Book Title: Jain Dharm Prakash 1950 Pustak 066 Ank 02 Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org { બ્લેક “ શ્રી જૈન આત્માનંદ સભા”ના સૌજન્યથી ] पंजाबकशरी शासनप्रभावक आचार्यश्री विजयवल्लभसूरिजी महाराज स्नेहाञ्जली Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस अनन्त संज्ञक आकाश की विशाल गोद में अनन्त ज्योतिपुञ्ज खेल - कूदे और उसी अनन्त में विलीन हो गये। उन ज्योति-पुञ्जो में कुछ शुक्र के समान तेजस्वी; सुधा-सिन्धु के समान सौम्य; आदित्य के समान ओजस्वी और बृहस्पति के समान प्रतिभासम्पन्न थे । कुछ धूम्रकेतु, मंगल, शनि के समान अनिष्टकारक भी थे। ये सब के सब अपनी अपनी प्रकृति का परिचय देकर शान्त हो गये । प्रकृष्ट तेजपुञ्जो में श्री गुरु गौतम जैसे गुरुभक्त; आत्मलब्धिसम्पन्न श्री गुरु जम्बू जैसे त्यागी बडभागी भगवन् स्थूलभद्र जैसे रेखा -पुरुष, आर्य सुहस्ती जैसे प्रभावक (he) f0. For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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