Book Title: Gyan Pradipika tatha Samudrik Shastram
Author(s): Ramvyas Pandey
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 149
________________ पंचरेखा युगत्रीणि द्विरेखा च समास्थितं । नवत्यशीतिः षष्ठिश्च चत्वारिंशच्च विंशतिः ॥३८ जिसके क्रमशः पाँच, चार, तोन, और दो रेखायें हों क्रमशः ६०, ८०, ६०, ४. और २० वर्ष जीता है। इत्यायुर्लक्षणं नाम प्रथमं पर्व द्वितीयं पर्व अथ तत् सम्प्रवक्ष्यामि देहावयवलक्षणम् । उत्तमं मध्यमं हीनं समासेन हि कथ्यते ॥१॥ अब मैं संक्षेप में शरीर के उन लक्षणों को कहता हूं जिन से उत्तम, मध्यम और अधम का ज्ञान होता है। पादौ समांसलौ स्निग्धौ रक्तावर्तिमशोभनी। उन्नतो स्वेदरहिता शिराहोनी प्रजापतिः ॥२॥ जिस पुरुष के पेर मांसयुक्त, विकने, रक्तिमा लिये हुये, सुन्दर उन्ना और पसोना न देने वाले तथा शिराहीन ( ऊपर से शिरा न दिखाई दे-ऐसे ) हों वह बहुत प्रजा (सन्तानों ) का मालिक होता है। यस्य प्रदेशिनो दीर्घा अंगुष्ठादतिवद्धिता । . स्त्रीभोगं लभते नित्यं पुरुषो नात्र संशयः ॥३॥ जिसकी प्रदेशिनी ( पैर के अंगूठे के पास वाली उंगली ) अंगूठे से भी बड़ी हो वह पुरुष निस्सन्देह नित्य ही स्त्रीभोग पाता है । तथा च विकृतैरू खैर्दारिद्र यमाप्नुयात् । पतिताश्च नखा नीला ब्रह्महत्यां विनिर्दिशेत् ॥४॥ विकृत, कखे नखों वाला पुरुष दरिद्र होता है। गिरे हुए और नील वर्ण के नख से ब्रह्महत्या का निर्देश करना चाहिये। Aho ! Shrutgyanam

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