Book Title: Jain Dharm Prakash 1965 Pustak 081 Ank 02
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीन धर्म प्राश :: वर्ष ८१ भु: : पार्षद वा ५-२५ __ अनुक्रमणिका ૧ શ્રી પંચપરમેષ્ઠીની સ્તુતિ (भुनिमय द्रविय) १३ ૨ જૈન ધરમ પ્રકાશ જય પામે (भनमोहनवियल) १३ 3 श्री पद्धभान-महावीर : भीमान-सेमांड: 3 (स्व. भौति) ४ ૪ આશાની શૃંખલા .... ('साहित्यय'मासस्य वीरा) १८ ५ षायो समधी साहित्य सजाया .... (प्रो. डीरामास २. अपडिया सम.स.) २१ ६ उपाध्याय विमलहर्षभास .... (अगरचंद नाहटा) टा. 3 ( 2 पे ४ था ५३) सवे वाचक मांहि तिलक समोवड, जस महिमा जगि सोहिजी । श्री विमलहर्ष गुरू मोहन मूरति, दीठइ सुरनर मोहिजी ॥ १॥ श्री वि० मालव देस मनोहर दीसई, तीहां नयर दे वास ते दीपइजी । पुन्यवत लोक वसि तिहां बोहोला, रीधह सुर परि जीपइजी । २। श्री वि० तीहां दीपचन्द शाह अमर सम जाणन, तस धरणी सोभागदे नारिजी। पुरुष रपण तेणीय जाउ, सुन्दर कल सणगारजी ॥ ३॥ श्री बि० दासूनाम तब हरषइ दीधुं, वरत्यो जइजइकारजी । सुजन कुटंब सह आणंद प्राम्या, धवलमंगल गाइ.नारिजी ॥४॥ श्री वि० जोबन वि कुमर जब प्राम्यो, न रचइ रमणी संगजी । श्री विजयदान सूरीसर पासि, संजम लेइ मन रंगिजी ॥ ५॥ श्री वि० व्याकर्ण वेदः कुरांण पुरांण, आगम- अर्थनो, जाणजी। ज्योग्य जाणी गुरू हीरजीय आप्यु, वाचक पद परमाणजी ॥ ६॥ श्री वि० देस वदेस वीहार करइ प्रभू, वूझवह जांण अजाणजी। भूला भवि जिन मारगि आणि, सरि वहइ जिननी आणिजी ।। ७ ।। श्री वि० सीयलि थूलभद्र समोवडि कहीय, लबधि गौतम तो लइजी । श्री विमलहर्ष उवझाय अनोपम, नरनारी गुण बोलइजी ॥ ८ ॥ श्री वि. गोयम सोहम जंबू समोवड़, विद्याविरः कुमारजी । धनो सालिभद्र मेघमुनि परि, जागि पूरब साध अणसारिजी ॥ ९॥ श्री वि० साह दोपचंद कुल दीपक दीयो, जीवो कोड़ि वरीसजी । सीष्य प्रेगविजय करकमलज जोड़ी, हरषइ देइ आसीसजी । श्री विमलहर्ष गुरू मोहन मूरति, दीठइ सरनर मोहाइजी ॥१०॥ श्री वि० जा। For Private And Personal Use Only

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