Book Title: Jain Aachar Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 243
________________ जैन धर्म एवं दर्शन-705 जैन- आचार मीमांसा -237 गणनायक की आज्ञा प्राप्त करे। 4. प्रतिपृच्छना - दूसरे के कार्य को गुरू एवं गणनायक से पूछकर करे। 5. छन्दना - अपने उपभोग के निमित्त लाए गए भिक्षादि पदार्थो के लिए अपने सभी साथी-साधुओं को आमंत्रित करे। अकेला चुपचाप उनका उपभोग न करे। ____6. इच्छाकार - गण से साधुओं की इच्छा जानकर तद्नुकूल आचरण करे। ___7. मिथ्याकार - प्रमादवश कोई गलती हो जाए, तो उसके लिए पश्चाताप करे तथा नियमानुसार प्रायश्चित्त ग्रहण करे। 8. प्रतिश्रुत-तथ्यकार - आचार्य, गणनायक, गुरू एवं बड़े साधुओं की आज्ञा स्वीकार करना और उसे उचित मानना। ... 9. गुरूपूजा-अभ्युत्थान - वंदना आदि के द्वारा गुरू का सत्कार-सम्मान करना। 10. उपसम्पदा - आचार्य आदि की सेवा में विनम्रभाव से रहते हुए दिनचर्या करना। . . दिनचर्या संबंधी नियम -- मुनि की दिनचर्या के विधान के लिए दिन एवं रात्रि को चार-चार भागों में विभक्त किया गया है, जिन्हें प्रहर कहा जाता है। उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार, मुनि दिन के प्रथम प्रहर में आवश्यक कार्यो के पश्चात् स्वाट याय करे, दूसरे प्रहर में ध्यान करे, तीसरे प्रहर में भिक्षा द्वारा आहार ग्रहण करे और पुनः चौथे प्रहर में स्वाध्याय करे। इसी प्रकार, रात्रि में प्रथम पहर में स्वाध्याय, दूसरे प्रहर में ध्यान, तीसरे प्रहर में निद्रा और चौथे प्रहर में पुनः स्वाध्याय करे। इस प्रकार मुनि की दिनचर्या में चार प्रहर स्वाध्याय के लिए, दो प्रहर ध्यान के लिए तथा एक-एक प्रहर आहार और निद्रा के लिए नियत है। आहार संबंधी नियम . . जैन आचार-दर्शन में श्रमण के आहार के संबंध में कई दष्टियों से विचार हुआ है तथा विभिन्न नियमों का प्रतिपादन किया गया है। मुनि को

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