Book Title: Gnata Dharmkathangam
Author(s): Chandrasagarsuri
Publisher: Siddhchakra Sahitya Pracharak Samiti

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Page 4
________________ नवाङ्गी१० वृ० श्रीज्ञाताधर्मकथाङ्गेप्रकाशिकानुं निवेदन. प्रकाशिकानुं निवेदन। भीमाता धर्मकथाओं ॥२॥ SNEHASHASABSCASTASHASHA श्रीसिद्धचक्रनो अने समितिनो जन्म प्रातःस्मरणीय, पूज्यपाद, तपागच्छगगनदिनमणि-श्रीदेवसूरसंघपरम्परासंरक्षक-आगमोद्धारक-श्रीआनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराजश्रीनुं अनेक ठाणां सह वि. सं. १९८८ मुम्बाइ-मूलेश्वर-लालबागना उपाश्रये सकल संघनी विनंतिथी चातुर्मास थयु, अने ते अवसरे पू. मुनिश्री चन्द्रसागरजी ( हालमा पू० आचार्य-श्रीचन्द्रसागरसूरिजी) पण साथे हता.. ___आ चातुर्मास थयु ते अवसरे युवानीआओए शासनमान्य-दीक्षाना अस्खलित-प्रवाहने रोकवा कम्मर कसी हती, तन-मन अने धनद्वाराए दीक्षार्थिओने कनडगत करवानी अनेकविध कार्यवाहीओ शरू करी हती, मानव-जीवनने कलंक समान क्रान्तिमालाना लेखोनी हारमाला लखीने-प्रचारीने आगेवान युवकोए भद्रिक-युवान वर्गना मगज बहेकावी मूकवानी वेगभरी शरूमात करी हती, प्रव्रज्याना पवित्र प्रबल वेगने रोकवा गामे गाम युवकसंघनी स्थापना करी हती-थती हती; आवा विषम वातावरणमा सम्यक्त्व पामेलाओ सम्यक्त्वथी पतित थाय, नवा जीवो सम्यक्त्व पामे नहिं, अने सम्यकृत्वनी अभिमुख थयेलो वर्ग खसी जाय तेवां तेवां भाषणो थतां, तथा आत्मशक्तिना विकासने रुंधनारा अनेकविध प्रकाशनो, प्रबन्धो, लेखो, मासिको, पाक्षिको, साप्ताहिको दी उगे देखाव देतां ES AUSAHARA DU. ॥२ ॥

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