Book Title: Dhatu Sangraha
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धातुसंग्रह. 183 (१४ान, 2 पीपणो, 3 नक्षत्र), श्रवणम् (सु), श्रवः (आन), शुश्रूषा (श्रवणे-छ). श्र, प. 1. पाके. रंधावू, पाणु, श्रायति यायचे. श्रोण, (ऋ) प. 1. संघाते. 4 42j. श्रोणति मे 432. 1 श्रोणिः, 2 श्रोणी (खीनो धडओ). श्लक, (इ) आ. 1. गती. पु. लंकते नयछ. श्लग, (इ) प. 1. गत्यर्थः. भ. श्लंगति जय. श्लथ, (अ) उ. 10- दौर्बल्ये ६५jथ, ढीतुंय. श्लथयति-ते मणु यायछे. श्लथः (शिथिय). लाख, (3) प. 1. व्याप्ती. व्या५. श्लाखति व्यापछे. श्लाघ, () आ. 1. कथने. कन्थनमुत्कर्षाख्यापनम्. पा. श्लाघते मैत्राय भैत्र १माहा. श्लाघा (स्तुति), श्लाघ्यः (स्तुत्य). लिए, (उ) प. 1. दाहे. मा. श्लेषति पाणे. श्लिष्टः. लिए, (अ) प. 4. आलिंगने. मालिंगन 42j, मे, मण, श्लिष्यति वधूः वरम् प १२ने लाछे, श्लेषः (भण), श्लिष्टः (भिलित), श्लेष्मा (मन् + 45), आश्लेषा (नक्षत्र), विश्लेषः (मे). निस्, (अ) उ. 10. श्लेषणे. , मग. श्लेषयति-ते ना. श्लेषः. श्लोक, (3) आ. 1. संघाते. संघातो ग्रंथः सचेह प्रथ्यमानस्य व्यापारो ग्रंथि___तुर्वा. आद्येऽकर्मको द्वितीथे सकर्मकः. 1 मुंथायु, 2 jथ. श्लोकते मुंथायछे, गुथछे. श्लोकः (1 ४र्ति, 2 5).. श्लोण, (3) प. 1. संघाते. मे 42. श्लोणति मे रे . श्वक, (इ) आ. 1. गती. पु. श्वंकते नयछ.. श्वच, (अ) आ. 1. 4. श्वचते जयछे. श्वच, (इ) आ. 1. गतो. 4. श्वंचते नयछे. श्वद, (अ) उ. 10. असंस्कारगत्योः. संस्कृत-पाभ२-नीय ययु, सुघरधु नहिं, 25, श्वाठयति-ते सुधरतो नथी. श्वद, (इ) उ. 10. असंस्कारगत्योः. असं३४॥ ययुं,-सुधरघु नाहि. श्वठयति -ते, श्वठति सुधर नहिं. श्वट्, उ. 10. सम्यगवभाषणे. 20 नमोन. श्वठयति-ते 20 नया पोलतो. For Private And Personal Use Only

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