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( १६७ )
किमतनो माल बेचवामाटे भद्रावतीमां वहाणो मारफते मोकली आप्यो, अने तेनी हकशीथी ते बन्ने भाइओ पासे लाखो गमे द्रव्य थयुं.
एवामी श्री अंबलगच्छाधीश श्रीकल्याणसागरसूरि विहार करताथका भद्रावतीमां पधार्या, त्यारे आ बने भाइओए घणा महोत्सव पूर्वक तेमनो नगरमा प्रवेश कराव्यो, आचार्यश्रीए पण उपाश्रयमां पधारी श्रोताजनोनी सभामा श्रीशत्रुंजय तीर्थना अनुपम माहात्म्यनो उपदेश कर्यो. ते सांभळी ते बन्ने भाइ भए शत्रुंजय तीर्थनो संघ कहाडी यात्रा करवानो मनोरथ कर्यो, तथा पोतानो ते मनोरथ आचार्यश्रीने निवेदन कर्यो. आचार्यश्रीर पण अनुमोदन आपी वर्धमानशाहना मस्तकपर संघपतिपणानो वासक्षेप नाख्यो. पछी पोताना वडिल बंधुनी आज्ञाथी पद्मसिंहशाहे उभा यह सर्व संघने तीर्थाधिराजनी यात्रा माटे आववाने निमंत्रण कर्यु, तथा कयुं के मार्गमां वाहन, तथा भोजन आदिक सर्व खर्च सर्व यात्राळओने अमारा तरफथी मळशे. आचार्य श्रीकल्याणसागरसूरिजीने पण परिवारसहित संघसाथै पधारवामाटे विनंति करी क के, अमो अहींथी वहाणोमारफते नागनावंदरे जइभुं,
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