Book Title: Epigraphia Indica Vol 17
Author(s): F W Thomas, H Krishna Sastri
Publisher: Archaeological Survey of India

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Page 351
________________ 320 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 EPIGRAPHIA INDICA, [VOL. XVII. र्त्ताथवा गृहदेवता [] *] इति विदधती शुच्याचा [ रा ] वितर्कयती: प्रजा: प्रकृतिगुरुभिर्या शुद्धान्तडुबेरकरोदधः ॥ [१०॥ * ] वाध्या प्र ( प ) तिव्रतासौ मु तारत्वं समुद्रशक्तिरिव । ॥ [ ११॥ ] निर्मूलो मनसि वाचि स्थितः शची [["] श्रीदेवपाल देवम्प्रसव सुतमसूत संयतः । कायकर्मनि (णि) च यः राज्यमाप निरुपप्लवम्पितुर्वी (ब) धिसत्व इव सोगतं पदम् | [ १२ ॥ *] भवाम्यद्भिर्विजयक्रमेण ।" करिभिस्तामेव विन्ध्याटवी मुद्दामनवमानवा (बा) ष्यपय[मो] दृष्टाः पुन (ब)' न्धवः [1] कम्बो (म्बो) जेषु च यस्य वाजियु [ व * ]भिर्ध्वस्तान्यराजौनसो हेषामिश्रितहारिहेषितरवा: कान्ताश्चिरप्रीणिता : ' ॥ [ १३॥ * ] य: पूर्व व (ब) लिना कृतः कृतयुगे येनागमद्भार्गव - त्रेतायां प्रहतः प्रियप्रणयिना कर्णेन यो हापरे । विच्छिन्नः कलिना शद्दिषि गते कालेन लोकान्त रम येन त्यागपथ एव हि पुनर्दिष्टमुन्मीलितः ॥ [ १४ ॥ * ] श्रा गङ्गागममहितासपत्न शून्यामासेतु (तोः)' प्रथितदशास्य केतुकोतैः [*] उर्व्वमा वरुणनिकेतनाथ सिन्धो रा लक्ष्मीकुलभवनाथ यो वु (बु) भोज ॥ [ १५॥*] सखल भागीरथोपथप्रवर्त्तमाननानाविधनौवाटक संपादित सेतुव (ब) न्धनिहित [शै]लशिखरश्रेणिविभ्रमात् निरतिशयघनघनाघनघट्टा (टा) श्यामायमानवासर लक्ष्मीसमारब्ध (ब) संतत जलदसमय सन्देहात् उदीचीनानेक नरपतिप्राभृतीकताप्रमेयह यवाहिनीखरखुरोरखातधूलीधूसरितदिगन्तरालात् परमेश्वर सेवा समायाता शेषजंबू (बू) द्दी - पभूपाल पादातभर नमदवनः श्रीमुद्रगिरिसमावासिश्रीमवयस्कन्धावारात् परमसौगतपरमेश्वर परमभटा (डा) रकम 1 This danda conld well be omitted. 3 This danda is unnecessary. • Kielhorn gave बान्धवा: Kielhorn has fert ferar: Kielhorn read : and remarked that the lithograph he used gave setu (or bhetu). This inscription removes the possibility of bhetu. The readin must be it: • Road मानिए. 1 Rend "हादुदोषो

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