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( १५८ ) तथा मनोहर एवं कमलासन लक्ष्मीदेवीनुं स्वरूप कर्यु. त्यारे लालणे पण भयरहित थइ तेमनी स्तुति करी, अने मागणी करी के हवेधी तमो मारा वंशजोनी कुलदेवी थजो, तथा मारा वंशजोने सर्व प्रकारनो वैभव आपवामां सहाय करजो, देवीए कहूं के, हे वत्स ! प्रथम तुं मारी भयंकर स्वरूपथी डरीने त्रण पगलां पाछळ हठी गयो, तेथी हुं तारा- वंशजोमां त्रीजी पहेडीए लक्ष्मीरूपे सहाय करीश, तथा मारूं आराधन करनारने हुं तुष्टमान थइश, तथा तारा वंशजोनी शाखाओ आंबाना हनीपेठे विस्तार पामशे. एटलुं कही ते देवी अदृश्य थयां एवी रीते विक्रम संवत १२२९मा लालणे लक्ष्मीदेवीनं ( अंबाइमातानुं ) स्वरूप धारण करनारी एवी ते कहाकाली देवीने पोतानी गोत्रजा तरीके स्थापी, अने त्यारथी तेना वंशजो "लालण" नामथी प्रसिद्ध थया. एवी रीते आ लालण वंशना स्थापनारा ते लाल शेठ श्रीजयसिंहसूरिना उपदेशथी बार व्रतधारी शुद्ध श्रावक थया.
मूल रजपुत वखतनी गोत्रजा सचावदेवीतुं स्थान झालोरमां छे. तथा बीजुं स्थान भिन्नपाल नगरमा खीमजा डुंगरीपर गाजणाटुंके छे.
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