Book Title: Gunkittva Shodshika
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan
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ऑगस्ट २०११
पीवानी अनेक वानगीनो त्याग कर्यो. सेंथो पूरवार्नु छोड्यु. पांथी पाडवा- पण छोड्यु. आंखमां काजळ लगाववानुं छोडी दीधुं. मधुर कण्ठ हतो छतां हवे मोटे अवाजे गाती नथी, क्यारेय निन्दा-कूथली करती नथी. मोटेथी हसती नथी. सत्संगनो महिमा समजती थई छे, तेथी ज्यां सोबत बराबर न लागे त्यां ते सोबतथी दूर रहे छे.
पांचमा (मागशर) मासमां मुरीबाईनो अध्यात्मभाव अटलो विकसे छे के आर्या आणंदबाई जेवा गुरु मळे छे अने तेमनी पासे धर्मनो अभ्यास करे छे. बार व्रत अंगीकार करे छे. हवे मुरीबाईने घरना काममां चित्त रहेतुं नथी, वधुने वधु समय ते उपाश्रये आणंदबाई पासे शीखती रहे छे. सामायिक, प्रतिक्रमण अने पोसहनी लेह लागी छे. अस्थिर संसारमा रहेQ ओने माटे हवे केदखाना जेवू थई पड्युं छे. संयम मार्गे क्यारे जाउं, क्यारे घेर आवन-जावनना फेरां बंध थशे ? क्यारे मोहनी तांत तोडुं ? - आ ज लेह लागी छे हवे मुरीबाईने !
छठ्ठा (पोष) मासमां मुरीबाई हवे संसारमाथी नीकळवानो मक्कम निरधार करे छे. घरमां सौने स्पष्ट जणावी दे छे के पोताने हवे दीक्षा लेवी छे, आ वातनी आडे कोइओ आवq नहि. अहीं मुरीबाईना चारित्र्यनी उत्कृष्टता कवि सरस वर्णवी छे. घरमां सौ प्रथम आ वात सांभळी, ओरमान दीकरो आ वातनो विरोध करे छे. कहे छे - "शा माटे तमारे दीक्षा लेवी ? लाडकोडथी उछेर्या पछी हवे मने छोडीने जशो ? क्यारेय अमने कडवां वेण कह्यां नथी. माथीये अदकेरो स्नेह तमे आप्यो छे." आम कही दीकरो चोधार रडी पडे छे. पीयरनो परिवार पण करगरे छे. पण मुरीबाई सौने संसारनु दुःख, संसार स्वरूप वर्णवे छे अने सौने पोतानी वात माटे मनावी ले छे.
सातमा (माह) मासमां संयम लेवानी तैयारी दर्शावी छे. पात्रां ने पुस्तको लीधां. खूब ज धन खरच्यु. लींबडीमां आवीने दीक्षानो उत्सव कर्यो. लींबडीना शेठ रघुभाईले आ उत्सव पोताने शिरे ऊठावी पुण्यकर्म बांध्युं. रतनबाई तेमना गुरु बन्या. दीक्षाना पाठ, नवा ग्रन्थो, जीव-अजीवना भेद, चोराशी लाख योनि वगेरे शीखवाड्या.
आठमा मास (फागण)मां अमणे लीधेली दीक्षानी वात छे. सं. १८६५ना

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