Book Title: Jain Balpothi
Author(s): Harilal Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 25
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates (१३० सम्यग्दर्शन = मैं यही हूँ , सार __सम्यग्दृष्टि बालक चैतन्यस्वभाव आतमा http://www.Atmabharma.com सम्यग्दर्शन अर्थात् सच्ची श्रद्धा । सच्ची श्रद्धा अर्थात् आत्माका विश्वास। अपना आत्मा पूरा है, अपना आत्मा भगवान है । अपने आत्माका विश्वास करे तो सम्यग्दर्शन होवे । सम्यग्दर्शन हो तो अवश्य मोक्ष हो । सम्यग्दर्शन धर्म का मूल है । सम्यग्दर्शन प्रत्येक जीव के लिये बहुत आवश्यक है । सम्यग्दर्शन के बिना ही जीव संसार में भटकता है । सम्यग्दर्शन के बिना कभी भी धर्म नहीं होता । आत्मा की सच्ची श्रद्धा ही सबसे पहला धर्म है । आत्मा की झूठी श्रद्धा ही सबसे बड़ा पाप है । सबसे पहले क्या करोगे ? 'सम्यग्दर्शन का अभ्यास ।' TimiluuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuuN Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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