Book Title: Dhatupradip
Author(s): Srishchandra Chakravarti
Publisher: Varendra Research Society
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________________ धातुप्रदीपः / ___चक हप्तौ / 787 / चकति / चकय ति। चक दृप्तिप्रतीघातयोरित्यस्य चकते / चकयति / कखे हसने / 788 / कखति / कखयति / प्रकखीत् / रग शङ्कायाम् | 788 / रगति / रगयति / अरगीत् / लगे सङ्ग / 580 / लगति / अलगीत् / लगयति / लग्न लगितम् / (80) संसहमित्यर्थः / हगे षर्ग टगे संवरणे / 781-784 / ह्रगति / अहगीत् / गयति / ह्रगति / अहगीत् / हूगयति / सगति | असगीत्। सगयति / सिषगयिषति / स्थगति / स्थगयति / तिष्ठगयिषति / कगे नोच्यते / 78.5 / अस्यायमर्थ इति नोच्यते / क्रियासामान्यमस्यार्थ इति यावत् / इह शास्त्रे नोच्यत इत्ये के। कगति / कगयति / / अक अग कुटिलायां गतौ / 786 / 787 / अकति / अकयति / प्रगति / अगयति / . कण रण गतौ / 788 / 788 / कणति / कणयति / अकणीत् अकाणीत् / कणिका / रणति / अरणीत् अराणीत्। रणयति / अणं रणेत्यादौ कण .रणी शब्दार्थो / कणति / रणति / तत्र काणयति / राणयति / चण शण श्रण दाने गतावित्लेके / 800-802 / चणति / चणयति / शणति / शणयति / श्रणति | श्रणयति / श्रथ नथ क्लथ क्रथ हिंसाः / 803.806 / श्रथति। श्रथयति / नथति / श्नथयति / लथति / क्लथयति / कथति / कथयति / जासिनिप्रहणनाटकाथपिषां हिंसायामित्यत्र (2 / 156) नाटकाथेति निपातनादृचिरिति जयादित्येनोक्ताम् / चौरस्योत्काथयति / स हि कथिं चरादौ न पठति / अन्ये तु क्रथ हिंसायामिति चुरादौ पठित्वा तस्यैतद्रूपमिति वर्णयन्ति / क्लथति / लथयति / चन च / 807 / चकारेण हिंसायामित्यपेक्षते / चनति / चनयति / चनकम् / (80) क्षुश्चखान्तेति (बरा१८) निष्ठायां वैट त्वम् /

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