Book Title: Jain Dharm Prakash 1965 Pustak 081 Ank 02
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपाध्याय विमलहर्षभास ले. : श्री अगरचंद नाहटा जैन इतिहास के अनेक साधन यत्र-तत्र में तो आवश्यक जानकारी मिल जाती है पर बिखरे पडे है। कुछ वर्ष पूर्व उन इतिहासिक उन आचार्यों के शिष्यः तथा उनके आज्ञासाधनों को संग्रहीत करके. प्रकाशित करने का नुयायी हजारों साधु, श्रावक, श्राविकाएं हो अच्छा प्रयत्न हुआ था पर इधर कई वर्षों से गयी हैं। उनके संबंध में आवश्यक जानकारी उस प्रयत्न में बहुत बड़ी कमियां आ गई हैं भी नहीं मिल पाती। बहुत से विद्वान् और इसके २ प्रधान कारण है एक तो जो ऐति-- प्रभावशाली मुनि कहां, किस कुल में, कब हासिक रास संग्रह ग्रन्थ प्रकाशित हुये वे ठीक. जन्मे, कब किसके पास दीक्षित हुए, उन्होंने से बिके नहीं इसलिये ऐसे ग्रन्थों का प्रकाशन क्या क्या काम किये; गणि, वाचक, पाठक,. रुक गया दूसरा बिखरे हुये साधनों को इकट्ठा आदि पद कब कहां व किससे मिले:?: और करना और उन्हें सुसम्पादित करके टिप्पणियों उनका स्वर्गवास कब एवं कहां पर हुआ? व विवेचन के साथ प्रकाशित करना बहुत इत्यादि जरूरी बातें प्रयत्न करने पर भी प्राप्त श्रम-साध्य कार्य है। नाम के लिये तो मुनि नहीं होती। किसी किसी मुनि या साध्वी के दर्शनविजयजी आदि के 'जैन परंपरानो इतिहास संबंध में छोटे-मोटे गीत उनके शिष्यादि रचित जैसे ग्रन्थ इन वर्षों में प्रकाशित हुये हैं पर मिल जाते हैं. उनसे महत्त्व की बातें ज्ञात इन में बहुत भूल-श्रान्तियां हैं और सुव्य- हो जाती है। इस लिये ऐसे ऐतिहासिक वस्थित रूप में ठीक-से लिखे मी नहीं गये। गीतों का संग्रह किया जाना अत्यावश्यक है। जैन ऐतिहामिक साधनों में विविध गच्छों यहां ऐसे ही एक गीत जिसका नाम की पट्टावलियां, ऐतिहासिक काव्य, राम, गीत, उपाध्याय विमल इर्ष भास है, यहां प्रकाशित तीर्थमालायें, प्रशस्तियां आदि उल्लेखनीय है। किया जा रहा है। १० पद्यों के इस गीत पट्टावलियों द्वारा बहुत से जैनाचार्यों के संबंध की रचना विमल हर्ष के शिष्य प्रेमविजयने (पायो संधी साहित्य : पे०४ २४ था श३) (e) श, (१०) अज्ञान, (११) विध्या, (१२) अहियानां नाम छ, ३२ पार ४१ अभियारमा पूरता: उतूद अने (13) विश्य. જ છે, કેમ કે અહીં “અત્યાક્ષેપકીને ઉલેખ છે. આ પૈકી દંભ અને ક્રોધ અત્રે પ્રસ્તુત છે. એને ક્રોધીને અંગે એ વાત દર્શાવાઈ છે કે મને ગુર અંગે નીચે મુજબ લખાણ છે – ધર્મલાભ કહેતા નથી, જ્યારે વીરવિમલે આ વાતને “यो त अहियो, નિર્દેશ અભિમાનીને અંગે કર્યો છે. અભિમાની બીજા नसहे विनयस्वाद रे.-२" બધાને તુચ્છ ગણે છે એમ અહીં કહ્યું છે. “ोष ते अहिया पायमी, અઢાર પાપસ્થાનકની તેમ જ તેર કાઠિયાઓની शस हे समजाय-२." આ ઉપરાંતની સજઝાયો હોય તો તે જણાવવા (૨૦) તેર કાઠિયાની સઝાય–આ વાચક, તજ કૃપા કરે. અહીં અપાયેલી દસે આનુષંગિક કુશળસાગરના શિષ્ય ઉત્તમ(સાગર)ની સોળ કડીની રચનાઓ કમળાબહેને છપાવેલી “શ્રી સજઝાયમાળા” રચના છે. એમાં વીરવિમલની જેમ જ અગિયાર માં છે. આ રચનાઓમાં આઠ સજઝાય પ્રસ્તુત છે. For Private And Personal Use Only

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