Book Title: Gyan Pradipika tatha Samudrik Shastram
Author(s): Ramvyas Pandey
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 134
________________ झानप्रदीपिका। सब के हितार्थ यात्रा काण्ड कहता है। इस काण्ड से गमन आगमन लाम हानि, शुभ, अशुभ आदि बाते विचार कर कहनी चाहिये । मित्रक्षेत्राणि पश्यन्ति यदि मित्रग्रहास्तदा ॥२॥ मित्राय गमनं ब्रूयात् नीचं नीचग्रहाणि (2) च । नीचाय गमनं ब्रूयात् उच्चानुच्चग्रहाणि (?) च ॥३॥ यदि मित्रक्षेत्र को मित्रग्रह देखते हों तो मित्र के लिये गमन कहना चाहिये। योही यदि नीच ग्रह नीच स्थानों को देखते हों तो नीच के लिये और उच्च ग्रह देखते हों तो अपने से उच्च के पास यात्रा बतानी चाहिये। खाधिकाये()ऽतिगमनं पंराशि पंग्रहा यदि । स्त्रियो गमनमित्युक्तमन्येप्येवं विचारयेत् ॥४॥ पुरुष राशि को यदि घुग्रह देखते हों तो स्त्री के लिये गमन होता है। अन्य परिस्थि. तियों में भी ऐसे ही विचार लेना चाहिये । चरराश्युदयारूढ़े तत्तद्ग्रहविलोकने । तत्तदाशासु तिष्ठन्ति पृच्छतां शास्त्रनिर्णयः ॥५॥ घर राशि यदि लग्न या आरूढ़ में हो तो जो ग्रह उन्हें देखता हो उसी की दिशा का प्रश्न कहना चाहिये ऐसा शास्त्रीय सिद्धान्त है। स्थिरराश्युदयारूढे शन्यांङ्गारकाः स्थिताः । अथवा दशमे वा चेद् गमनागमने न च ॥६॥ स्थिर राशि उदय या आरूढ़ में हों और शान, सूर्य और मंगल हो या दशम में भी ये हों तो गमन या अागमन नहीं होता। शुक्रसौम्येन्दुजीवाश्चेत् तिष्ठन्ति स्थिरराशिषु । विद्यते स्वेष्टसिद्धयर्थं गमनागमने तथा ॥७॥ ... यदि सिर राशि में शुक्र, बुध, चंद्र या बृहस्पति हों तो अपनी इष्टसिद्धि के लिये गमनागमन बताना चाहिये। Aho ! Shrutgyanam

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