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ज्ञानप्रदोपिका।
निधनारिधनस्थेषु पापेष्वशुभमादिशेत् ।
तन्वादिभावः पापैस्तु युक्तो दृष्टो विनश्यति ॥१२॥ अष्टम, षष्ठ, द्वितीय में पाप ग्रह हों तो फल अशुभ होता है। पापग्रहाक्रान्त तन्वादि भाव अशुभ फल दायक हैं।
शुभदृष्टो युतो वापि तत्तदभावादि भूषणम् ।
मेषोदये तुलारूढ़े नष्टं द्रव्यं न सिध्यति ॥१३॥ शुभ से इष्ट किंवा युक्त होने पर भाव शुभ फलद होते हैं। मेष लग्न हो और तुला आरूढ़ हो तो नष्ट द्रव्य की सिद्धि नहीं होती।
तुलोदये क्रियारूढ़े नष्टसिद्धिर्न संशयः ।
विपरीते न नष्टाप्तिर्वृषारूढ़ेऽलिभोदये ॥१४॥ किन्तु यदि तुला लग्न और मेष आरूढ़ हो तो अवश्य सिद्धि होती है । वृष आरूढ़ और वृश्चिक लग्न हो तो महा लाभ होताहैं ।
नष्टसिद्धिर्महालाभो विपरीते विपर्ययः । चापारूढ़े नष्टसिद्धिर्भविता मिथुनोदये ॥१५॥ विपरीते न सिद्धिः स्यात् कर्कारूढ़े भृगोदये।
सिद्धिश्च विपरीते तु न सिध्यति न संशयः ॥१६॥ किन्तु यदि वृष लग्न और वृश्चिक आरूढ़ हो तो सिद्धि नहीं होती। मिथुन लग्न में हों धनु आरूढ़ हो तो नष्ट सिद्धि होती है। उल्टा होने से फल उल्टा होता है। कर्क आरूढ़ हो मकर का उदय हो तो सिद्धि होती है। उल्टा होने से सिद्धि नहीं होती।
सिंहोदये घटारूढे नष्टसिद्धिर्न संशयः । विपरीते न सिद्धिः स्यात झषारूढेऽगनोदये ॥१७॥
नष्टसिद्धिर्विपर्ये (?) स्यात् दृष्टादृष्टेर्निरूपणम् । लग्न सिंह हो आरूढ़ कुंम हो तो सिद्धि और उल्टा होने से असिद्धि होती है। मीन भारुढ हो और कन्या लग्न हो तो नष्ट सिद्धि नहीं होती है ।
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