Book Title: Dhatupradip
Author(s): Srishchandra Chakravarti
Publisher: Varendra Research Society
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________________ धातुप्रदीपः। कमु कान्ती / 443 / कामयते। कामयाञ्चके चकमे। अचीकमत अचकमत / कामयित्वा कमित्वा कान्वा / कान्तः / कामुकः। कामुकी कामुका। कमः / कमनः / कामः / इति आत्मनेभाषा उदात्ता अनुदातेतः / अथ पौपदिन उच्यन्ते / अण रण वण भण मण कण कण व्रण भ्रण शब्दार्थाः / 444-452 / प्रणति / आणकः / अण:। अणकः। रणति / रणः / राणकः (62) / वणति / ववाण / ववणतुः / ववणुः / भणति / अभाणीत् अभणीत् / बम्मण्यते। मणति / मणितम्। इन् मणिः / मणिकः / ईदादिप्रग्यत्वे मणीवादीनां प्रतिषेधो वक्तव्य इति "मणीवोष्ट्रस्य लम्बेते प्रियौ वत्सतरौ मम / " कणति / चकाण | क्वणति / चक्वाण / निक्कणः निक्काणः / व्रणति / भणति / प्रोण अपनयने / 853 / ओणति / मा भवानोणिणत् / शोष वर्ण गयोः / 454 / शोणति / अशुशोणत् / शोण शोणी। ओणू संघाते / 455 / श्रोणति / श्रोणः / श्लोण च / 456 / लोणति / पैण गतिश्लेषणप्रेरणेषु / 457 / पैणति / (63) ध्रण शब्दे / 458 / ध्रणति | उपदेश दन्त्यान्तोऽयमिति प्रागस्य निर्देशो न कृतः / तस्य प्रयोजनं यङ्लुकि दन्ध्रन्तीति यथा स्यात् / अन्यथा छुवात् दंध्रण्टीति भवति / कनी दीप्तिकान्तिगतिषु / 458 / कनति / कान्तः / कनकम् / टन वन शब्दे / 4601461 / स्तनति / तिष्टानयिषति / अभिनिष्टानः / वनति / ववान / ववनतुः / ववनुः / अस्यै त्वाभ्यासलोपनिषेधश्चान्द्ररुदाहृतः / * (62) डपुस्तकेऽत्र तब कुशल (5 / 2 / 63) इत्यम् / न सामिवचन इति ( 55) ज्ञापकात् खार्थे कनित्यधिकः पाठो दृश्यते / (63) पुस्तके प्रेण प्रणतीति पाठः।

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