Book Title: Jain Balpothi
Author(s): Harilal Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 27
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates (१५. सम्यक्चारित्र) Himuh BETER SH प NAN RESS N ( FAya HATY p://www.jainism.free-online.co.ukese UAL सम्यक्चारित्र अर्थात् सच्चा आचरण ! आत्मा को पहचान कर उसमें रहना सो सम्यक्चारित्र है । जो आत्मा को पहचाने उसके ही सच्चा चारित्र होता है । जो आत्मा को नहीं पहचाने उसके सच्चा चारित्र नहीं होता। सम्यक्चारित्र सम-भाव है । सम्यक्चारित्र शान्ति है । सम्यक्चारित्र धर्म है। जिसके सम्यक्चारित्र हो उसे मुनि कहा जाता है । सम्यक्चारित्र से शीघ्र मोक्ष होता है । पहले सम्यकदर्शन और सम्यग्ज्ञान , पीछे सम्यक्चारित्र। सम्यकदर्शन,सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र,तीनों मिलकर मोक्षका मार्ग है, और किसी तरह से भी मोक्ष नहीं होता । बालकों ! तुम भी आत्मा की पहचान करके सम्यक्चारित्रकी भावना करो। ܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙܙ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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