Book Title: Gyan Pradipika tatha Samudrik Shastram
Author(s): Ramvyas Pandey
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara
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( ३ ) शुष्कहस्तौ च पादौ च शुष्कांगी विभका भवेत् ।
अमंगला च सा नारी धन्यधापक्षयंकरी ॥३६॥ सुक हाथ, सले पैर और सूखे शरीर बाली बी विधषा होती है। यह ममंगला धन धान्य की संहारिणी होती है।
पिंगाक्षी कूपगंडा प्रविरलक्शमा दीर्घजंघोर्ध्वकेशी। लम्बोष्ठी दीर्घवत्रा खरपरुषरवा श्यामलाम्रोष्ठजिला। शुष्कांगी संगताधू स्तनयुषिषमा नासिकास्थूलरूपा।
सा कन्या वर्जनीया पतिसुतरहिता शीलचारित्र्यदूरा ॥३७॥ जिस कन्या की आंखें पिंगल वर्ण की हों, कपोल धसे हुए हों; दांत सुसजित रूप से न हों; जंधा लंबी हो, केश खड़े हो; ओंठ लंबे हों; मुंह लंबा हो; बोली कर्कश हो; तालु, होंठ और जीभ काली हों; शरीर सुखा हो, बात बात पर आंसू गिरता हो; दोनों स्तन समान न हो; नाक चिपटी हो; उसके साथ विवाह नहीं करना चाहिये। क्यों कि वह पति और पुत्र से रहित होगी, उसके चरित्र भी दूषित होंगे।
शृगालाक्षी कृशांगी च सा नारी च सुलोचना ।
धनहीना भवेत्साध्वी गुरुसेवापरायणा ॥३८॥ सियार की तरह आँखों वाली, पतले शरीर वाली, सुलोचना स्त्री धनहीन होती हुई भी साध्वी और गुरुजनों की सेवा करने वाली है ।
रक्तोत्पलदला नारी सुन्दरी गज-लोचना । हेमादिमणिरत्नानां भर्तः प्राणप्रिया भवेत् ॥३६॥ कमल के पत्ते के समान हाथी जैसी आँखों वाली सुन्दरी रमणी, सुवर्ण मणि भोर रसों के स्वामी की प्राणप्रिया होती है।
दीर्घागुली च या नारी दीर्घकेशी च या भवेत् ।
अमांगल्यकरी ज्ञेया धनधान्यक्षयंकरी ॥४॥ बड़ी बड़ी अंगुलियों वाली, और दीर्घ केशों वाली औरत धन धान्य की माशक तथा ममंगलमयी है।
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