Book Title: Guru Vani Part 01
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 5
________________ प्रकाराकीय पाँच वर्ष पूर्व जब इस गुरुवाणी का प्रकाशन किया गया उस समय हमने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि साहित्य के क्षेत्र में इस पुस्तक की इतनी माँग होगी। श्रावक वर्ग ही नहीं, इतर वर्ग के अनेक लोगों ने भी इस पुस्तक को चाहा है, सराहा है। अभी तक गुजराती भाषा की ५००० पुस्तकें भेंट स्वरूप दे चुके हैं। तृतीया आवृत्ति में आवश्यक परिमार्जन और परिवर्तन के साथ इस पुस्तक का गुजराती में तीन बार प्रकाशन हो चुका है। जिसके तीन भाग हैं। _ हिन्दी भाषीय श्रावकों की अत्यधिक मांग होने के कारण हिन्दी में हमारा यह पहला प्रयास है, जिसे प्रकाशित करते हुए हमें खूब-खूब आनन्द की अनुभूति हो रही है। हिन्दी अनुवाद में भी इसके तीनों भाग प्रकाशित हुए हैं। गुरुवाणी को पढ़कर, समझकर अवश्य अनुसरण करेंगे, इसी अभ्यर्थना के साथ प्रकाशक

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