप करवायी त्यां पांच हजार सर्पो हाजर थया. पछी गुरुनी आज्ञाथी जे सर्प हरियाने डस्यो हतो, ते सर्प पोतानुं झेर पार्छ चूसी लीधु, बीजा सर्व सर्पो चाल्या गया. हरीयो कुमार जागृत थइ शुद्धिमां आव्यो, तथा गुरुने पगे पड्यो. त्यारबाद ते रणमल्ल विगेरे सर्व परिवारे गुरूमहाराजना उपदेशथी जैनधर्म अंगीकार कर्यो. सर्प पण गुरुने नमी पोताने स्थानकें गयो. ते रणमल्लनु पूर्व तातोला परमार गोत्र हतुं, अने हरीयाना वंशजो हरिया गोलथी ओळखावा
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(१२८) लाग्या. ते हरीयानी मामल नामनी दीकरीने देढीया गोत्रमा परणावी हती, परंतु कर्मयोगे ते बालरंडा थयेली हती. ते आठभ, पाखी निगरे पर्चाने दिवसे पौषध आदिक घणो तप करती. एक दिवस ते घरमा काउसगाध्यानमा हती, एनामा घरमा आग लागवायी कुटुंबे कह्या छतां पण ते बहार निकळी नही, जेथी बळी मृत्यु पामीने ते ऋद्धिवाळी व्यंतरी थइ. तेणीए प्रत्यक्ष थइ कां के हवेथी मारा सासरीयाँ तथा पीयरीयांए एटले हरिया तथा देढीया गोत्रवाळाओए मने गोत्रजा स्थापली, हुँ तमारो उदय करीश, पछी ते बन्ने गोत्रवाळाओए ते मामलदेवीने पोतानी गोत्रजा करीने स्थापीतेना कर--- जन्मे, मुंडयो, परणे त्यारे सवा पालीनी लापसी, सवा पालीना लाडवा, सवाषालीना खाजा, सवा पालीना तलबटनोपोंडो, अनेसबापालीनामाकुला,तेमज दीवाळीए सावापालीमा लाडवा करी गोत्रजा जुहारीयें अवारणीए श्रीफल तथा कपडं एक फाइने आपे, तथा अर्थ पालीना लाडवा, अने, पाली एक घउं अथवा चोखा फइने आपे, तथा एक पाली तलनो पिंड करी गोत्रजा जुहारे, आ गोत्रनी सहसगणा, कका, साँइया तथा प्रथलीया नामनी
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(१२९) चार शाखाओ छे. पछी गुरुए झालोर तथा भिन्नमाल विगेरेनो संघ एकठो करी ते हरीयाना कुटुंबने ओशवाका मेळवी दीघा वळी तेओमा मस्थलीया नामनी पण अडक छे. हरियाए भालणी गाममा श्रीशांतिनाथजीन मंदिर तथा एक बाब संवत १२९६मा बंधावी. वळी आ वंशमां वीजल, पांचारीआ, सरवण, नपाणी, साइया, कपाइया, दिनाणी, कोराणी, बकीआणी, नकीआणी, पंचायाणी, माणकाणी, खेतलाणी, सोमगाणी, सधराणी, कायाणी, हरियाणी, हरगणाणी, पेथडाणी, सांयाणी, पेथाणी, आसराणी, अमराणी, ढासरीया विगेरे अडको छे.
आ गोत्रना वंशजो मेमाणा, आरीखाणा, साभशाइ, चांगा, चेला, डमरा, लोठीया, लोगाची, साभराइ, कपाइया, टीवडी, अमरकोट, हालापर, कोटडी, द्रोणीया, जखरा, बेराजा, हालावीलोतरी, डुमरा, हापा, रायषणझर, खजुरडा, पडाणा, लेलाडी, बाहरा, झांझरी, सीण, माटली, ग्रामडी, मुरानी लुस, चेहडा, शांखर, जोगवड, भावतनी वीसोतरी, वारही कच्छ, सुहडसल, हाथीनी नाडुरी, डबासंग, वीरमनी बीसोतरी, झुमरा, लटेरडी, साभराइ, गोधरा, हापाने गाम लाजी, वांकी, बिदडा,
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गजोडा, देसलपुर, आसंबीया, भुजपर, गजोड, भुज, मढाटोडा विगेरे गामोमां वसे छे. आवंशमांधणी स्त्रीओ सती थयेली छे.
आ वंशमा अमरकोटना रहीस आसरशाहे आसरवसही नामनो जिनप्रासाद, तथा एक वाव बंधावी. संवत १७२८मा लठेरडीना रहीस आसरे सामराइ अने डुमरा बच्चे आसराइ तलाव बंधायुं.
देढीया गोत्र-(ओशवाल )
(मुख्य शाखाओ) वृद्धसजनीय (वीसा), लघुसजनीय (दशा)
( पेटा शाखाओ.) करणाणी, डुंगराणी, माणकाणी, नोडाणी, पुनराजाणी, पोमसीयाणी, गुणपालाणी, सध्याणी, गागाणी, तेजपालाणी, मेलाणी, राणाणी, देपालाणी, मेघाजलाणी
देयाणी.
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( १३१) ( आ गोत्रमां तथा तेनी शाखाओमां कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली) मगावो. कि. रु. ४-0-0 )
मारवाडमां आवेला जेसलमेरमा विक्रम संवत १२५५मां देवड नामना चावडा रजपूतने देवेंद्रसिंहसूरिए (पाठांतरे - जयदेवसूरिजीए) अथवा जयसिंहसूरिए प्रतिबोधीने जैनी कर्यो, अने तेथी ते बाराव्रतधारी श्रावक थयो, अने तेथी तेने ओशवाळज्ञातिमां मेळवी दीधो. ते देवना पुत्र झामरे झालोर नगरमा एक लाख सीतेर हजार टंक खरचीने श्रीआदिनाथ मञ्जुनो शिखरबद्ध मासाद बंधाव्यो, तथा आखा देशमां वत्रआदिकनी रहाणी करी घणा बंदीओने छोडाव्या. तेनी गोत्रजा मामलदेवी नामे हती. हरीया तथा देढिया आ वनी गोत्रजाना सरखा कर छे. ते झामरना देढीया नामे पुत्र अने तेथी तेना वंशजो देढीया गोत्रथी प्रसिद्ध थिया. आ वंशमां थयेला जेठाणंदशेठ घणान द्रव्यवान हता, तेमणे शत्रुंजयनो महोटो संघ कहाडी त्यां एकठा
हता,
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(१३२)
थयेला जूदा जूदा देशना बावन संघवी ओमां अग्रेसर पद लेइ घणुं द्रव्य धर्मकार्योमां खरच्युं आ वंशमां संवत १५९५मां राहुथडमा वसनारा देहआशाहे घणुं द्रव्य खरचीने अनेक धर्मकार्यो कर्यां छे. ते देइयाशाहने मांडल, घडीओ, राजो, डाहीयो, नागइओ अने लाखो नामना छ पुत्रो थया. तेमांथी मांडणनो परिवार डबासंगम, घडीआनो सोनारडीमां, तथा भाणना गाममां, तथा मांढामां. राजानो कजूरडीए, बालाहीये तथा भुजपुरमां. डाहीआनो देवलीए तथा भडाणे. नागइयानो खंभालीये अने लाखानो वसमांछे. आ वंशमा करणाणी, डुंगराणी, माणकाणि, नोडाणी, पुनराजाणी, पोमसीयाणी, गुणपालाणी, सध्याणी, गागाणी, तेजपालाणी, मेलाणी, राणाणी, देपालाणी, मेघाजलाणी देयाणी विगेरे घणी ओढको छे. आ वंशनी वृद्धसजनीय ( वीसा ) तथा लघुसजनीय ( दशा ) एम बे शाखाओ पण छे.
आ गोत्रना वंशजो नानी मोटी खाखर, फरादीया, बीदडा, तणुआणा, बारोही, वीसोतरी, कुंदरडी देदानी, छसरा, भाडीया, गुंदारा, डबासंग, तिथ ( वागड ), चंगा, भडाणा, रासंगपुर, साभराइ, आरिखाणा, मेमाणा
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(१३३)
धुणीया, पीपरीआ, लठेरडी, बालाहीओ, सोनारडी, लुअडी, भोराला, सुंदरा, लाखापुर, रताडीआ, भुजपर, भाडीआ, आसंबी, काराघोघा, बाडा, पुनडी, गेलडा, वडाला, देवाने गाम, गजणने बेराजे, गुंदाला, केहरनीनाडुरी, जेहाने गाम, सेरडी, मांढा, राफुदड, माटली, छीकारी, सीहण, कजुरडा, सुरानी लुंस, निमरा, देवरीया, वेरसलनी नांडुरी, वागडना बीदडा, कोडाय, वागडे सह, बागडे वसही तथा रायणखुडी विगैरे गामोमां वसे छे.
आ वंशमां खाखरमां माणकाणीना वंशमां थयेला संघवी मीमणशेठे सं. १४४१ मां शत्रुंजय तथा गोडी पार्श्व नाथनो संघ कहाडी घणुं द्रव्य खरच्युं छे, तथा मसिणना पुत्र माणकथी माणकाणी ओडक निकळी छे, छसरामां थयेला राणाशेठे संघ कहाडी शत्रुंजयनी जात्रा करी, तथा गोडीपार्श्वनाथनी जात्रा करी, घेर आवी देशतेहुं करी ल्हाणी करी घणुं द्रव्य खरच्युं, तेना वंशजो राणाणी ओढकवाळा छे. संवत १६७५मां डबासंगना रहीस महीयाना पुत्र काथड आदिक चारे भाइओए शत्रुंजयनी यात्रा कुटुंब सहित करी घणुं द्रव्य खरच्युं, तथा उजमणं करी गामथी उत्तर दिशाए एक वाव बंधावी. वराहीमां थयेला
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मेल्हाणी ओडकना सहजाशाहे कीडाणामां नकटीने काठे बाव बंधावी छे, तथा सात जमणवार करी. संवत १७४५मा भोरालामाँ थयेला भोणा विगेरे त्रण भाइओए पोतानी भारी मातानी शिखरबंध देरी करी देशतेडं करी बसो मण घृतनुं वरच कयु, तथा संघ कहाडी शत्रुजयनी गात्रा करी. देसलपुरमा थयेला देवने त्या उपाश्रय कराव्यो छे. संवत १७६८मा देसलपुरमा जेताशाहे शत्रुजयनी यात्रा करी और आवी वाव बंधावी छे. भुजपरमां सागरना पुत्रो जगा तथा कालाए देशतेडं करी, सजनसारणा करी बाव बंधावीने, तथा याता करी घणु द्रव्य धर्मकार्योमा खरच्यु. संवत १७६४मां भुजपरमां लुभाना पुत्र रणमल्ले धर्मकार्योमा घणुं धन खरची देशतेडुं कर्यु हतुं, मां तेणे सातसो मण घृत वापर्यु हतुं, तथा ते रणमल्लने कच्छना राओ श्रीदेसलजी तरफथी घणु सन्मान मळ्युं हतुं. सं. १६४५मा गजणना बेराजामा वसनारा मांगीयाथी लघुसजनीयनी (दशानी) शाखा निकळी छे. सं. १६४७मां भोजाए बलाहीयाथी माडीनी वाटे भोजावाव बंधावी छे. संवत १७३७मा देवन तथा सोजाए लुअडीमा मेलो करी घणु द्रव्य धर्मादामां. खरच्यु, संवत १६७४मा भणाना
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रहीस हरराजे धर्म मार्गमा घणु द्रव्य खरच्यु. आ वंशना मांढा, चंगाआदिक गामोमा घणा माणसो लघुसजनीय (दशा) थयेला छे. तेमज आ वंशनी घणी स्त्रीओ पोताना भर्तार अथवा पुत्रसाथे चितामा बळीने सतीओ थयेली छे.
PTEHPomeraturedtyapam
RAMATERupamIIRAMANAS
बोरीचा गोत्र-(ओशवाल)
(मुख्य शाखाओ.) वृद्धसजनीय ( वीसा), लघुसजनीय (दशा) ( आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमा कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४-४-) विक्रम संवत १२२६मा नगरपारकारना रहेवासी उदेपाल क्षत्रीयने पुण्यतिलकसरिए प्रतिबोधी जैनी कर्या. तेनी गोत्रजा अंबिका देवी छे. तेना कर-माहा, चैत्र, बैसाक, तथा कार्तिकनी पुनमे खीच, पुडला तथा धृत शेर सवाथी गोत्रजा जुहारे, तथा जमणीनुं कपडंगज सवा
జములు
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- (१३६) अने श्रीफल एक फइने आपे. पुत्रना जन्मे, मुंडणे तथा परणे त्यारे चार माणानी लापसी तथा घृत शेर सवाअणन निवेद करी गोत्रजा जुहारे, पुत्री जन्मे तो तेथी अर्ध कर करे, नवी साडी पहेरे त्यारे नणंदने कापडं आप. ____ आ गोत्रना वंशजो नगरपारकर, तेजपुर, तरधरी, राणपुर, मजोठ, अमरकोट, मालीया, फला, कर्णपुर, देपाहाठी, बेड, खावडी, हाथीनी नांडुरो, खडबा, रामनी नांडुरी. कानमेर, वडोजा, बणसोल, गेहडी, उटवाह, सेधल, मालीया, बतहोठा, खाखरेची, थल,मुलीपासे राण पुर, सिहपुर,चोटीला, जसदण, खंभात, सरवा, सिद्धसर, हलवद, चिडास, सुरत, दाणावाड, लखतर, हडाली, दसाडा, बणहि, लीलापुर, मोरबी, चाचवाडी, गुजडी, आमरण, सरधार, पंचासी, झोझु, बागथल, भोराला विगेरे गामोमा बसे छे.
आ वंशमां पण देकावाडाना रहीस जगराजथी लघुसजनीयनी (दशानी) शाखा निकळी छे. अने तेना वंशजो जमला नागने पूजी तेना कर करे छे
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(१३७)
स्थाल गोत्र - ( ओशवाल ) ( पेटा शाखाओ ) सायलेचावहोरा, स्यान, सचीया, सांड. ( आ गोत्रमां तथा तेनी शाखाओमां कया कया गामोमां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाएवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली) मगावो. कि. रु. ४-a-a )
विक्रम संवत १९५२ मा पूर्वदेशमां आवेला कांति नामना नगरमा दहिया रजपुत जातिना खेमराज अने हेमराज नामे वे भाइओ हता. तेओमांनी हेमराज ते नगरनो राजा थयो. अने खेमराजे झालोरमां आवी त्यांना राजा कान्हडदेनी मेहेरबानीथी सायलाआदिक अडतालीस गामो मेळव्या. तेना वंशमां सायलामां रुपचंदना पुत्र सामतसिंहने रात्रिए सर्प करड्यो, जेथी ते मूर्छित थइ बेमान थयो. तेने मृत्यु पामेलो जाणी अग्निदाह माटे लेइ जता हता, एवामां अंचलगच्छीय भट्टारक श्रीजय केसरीसूरि सामा मळ्या, तेमने ते हकी
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( १३८ )
कत जणावतां मंत्र प्रयोगथी गुरुए तेने साजो कर्यो. पछी रूपचंदे पोताना ताबाना चार गामो गुरुने आपना मांड्यां, पण निस्पृही गुरुए ते न लेता तेमने जैनधर्म स्वीकारवा कहुं, तेभए पण खुशी थइ कुटुंबसहित जैन धर्म स्वीकार्यो. तेओ सायलाना ठाकोर होवाथी ते सामतसिंहना वंशजो स्याल गोत्रथी प्रसिद्ध थया. गुरुए तेमने ओशवाळ ज्ञातिमां भेळवी दीधा. त्यांथी तेना वंशजो कुंभलमेरमा जइ वस्या. तेमना वंशमां महिपाशेठ महाभाग्यशाली अने धनवंत थया, तथा तेमणे त्यां त्रिशाल जिनमासाद बंधाव्यो. आ वंशनी नीचे मुजब चार ओडको थइ. सायलेचा वहोरा, स्याल, सचीया अने सांड. आ वंशमां सुदेसर क्षेत्रपालनुं वडांनुं निवेद करे छे. तथा आगासी नामनी त्रोत्रजा पूजे छे.
आ गोत्रना वंशजो खेरवा, खुड, वगडी, पाली, गुजवची, अठाणा, हिंगोल, पीलवणी, सोमेसर, नाडोल, पनोती, देसुरी, पदमसरनागूढा, तलाव, गुढल, खीपाडा, खोड, सोजत, भेवला, सोजतपासे रहनडी, सादरी, मेवाडे पलासला, धमिली, मिलसावावडी विगेरे गामोमां बसे छे.
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(१३९)
संवत १५७४मां महा वदी १३से आ वंशमां ठाकुरना पुत्र खरहथ तथा खीमाए श्री आदिनाथनुं विंच रणधीरना पुन्य माटे भराव्यं, अने तेनी श्रीभावसागरस्वरिजीए प्रतिष्टा करी. संवत १६८७मां खेरवामां थयेला ईश्वरशेठे द्रव्य खरचीने घणां पुन्यकार्यो कर्या छे.
महाजनी गोत्र - ( श्रीमाली ) ( पेटा शाखा ) नात्रेचा, जेसलमेरा, पारकरा.
( आ गोत्रमां तथा तेनी शाखाओमां कथा कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली) मगावो. कि. रु. ४-०- 0 )
विक्रम सं.१३८२मां बाडमेरमा परमार वंशना डांगर शाखाना समरथ नामना रजपुतने श्रीजयानंदसूरीए प्रतिबोधी जैनी कर्या. तेनी अंबादेवी गोत्रजा स्थापी . तेना कर-जन्मे, भुंडणे परणे त्यारे एक सेइना बाटनी लापसी
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करी जुहारे. दीवाळीए एक माणानुं घउनुं दळ करी जुहारे.
आ गोत्रना वंशजो धवा, सुआद्र, गुढला, कुपाउत, माडणनी वसही, सुआदि, खांडप, वीसलपुर डेडरा, सिणाधरी, पडद्रह, गोधानी, बाडमेर,पारकरमा मुरला, पोटोधी, काच, कच्छमां लोद्राणी, भाद्रेसी, वीलाडा, विशाल, मेहवेची, कइरी, विगेरे गामोमा बसे छे.
आ वंशमा सामंतना वंशना महाजनो नात्रेची नामनी गोत्रजाने माने छे, ते देवीनुं स्थान छेवटणपासे नाथरा गाममा छे. प्रथम ते नात्रेची नामनी जोगणी हती, ते सामंत मोहोताने घेर भिक्षा मागवा आवी, ते वरखते घरमा कोइ न होवाथी तेणीए ते सामंतना बाळक छोकराने मारी आभूषण उतारी लीधुं. तेनी खबर पडवाथी ते नानेचीने पकडीने हाटमा पूरी, त्या परीने ते व्यंतरी थइ. सामंतना कुटुंबने पीडवा लागी, अने कहेवा लागी के मने गोत्रजा करी स्थापो, तो हुँ तमोने सहाय करीश, पछी तेने गोत्रजा करो स्थायी, अने तेना वंशजो नात्रेचा कहेवावा लाग्या. तेना कर----जन्मे मुंडणे परणे त्यारे तथा होळी अने दीवाळीए एक पाली घउंनी लापसी, श्रीफल एक, पडाइ एक तथा एक पालीनी घुघरी तथा
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(१४१ )
छकडी एक मूकी जुहारे. सामंतना पुत्र पूदाके संवत १४६८ मां श्री शीतलनाथजीनुं तथा पंचतीर्थना विंग भ राव्यां, तथा तेनी श्रीअंचलगच्छीय श्रीमेरुतुंगसूरिजीए प्रतिष्टा करी. आ वंशमां पारकरा, जेसलमेरा विगेरे ओडको छे. जेसलमेरा परणे त्यारे डमराना फूल तथा तेलथी खेत्रपालने पण पूजे छे.
50%
महुमीया गोत्र - ( श्रीमाली)
( पेटा शाखा )
भंडारी, गांधी. ( या गोत्रमां तथा तेनी शाखाओमां कया कया गामोमां कोण कोण रुपो थया ? ते जाणवा माटे या गोत्रनोश्रो (वंशावली) मगावो. कि. रु. ४-०-० )
विक्रम संवत ७९५ मां भिन्नमाल नगरमा काश्यपगोत्री शिवदास नामे श्रीमालज्ञातिनो त्रण क्रोडनो व्य
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(१४२)
(
बहारी दक्षिणनी पोळे चंडीश्वरना प्रासाद सामे वसतो. हतो. तेनी गोत्रजा खिमजादेवी हती. तेना कर - आसु तथा चैत्रनी आठमे, तथा जन्मे, परणे अने जडवासे पुरसेइना लाडु करे, अथवा त्रणशेर घीनी मात्रा करी जुहारे. कपडे एक फड़ने आपे. पुत्रीना जन्मे एक माणानी लापसी करे. संवत १११ मां भिन्नमालनो नाश थवाथी तेना वंशना समरथ शेठ त्यांथी नाशी रत्नपुरमा जह वस्या, अने त्यांना ठाकोर बीरमदेवना भंडारी थया. सं. १२२३ मां तेना वंशमा भंडारी गोदा महेसरी धर्म पाळता हता. एवामां त्यां अंचलगच्छाधीश श्रीजयसिंहसूर चतुर्मास रह्या. ते वखते श्रीचक्रेश्वरीदेवी तथा महाकाली देवी स्त्रीओतुं रूप करी तेमना व्याख्यानमां आवती. एवी रीतना गुरुना अतिशय देखी ते गोदामेहसरी प्रतिबोध पामी जैनी थया. तेणे तेमना उपदेशाथी शत्रुंजय अने गिरनारनो संघ कहाड्यो, तथा घणा शेहेरोमा लहाणी करी सवालाख द्रव्य खरच्युं, अने संघवीनी पदवी मेळवी. तेना वंशजो महुडीमां वस्या, अने तेथी महुडीया नामथी प्रसिद्ध थया. त्यां नोडाशेठे जिनमंदिर बंधाव्यं, नोडाशेठना पुत्र सोमानी वहुनी अघरणी होवाथी ते खोळो
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भरी आवती हती, एवामां बरसाद वरसवाथी ते कादबमा लपसीपडी मरण पामी, तथा व्यंतरी थइ.पछी तेणीए प्रगट थइ कह्यु के तमारा वंशमा हवेथी अघरणी करवी नही, जेथी आ वंशमा संवत १२६३थी अधरणीनो खोलो भरता नथी. ___ आ गोत्रना वंशजो जोधपुर पासे सीलवइ, गुदाउ, मुरांण, भीलासण, सीवाह, लुणोद्री, जोडवाडा, रेवतड, चाटवाडा, भाडुइ, सीवाड, कोडीभ, भिन्नमाल, धानस, कावित्र, पोसाण, अमदावाद खानपुरवाडे, पाटण, नुहरि, राणपुर, डभोइ विगेरे गामोमा बस्या.
आ वंशमा इभोइमा वसनारा वर्धमान शेठथी सं. १२८५ मा गांधीनी ओडक थइ छे.
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VaanparanMMEnemy
(१४४) सोनगिरा गोन--(ओशवाल
জঙ্গৰে কমলী হাজা) ( आ गोलमा तथा तेनी शाखाओमा कथा कया गामोमां कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवामाटे आ गोत्रनो आंचो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. ४-0-1) आ गोत्रमा सिंवागी नामनी देवीने जुहारे छे. तेना कर---पुत्र जन्मे त्यारे नव पासेरनी गोळनी कापसी करे. पुत्र पणे त्यारे बहुना पीयरथी आठ गजनो चंद्रवो चडे. नव गजनी पिडाइ गोत्रजाने चडे, मोकाना परिवारवाळा जलहेरी देवीने जुहारे छे, तेओ भाद्रया तथा महासुदी चौदसे अढी पासेरनी पी गोळनी लापसी करीने जुहारे छे, जन्मे अने परणे त्यारे आठ गजनो चंद्रयो तथा एक गजनी पीडाइ, अने एक श्रीफलथी जुहारे छे. बळी सोनाणाना क्षेत्रपालने पण अर्वाशेर तेलना वडा, एक पालीना वाकुला तथा एक पालीना तलवट, एक गजनी पीडाइ, तथा एक श्रीफलथी जुहारे छे.
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आ गोत्रना वंशजो सांडेरा, झालानी सादडी, घा. योरा, बोइ, पावा, नाकली, पाचेदी, चित्तोड विगेरे गामोमां बसे छे.
Ch-4-2*. केलवाणेचा गोत्र--
(पेटा शाखाओ)
सदाणी, गुंडाडेचा. ( आ गोलमां तथा तेनी शाखाओमा कया कया गामोमां कोण कोण पुरुषो गया? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो. कि. रु. Y----3) __ आ गोत्रना बंशजो झीलवाडा, खिदारा रोझटा, मुंडाडा, नंदाणा, बूली, कोट, चाणुद्र, सांडेरा, नाली, आकुडा, रतलाम, चंदाणा, सादरीपासे राजपुर, आगरी, वस्तु, लीमेल, भणीबारी, बालाइ, पाली, नजलाइ कोरे गालोमा बछ.
आ गोत्रमा बंशजो सदा नामना पूर्वजनोभी मो कना निवेदयी पूजे छे. तया आ वंशनां अंडाचा नामजी ओडक छे.
BAD
F
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( १४६ )
सीसोदीया गोल - ( ओशवाल )
( आ गोलमां तथा तेनी शाखाओमां कया कया गामोमां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो खांबो (वंशावली) मगावो. कि. रु. 8 - 0 - 0 )
आ गोत्रनी अंबावि गोत्रजा छे, तथा ते साथे तेओना पूर्वज जिंदो पूजाय छे. तेना कर - अंधारी अजवाळी दशमे दहीं दूध वापरी नाखे, मागसर सुद दशमे गोत्रीओ एकठा थइ जमे त्यारे तथा जन्मे, परणे सवा शेर घी गोळना निवेदथी जुहारे. सीमाडाना क्षेत्रपालने सवाशेर तेल तथा एक टांक सींदूर चडावे, तथा अढी पासेर घी गोळ निवेद चडावे. जिंदा पूर्वजमाटे पीले एक बहेडुं अने एक लोटो पाणी दश दिवस सुधी रेडे.
आ गोत्रना वंशजो खंडाड, दादावसही, वझेवह, खीमेल, सींडु, सिंचाडी, नांडला, रोहडवल, चवरडा, संघाडा विगेरे गामोमां बसे छे.
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(१४७) निध्धुया गोत्र-(पोरवाड )
Manandammer
HAJI
( आ गोत्रमा तथा तेनी शाखाओमां कया कया गामोमां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाणवा माटे आ गोत्रनो आंबो (वंशावली)
भगावो. कि. रु. ४-0--0) आ गोत्रनी अंबिकादेवी गोत्रजा छे. ते साथे कोरटानो क्षेत्रपाल पण पूजाय छे, तेना कर-जन्मे, परणे सवाशेर घी, निवेद करे, तथा अढीपासेर तेल अने सवाटांक सिंदूरथी क्षेत्रपाल ने पूजे. नर्बु धान्य आवे त्यारे एक पाली जवारना बाकळा तथा एक पालीना तलवट करे.
आ गोत्रना वंशजो नांडलाइ, बहेडा, बीजापुर, विगेरे गामोमा वसे छे.
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(१४८) काश्यप गोत्र (प्राग्वाट )-(पोरवाक)
mmam
( आ गोत्रमा तथा तेनी शाखायोमा कया कया गाममां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाणवा माटे या गोत्रनो यांबो (वंशावली)
मगावो. कि. रू. ४---0) विक्रम संवत ७९५ मा श्री भिनमाल नगरमा प्रवाट ज्ञातिनो वृद्धसजनीय शाखानो नरसिंह नामे काश्य गोत्री बार कोडनो व्यवहारी शेठ गढनी अंदर रहेतो हतो. तेना घरपासे कालिकादेवीनो प्रासाद हतो. एकविसे ते नरसिंह शेठे ते कालिकाना प्रासादा बेसीने हजामत करावी. तेथी ते देवीए कोपायमान थइ तेने कुष्टी की. पछी जेम जेम ते पोताना रोनी चिकित्सा करे, तेम तेम ते रोग वृद्धि पामवा लाग्यो. एवामा शंखेश्वर गच्छना नायक श्रीउदयप्रभसूरि त्यां पधार्या, तेमने प्रभाविक जाणी ते शेठे पोतानो ते रोग मटवामाटे उपाय सूचववानी विनंति करी. पछी गुरुए
Sama
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( १४९ ) देवी आराधन करी संतुष्ट करी, जेथी तेणीए ते नरसिंहशेठने रोगरहित कर्या. अने त्यारथी ते नरसिंहशैठे जैनधर्म स्वीकार्यो. तेनी गोत्रजा अंबिका, तेना कर-दर वर्षे चैत्री, आसु, बलेव तथा माहीपूर्णिमाए घृत शेर दशना मीठा पुडला, करंबो, घारडा, बाकुला तथा चोळा चोखानुं निवेद करी जुहारे, फइने आठ फदीर्या श्रीफल चार, घडं अथवा चोखा माणा चार, अने जमणीनुं कपहुं आपे. जन्मे, गुंडणे, निशालग्रहणे तथा पाणिग्रहणे पण तेज कर छे. अथवा हुंकामां सवाशेर घीनी पुडला विगेरे वस्तुओ करी गोत्रजा जुहारे. गोत्रजा चार भुजावाळी सुवर्णनी होय छे, ते हाजर न होय तो पाटलापर कंकुनी लींटी करी पूर्व अथवा उत्तरसन्मुख बेसी जुहारे. ते नरसिंह शेठनो पुत्र नानग कर्मयोगे द्रव्यहीन थवाथी तशा गोत्रजा देवीए स्वप्नमां आवी कहेवाथी गुजरातमां गांभु नगरमा आवी वस्यो. त्यां भूमि खोदतां निधान मळवाथी ते कोटीश्वर थयो. एवामां संवत ८०२ मां वनराज चावडाए अणहिलपुर पाटण वसाव्यं, अने ते नानग शेठने दंडनायकनी पदवी आपी. ते नानगना पुत्र लहिरने वनराजे हाथीओनी खरीदीमाटे सिंहलद्वीपे
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(१५०) मोकल्यो, त्यांथी ते सातसो हाथी खरीदी लाव्यो, जेथी वनराजे खुशी थइने सांडथलुआदिक चोवीस गामो तेने बक्षीस आप्या. ते लहिर शेठे पोतानी माताना नामथी नारंगपुर नामे गाम वसाव्यु, तथा त्यां शंखेश्वरगच्छीय श्री धर्मचंद्रमरिजीना उपदेशथी संवत ८३६ मा तेणे श्री पार्श्वनाथजीन जिनमंदिर बंधाव्यु. तेना वंशमा केटलीक पहेडीओ गयाबाद वीरचंद शेठनी बीजी स्त्री वीरमतीने स्वग्नमां देवता पासेथी कमल मळ्यां, अने ते कमलोवडे तेणीए श्रीविमलनाथ प्रभुने पूज्या. त्यारबाद तेणीए केटलेक महीने एक उत्तम लक्षणवाळा पुत्रने जन्म आप्यो, अने शेठ वीरचंद मंत्रीए स्वप्नने अनुसारे तेनुं विमल नाम पाड्यु. पछी ज्यारे ते सात वर्षनो थयो, त्यारे वीरमंतीश्वरे पोतानुं आयु फक्त छ भासतुं जाणी पाटणना राजानी आज्ञा लेइ संघसहित शमुंजय गया, तथा त्यां घणु द्रव्य धर्मकार्योमा खरची संथारादीक्षा लेई स्वर्गे गया, अने तेना पेहेली स्त्रीना वडा पुत्र दशरथ संघ लेइ घेर आव्या, हवे ते विमलना मामा त्या कुटुंबमा क्लेश थवानी शंकाथी पोतानी बेहन तथा विमलने ले. इने वागडमां आवेला पोताना गेहडी नामना गाममा
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आव्या त्यां ते विमलनो मामो खेती करे छे, अने विमल तेना ढोर चारे छे. एवी रीते अनुक्रमे विमल त्यां शोळ वर्षनो थयो. ते जे वनमा ढोर चारतो हतो, त्यां अंबामातार्नु मंदिर हतुं. तेणीए एक वखते ते विमलनी परीक्षा माटे सुंदर स्त्रीनुरूप करी भोग माटे प्रार्थना करी, परंतु विमल जरा पण चलायमान न थयो. त्यारे तेणीए प्रसनथइ तेने निधान देवाड्यु, तथापांच गाउ सुधी जाय एवी बाणकला दीधी, अश्वलक्षणतुं ज्ञान आप्यु, स्त्रीपुरुषना लक्षणनुं ज्ञान आप्यु, अने अद्भुत अक्षरकला आपी, तथा हमेशा सानिध्य करवानुं वचन आप्यु. पछी अनुक्रमे तेना लग्न थयाबाद ते गुजरातना राजा भीमनो मंत्री (सेनापति) थयो, त्यारवाद ते राजा साथे घणे काळे अणबनाव थतां ते चंद्रावतीमां आवी वस्यो, अने बार राजाओने जीती ते त्यांनो राजा थयो. पछी आबुपर्वतपर तेणे अपार द्रव्य खरचीने श्रीआदिनाथजीनो अद्भुत प्रासाद बंधाव्यो, अने त्यां अढारभार सुवर्णमिश्रित प्रभुनी प्रतिमा स्थापी, अने तेनी प्रतिष्टा वल्लभीय शाखाना श्री सोमप्रभसूरिजीए करी, आ विमलमंत्रीश्वरे आरासणा, कुंभारीयाआदिक गामोमा घणां अद्भुत जिनमंदिरो बं.
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(१५२) धाब्या छे. * आविमलमंत्रीने पुत्र नहोतो, परंतु तेना
ओरमान बाइ दशरथना पुत्रो नेढा अने वेढा पाटणना राजा रणना मंत्री ओथया. तेओए आरासण चंद्रावती
आदिकमा घणां जिनमंदिरो बंधाव्यां, अने जैन धर्मनो महिमा बधार्यो, ते ओए बळी विमलवसही पाले ( आबुपरना विमलशाहना देहरा पासे ) हस्तिशाला करावी तेमा दश हस्तीओ कराव्या, तथा ते पर विमलना मातापिताआदिक दश पूर्वजोनी मूर्ति स्थापन करी, तथा घोडापर विमलनी मूर्ति करावीने बेसाडी, कालांतरे भरकी आदिकना उपद्रवशी चंद्रावती नगरी उजड थइ.
* विमलमंत्रिवें विशेष वृत्तांत तेना चरित्र तथा रासपरथी जाणी लेवू.
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( १५३ ) मांडल कोटा गोत्र - ( पोरवाड )
( आ गोलनां तथा तेनी शाखाओमां कथा कया गामोमां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाणवा माटे या गोत्रनो खांबो (वंशावली) मगावी कि. रु. ४-०--0 )
आ गोत्रमा जन्मे, परपणे त्यारे वरकाणा पार्श्वना थजीनी स्नात्र भणावे.
आ गोत्रना वंशजो नोडलाइ, बाहडवसही तथा सांडेर विगेरे गामोमां बसे के.
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( १५४ )
काला परमार गोत्र - ( श्रोशवाल )
( पेटा शाखा ) आसाढीया, बुरड, रायपुरीया,
( या गोत्रमां तथा तेनी शाखाओोमां कया कया यामोमां कोण कोण पुरुषो थया ? ते जाणवा माटे या गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो कि. रु. ४ - 0 - 0 )
आ गोत्रनां वंशजो नागोर, नांडलाइ, रायपुर, थोडा, बीकानेर, पालणपुर, नागपुर, राधनपुर, चितोड विगेरे गामोमां रहे छे.
-30%
€
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APPT
दी
ন্যায্য ভী-( স্বাহানা )
(पेटा शाखा)
पारेचा, (স্যা যা করা না বলী হাহাম্মী স্বা कया गामोमां कोण कोण पुरुषो थया? ते जाणवा माटे या गोत्रनो आंबो (वंशावली)
मगावो कि. रु. ४--० ) विक्रम संवत ७१३ मा झालोर नगरमा सोनगीरा सोढा वंशना कान्हडदे नामना सोलंकी रजपूत राज्य करता हता, ते वखते त्यां पधारेला स्वाति आचार्यनो उपदेश सांभळी पोताना पुत्र रायधन सहित कान्हडदे बार व्रतधारी श्रावक थया, तथा तेमणे झालोरमां चंद्रप्रमः स्वामिनु जिनमंदिर बंधाव्यु, त्यारबाद तेमनी प्रथमनी सचावदेवी नामनी कुलदेवी पोताने पाडाआदिक जीवोनुं बलिदान न मळवाथी लेमना कुटुंबने पीडा करवा लागी त्यारे गुरुमहाराजे चक्रेश्वरी देवीलु आराधन करी ते सचावदेवीने सम्यक्त्वधारी करी, अने जीववधन बलिदान
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(१५६) बंध कयु. तेमना बंशमा केटलीक पहेडीओ गयाबाद तेना वंशजो पाछळथी जैनधर्म छोडीने पाछा मिथ्यात्वी थइ गया. विक्रम संवत ११७३मा तेमना बंशमा पारकरमा आवेला पीलुडा गाममा रावजी नामे ठाकोर या. तेमनी स्त्री रूपादेवीनी कुक्षिए लालण तथा लखधीर नामना बे पुत्रोनो जन्म भयो. तेमाना लालणने शरीरे कोढनो रोग. थयो. एकामां अंचलगच्छाधीश श्रीजयसिंहमूरि त्यां - धार्या. शावजीनो कारभारी देवसी नामनो ओशवाळ परमजैनी हतो. तेणे रावजीठाकोरना कहेबाथी लालणनो कोढ मटाडवा माटे श्रीजयसिंहमूरिजीने कोइक उपाय सूचववानी विनंती करी. ले प्रभाविक आचार्यश्रीए भाविलाभ जाणीने जैनधर्मनी उन्नति माटे तेमनी पासे महाकाली आराधन करावी तेनो ते रोग दूर कों. त्यारपछी लालणे पोताना मातपिता सहित विक्रम संवत १२२९मा मिथ्यात्वनो त्याग करी जैनधर्म स्वीकार्यों, अने पोतानी गोत्रदेवी तरीके महाकाली ( अंबाइ ) देवीनो स्वीकार करी तेनुं स्थापन कयु, तथा पीलुडामा आचार्यश्रीना उपदेशथी श्रीशांतिनाथजीनी देरी करावी. तेना बीजा भाइ लखधीरे जैनधर्म स्वीकार्यों नही. आचार्यश्रीए लालणने
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तेना मातापिता सहित देवसीनी सहायथी ओशचालज्ञातिमा मेळवी दीधा. 'छेवट लालण ने पिताना कारज वखते भाइओ साथे तकरार थवायी ते रीसाइने पोतानी माता तथा कुटुंबसहित कच्छमां आवेला डोण गाममा पोताने मोशाळ आध्या, तथा तेमना मामाने संतान न होवाथी पोतानो सघळो गरांस तेमणे लालणने आपयो. त्यालालणे पोतानी माता रूपादेना स्वर्गगमनबाद तेमना अग्निदाहने स्थानके मनी मूर्तिसहित देरी बंधावी, तथा पाछळथी तेमना पगावरा वंशजो पण पोतपोतानी मातानी देरीओ स्यांज बंधावता गया, जे हालमा ते आइयुना स्थान तरीके ओळखाय छ, लालणना बंशजोनी वरकन्यानी छेडाछेडी हाल पण त्यांज छूटे छे. त्यारबाद एक दिवसे पोलानी गोत्रजा स्थापवाना हेतुथी लाल महाकाली देवीनुं अष्ठमना तपपूर्वक आराधन कषु, त्यारे ते देवी पोतार्नु भयंकर विकाळ कम करीने महिषना आसनपर स्वारी करीने प्रत्यक्ष यइ, तेगनु शस्त्रधारी विक्राळ रूप जोइ लालण भय पामीने त्रण पगला पाछा हठी गया एवी रीते योताना सेबकने भयभीत थयेला जाणीने ते देवीए पोतान ते भयंकर स्वरूप संहरी ने अतिशय शांत
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( १५८ ) तथा मनोहर एवं कमलासन लक्ष्मीदेवीनुं स्वरूप कर्यु. त्यारे लालणे पण भयरहित थइ तेमनी स्तुति करी, अने मागणी करी के हवेधी तमो मारा वंशजोनी कुलदेवी थजो, तथा मारा वंशजोने सर्व प्रकारनो वैभव आपवामां सहाय करजो, देवीए कहूं के, हे वत्स ! प्रथम तुं मारी भयंकर स्वरूपथी डरीने त्रण पगलां पाछळ हठी गयो, तेथी हुं तारा- वंशजोमां त्रीजी पहेडीए लक्ष्मीरूपे सहाय करीश, तथा मारूं आराधन करनारने हुं तुष्टमान थइश, तथा तारा वंशजोनी शाखाओ आंबाना हनीपेठे विस्तार पामशे. एटलुं कही ते देवी अदृश्य थयां एवी रीते विक्रम संवत १२२९मा लालणे लक्ष्मीदेवीनं ( अंबाइमातानुं ) स्वरूप धारण करनारी एवी ते कहाकाली देवीने पोतानी गोत्रजा तरीके स्थापी, अने त्यारथी तेना वंशजो "लालण" नामथी प्रसिद्ध थया. एवी रीते आ लालण वंशना स्थापनारा ते लाल शेठ श्रीजयसिंहसूरिना उपदेशथी बार व्रतधारी शुद्ध श्रावक थया.
मूल रजपुत वखतनी गोत्रजा सचावदेवीतुं स्थान झालोरमां छे. तथा बीजुं स्थान भिन्नपाल नगरमा खीमजा डुंगरीपर गाजणाटुंके छे.
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जैनी थया पछी गोत्रजा देवी महाकालीन स्थान पावागढ उपर छे, तथा अंकाइ मातानं स्थान गिरनार पर छे. कर-जन्मे, मुंडणे, परणे पारकर देशनी १८ पाली घउंनो दल करी तेना मोदक कुटुंबमा लावा, फइने श्रीफल एक तथा कपडं गज एक देवू. भेंसने पाडी आवे त्यारे ने पालीनी लापसीनुं निबेद करवू, पाडो आवे, अथवा गाय वींआय त्यारे पाली एकनु निवेद क. र. कांकण छोडे त्यारे घउंटोशडीया आठ, खांड शेर बे अने घृत शेर बेर्नु मगद कर, तथा श्रीकल एक अने जमणीनु कपडूं गज एक ए प्रमाणे नबो कर छे.
कुकडेसरवाळा खेत्रपाळनो कर--पडसुदी शेर सात, खांड शेर सातनुं घृतमाहें भगद करघु, श्रोकल एक वधारवं: जमणी गज एक अने तेल शेर पांच खेत्रपाळने चडावq. __ जुना कर-परणे, मुंडणे, चन्मे पोणी सइना मगद, श्रीफल एक तथा जमणी गज एक घृत शेर एक तथा तेल शर अरधथी पावागढवाळी गोत्रजा जुहारची.
आ लालण गोत्रना वंशजो मुंद्रा, नवानगर, अंजार, नगरपारकर, हाला, भुज, अमरकोट, कोठारा, भोपह,
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(१६०) सिद्धपुर (सिंध ), जेसलमेर, बडोद्रा ( सोरठ), मांडवी, लुअडी (पारकर ), मलसारण, राडद्हा, वाटा, टाकी, कोटडोया, पंचालीया, राधनपुर, जीयाणी, मुराचंदे, भादरेसा, नसरपुर, लोद्राणी, अहेवेची, केरवाडा, सेओ, बाडमेर. साचोरा, कोटडा, वीरावाव, रामनीओ, पीलुडा तथा आधी विगेरे गामोमां बसे छे.
आ लालणना वंशमा नगरपारकरमा थयेला वेलाजीना पुत्र वरजांग तथा जेसाजीए पासी ने दिवसे आठ पहोलो पोसह कर्यो हतो, ते दिवसे संध्याकाळे लक्ष्मीदेवी स्त्रीतुं रूप करीने तथा श्वेत वस्त्र पहेरीने तेने घेर आवी, तथा जेसाजीनी स्त्रीने का के भने रातवासो रहेवाने स्थान आपो, जेसाजीनी स्त्रीए घणा आदमानपूर्वक तेणीना पग धोइ वरमा विछानापर सुवाडी, प्रभाते जेसाजी पोसह पारी घर आया, पछी देवरमा तथा गुरुभक्ति करीने पार' करवा बेठा, त्यारे तेली स्त्रीए कां के आपणे त्या रात्रे प्राणी स्त्री आपाछे, ते हजु उठ्या नथी, माटे तेने पण उठाडीने जमवा साडीये. जैसाजीए कहा कोण स्त्री आवी छ ? अने ते क्या छ ? त्यारे तेणीए रात्रिनो वृत्तांत कयो. शेठे को त्यारे तो
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तेने उठाडीने तुरत जमवा बेसाडो, त्यारे जे ओरडामा तेणीने सुवाडी हती, ते उघाडी जोयुं तो त्यां कोइ पण स्त्री नजरे पडी नही, जने तेथी सर्वने आश्चर्य थयुं. पछी रात्रिए जेसाने स्वप्नमा आवी लक्ष्मीदेवीए कां के तारा पुण्य यी खेंचाइने हुं आजथी तारे घेर रही छु, तारी बीए मने घणु आदरमान दीधुं छे. पछी ते जेसाजीना घरमा घणुं द्रव्य थयुं, अने तेथी तेणे गुजरातमा आवी पाटण, अमवावाद, खंभात तथा वीरमगाम आदिक आखा गुजराएमा, तथा चित्तोड नागोर, जोधपुर, सीरोही, नाडलाइ, जेसलमेर, बाडमेर, कोटडा, अमरकोट, पारकर, साचोर, भिन्नमाल विगेरे मारवाड तथा मेवाडर्मा सर्व जगोए संघमा खांडनी तथा त्या त्यांना सिकाओनी लाणी करी, अने अमरकोटमा शिखरबंध जैनमंदिर बंधाव्धू, तथा चतुर्विध संघनी घणी भक्ति करी. एवी रीते ते जेसाजी अंचलगच्छमां घणाज प्रभाविक श्रावक थया छे, वळी तेणे पीलुडामा पण जिनमंदिर बंधाव्यु, अने " जेसो जगदातार" एवं बिरुद धराव्यु.
विक्रम संवत १५५७मी फागण सुद ८मे पीलुडा गाममा आ वंशमा थयेला शेठ भोजा शाहे जिनमंदिर
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(१६२) बंधाव्यु, अने अंचलगच्छना आचार्य श्रीसिद्धांतसागरसरिजीए तेनी प्रतिष्टा करी. संवत १७८८मां नवानगरमा थयेला जामसाहेबना कारभारी शेठ तलकशी जेसाणीए पूर्वे मुसलमानोना जोरथी बंध रहेला शेठ वर्धमान शाहना देरासरने फरीथी समरावी श्रावण वद सातमे सर्व निंबोनी फरीथी प्रतिष्टा करावी.
लमloren
APP
॥वर्धमानशाह तथा पद्मसिंहशाहनुं वृत्तांत.॥
आ लालणना विस्तारवाळा वंशमां अनुक्रमे पंदर पहेडीओ गयावाद कच्छमां सुथरी पासे आवेला आरीखाणा नामना गाममा विक्रम संवत १६३०नी लगभगमा अमरसिंह नामना शेठ वसता हता. तेमनी वैजयंती नामनी सर्वगुणसंपन्न स्त्री हती. एक वखते रात्रिए स्वप्नर्मा सगीए वृद्धि पामती एबी समुद्रनी वेळा पोधी. त्यारबाद संपूर्ण समये ते णीए एक महाभाग्यशाळी पुत्रने जन्म आ. प्यो, तथा स्वभने अनुसार अमरसिंह शेठे ते पुत्रनु "वधमान" नाम पाड्युं. त्यारबाद केटलेक काळे तेणीए पद्मस्वाथी सूचित थयेला एक बीजा पुत्रने जन्म आप्यो, तथा तेनु पण स्वप्नने अनुसारे " एझसिंह" नाम राख्यु,
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अनुक्रमे बनेने परणाव्यानाद' अमरसिंह धर्माराधनपूर्वक स्वर्गे गया.
हवे एक समये ते वर्धमानशाह पोताना लघु बंधु पद्मसिंह सहित प्रभातमा पोताना धरना ओटलापर वेसी दातण करता हता, तेवामां एक योगीए तेमनी पासे आवी भोजन भाग्यु. त्यारे ते बन्ने दयाल भाइओए लेने घृतमिश्रित उत्तम भोजन आप्यु, अने तेथी ते जोगी त्यांज तेमनी डेलीना ओटलापर बेसी भोजन करवा लाग्यो. ते बन्ने भाइओ पण स्नान करी जिन पूजा भाटे पोताना घरदेरासरमां गया, एटलामा ते योगी पोतार्नु एक तुंबटुं ते डेलीना आइसरमा उचे दोरीथी बांधीने चाल्यो गयो. जिनपूजन करी ते बन्ने भाइओ ज्यारेलीमा आव्या त्यारे ते मोए त्या ते योगीने जोयो नही, तेथी तेओए घरना माणसोने ते संबंधि पूलता तेओए कडं के, अमोए तेने अहीं भोजन करतो बेठेलो जोयो हतो, परंतु पछी ते क्यारे अने क्यों गयो ? तेगी अमोने खबर नथी. त्यारे ते बन्ने भाइओए विचार्य के भोजनयी संतोष पामीने ते क्यांक पोताने स्थान के चाल्यो भयो हशे, एम विचारी तेओ पोतपोताले कामे लाग्या, हवे
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( १६४ )
ते आडसरमा उंचे टांगेलुं तुंबडुं छमास सुधी कोइने दृष्टि पड्युं नही, तेम ते योगीना आववानी वात पण सर्व कोइ विसरी गया.
एवम एक दिवसे रात्रिए ते तुंबडाने बांधेलो दोरो जीर्णताने लेइ अकस्मात त्रुटी जवाथी ते तुंबडुं डेलीमां नीचे खाली पडेली गांवांनी कडाइमां जइ पड्युं, अने ते तुंबडं फुटी जवाथी तेमां रहेलो सिद्धरस ते त्रांवानी कडाइमा फैलाइ जवाथी ते कडाइ स्वर्णमय थइ गइ. हवे प्रभाते ते वने भाइओए ते त्रांनानी कडाइने स्वर्णमय थयेली जोइ, ते तुंबडांना टुकडा आसपास विखरायेला जोया. ते जोइ तेओने याद आव्युं के, खरेखर छमास पेहेलां आवेला ते योगिना हाथमां तुंबडुं हतुं, अने खरेखर ते तुंबडामा आ सिद्धरस भरेलो होवो जोइये, पछी कडाइमां ने कई बाकी वधारानो रस पडयो रह्यो हतो, ha रसवडे करीने तेओए बीजों त्रांबांना वासणने लेपन करवाथी ते पण स्वर्णमय थयुं.
त्यारबाद ते सुवर्णना बेंचाणथी तेओने एक लाख कोरी उत्पन्न थइ पछी ते धन लेईने ते बन्ने भाइओ कुबसहित भद्रावती नगरीमा आवी वस्या. ते समये
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आ भद्रावती नगरी कच्छ देशनु एक महोटुं बंदर हतुं, अने तेथी चीन, मलबार आदिक देशोमाथी त्यां धां वहाणो आवजा करतां हता, अने रेशम, साकर, सोपारी एलची आदिक वस्तुओनो त्यो बहोळो व्यापार चालतो हतो. ते जोइ पासिंहे पोताना वडिलबंधु वर्धमानशाहने का के, जो आपनी आज्ञा होय तो हुँ अहाँथी अनाजआदिक वहाणमां भरी व्यापार माटे चीन जाउं. एवी रीते व्यापार माटे तेने उत्साहित जोइने वर्धमानशाहे पण तेम करवानी तेने सम्मति आपी. पछी ते एक महोटा वहाणमां अनाजआदिक अर्थ लाख कोरीनी किमतनो माल भरी त्यांथी चीनतरफ रवाना थया, अने कुशलक्षेमे चीनना कंतान नामना बंदरमा उता.
अहीं भद्रावतीमां वर्धमानशाहे पण एक वहाण ख. रीदीने मलबारआदिक देशोसाथै अनेक जातना करीयाणाओनो व्यापार करवा मांड्यो, तेमज तेमणे भद्रावतीना समुद्र किनारापर एक कोठार बंधाव्यो. तेमनी उत्तम प्रकारनी नीति जोइने मलबारआदिकना घणा व्यापारीओ हकशीथी वेचवामाटे तेमनापर सोपारी, एलची, मरी, चंदनआदिक घणो माल मोकलवा लाग्या, तथा
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( १६६ ) अनुक्रमे ते वर्धमानशाहनी कीर्ति तथा लक्ष्मी वृद्धि
पामवा लागी,
पद्मसिंहे पण चीनदेशना कंतानबंदरमां जइ पोतानो माल वेंची घणो नफो मेळव्यो. त्यां तेने त्यांना युलनचंग नासना एक करोडपति चीना व्यापारी साथै मित्राइ थइ पछी पद्मसिंहे पण त्यांथी रेशम, साकर विगेरे वस्तुओ खरीदी पोताना वहाणमां भरी भद्रावतीतरफ जवानी तैयारी करी, त्यारे ते युलनचंग पण हिंदुस्तानना व्यापारथी वाफ थवा माटे पद्मसिंह साथै तेज वहाणमां चड्यो, एवी रीते ते पद्मसिंह छ मासबाद ते मित्रसहित भद्रावतीमा कुशलक्षेमे आवी पहोंच्यो, तथा वहाणमांथी सर्व माल उतारी बखारोमा भर्यो, अने धीमे धीमे नफो मळवाथी ते माल तेओए वेची नाख्यो. गुलनचंग पण एक माधी तेओने त्यां परोणातरीके रह्यो, अने ते बने भाइओनी नीति तथा प्रतिष्टा जोइ घणो खुशी थयो. छी तेणे पोताना देशतरफ जती वेळाये ते बन्ने भाइओने कछु के, हवेशी हुं मारो घणो माल तमोने वेचवा माटे चीनथी मोकलावीश, ते तमारे हकशोथी वेची आपवो. एम कही तेणे पोताना देशमां जइ तेओने लाखोनी
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( १६७ )
किमतनो माल बेचवामाटे भद्रावतीमां वहाणो मारफते मोकली आप्यो, अने तेनी हकशीथी ते बन्ने भाइओ पासे लाखो गमे द्रव्य थयुं.
एवामी श्री अंबलगच्छाधीश श्रीकल्याणसागरसूरि विहार करताथका भद्रावतीमां पधार्या, त्यारे आ बने भाइओए घणा महोत्सव पूर्वक तेमनो नगरमा प्रवेश कराव्यो, आचार्यश्रीए पण उपाश्रयमां पधारी श्रोताजनोनी सभामा श्रीशत्रुंजय तीर्थना अनुपम माहात्म्यनो उपदेश कर्यो. ते सांभळी ते बन्ने भाइ भए शत्रुंजय तीर्थनो संघ कहाडी यात्रा करवानो मनोरथ कर्यो, तथा पोतानो ते मनोरथ आचार्यश्रीने निवेदन कर्यो. आचार्यश्रीर पण अनुमोदन आपी वर्धमानशाहना मस्तकपर संघपतिपणानो वासक्षेप नाख्यो. पछी पोताना वडिल बंधुनी आज्ञाथी पद्मसिंहशाहे उभा यह सर्व संघने तीर्थाधिराजनी यात्रा माटे आववाने निमंत्रण कर्यु, तथा कयुं के मार्गमां वाहन, तथा भोजन आदिक सर्व खर्च सर्व यात्राळओने अमारा तरफथी मळशे. आचार्य श्रीकल्याणसागरसूरिजीने पण परिवारसहित संघसाथै पधारवामाटे विनंति करी क के, अमो अहींथी वहाणोमारफते नागनावंदरे जइभुं,
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( १६८ )
माटे आप पण रणने मार्गे त्यां तुरत पधारवा कृपा
करशों.
पछी आचार्यश्रीने वंदन करी ते बन्ने भाइओए वेर आवी कुंकुम पत्रिकाओ लखी देशावरोमां यात्रार्थी माणसोने निमंत्रण कर्या, तथा पोताना लालणगोत्री ओने संघमा पधारखाने विनंति करवामाटे कासदो मोकल्या. वर्धमानशाहना पुत्र वीरपाल, वजपाल तथा भारमल्ल तथा जगडु अने पद्म सिंहशाहना पुत्र श्रीपाल, कुरपाल तथा रणमले मळीने संघमाटे वहाणो, अनाज, घृत, तंबूओ विगेरेनी व्यवस्था करी. पछी शुभ दिवसे सर्व यात्रिको तथा कुटुंब सहित भद्रावतीथी वहाणोमारफते प्रयाण करी तेओ नागना बंदरे आव्या. त्यां बंदरना किनारापर arcian रंगबेरंगी तंबू उभा कर्या, अने तेमां सर्व यात्रिको उतारो कर्यो.
हवे ते समये ते नागना बंदर नवानगरना राजा श्री जशवतसिंहजीना ताबानुं हतुं. पछी ते वर्धमानशाहे पोताना भाइ पद्मसिंहसहित त्यांना ते राजाने मळीने तेमने सोनानोहोरोथी भरेलो थाळ भेट कर्यो. त्यारे राजाए पण खुशी थने तेमने कां के, अमारा सरखं जे
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कंड कार्य होय ते कहो ? त्यारे वर्धमानशाहे कह्यु के हुँ अहींथी संघसहित शत्रुजय तीर्थाधिराजनी यात्राये जउं छ, माटे मार्गमा संघना रक्षणमाटे एकसो हथीयारबंध माणसो आपवानी मेहेरबानी करो ? त्यारे महाराजाए पण पोताना एकमो हथीयारबंध सुभटो तेमने सोप्या. पछी पोताना मंत्रीनी प्रेरणाथी महाराजाए ते बने भाआइओने कयु के, यात्रायेथी पाछा आव्यावाद तमो जो अहीं नवानगरमां निवास करी व्यापार करशो तो हुँ तमारा मालनी कच्छना राज्यथी अरधी जगात लेइश, तेथी तमोने अने मने पण लाम थशे, तेमज तमोने अहिं सब प्रकारनी सगवड करा अपात्रीश. त्यारे तभन्न भाइओर परस्पर विचार करी महाराजानी ते मागणी स्वीकारी. माहाराजाए पण खुशी थइ तेओने वस्त्र आभूषणो विगेरेनो किमती शिरपाव आप्यो, पछी महाराजाना हुकमथी सर्व राजद्वारी माणसोए पण संघनी सामग्रीमाटे घणी किमती मदद करी, अने ते बन्ने भाइओए पण ते सघळा राजद्वारी माणसोने पोषाक सन्मान विगेरेथी खुशी कर्या.
एवी रीते सर्व प्रकारनी सामग्री सहित संधे ज्यारे
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(१७०) नवानगरथी प्रयाण कयु, त्यारे तेमां नीचे मुजब सामग्रो हती. ... ५०० रथ
५०० उंट ৩০০ গাভ
१००० खचर ९०० घोडा
२०० रसोइया ९ हाथी
१०० कंदोई १०० वाणंद
२०० साधुओ ५० नाटकीया ३०० साध्वीओ २० वाजांवाला १०० चारण १५० तंबु खोडनारा
ए रीतनी सामग्री हती, तेमज सर्व मळी ते संघमा पंदर हजार माणसो हता, रणमार्गे आचार्य श्री कल्याणसागरजी पण पोताना शिष्यपरिवारसहित त्यां पधार्या तथा संघनी सामग्री जोइ घणाज खुशी थया एक सुशोभित रथमा सर्व विघ्न निवारनारी विराजमान थयेली श्री शांतिनाथजीनी मूर्ति पण साथे हती. मार्गमा जे जे गाममां जिनमंदिर आवतुं, त्यां पूजा भणावी ध्वजारोपण करवामां आवतुं हतुं, तथा साधर्मिकोर्नु स्वामिवात्सल्य
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पण करता हता. एवी रीते प्रयाण करीने अनुक्रमे सर्व संघ शत्रुजय तीर्थनी नजीक आवी पहोंच्यो. त्यां शत्रुजयी नदीना किनारापर तंबू ओ खडा करवामां आव्या, तथा सर्व यात्रिकोए तेमा मुकाम को.
पछी प्रभाते श्री कल्याणसागरजी महाराजना आदे. शमुजब संघपति एवा ते बन्ने भाइओए विधिपूर्वक गिरिपूजन कयु, तथा याचकोने घणु दान आप्यु. पछी ते बने भाइओए संघसहित गिरिराजपर चडी आचार्यश्रीए बतावेली विधिमुजब श्रीऋषभदेवप्रसुर्नु पूजन कर्यु, तथा ते वखते विविध प्रकारना वाजिब्रोना नादोवडे सर्व प चत गाजी रह्यो हतो. एवी रीते घणाज आडंबरथी प्रभुनी पूजा करी संघपतिए याचकोने घणुं द्रव्य आपी संतुष्ट कर्या. पंदर दिवसो खुधी संघ सहित त्यां रही गिरिराजनी प्रदक्षिणा विगेरे करी तेमणे त्यां नाना प्रकारना महोत्सबो कर्या. पछी त्यांथी प्रयाण करी संघसहित तेओ नवानगर पासे ज्यारे आवी पहोंच्या, त्यारे महाराजा जसवंतसिंहजीए महोटा आडंबरपूर्वक सामैयु करी तेओने नगरमा प्रवेश कराव्यो, ते वखते नगरने रंगबेरंगी ध्वजापताकाओवडे शणगारवामां आव्यु हतुं.
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(१७२) ते वखते संघपति वर्धमानशाह तथा पद्मसिंहशाहे पांच हजार सोनामोहोरोनो भरेलो थाल महाराजाने भेट को. तथा महाराजाए एण घणा आदरमानथी तेमने वस्त्राभू. पणो भेट कर्या. वळी ते वखते महाराजाए फरीने तेओने नवानगरमांज निवास करवा माटे कहेबाथी तेओए पण संघने पेहेरामगी आपी विसर्जन करी कुटुंबसहित नवानगरा निवास कों, तथा तेमनी साओ संघमा आबेला पांच हजार ओशवाळोए पण पोतानी आजीविका माटे त्यांज निवास कर्यो.
आचार्यश्री कल्याणसागरजी पण त्यांची विहार करी अन्य स्थानके पधार्या. ___ अहीं अनुक्रमे तेओनो व्यापार घणोज वृद्धि पाम्यो, तथा तेथी महाराजाने पण घणो लाभ थयो, अने महाराजानी तेमना साथै घणी प्रीति थइ..
पासिंहशाहनी स्त्री कमलादेवी घणीज बुद्धिवान होवाथी एक दहाडो तेणीए पोताना जेठ वर्धमानशाह तथा पोताना स्वामी पद्मसिंहशाहने विनंति करी के, लक्ष्मीनो स्वभाव हमेशां चंचल छे, माटे बुद्धिवानोए तेने
ago
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धर्मकार्योमा जोडी तेनु सार्थक कर उचित छ. ते सा. भळी ते ओए पण नवानगरमा एक विशाल जिन मंदिर बंधाववानो निधय कर्यो. त्यारवाद ते जिनमंदिरनु खात मुहूर्त जोवराबवा माटे तेओए तुरत विनंति लखीने श्रीकल्याणसागर सूरिजीने बोलाव्या. आचार्यश्री पण धार्मिक उन्नति जाणीने तुरत त्यां पधार्या, अने घणाज आडंबरपूर्वक तेमनो नगरमा प्रवेश कराव्यो, आचार्यश्रीए पण उत्तम मुहूर्त जिनमंदिर माटे जोइ आपवाथी ते भोए दश हजार सोनामोहोरो महाराजा जामश्रीने आपी ते माटे जमीन खरीदी तथा विक्रम संवत १६६८ना श्रावण मुद पांचमने दिवसे घणा महोत्सवपूर्वक तेओए ते महान् जिनमंदिरखें खातमुहूर्त कयु, तथा ते वखते तेओए याचकोने घणु द्रव्य आप्यु. ते जिनमंदिर गांधवा माटे कच्छ देशमाथी बोलावेला एकसो सलाटो तथा पांचसो बीजा माणसो, एम सर्व मळी छसो माणसो कामे लाग्या हता. वर्धमानशाहनी स्त्री नवरंगदेवी तथा पद्मसिंहशाहनी स्त्री कमलादेवी वारंवार ते सर्व कारीगरोने वस्त्रो, द्रव्य तथा बासणोआदिकना इनामो आपीने उत्साहित करती हती. एवी रीते आठ वर्षों सुधीमा ते जिनमंदिरनु घणुंखरूं
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(१७४) कार्य संपूर्ण थइ गयुं, तथा भमतीनी बन्ने चोमखोपरनी शिखरो अने तेना उपरना भागना रंगमंडपो तथा झरुखाओ जेटलुंज कार्य बाकी रहा, त्यारे तेओए उमदा पापाणआदिकनी पांचसो एक प्रतिमाओनी आचार्य महाराज श्रीकल्याणसागरजी पासे अंजनशलाका करावी. मळगंभारामा एकसरखा प्रमाणवाळी श्रीशांतिनाथजीनी त्रण प्रतिमाओनी विक्रम संवत १६७६ना वैसाख सुद ३ बुधवारे पहेली प्रतिष्टा, तथा संवत १६७८ ना बैसाख सुद ५ शुक्रवारे भमती विगेरेमा बीजी प्रतिष्टा श्रीकल्याणसागरसूरिजीना हाथथी करावी. ते वखते तेओए घj द्रव्यदान करी बहु घुण्य उपार्जन कयु. त्यारबाद तेओए शत्रुजयपर, मोडपरमा, तथा छीकारीमा जिनमंदिरो बंधावी जिनप्रतिमाओनी प्रतिष्टा करावी.
वळी तेओए नीचेमुजब रत्नोनी जिनप्रतिमाओ पण भरावी.
वर्धमानशाहे नवहजार मुद्रिका खरचीने रिष्टरत्ननी श्रोनेमिनाथ प्रभुनी एक प्रतिमा करावी.
पद्मसिंहशाहे नवहजार मुद्रिका खरचीने माणेकरननी श्रीवासुपूज्यस्वामिनी एक प्रतिमा करावी.
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वर्धमानशाहनी स्त्री नवरंगदेवीए दशहजार मुद्रिका खरचीने श्रीपार्श्वनाथजीनी नीलमनी एक प्रतिमा करावी.
पासिंहशाहनी स्त्री कमलादेवीए दशहजार मुद्रिका खरचीने नीलमनी श्री मल्लिनाथजीनी एक प्रतिमा करावी.
एची रीते तेओना कुटुंबना सर्व माणसोए कसोटी आदिक उमदा पाषाणोनी जिन प्रतिमाओ करावी. ___ एवी रीते जे समये ते बन्ने भाइओए शुध मार्गमा घणुं द्रव्य खरची अतिशय पुण्य उपार्जन कयु.
हवे ते वखते नवानगरना महाराजा जसवतसिंहजीनो हडमत ठकर नामनो लुहाणा ज्ञातिनो एक खजानची हतो. महाराजानी वर्धमानशाह तथा पद्मसिंहशाहपर घणी प्रीति जोइने तेना हृदयमा ईषा उत्पन्न थइ, तेथी तेणे लाग जोइने एक वखते महाराजा जामसाहेबने अरज करी के, आजे अमुक राज्य कार्य माटे नवहजार सोनामोहोरोनो खप छे, अने आ समये आपणा खजानामां तेटली शीलक नथी, माटे जो आप हुकम करो तो हुं तेटली सोनामोहोरो हाल वर्धमानशाह पासथी उछीनी लावं, अने खजानामां आव्येथी तेमने हुं पाछी भरी आ
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पीश, त्यारे जामसाहेबे तेम करवानो ने हुकम कर्यो, एटले तेणे नव हजार कोरीनी वर्धमानशाह उपरे चीठी लखीने ते नीचे जामसाहेबनी सही करावी लीधी. पछी ते दुष्ट खजानचीए घेर आवी ते नव हजारना आंकपर बे मींडा चडावीने नवलाख कोरीना ते चीही करी, पछी तेणे पाछले पहोरे वर्धमानशाह पासे आवीने त नवलाख कोरीनी चीही बतावी ते वांची आ श्चर्य पामी वर्धमानशाहे पोताना भाइ पासिंहने बोलबी ते चीटी बतावी. ते वांच्याबाद बन्ने भाइओए विचायु के खरेखर महाराजासाहेब आपणापर कोपायमान थया होय तेम संभवे छे. पछी पद्मसिंहे पोताना वडीलबंधुने कडं के, तमो आ हडमत ठक्करने आपणी वखारे तेडी जाओ, हुं थोडीवारमाज त्यां आवी सवळी रकममाटे बंदोबस्त करूं छु. पछी वर्धमानशाह ते हडमत उकरने साथे लेइ पोतानी वखारे आव्या अने पद्मसिंहशाह ते ची. छीनी हकीकतथी वाकेफ थवामाटे महाराजा जामसाहेबनी मुलाकाते गया, परंतु महाराजासाहेब ते वखते जनानखानामा होवाथी तेने तेमनो मेलाप थयो नही, तेथी निराश थइ त्यांथी पोतानी वखार तरफ चाली निकल्या.
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(१७७) एवामां मार्गमा बजारमा तेओने एक अतिशय बूढो योगिराज मळ्यो, अने तेणे ते पद्मसिंहशाहपासे भोजन भाग्यु. पद्मसिंहशाहे पण तेने कोइ कंदोइनी दुकानपरथी मनगमतुं भोजन अपाव्यु, तथा तेनी आकृतिविगेरे जोइने तेने याद आव्यु के, जे योगिराज आरिखाणमां अमारा धरनी डेलीना आडसरमा सिद्धरसनुं तुंबडुं लटकावी गयो हतो, तेज खरेखर आ योगिराज छे. एवामा ते योगिराजेज पद्मसिंहशाहने पूछयु के, हे वत्स! आजेतुं उदास. केम देखाय छे ? त्यारे पद्मसिंहशाहे तेमने टुंकामा ते चीहीनी हकीकत कही जणान् के, आ वखते अपारी पांसे वखारनी पेटीमा फक्त नवहजार सोनामोहोरोज शीलकमां छे. ते सांभळी ते योगिराजे पोतानी विशाळ जटामाथी एक जडी कहाडीने पद्मसिंहशाहना हाथी आपी, तथा पोते कं; पण बोल्या चाल्याविना एकदम अदृश्य थइ गयो. पद्मसिंहशाहे आमतेम बजारमा तेने पाणी जगोए शोध्यो, परंतु ते कोइपण जगोए दृष्टिए पच्योनही
" हवे ते जडी लेइने पद्मसिंह पोतानी वखारे आव्या. तथा पोताना वडिलबंधुने एकांतमा सर्व वृत्तांत कहीने योगिनो मेलाप, तथा ते जडीनी हकीकत कही संभळा
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(१७८) वीने ते जडी तेमना हाथमा आपी. ते जोइ वर्धमानशाहे विचार्यु के, खरेखर योगिनुं रूप धारण करनारी ते आ. पणी गोत्रदेवीएज तने दर्शन आपीने आ अणीने वखते चित्रावेलनी जडी आपीने आपणने सहाय करी छे. हवे आ जडीने आपणे आपणी नव हजार सोनामोहोरोनी थेलीमा राखीने आ हडमत ठक्करने नवलाख सोनामोहोरो तोली आपीयें, केमके हवे आ चित्रावेलनी जडीना प्रभावथी तेमायो लाखोगमे सोनामोहोरो कहाडता पण नव हजारनी मूल रकम तेमा बालासज रहशे. पछी तेओए नवलाख सोनामोहोरो तेने तोली आपी, ते पण आचर्य पामी भयथी कंपतोथको ते सोनामोहोरोनी थेलीओनुं गाडं भरी त्यांथी चाल्यो गयो, अने त्यारथी ते वर्धमानशाहनी वखारनुं नाम नवलाखाना नामथी प्रसिद्ध थयं, के जे नामथी आजे पण ते मकान ओळखाय छे. ..त्यारबाद ते बन्ने भाइओए घेर आवी विचार कों के, हवे आ शेहेरमा रहे, लाभकारक नथी. एम विचारी तेओए प्रभातमा पोतानो किमती माल वहाणा भरी नागनावंदरथी कुटुंबसहित भद्रावती तरफ प्रयाण कयु.
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(१७९) तेओनी साथे तेमनी नोकरी विगेरेना आश्रयवाळा तथा स्नेही संबंधिओ विगेरे मळीने चार हजार ओशवाळज्ञातिना माणसोए पण नवानगर छोडी भद्रावती तरफ प्रयाण कयु. त्यारबाद महाराजा जामसाहेबने आ हकीकतनी खबर मळवाथी तेमणे ते. लुहाणा हडमत ठकरने मारी नाख्यो, तथा वर्धमानशाहने पाछा बोलाववा माटे पोताना हजुरीओने मोकल्या, परंतु तेओ पाछा आव्या नही. भद्रावतीमा पहीचाज कच्छना महाराओ श्रीमारमल्लजीए ते बन्ने भाइओने घणुज सन्मान आप्यु, अने तेथी तेओ कुटुंब सहित भद्रावतीमा रही चित्रावेलनी जडीना प्रभावथी पोतानो व्यापार करवा लाग्या. तथा भाविभावना प्रबलपणाथी तेओए नवानगरमां बंधावेली ते श्रीशांतिनाथजीना जिनमंदिरर्नु उपर जणावेलं बाकी.. कार्य अपूर्ण रही गयु. __एवामां आचार्य महाराज श्रीकल्याणसागरजी पण विहार करताथका मद्रावतीमा पधार्या, त्यारे ते बन्ने भाइओए महोत्सवपूर्वक तेमनो नगरीमा प्रवेश कराव्यो. त्यारबाद एक पखते आचार्यश्रीना पूछवाथी तेओए नबानगरनो सर्व तांत कही संभळाव्यो, तथा ते साथे
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योगी पासेथी मळेली चित्रावेलनी जडीनी हकीकत पण कहीने पूछयु के, हे भगवन् ! ते योगी कोण हतो? अने शामाटे तेणे अमोने के वखत सहाय करी ? ते संबंधि कई हकीकत आपसाहेबना ध्यानमा होय, तो अमोने निवेदन करो? त्यारे महाकालीना वरदानवाळा आचार्यश्रीए पण ते महाकालीनुं आराधन कयें. तेथी महाकालीए प्रत्यक्ष थइ आचार्यश्रीने तेमना पूर्वज लालण संबंधि सर्व वृत्तांत कही संभळाव्यो, अने कई के मारां वचनथी बंधायेली हुं लालण वंशना मारा भक्त एवा त्रीजी पहेडीना दरेक पुरुषने सहाय करूं छु, अने तेथी योगीरूपे में ते बन्ने भाइओने बे वखत सहायता करी छे. पछी आचार्यश्रीए पण ते हकीकत ते बन्ने भाइओने जा णावी, ते सांभळी तेओ बन्नेए अत्यंत आनंद पामी आ. चार्यश्रीने पूछयु के, अमारी ते गोत्रमातानुं स्थान क्या छे? अमोने तेमनां दर्शन करवानी घणीज अभिलाषा छे. आचार्यश्रीए का के ते महाकाली देवीन स्थान गुजरातमा आवेला पावागढपर छे.
त्यारबाद प्रभातमाज तेओ कुटुंबसहित त्यांची प्र. याण करी स्थलमार्गे पावागढपर गया. त्यां तेमणे पो
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( १८१ )
तानी गोत्रदेवीनी मूर्तिनां दर्शन करी स्तुति करी. पछी रात्रि ते देवीए पण पोताना अत्यंत शांत, अने महातेजस्वी स्वरूप सहित तेओ बन्ने भाइओने प्रत्यक्ष दर्शन आपीने कधुं के, तमारा पूर्वज लालणनी भक्तिथी वचनबडे बंधायेली पवी में तमोने योगी स्वरूपथी बे बखत सहाय आपी छे, एम कही तेणीए पोतानी एक स्फटेकनी मूर्ति तेओने आपी पोते अदृश्य थयां. पछी ते बन्ने भाइओए पोतानी ते गोत्रजादेवीना मंदिरनों त्यां जीर्णोद्धार कराव्यो, तथा तेमने नमीने कुटुंबसहित पाछा तेओ भद्रावतीमां आव्या.
40
त्यारबाद श्री कल्याणसागरसूरिजीना उपदेशथी वर्धमानशाहनी श्री नवरंगदेवीए सिद्धचक्रना आराधन रूप तप करीने, बे लाख मुद्रिका खरची तेनुं उजमं कर्यु. तेमज पद्मसिंहशाहनी स्त्री कमलादेवीए ज्ञानपंचमीनो तप करी ने लाख मुद्रिका खरची ज्ञानपंचमीनुं उजमणुं कर्य, तथा घणा आगमग्रंथो विगेरे लखान्यां. वर्धमान - चाहे पोताना सर्वथी लघु पुत्र जगड़ना विवाह प्रसंगे
ण लाख मुद्रिका खरचीने याचकचारणोने चार हजार उंट बक्षीस आप्या पद्मसिंहशाहे पण पोताना पुत्र रणम
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( १८२ ) छनो विवाह त्रण लाख मुद्रिका खरचीने कर्यो. आवमानशाहनुं संस्कृत चारित्र रचनार महाकवि श्री अमरसागरसूरिजीने आचार्य पदवी आपवामां ते बन्ने भाइओए बेलाख मुद्रिकानुं खर्च कर्यु. पोताना साधर्मिओना उद्धार माटे श्रीकल्याणसागरसूरिजीना उपदेशथी ते बन्ने भाइओए सर्व मळी सात लाख मुद्रिका खरची.
एक वखते श्री कल्याणसागरजी महाराजे ते बन्ने:भाइओने कहुँ के, आ भद्रावती नगरी बहु प्राचीन के, प्रथम तेनुं कोशांबी नगरी नाम हतुं, तथा अहिं आ श्रीमहावीर प्रभुतुं प्राचीन जिनमंदिर संप्रतिराजानुं बंधावेल
ते जिनमंदिरनो प्रथम घणी वखत जीर्णोद्धार थयेलो छे, अने हाल पण तेना जीर्णोद्धारनी जरुर छे. ते सांभळी आ बन्ने भाग्यशाली भाइओए दोढ लाख मुद्रिका खरचीने तेनो जीर्णोद्धार कराव्यो.
त्यारबाद तेओए बंधावेला नवानगरना श्रीशांतिनाथजीना देरासरनुं अपूर्ण रहेलं कार्य संपूर्ण करवामाटे त्यां रहेता पोताना त्रीजा भाइ चांपसीशाहने वे छाख मुद्रिका मोकलावी, परंतु भाविप्राबल्यताथी ते कार्य संपूर्ण श्रयुं नहीं, तेमज तेओए ते विशाळ जिनमंदिरना हमेश माटेना
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खर्च सारं पोतानी नव वाडीओ, चार खेतरो, तथा एकावन हाटोनी पंक्ति समर्पण करी.
त्यारबाद एक दिवसे श्रीकल्याणसागरसरिजीना उपदेशथी तेओए सर्व तीर्थोनी कुटुंबसहित यात्रा करवानो निश्चय कर्यो. तेथी तेओए प्रथम गिरनारपर जइ त्यांनी यात्रा करी बे लाख मुद्रिका खरचीने त्यांना श्रीनेमिनाथ प्रभुना जिनमंदरनो जीर्णोद्धार कर्यो. पछी तेओए शत्रंजयतीर्थनी यात्रा करी त्यो बेलाख मुद्रिका खरचीने ध्वजारोपण. कयु. त्यारबाद तारंगे आवीने तेओए अढीलाख मुद्रिका खरचीने त्यांना श्रीअजितनाथजीना जिनमंदिरनो जीर्णोद्धार कराव्यो. पछी आबुपर्वतपर जइ त्यांनी यात्रा करी विमलशाह तथा वस्तुपालनां मळी बन्ने जिनमंदिरोनो पांच लाख मुद्रिका खरचीने तेओए जीर्णोद्धार कराव्यो, तथा ते जिनमंदिरोनी कारि. गिरि जोइ तेओ अत्यंत आनंद पाम्या. पछी सम्मेतशिखरपर जइ त्यांनी यात्रा करीने अढीलाख मुद्रिका खरचीने त्यां पावडीओ बंधावी. त्यारबाद तेओए वैभार, चंपा, काकंदी, पावापुरी, राजगृही, वाणारसी, हस्तिनापुर विगेरे तीर्थभूमिओनी यात्रा करीने त्यां पशुं द्रव्य खरच्यु
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(१८४) एवी रीते अनेक प्रकारनां सुकृतोबडे पोताना आ. माने पवित्र करी श्रीवर्धमानशाह शेठ पोतानुं ब्यासी वर्षोनुं आयुष्य संपूर्ण करी आराधनापूर्वक भद्रावतीमां स्वर्गे गया. तेमना अग्निसंस्कारनी जगोए तेमना भक्तिवंत लधुबंधु पद्मसिंहशाहे त्रण लाख मुद्रिका खरचीने एक अतिकारिगिरीवाळी विशाळ वाव बंधावी, के जे वाव हालमा महोटी सेलरवावना नामथी ओळखाय छे, तथा ते वावना किनारापर एक शांतिनाथ प्रभुनी देहेरी बंधावी, तथा तमना कारजमा वार लाख मुद्रिका खरचीने समस्त कच्छ तथा हालारने मिष्टान्न भोजन कराव्यु..
त्यारबाद पद्मसिंहशाहे पण पोतानो अंतसमये पोताना वडिलबंधु वर्धमानशाहना वीरपाल, विजपाल, भारमल्ल तथा जगडु नामना चार पुत्रोने, तथा पोताना श्रीपाल, कुरपाल तथा रणमल्ल नामना त्रण पुत्रोने पोतानी पासे बोलावी द्रव्यआदिकना भागोमाटे तेओनो अभिप्राय पूछयो. त्यारे तेओए कयु के, अमो सर्वने हवे जूदा थवानी इच्छा छे, माटे द्रव्यनो भाग व्हेंची आपो ? ते सांभळी पद्मसिंहशाहना ह दयमा जरा खेद तो थयो, परंतु तेओनी इच्छा विभक्त थवानी होवाथी चित्रावेलनी जडीयुक्त
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(१८५) सोनामोहोरोनी थेलीवाळी तेणे पेटी उघाडी, पछी ते थेलीमाथी सात लाख मुद्रिकाओ ज्यारे ते गणी रह्या, त्यारे तेज समये ते जडी दैविक प्रभावधी अदृश्य थइ गइ, तथा थेलीमांनी मुद्रिकाओ पण खलास थइ. ते जोइ प. असिंहशाहे विचायु के, खरेखर आ लोकोना भाग्यमा हवे ते चित्रावेलनी जडी नथी. पछी तेणे ते साते पुत्रोने सरखे भागे ते एकेक लाख सोनामोहोरो आपी दीधी तथा तेओने कुलदेवीनी प्रसन्नताआदिक पोतार्नु सर्व वृत्तांत आदिथी कही संभळाव्यु. महाकालीए आपेली पोतानी स्फटिकनी प्रति वर्धमानशाहना वृद्ध पुत्र वीरपालने सोंपी, अने कह्यु के आनुं पूजन करवाथी सर्व प्रकारनां विनोनो विनाश थशे, तथा कष्ट पड्ये अठमनातपपूर्वक ते कुलदेवीनुं सम्यक् प्रकारे आराधन करवाथी ते प्रत्यक्ष थइ तमारा कुदंबना कष्टाने दर करशे. त्यारबाद ते पद्मसिंहशाह अरिहंतआदिकना शरणपूर्वक आराधना. सहित पोतानुं सीतोतेर वर्षोनु आयु संपूर्ण करी शांत चित्तथी स्वर्गे गया. पछी तेमना श्रीपाल आदिक पुत्रोए मळीने समयानुसार तेमना कारजाविगेरे कया.
वर्धमानशाह तथा पासिंहशाहनी स्त्रीओ पोताना
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पतिना स्वर्गगमन पहेलांज शुभ ध्यानथी काळ करी स्वर्गे गइ हती. त्यारवाद के लोक समय वीत्याबाद ते जाहोजलालीवाळी प्राचीन भद्रावती* नगरीमा दैवयोगे महामारीनो उपद्रव थयो, अने तेथी त्यां घणा माणसो मृत्यु पामवाथी · धीमेधीमे ते नगरी उजड थइ गइ. ते वखते सर्व लोको ते नगरी छोडीने जूदीजूदी जगोए जइ वस्या. वर्धमानशाहना वीरपाल आदिक चारे पुत्रो कुटुंब सहित त्यांथी निकळी भुजमा जइ वस्या, तथा पासिंहशाहना त्रणे पुत्र पोताना कुटुंबसहित त्यांथी निकळी मांडवीमा जइ वस्या. वर्धमानशाहना सर्वथी नाना पुत्र जगडुशाह महाबुद्धिवान तथा घणा उदार दिलना हता, तेमणे वृद्धावस्थाए पहोंचेला एवा श्रीकल्याणसागरसूरिजीने आमंत्रण करी महोत्सवपूर्वक भुजनगरमा पधराव्या, अने तेमनी अत्यंत भक्ति करी. गुरुमहाराजे पण तेमना पिता श्रीवर्धमानशाहर्नु सर्व वृत्तांत तेनी पासे कही संभलाव्यु. ते सांभळी अत्यंत खुशी थयेला जगडुसाहे पित. भक्ति माटे तेमनुं चरित्र संस्कृत भाषामां काव्यबद्ध रचवा माटे आचार्यश्रीने विनंति करी. जेथी आचार्यश्रीए
* हालमा ते भदेसर ( वसही ) कहेंवाय छे.
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( १८७ )
पण पोताना महाकवि शिष्य अमरसागरसूरिजीने चरित्र रचवा माटे आदेश कर्यो. अने तेथी ते महाकवि श्रीअम - रसागरसूरिजीए विक्रम संवत १६९१ना श्रावण सुद सातमने दिवसे श्री वर्धमानपद्म सिंहचरित्र नामनो संस्कृत काव्यबद्ध ग्रंथ रचीने संपूर्ण कर्यो. ते चारित्रनो भावार्थ लेइने आ सर्व वृत्तांत* छापी प्रसिद्ध कर्यो छे. ते माटे ते चरित्रने अंते श्री अमरसागरसूरि लखे छे के
तनुजो वर्धमानस्य | जगडुः सर्व तोलघुः || औदार्य गांभीर्यानेकगुणमंडितः ॥ १ ॥ आहयामास सूरींद्रान् । वृद्धान् कल्याणसागरान् ॥ भुजोरुनगरे भक्त्या । महोत्सवपुरस्सरं ||२॥ युग्मं ॥ चक्रे तेन महाभक्ति - गुरूणां विनयोज्ज्वला ॥ गुरुभिर्गदितं तस्य । पितुर्वृत्तं समं ततः ॥ ३ ॥ तत् श्रुत्वा जगस्तूर्ण-ममंदं मुदमुद्वहन् || पितृपितृव्य सद्भक्ति - परः कीर्त्यभिलाषुकः ॥ ४ ॥
* अमारा तरफथी प्रथम छपाइ बहार पडेल श्रीविजयानंदाभ्युदय महाकाव्यमा शेठ वर्धमानशाहनुं जे संक्षिप्त वृत्तांत लखेलुं छे, ते दंतकथाने आधारे लखायेलुं छे, परंतु त्यारबाद तेमनुं संस्कृत चरित्र मळवाथी आ वृत्तांत ते चरित्रनो सार लेइ संक्षेपथी आपेलुं छे.
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(१८८) प्रार्थयामास सूरींद्रान् । श्रीमत्कल्याणसागरान् । चरित्ररचनायैष । एतयोभव्यबोधये ॥ ५॥ युग्मं ॥ सूरयोऽप्यथ संतुष्टा-स्तस्य वांछाप्रपूर्तये ॥ जगडोर्गुरुतातोरु-भक्तिं च प्रविलोक्य ते ॥६॥ आदिशन्नमरसागरं कविं ।
तचरित्ररचनाय सादरं ॥ स्वीयपट्टकवरोदयाचले।
भास्वरातिभरोरुभास्करं ॥ ७॥युग्मं ॥ एवं प्रेरणयैष तस्य जगडोग्रंथोऽथ संवत्सरे । एकांकर्तुशशांकसंपरिमिते ह्यादेशतः सूरितः ॥ शुक्ले श्रावणसप्तमीशुभदिने सूरीश्वरैर्भावतः । श्रीमद्भिरमराग्रसागरवरैः संपूर्णता प्रापितः ॥ ८ ॥
औदार्य च निरीक्ष्य यस्य जगडोरर्थिवजप्रीणनं । दुष्कालोद्धरणप्रसिद्धजगडोः पूर्वश्रुतस्थाथ तत् ॥ नामापीह जगजनस्मृतिपथं नागादतीव श्रुतं ।। जीयादेष जनप्रियश्च जगडः श्रीवर्धमानांगजः ॥ ९ ॥ लालणाधोशगोत्रिणां । सर्वेषां सुखकारकं ।। धनदं अपरं चैनं । जगहुँ जगदुर्बुधाः ॥ १० ॥
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(१८९) न च कोऽपि गतो ह्यर्थी । दूनस्तस्य गृहांगणात् ।। जगडोर्मोजनादीनां । दानं च ददतोऽनिशं ॥ ११ ॥ जगडोरस्य कीर्तिश्च । विस्तृता भारतेऽखिले ॥ चारणः कविभिर्गीय-माना नित्यं पदे पदे ॥ १२ ॥ जगडुगडुरेव । वर्धमानांगसंभवः ॥ अपरो धनदो जीयात् । सर्वदाकविभिः स्तुतः ॥१३॥ तस्य गेहांगणं नित्य-मर्थिसार्थसमाकुलं । विलोक्य जगडोळ । जगडो श्रीनिकेतनं ॥१४॥
विक्रमना अढारमा सैकामां कच्छ मांडवीमा आ जगडशाहना पुत्र गोधाशाहना पुत्र बलमजीशाह महाभाग्यशाली पुरुष थया, तथा तेओ कच्छना राजाना का. रभारी हता. तेमना पुत्र नेमिदास एक प्रतापी पुरुष थया छे, अने तेथी मांडवी पासेना गुंदीयारी गाममा ते. मनी देरी करेली छे, अने तेमा तेमनी घोडेस्वार थयेली मूर्ति स्थापन करी छे, अने तेमना वंशजो त्यां जड वरकन्याथी छेडाछेडी छोडे छे. वळी आ जगडुशाहना वंशमां नवानगरमा थयेला शेठ जेठाशाह तथा तेमना पुत्र शामजीशाह भाग्यशाली पुरुषो थया छे, तथा तेओए
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(१९०) घणां घां धार्मिक कार्यो करेला छे. ते शामजीशाहनां धर्मपत्नी वीरुबाइ एक महासती तरिके प्रसिद्ध थयेला छ. तेमनो जन्म कच्छ अंजारना एक प्रसिद्ध अने धनवान गृहस्थ शेठ वेणीदास उकेडाने घेर थयो हतो. तेमनुं सगपण शामजीशाह साथे थयाबाद शामजीशाह कोइ पूर्वकर्मना संयोगथी बन्ने आँखे अपंग थया हता. तेथी वीरुबाइना मातापिताए पोतानी ते पुत्रीतुं थयेलु सागपण तोडाववानो विचार कर्यो, परंतु ते महासती वीरू. बाइए पोताना ते अपंग पतिसाथेज लग्न करवानी प्रतिज्ञा करी, जेथी छेवटे तेमनां शामजीशाह साथेज लग्न करवामा आव्यों, ते सती सरखां वीरूबाइ महाभाग्यशाली थयां छे. तथा तेमना पुत्र हंसराजभाइ जैनशास्त्रोना तत्वज्ञानी तरीके प्रसिद्ध थयेला हालमा नवानगरमा (जामनगरमा) विद्यमान छे. तेमना पुत्र पंडित श्रावक हीरालाले आ पुस्तक जन समुदायनाहित माटे संग्रह करी छापी पसिद्ध कयु छे. ॥ श्रीरस्तु॥ ॥ समाप्तं चेदं पुस्तकं गुरुश्रीमत्
चारित्रविजयसुप्रसादात् ।।
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(१९१) सूचना.
300राणायामराRRISEDIES
आ पुस्तकमा जणावेला दरेक गोत्रना आंबाओ तेना पूरता ग्राहको थयेथी बहार पाडवामां आवशे. दरेक गोत्रना एक एक आंबानी
अगाउथी किंमत रु. ३) पाछलथी किंमत रु. ४)
ली. प्रसिद्ध कर्ता पंडित हीरालाल हंसराज लालन
(जामनगरवाला) जामनगर. (काठीयावाड)
साहित्य
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जुर्नु अने जाणीतुं श्री जैननास्करोदय प्रिन्टिंग प्रेस. (छापखानु) दि अमारा छापखानामांदरेक जातनुं छापवानुं संस्कृत, मराठी, इंग्लीश, तथा बुकवर्क, कार्ड, कंकोत्री, हेन्डबील, पहोंचबुक, आंकडाबुक विगेरे छापखानाने लगतुं तमाम काम सारूं सफाइदार मुदतसर अने किफायतथी करी आपवामां आवे छे. स्थानिक तेमज बहारगामना काम उपर पुरतुं लक्ष आपवामां आवे छे. दरेक जातना कागलो पण स्टोका राखवामा आवे छे. ___ प्रुफ पण अमे पोते वांचीए छीए तेथी छपावनारने वधु सगवड छे, एक बखत काम करावी खात्री करवा भलामण करवामां आवे छे, मेनेजर. / For Private And Personal Use Only