Book Title: Indrabhuti Gautam Ek Anushilan Author(s): Ganeshmuni, Shreechand Surana Publisher: Sanmati Gyan Pith AgraPage 10
________________ लेखक की कलम से विश्व के उदयाचल पर कभी-कभार ऐसे विरल व्यक्तित्व उदित होते हैं, जिनमें एक ही साथ धर्म, दर्शन, संस्कृति और सभ्यता का उर्जस्वल रूप व्यक्त होता है। उनकी वाणी में धर्म और दर्शन आकार लेते हैं, उनके व्यवहार में संस्कृति और सभ्यता का रूप निखरता है। उनका जीवन ज्ञान, भक्ति एवं कर्म का सजीव शास्त्र होता है। ऐसे महान् व्यक्तित्व प्रधान महापुरुषों का अवतरण आर्य भूमि भारत में सदा से होता रहा है । जिन के विचार-व्यवहार का प्रकाश आज भी धर्म और समाज के अंचलों को आलोकित कर रहा है । ___ आज से लगभग पच्चीस सौ वर्ष पूर्व , भारत के पूर्वांचल में एक ऐसे ही महाप्राण व्यक्तित्व का उदय हुआ था जिसके जीवन में समर्पण, साधना, ज्ञान एवं चारित्र की चतुमुखी धाराएं एक से एक अग्र-स्रोता बनकर बही । वह महाप्राण व्यक्तित्व दो संस्कृतियों का महासंगम था. और संपर्ण भारतीय संस्कृति का एक जीता जागता दर्शन था । तीर्थकर वर्धमान के चरणों में सर्वात्मना समर्पित उस महिमाशाली व्यक्तित्व का नाम था-इन्द्रभूति गौतम ! प्रस्तत पुस्तक से संदर्भ में भगवान महावीर के उन्हीं प्रधान अंतेवासी इन्द्रभूति गौतम की चर्चा की गई है । जैन पम्परा के अंतिम तीर्थकर भगवान महावीर के जीवन के साथ गणधर गौतम का सम्बन्ध कितना घनिष्ट रहा है यह आनमो के पृष्ठों का पर्यवेक्षण करने से स्पष्ट परिज्ञात हो जाता है। भगवान महावीर के दीर्घ चिन्तन को, लोक कल्याणी गिरा को जो आगम का रूप दिया गया है, उसका श्रेय इन्द्रभूति गौतम को है। गौतम का सम्पूर्ण जीवनदर्शन आगम व इतिहास के पृष्ठ-पृष्ठ पर झांक-झलक रहा है, उन्हें एक साथ एक स्थान पर एकत्र करले आना संभव नहीं लगता, फिर भी अंतस्थ की भावना को साकार रूप प्रदान करने की दृष्टि से गणधर गौतम के विराट् बहुमुखी एवं सार्वभौमिक व्यक्तित्व का यह छोटा-सा रेखांकन प्रस्तुत किया गया है, एक श्रद्धाञ्जलि के रूप में। गौतम के व्यक्तित्व का सार्वदेशिक सूक्ष्म चित्रण करने के लिए जैन वांङमय के प्रत्येक आगम एवं प्रत्येक ग्रन्थ का आलोडन-अवगाहन करना आवश्यक है। इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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