________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
देवर्द्धि और स्कन्दिल जैसे ज्ञानोपासक और हेमचन्द्र, हीरमरि जैसे राज
गुरु और जगद्गुरु जैसे भी उदित होकर अपना अपना प्रकाश फैलाकर a अनन्त की गोद में सदा के लिए सो गये।
आज एक ऐसे ही ज्योतिधर को हम स्नेहाञ्जली से तृप्त कर रहे हैं। जो कि युग में धीर-वीर और गंभीर थे। नाम जिनका विश्वविख्यात मरिसम्राट् विजयनेमिसूरि था। हमारे वो सच्चे हृदयंगम हृदय के हार
थे । जैन जाति के सच्चे शृंगार थे । उनका अवतार भूमिभार को हल्का ( करने के लिए था । उन्होंने वो काम कर बतलाए जो कि अशक्य तो
नही अपितु सामान्य व्यक्तियों के लिए दुशक्य थे। उनकी तीर्थभक्ति, उनकी शासनदाझ, उनका प्रखर प्रताप और विशुद्ध चारित्र असंख्य ऋषि मुनियो के लिए अनुकरणीय था। जब से राजनगर के विशालांगन में मुनिराजों का एकत्री-भाव हुआ तब से हमारे और उनके हृदयक्षेत्रों में
स्नेह-वल्लियां ऐसी अंकुरित हुई कि जो दिनप्रतिदिन बढती हो गई। ॐ और अंत तक मिष्ट फल देती रही। आज वह उच्चात्मा संसार से उठ
गया। जिनकी गुण गाथाएं भारत के भक्तजन प्रत्येक ग्राम नगर में गा रहे हैं । उनका संसार से प्रस्थान करना मानों जैन समाज का एक प्रतापपुञ्ज का बिखरना है। उनके स्वर्गस्थ होने से हमारे आत्मा में जो समवेदना हो रही है उसे हम किन शब्दों में व्यक्त करें ? शासनदेव ऐसे प्रभाविक उद्योतक शासनभक्तों को इस भूमिमंडल में पुनः पुनः अवतीर्ण करें, यही हमारी अन्तरंग अभ्यर्थना है। हमारा उनका यह असह्य वियोग पुनः भवान्तर में संयोगरूप से परिणित होकर हमारे सन्तप्त हुदयों को शान्तिप्रद हो; यह हमारी मनोकामना है। कार्तिकशुदि १०] विजयवल्लभसूरिः सादडी ( मारवाड )
પૂજ્યપાદુ મહારાજશ્રીનો મને જે પરિચય થયો છે, તે અંગે હું લેખ આપી દોરવણી આપી શકે તેમ મને લાગતું નથી. આટલું હું જાણું છું કે, તેમાં એક ચુસ્ત ધર્માનુરાગી તપસ્વી અને તત્વજ્ઞ હતા. વ્યવહાર છોડ છતાં વ્યવહારિક રીતે ઉદ્ભવતા
પ્રશ્નોને સુંદર તોડ કાઢી શકતા, સંગઠન સાધી શકતા, અને બીજાને શાસક તરીકે & પૂજયભાવ ઉત્પન્ન કરી દોરી શકતા. અત્યારની પ્રવૃત્તિમાં એમને રસ નહોતો. અમારે મહુવાના ભાવી ઇતિહાસમાં મહાન ધર્મગુરુ તરીકે તેમનું સ્થાન અમર છે.
free मानहास- , मछुपा
For Private And Personal Use Only