Book Title: Dhatupradip
Author(s): Srishchandra Chakravarti
Publisher: Varendra Research Society

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Page 146
________________ 136 धातुप्रदीपः। षट्ट स्फिट चुवि हिंसायाम् / 82-84 / सट्टयनि / सिषयिषति / स्फेटयति / चुम्बयति / चुभीत्येके / चुम्भयति / पूल संघात / पूलयति / 85 / (14) पुंस अभिवर्धने / 86 / सयति पंसयामास / पुस्त संघाते / 87 / पुस्तयति / पुस्तकम् / टकि बन्धने / 88 / टङ्गायति / टङ्गः / धूस कान्तिकरणे / 88 / धूसयति / धूसयामास / धूसरः / धूष इत्येके / धूषयति। कौट बन्धने / 100 / कोटयति / कोटः / चूर्ण संकोचने / 101 / चूर्णयति। . पूज पूजायाम् / 102 / पूजयति / अपूपुजत् / पूजा। पूगः / अर्क स्तवने / 103 / अक यति / अक: / शुठ आलस्ये / 104 / शोठयति / शोठः / शुठि शोषणे / 105 / शुण्ठयति / जुड़ प्रेरण / 106 / जोड़यति / जोड़ितम् / गज मार्ज शब्दे / 107 / 108 / गर्जयति / मार्जयति / (15) संप्रस्रवणे / 108 / घारयति / घारयामास / पचि विस्तार वचने / 110 / पञ्चयति। प्रपञ्चः। पर इति भौवादिकस्य पञ्चतेः। तिज निशाने / 111 / तेजयति / तेजनम् / कृत संशब्दने / 112 / कीर्तयति। अचीवतत् अचिकीर्तत् / पचकीर्त्तदिति तु धातुपारायणम् / कीर्तिः / कौर्तनम्। कीतनेति युजपि कालारिष्यते / (14) अमात् प्राक् गघङच पुस्तकेषु प्युस (ष) उत्सर्गे (उत्क्षेप)। प्योसयति (प्योषयति) व्यप (व्यय)पे। व्यापति (व्याययति)। विव्यापयामास। व्याप इति पठितम्। माधवसाह एतान् मैव यादयो न पठन्तीति। (15) ङच पुस्तकयोर गर्न मा गर्नयति माजयतीति पाठः /

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