Book Title: Jain Darshan
Author(s): Tilakvijay
Publisher: Tilakvijay

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Page 6
________________ प्राकथन . . . . मुझे यह पूर्ण विश्वास है कि जो महाशय जैन दर्शन सम्बन्धी अनभिज्ञतवाके कारण उस परं आक्रमण करनेके लिये उत्सुक हो जाते हैं उन्हें इस दानिक ग्रन्थके पढनेसे विशेष लाभ होगा। मूल ग्रन्थ और ग्रन्थकर्ताकी उत्तम योग्यताके विषयमें उपोद्घातमें विनीत श्रीयुत लक्ष्मण रघुनाथ भिडेजीने अच्छी तरह उल्लेख किया है अत: उस विषयमें मुझे कुछ लिखने की आवश्यकता नहीं रही। - इस ग्रन्थका हिन्दि अनुवाद मैंने पंडित श्रीयुत वेचरदासजी जीवराजकृत गौर्जर भाषान्तर परसे पंडित श्रीयुत सुखलालजीकी प्रेरणासे किया है । अतः जिनकी प्रेरणासे यह कार्य निर्विघ्नतया परिपूर्ण हुआ है उन्हें मैं अन्तःकरणपूर्वक धन्यवाद दिये विना नहीं रह सकता। ___ इस ग्रन्थकी सवासो सवासो प्रतियां छपानेकी आर्थिक सहायता कालंदरी निवासी श्रीयुत हीराचंदजी रघुनाथमलजी बाणा परमार तथा श्रीयुत मूलचंदजी वेलाजीकी तरफसे एवं ढाईसो प्रतियां छपानेकी सहाय कोल्हापुर निवासी श्रीयुत शेठ चेलाजी वनाजी की ओरसे मिली है, अतः इस शुभ कार्यमें द्रव्य खर्चनेके कारण उन महानुभावोंको भी धन्यवाद दिया जाता है विनीत तिलक विजय.

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