Book Title: Jain Dharm Sar Sandesh
Author(s): Kashinath Upadhyay
Publisher: Radhaswami Satsang Byas

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Page 12
________________ प्रकाशक की ओर से संसार के सभी जीव सुख प्राप्त करना चाहते हैं। पर सभी किसी न किसी प्रकार न्यूनाधिक रूप में दुःखी ही दिखाई पड़ते हैं। इसका कारण यह है कि बहुत-से लोग गम्भीरता और गहराई से इस विषय पर विचार नहीं करते कि सच्चा सुख किसे कहते हैं और उसकी प्राप्ति कैसे हो सकती है। संसार के अनेकानेक जीवों में मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि उसे विवेक की शक्ति प्राप्त है जिसका सदुपयोग कर वह सच्चे सुख के सम्बन्ध में गहराई से विचार कर सकता है और उचित साधन को अपनाकर सच्चे सुख और शान्ति की प्राप्ति कर सकता है। पर आजकल के व्यस्त संसारी जीवन में अधिकांश मनुष्य अपने विवेक को भुलाकर मन और इन्द्रियों के प्रभाव में बाहरी विषयों में सुख ढूँढ़ने की कोशिश करते हैं। पर ऐसा करने से उन्हें सदा असन्तोष, अशान्ति और निराशा ही हाथ लगती है। ___भारत के कुछ प्राचीन महापुरुषों ने बाहर भटकनेवाले मन तथा इन्द्रियों को वश में करके अपने मनोविकारों पर विजय प्राप्त की। इन विजेताओं को ही 'जिन' कहते हैं। ऐसे 'जिन' या महान् संयमी महापुरुषों ने आत्मसाधना द्वारा अपने सच्चे स्वरूप को पहचाना और सच्चे सुख और शान्ति की प्राप्ति की। 'जिन' के अनुयायियों को ही 'जैन' कहा जाता है। जैन-परम्परा के अनुसार अनादि काल से ही उच्चकोटि के महात्मा, 'जिन' पुरुष या मुनिजन संसार में जीवों के कल्याण के लिए आते रहे हैं। इस प्रकार जैन धर्म को भारत का एक अत्यन्त प्राचीन धर्म माना जाता है। प्रस्तुत पुस्तक में इसी जैन धर्म के मूल विचारों को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। जैन धर्म के अनुसार आत्मा अचेतन पदार्थों से बिल्कुल भिन्न एक चेतन, नित्य और अविनाशी तत्त्व है जो अनन्त सुखों का भण्डार है। जैन धर्म इसी अमर आत्मतत्त्व को पहचानने का उपदेश देता है। जो भाग्यशाली जीव आत्मा की पहचान कर लेता है, वह परमात्मा बन जाता है। 11

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