Book Title: Gyan Pradipika tatha Samudrik Shastram
Author(s): Ramvyas Pandey
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 157
________________ हंसस्वरश्च राजा स्यात् चक्रवाकस्वरस्तथा । व्याघ्रस्वरो भवेत् क्लेशी सामुद्रश्चनं यथा ॥५३॥ जिनका स्वर घोड़े के समान होवे धनी होते हैं', मेघ के समान गम्भीर घोष वाले और खास करके भौंरों की गुजार सरीखे स्वर वाले पुरुष नित्य भोगवान् और बड़े धन वान होते हैं, हंस की तरह स्वरः वाले और चकवे की तरह स्वर वाले राजा होते है। बाघ के समान स्वर वाले दुःखी होते हैं-ऐसा सामुद्रिक शास्त्र का कहना हैं। पार्थिवः शुकनासा च दीर्घनासा च भोगभाक् । हस्वनासा नरो यश्च धर्मशीलशते रतः ॥५४॥ स्थलनासा नरो मान्यः निंद्याश्च हयनासिकाः । सिंहनासा नरो यश्च सेनाध्यक्षो भवेत्स च ॥५५॥ शुक कीसी नाक वाले राजा, लंबी नाफ वाले भोगी, पतली नाफ वाले धर्मनिष्ठ, मोटी नाक वाले माननीय, घोड़े की सी नाक वाले निंदनीय, और सिंह कीसी नाक वाले सेनापति होते हैं। त्रिशूलमंकुशं चापि ललाटे यस्य दृश्यते । धनिकं तं विजानीयात् प्रमदाजीववल्लभः ॥५६॥ जिसके ललाट पर त्रिशूल या अंकुश का चिह्न दिखाई दे उसे धनी समझना चाहिये। वह स्त्री का प्राण-प्यारा होता हैं । स्थलशीर्षनरा ये च धनवंतः प्रकीर्तिताः। .. वर्तुलाकारशीर्षेण मनुजो मानवाधिपः ॥५७॥ चौड़े सिर वाले मनुष्य धनी और गोलाकार सिर वाले राजा होते हैं। रुक्षनिर्वाणि वर्णानि स्नेहस्थूला च मूर्द्ध जा। निस्तेजाः सः सदा शेयः कुटिलकेशदुःखितः ॥४८॥ जिसके बाल रूखे और विवर्ण हों तथा तेल आदि लगाने पर जकड़ कर स्थूल हो जा ते हों वह पुरुष निस्तेज होता है। कुटिल अलकों वाला मनुष्य दुःखी होता है। Aho ! Shrutgyanam

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