Book Title: Jain Gotra Sangraha
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 217
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ भद्रावती नगरी कच्छ देशनु एक महोटुं बंदर हतुं, अने तेथी चीन, मलबार आदिक देशोमाथी त्यां धां वहाणो आवजा करतां हता, अने रेशम, साकर, सोपारी एलची आदिक वस्तुओनो त्यो बहोळो व्यापार चालतो हतो. ते जोइ पासिंहे पोताना वडिलबंधु वर्धमानशाहने का के, जो आपनी आज्ञा होय तो हुँ अहाँथी अनाजआदिक वहाणमां भरी व्यापार माटे चीन जाउं. एवी रीते व्यापार माटे तेने उत्साहित जोइने वर्धमानशाहे पण तेम करवानी तेने सम्मति आपी. पछी ते एक महोटा वहाणमां अनाजआदिक अर्थ लाख कोरीनी किमतनो माल भरी त्यांथी चीनतरफ रवाना थया, अने कुशलक्षेमे चीनना कंतान नामना बंदरमा उता. अहीं भद्रावतीमां वर्धमानशाहे पण एक वहाण ख. रीदीने मलबारआदिक देशोसाथै अनेक जातना करीयाणाओनो व्यापार करवा मांड्यो, तेमज तेमणे भद्रावतीना समुद्र किनारापर एक कोठार बंधाव्यो. तेमनी उत्तम प्रकारनी नीति जोइने मलबारआदिकना घणा व्यापारीओ हकशीथी वेचवामाटे तेमनापर सोपारी, एलची, मरी, चंदनआदिक घणो माल मोकलवा लाग्या, तथा For Private And Personal Use Only

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