Book Title: Epigraphia Indica Vol 28
Author(s): Hirananda Shastri
Publisher: Archaeological Survey of India

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Page 450
________________ No. 49] METHI INSCRIPTION OF YADAVA KRISHNA : SAKA 1176 819 2 नुजा दैत्यनागेंद्रनागाः । द्वीपा नक्षत्रतारा रविवसुमुनयो व्योम भूरश्विनौ च संलीना यस्य सर्वे (।) वपुषि स भगवान्पातु वो विश्वरूप (पः) ॥२॥ स्वस्ति श्रीशकवत्सरे रसमुनीसंख्या[च]' रुदै (रैः) शतै (तैः) आनंदे सविशाष (ख)3 शुक्रजयनीसोमे सुधासुंदरे । पूजाचंदनधूपदीपवसनै नै(न)वेद्यनृत्यः (त्य) क्रमः भू(मैर्भू)षाभोगविवर्धनाय नगरं भद्रेश्व[] (र)स्यापितं (तम्) ॥३॥ वंशे स्मिन्वसुदेवनंदनरतिः (ति)प्राणेशकामात्मजा (जाः) ख्याता 4 वज्रदृढप्रहारनृपति (तिः) सेउन्नधाडिपको । उच्चभिल्लमराजवादुगिनृपा जाता (ताः) क्षितेभूषणं क्षोणींद्रो वरभिल्लम (मः) समभवद्वेसुगि‘देवाभिधः ॥४॥ "भूमीभृमृ (भृन्मृ) गभिल्लमः क्षितिपते (तिः) सेउन्नराजाभिधौ जातो (तौ) 5 मालुगिकृष्णभिल्लमनृपा जैत्रो नृप (पः) सिंघण (णः) । जैत्र (ः) कृष्ण इ[व] प्रतीतमहसा (सो) जाता (ताः) क्रमादी (ये) नृपा ते(पास्ते)षां चित्रचरित्रचारिमचमत्कारा (रो) बुधा (धः) श्रूयतां (ताम्) ॥५॥ स्वस्ति श्रीसौ (शौ) यसूर्यग्लपितरिपुवधूवक्त्रशीतांसु (शु) बिंबः संप6 द्विश्रामसिंधुज (ज) यति नयवतामग्रणीः कृष्णभूप (पः) । यस्मि (स्मित्र ) श्रि(शृं) ग्गा (गा) रकेलीसरसि वरयशा (शः)श्रेणिहंसे विलासं स्फीत लीलावतीनां नयनकुवलयान्यापुरामोदवन्ति ॥६॥ स कृष्णभूपति ग्रा () मं ददौ धर्मपरायण (णः) । 7 अर्द्ध भद्रहरेरद्धं द्विजानां यज्ञयाजिनां(नाम्) ॥७॥ शुद्धाभ्यन्तरमश्रोत्रं' नाम्ना कुरुकवाटकं । सदंडदोषसोद्रंगसवृक्षं सपरिच्छदं (दम्) ॥८॥ अथः (थ) प्रासादवर्णनं (नम्) ॥ किं वा नंदमहोदयो गुणनिधि (धिः) किं वा यशःस्याय • The composition of this chronogram is incorrect and the inaccuracy is evidently due to the exigenoy of nietre. The correct form should be rasa-muni-aamkhyaka-rudraib. Sandhi es necessary here and as such the expression should read batairaananda. • Read घाडीपको or पाडिप्पको if the metre is to be honoured. * Read anfit to honour the metre. • Read भूमिभू- correctly though it violates the metre. [भूमी, though uncommon, is not wrong.-Ed.] . Read çfa. There appears to be some correction about the letter va in the original. * The expression it appears to denote here, not owned by a brötriya, s.e., Brahmaņa, learned in the Vēdas.' • Read यशस्यायनं.

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