Book Title: Guru Tattva Pradip
Author(s): Chirantanacharya, Labhsagar
Publisher: Mithabhai Kalyanchand Pedhi

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Page 162
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुतत्त्वव्यवस्थापनवादस्थलम् १५३ AAAAAAA कीरइ गुरुअणुवएसेणं' ॥१॥ उपदेशमालायां । तथा संसिज्जइ म अकिरियाहु दृसिज्झइ सकलसंघववहारो। कत्तो इतो वि पसी विमाणणाहं वि संघस्स ॥१॥ उप्पत्रसंसया जे सम्म पुच्छंति नेव गीयत्थे । चुक्कंति शुद्धमग्गा ते पल्लवगाहि पडियव्वा ।।२।। जो मोहकलुसियमणो कुणइ अदोसे वि दोससंकप्पं । सिम अप्पाणं वंचइ पेयावमगो वणिसुओ ब्व ॥३॥ अवसउणकप्पणाए सुंदरसउणो असुंदरं फलइ । इय सुंदरावि किरिया असुहफला मलिणहिमयस्सVIEइतिवृहद्भाष्यो। न च शासमे केवाञ्चिदोषान् दृष्ट्वा सर्वेकोसकोपरामारोपयितुं युक्तम् । यदुक्तं बृहन्नाके 'जो जिणसंघं होलह संघावयवस्स दुक्कयं दळं। सम्वजणहील. णिज्जो भवे भवे होइ सो जीवो ॥१॥ जइ कम्मवसा केइ असुहं सेवंति किमिह संघस्स । विट्टालिज्जद गंगा कयाइ कि कागसबरेहि ॥२॥ जो पुण संत्तासंते दोसे गोवेइ समणसंघस्स । विमलगसकित्तिकलिओ सो पावइ निम्बुई तुरियं ॥३॥जह कणरक्खणहेर्ड रक्खिज्जइ जत्तओ पलालंपि । सासणमालिन्नभया तहा कुसीलंपि मोविज्जा ॥४॥ इति । तथा ननु पावस्थादीनां वन्द्यत्वे 'पासत्यो ओसनो' इत्यादिवाक्यैः सह विरोषः । उभ्यते सर्व-देशपावस्थादीनां उक्तयुक्त्या वन्द्यत्वमवन्द्यत्वं चास्ति । आगमवाक्यानि भयवाक्यप्रमाणवाक्यत्वेन द्विधापि भवन्ति । यतः नाणाहिलो वरतरं हीणोवि हु पवयणं पभावंतो। नय दुक्करं करितो सुदवि अप्पागमो पुरियो ।।१।। उपदेशमालायाम् । नाणं मुह नाणं गुणेह नाणेस कुणउ किश्चाई । भकसंसारसमुई नाणेण विणा न उ तरइ ॥१॥ इत्यावश्यके । तथा 'दसणभट्ठो भट्ठो नहु भट्ठो होइ वरणमभट्ठो : सिति परणरहिया दंसणरहिया नःसिज्मंति'।। भक्तपरिजाप्रकीर्णका तबादसारसीहस्स य सेणियस्स, पेढालपुत्तस्स For Private And Personal Use Only

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