Book Title: Jain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 8
________________ प्राक्कथन है । जब इस प्रकारको स्थिति प्राप्त होती है तब देवतत्त्वका सहज अनुभव हृदय में आता है । इसमें सन्देह नहीं ? हिन्दू, बौद्ध, जैन सभी धर्मोंने भक्तिपदको स्वीकार किया है। यह एक प्राचीन साधना-मार्ग रहा है । अतएव जैन दृष्टिकोणसे इसके विषयमें यहां जिस सामग्रीका संकलन किया गया है, वह उपादेय और ज्ञानवर्धक है। काशी विश्वविद्यालय ११ फरवरी १९६३ -वासुदेवशरण अग्रवाल

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