Book Title: Jain Balpothi Author(s): Harilal Jain Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust View full book textPage 8
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates * प्रकाशकीय निवेदन * आठ-दस वर्षके बालक भी रुचि पुर्वक तत्त्वज्ञानका अभ्यास कर सकें इस हेतुसे यह "जैन बालपोथी " तैयार की गई है। बालकोंका अभ्यास करने में मन लगे ऐसे ढ़ग से इसमें छोटे-छोटे पाठों द्वारा निम्नलिखित विषयों का संकलन किया गया है -- जीव-अजीव, द्रव्य-गुण-पर्याय, धर्म, देव-गुरु-शास्त्र, पंचपरमेष्ठी, सम्यग्दर्शन-ज्ञान -चारित्र, शिकार-त्याग, जैनधर्म, मुक्त और संसारी, जीव और कर्म, भगवान महावीरका जीवनचरित्र, देवदर्शन, हिंसादि पापोंके त्यागका उपदेश, क्रोधादिके तयागका उपदेश, कीर्तन-संचय, देव-गुरु-शास्त्रको वन्दन, आत्मदेवका वर्णन और वैराग्य-भावनायें आदि। इसके अतिरिक्त प्रत्येक पाठ में विषय के अनुसार चित्र भी दिये हैं। ध्यान रहे कि -- यह चित्र केवल दृष्टान्त रूप हैं, बालकों को पाठ का अभ्यास करने में सुगमता हो और उनका मन लगे -- इसलिये यह चित्र दिये गये हैं। इस बालपोथी के पाठ बालकों को केवल कण्ठस्थ कराने के लिये ही नहीं है, किन्तु । बालकों को प्रत्येक पाठ का भाव समझाकर उसका अभ्यास कराना चाहिये ओर चित्रों के द्वारा विस्तारपूर्वक समझाना चाहिये। कीर्तन, देवदर्शन आदि पाठों को वाद्यों के साथ क्रियात्मक रूप में सिखाना चाहिये। यदि प्रत्येक माता अपने बच्चे को वीर प्रभु की संतान बनाने के लिये झुले में ही उसके कानों में इन वीर-मन्त्रों को सुनाये और दूध के चूंट के साथ-साथ तत्त्व प्रेमका चूंट भी पिलाये तो बालक को प्रारम्भ से ही धर्म रस का स्वाद आने लगे और इसका जीवन धर्म-मय बन जाये। यदि एक बार बालक इस तत्त्वज्ञान में रस लेने लग जायेगा, तो फिर जैसे उससे खाये बिना नहीं रहा जाता वैसे ही धर्म-रसके बिना उसे चैन नहीं पड़ेगा और वह अपने आप रुचिपूर्वक उसका अभ्यास करने लगेगा। अतः सभी जैन बालकों को इस बालपोथी का अभ्यास अवश्य करना चाहिये। यह बालपोथी, जैन समाज में सर्वत्र इतनी अधिक प्रचलित है कि, हिन्दी-गुजरातीमराठी-कन्नड-अंग्रेजी ऐसी पाँच भाषा में इसकी कुल ३० आवतियों के द्वारा १,४६००० प्रतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं, जो कि हमारे जैन साहित्य के लिये गौरव की बात है। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.comPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48