Book Title: Gunkittva Shodshika
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 25
________________ १२० अनुसन्धान-५६ वसंत मासनी वद चोथे, श्रीरतनबाईना हाथे दीक्षा थई. रत्नचिन्तामणि सरीखा महाव्रत पामी मुरीबाई खुश छे. संसारसमुद्रमांथी मारा गुरुजीओ डूबतांनी बांय पकडी मने बहार काढी छे अनो अमनो सन्तोष छे. अटले ज कुटुंब कलकले छे, पीयरनो परिवार धूस्के धूस्के रडे छे त्यारे काचना कटका माटे \ रत्न खोवाय ? ओम समजावी, दरेकने शक्ति प्रमाणे व्रत-पच्चक्खाण उचरावे छे. नवमा (चैत्र) मासमां तेओ विचारे छे : "आयखानो कशो भरोसो छे नहि तो तप करीने कर्म टाळवा ओ ज ओक उपाय छे." आथी अमणे छठ्ठ अने अठ्ठम तप शरू कर्या. ९६दोषनो त्याग करी, निर्दोष आहार वापरतां. (श्वेतांबर मूर्तिपूजक सम्प्रदायमा आहारना दोष ४२+५ = ४७ गणाय छे. स्थानकवासी सम्प्रदायमां ९६ दोषो गणाव्या छे.) उपवासो वधता जाय छे. १५ उपवास तो असंख्य वार करे छे. मासखमण (महिनाना उपवास) करवाना शरू कर्या. कायाने भाडं आपवानुं समजी, विगयत्याग करी, लूटुं अन्न वापरता. लीलुं शाक खावा, यावज्जीव छोड्यु. पोते क्यारेय चेली नहि करे तेवो निरधार करे छे. जेम आंबाना लाकडानो थांभलो मजबूत- टकी शके तेवो नथी होतो तेम आ देह काचा कुम्भ पेठे गमे त्यारे तूटी जवानो छे तेम समजी, तपमां अने वीर प्रभुना गुण गावामां लीन रहे छे. दसमा (वैशाख) मासमां तप हजु वधु उग्र बनतुं जाय छे. हवे आहारमा मात्र बे ज द्रव्य ले छे. वस्त्रो जूनां पहेरे छे. छाश अने लोट वापरे छे. ९३ दिवस सुधी आ ज आहार रह्यो त्यारे आंखो तगतगवा लागी. जे जोइने शेठ रघुभाई अमने विनती करीने बे रोटली लेवाने समजावी दीधां. आ आहार उपर तप तो चालु ज हता. शरीर हाडपिंजर बनी गयु. शरीरनी नसोनुं जाळं देखावा लाग्युं. आम, तप करी, कायामांथी जाणे सर्व कस काढी लीधो. ___ अगियारमा (जेठ) मासमां हवे मुरीबाईने देहनो जाणे के भार लागे छे ! क्यारे अने वोसिरावू ? आथी, तप उग्रतर बनतुं चाल्यु. आठ उपवासने पारणे दस उपवास अq घणा दिवस चाल्यु. परिषहो सह्या – नित्य नवा नवा. सिंह पेठे दीक्षा पाळी. रागद्वेषने तो चकचुर कर्या. सर्पनी कांचळी जेवू शरीर थई गयु. मात्र अमां हवे आत्मा ज ओकलो रह्यो छे, बाकी कायामां कशुं नथी.

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