Book Title: Haimnutan Laghu Prakriya
Author(s): Vijaychandrodaysuri, Chandrashekhar Jha
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Trust

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Page 641
________________ प्रकारे था ७।२।१०२॥ -प्रकारे जातीयन् । ७|२|७५|| प्रकृतेर्मयट् | ७|३|१|| प्रकृष्टेलम | ७|३|५|| प्रजाया अस् । ७।३।१३७ शज्ञादिम्योऽणू । ७।२।१३५ ॥ ज्ञ पर्णोदक फेनाल्लेलौ । ७।२।२२॥ -प्रज्ञा श्रद्धा चवृत्तेर्णः | ७|२|३३||प्रतिननादेन | ७|१॥२०॥ प्रतिपरोऽनोरव्ययी भावात् । ७।३॥८७॥ प्रस्यन्ववात्साम लोम्नः | ७|३|८२ ॥ प्रत्यभ्यतेः क्षिपः | ३|३|१०२ ॥ अल्यमः । ७५४।१०८॥ प्रत्ययः प्रकृत्यादेः | ७|४|११५॥ अस्यये | २|३|६| अत्यमये च । ११३१२॥ प्रथमाद घुटिशश्छः | १।३।४५ प्रथमोक्तं प्राकू | ३|१|१४८ ॥ 'अभवति । ६।३।१५७॥ गणान्मात्रम् | ७|१|१४०॥ का ती संख्याड्डः | ७|३|१२८॥ प्रोक्तु‍ । ३।४/२ ४६ ४.३५ ४३१ ४४८ ४४९ ४८१ ४४७ १२७ ४२८ ४०३ ४९४ ५६७ २१७ ५७३ ५७७ ४८५ १८ २० ४७१ ३७३ ४१.७ २ १९.४

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