Book Title: Jain Bauddh aur Gita ka Sadhna Marg
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 11
________________ मनुष्य चेतना वामना विवेक भोग विराग अभ्युदय (प्रेय) निःश्रेयस् स्वर्ग मोक्ष (निर्वाण) कम संन्यास प्रवृत्ति प्रवर्तक धर्म निवृत्ति निवर्तक धर्म आत्मोपलब्धि अलौकिक शक्तियों की उपासना समर्पणमूलक यज्ञमूलक चिन्तन प्रधान देहदण्डनमूलक भक्ति-मार्ग कर्म-मार्ग ज्ञान-मार्ग तप-मार्ग निवर्तक एवं प्रवर्तक धर्मों के दार्शनिक एवं सांस्कृतिक प्रदेय प्रवर्तक और निवर्तक धर्मों का विकाम भिन्न-भिन्न मनोवैज्ञानिक आधारों पर हुमा था, अतः यह स्वाभाविक था कि उनके दार्शनिक एवं सांस्कृतिक प्रदेय भिन्न-भिन्न हों। प्रवर्तक एवं निवर्तक धर्मो के इन प्रदेयों और उनके आधार पर उनमे रही हुई पारस्परिक भिन्नता को निम्न सारिणी से स्पष्टतया समझा जा सकता हैप्रवर्तक धर्म निवर्तक धर्म (दार्शनिक प्रदेय) (दार्शनिक प्रदेय) (१) जैविक मूल्यों को प्रधानता। (१) आध्यात्मिक मूल्यों की प्रधानता । (२) विधायक जीवन दृष्टि । (२) निषेधक जीवन-दृष्टि । (३) समष्टिवादी। (३) व्यष्टिवादी। (४) व्यवहार में कर्म पर बल फिर भी (४) व्यवहार मे नैष्कर्म्यता का समर्थन भाग्यवाद एवं नियतिवाद का फिर भी दृष्टि पुरुषार्थवादी । समर्थन ।

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