Book Title: Gnata Dharmkathangam Author(s): Chandrasagarsuri Publisher: Siddhchakra Sahitya Pracharak Samiti View full book textPage 6
________________ संचालनk पुण्यकार्य। नवाङ्गीइ. वृ० भीज्ञाताधर्मकथाङ्गे ROCHOLARSONAGACHUCHC34 अने पाक्षिक शासनसंरक्षकना कामने निर्विघ्ने आगल वधारवाने समर्थ थया. आ पाक्षिकनुं अने समितिर्नु संचालन करवानुं काम संभाली लेवानी जबाबदारी शरूआतथी जे में उपाडी लीधी हती अने ते जबाबदारी अद्यापि पर्यन्त सेवाभाविपणाथी हुँ बजावी रखो छु. आ श्रीसिद्धचक्रपाक्षिके अने श्री सि० सा०प्र० समितिए शासनमान्य सुप्रसिद्ध सेवाओ शासन पर आवी पडेली आपत्तिकालमां बजावी छे के-जे सेवाओ माटे अद्यापिपर्यन्त श्रीचतुर्विधसंघनी दरेक व्यक्ति ते बन्ने माटे ( पाक्षिक-समिति माटे) हार्दिक | आशीर्वाद आपी रही छे, अने मुक्त कण्ठे प्रशंसा गाई रही छे. संचालन- पुण्यकार्य उपर जणान्या मुजबनो शासन पर आवेलो विषम जुवाल लगभग शमी गयेल होवाथी, शासनमा अनेकविध कार्योनी जवाबदारी पू० आ० श्री चन्द्रसागरसूरिमहाराजने होवाथी, अने श्रीसिद्धचक्र-पाक्षिक माटेनी प्रेस मेटर नियमित अवसरसर मेलववामां | मुश्केली थती होवाथी, आ पाक्षिकने मासिकना रूपमा प्रकाशन करवानुं समितिए नक्की कर्यु, अने ते पछी सत्तर वर्षनी परिसमाप्ति सुधी नियमित मासिकरूपे आ सिद्धचक्रनुं प्रकाशन थयुं छे, अने वांचको, विचारको, अभ्यासको तेनो सारो लाभ ले छे. हालमा चतुर्विध संघना सहकार साथे आ श्री सिद्धचक्र-मासिके अढारमा वर्षमा प्रवेश करेलो छे. वांचको-विचारको अने अभ्यासकोने शासनमान्य साहित्य मलतुं रहे ते हेतुथी समिति तरफथी लगभग म्हें पंदर ग्रन्थो मुद्रण करावीने प्रसिद्ध कर्या छे, अने प० पू० आ० श्रीचन्द्रसागरसूरिजीनी महेरबानीथी आ श्रीज्ञाताधर्मकथाङ्ग नामना छट्ठा अंगना प्रथम विभागर्नु (ग्रन्थरल नं. १६मार्नु) प्रकाशन करवा अमारी समिति तरफथी हुँ भाग्यशाळी थयो ढु. खरेखर ! दुःषम कालमा शासनहितकर-मासिकनुं अने समितिनुं SOCIALCHAKRMORECAUC4Page Navigation
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