Book Title: Jain Balpothi
Author(s): Harilal Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 30
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates (१८. मुक्त और संसारी) मुक्त संसारी N 044 का નારી છે અરેહતો । जीव दो तरह के हैं---एक मुक्त और दूसरे संसारी । मुक्त जीव शुद्ध हैं, संसारी जीव अशुद्ध हैं । मुक्त जीव मोक्षमें रहते हैं, वे पूरे सुखी हैं । उनके राग-द्वेष नहीं होते, उनके जन्म-मरण नहीं होते । वे कभी संसारमें नहीं आते, वे दूसरोंका कुछ नहीं करते । सिद्ध भगवान मुक्त जीव हैं । अरिहंत भगवान भी जीवनमुक्त हैं । संसारी जीवों को जन्म-मरण होते हैं । स्वर्ग के जीव संसारी हैं, नरक के जीव संसारी हैं । तिर्यंच के जीव संसारी हैं, मनुष्य के जीव भी संसारी हैं । संसारी जीव दुःखी हैं; मुक्त जीव सुखी हैं । आत्मा को न पहिचाने तब तक जीव संसार में रुलता है । यदि आत्मा को पहिचाने तो अवश्य मुक्ति पाता है। . . . .. . . 1 . . . Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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