Book Title: Indrabhuti Gautam Ek Anushilan
Author(s): Ganeshmuni, Shreechand Surana
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 11
________________ महान कार्य की सम्पन्नता किसी एक लेखक के द्वारा संभव नहीं है, तथापि हमने प्रयत्न पूर्वक विविध ग्रन्थों का अवलोकन एवं अनुशीलन करके आज तक के बहुत बड़े अभाव की पूर्ति करने का प्रयत्न किया है। आशा है यह प्रयत्न पाठकों को रुचिकर व ज्ञानप्रद प्रतीत होगा। परम श्रद्धय कविरत्न उपाध्याय श्री अमरचन्द्र जी महाराज का निश्छल मधुर स्नेह बरबस मन-मस्तिष्क में चलचित्र की भांति उद्बुद्ध हो ही जाता है । सन्मति ज्ञान पीठ जैसे सुविच त साहित्यिक प्रतिष्ठान से 'अहिंसा की बोलती मीनारे' के पश्चात् 'इन्द्रभूति गौतम एक अनुशीलन' मेरे दूसरे ग्रन्थ का प्रकाशन हो रहा है, यह उनकी उदारता का फल है । उपाध्याय श्री जी हम जैसे नौ सीखिया साधुओं के लिए साहित्यिक क्षेत्र में सदा पथ प्रदर्शक बने रहे हैं । ____ महामहिम परमादरणीय श्रद्धय गुरुवर्य श्री पुष्कर मुनि जी महाराज के प्रति कृतज्ञता अभिव्यक्त करना मैं अपना परम कर्तव्य समझता हूँ। कारण गुरुदेव श्री का प्रत्यक्ष या परोक्ष में मुझे अनवरत साहित्यिक सहयोग मिलता रहा है । प्रस्तुत दृष्टि से वे मेरे आद्य प्रेरणा-स्रोत कहे जा सकते हैं। सम्पादनकला मर्मज्ञ श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' ने प्रस्तुत ग्रन्थ का विद्वत्तापूर्ण सम्पादन किया है । साथ ही ग्रन्थ को मुद्रण कला व आधुनिक साज-सज्जा से सुसज्जित बना दिया है । अतः वे मेरे स्मृति पथ से कदापि विलग नहीं हो सकते । विद्ववर्य डा० जगदीशचन्द्र जैन ने मेरे आग्रह को मान्यकर सुन्दर भूमिका लिखने का जो कष्ट किया है, उसके लिए मैं कृतज्ञ हूँ। अन्त में मैं उन सभी लेखक व विद्वानों का हृदय से आभार मानता हूँ जिनके लेखन से प्रस्तुत शोध प्रबन्ध लिखने में मुझे केवल सहयोग ही नहीं मिला, वल्कि दृष्टि व मार्गदर्शन भी मिला है । -गणेश मुनि शास्त्री साहित्यरत्न जैन धर्म स्थानक दादर, बम्बई-२८ संवत्सरी महापर्व ५-९-७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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