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इस प्रकार इन सुभाषितों में बड़ा ही स्पष्ट और सुन्दर जीवन-दर्शन झलक रहा है जो मानव को पद-पद पर कर्तव्य एवं सदाचार की प्रेरणा देता हुआ जीवन को विकास की ओर मोड़ता है।
इस लोकोपयोगी संग्रह के लिए मैं विद्वान् संकलनकर्ता एवं संपादक मुनिजी को हार्दिक बधाई देता हूं और आशा करता हूं कि प्रत्येक आत्मार्थी, जीवन-शोधक इस पुस्तक को पढ़ेगा और इन शिक्षाओं से लाभान्वित होगा।
७/८ दरियागंज
दिल्ली
२६ अप्रैल १९७३
-यशपाल जैन