Book Title: Harischandra Kathanakam
Author(s): Labdhisuri Jain Granthmala
Publisher: Labdhisuri Jain Granthmala

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Page 2
________________ श्रीहरिश्चन्द्र ॥ २ ॥ नि....वे....दु....न । अमारी आ श्री लब्धिसूरीश्वरजैन ग्रन्थमालाना छठ्ठा पुस्तक तरीके प्रस्तुत श्रीहरिश्चन्द्र- कथानक वांचकोना पूनीत करकमलमां रजु करतां अमो हर्षित थइए ए स्वाभावीक छे. श्री भावदेवसूरिमहाराजे रचेला संस्कृत् श्लोकबद्ध पार्श्वनाथचरित्रमांथी उद्धृत करेल आ कथानक पहेलां अमदावादना वीरसमाजे प्रकट करेलुं. परंतु ते हालमां दुर्लभप्राप्य थवाथी तेमज तेमां केटलीक अशुद्धीओ रहेल होवाथी तथा पू. साधुसाध्विजी महाराजोने अहर्निश अत्यंत आवश्य होवाथी तेना पुनर्मुद्रण कराववा माटे पू. उपाध्यायजी महाराजने इच्छा थइ अने जेना फलस्वरुपे आ प्रकाशीत थाय छे. आ प्रन्थ छापवामां उपदेश आपनार पू. उपाध्यायजी महाराजना तथा साहाय्य आपनार सद्गृहस्थोना अमो आभारी छीए. अमारा आ अगाउ प्रकट थयेला पांच पुस्तकोने जे रीते वांचकोए अपनाव्या छे ते रीते आने पण अपनावशे अने शासनदेव अमोने हजु सारामां सारी श्रुतसेवा करवा उद्युक्त करशे एम प्रार्थी हाल तो विरमीए छीए. छाणी ता. २०-२-३९ चन्दुलाल. निवेदन | ॥ २ ॥

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