Book Title: Dharmdoot 1950 Varsh 15 Ank 04 Author(s): Dharmrakshit Bhikshu Tripitakacharya Publisher: Dharmalok Mahabodhi Sabha View full book textPage 6
________________ ९२ परिचय दिया है विश्व-प्रेम की भावना का सुन्दर भगवान् बुद्ध के सन्देश जो आज तक अनगिनत व्यक्तियों को शान्ति प्रदान किये हैं एवं करते आ रहे हैं। बे और कुछ नहीं, केवल शान्ति प्रेम और विश्व-बन्धुत्व केही सन्देश हैं, उनमें प्राणिमात्र के कल्याण और शान्ति का रस है, जिसे पीकर कोई भी प्राणी संसार के दुःखों से शान्ति प्राप्त कर सकता है। ये सन्देश चिरकाल तक, जब तक कि पृथ्वी का अस्तित्व रहेगा, अमर रहेंगे। इन सरल पात एवं उदार सन्देशों में देखिये कैसी समता, सहृदयता, प्रेम, शान्ति, विश्व-मैत्री एवं प्राणिमात्र के कल्याण की बातें कही गई हैं । परम कारुणिक तथागत ने कहा है : , 'दण्ड से सभी डरते हैं, अपने समान इन बातों को मारें न मारने की प्रेरणा करे ।' धर्मदूत मृत्यु से सभी भय खाते हैं. जानकर न किसी प्राणी को 'सुख चाहने वाले प्राणियों को, अपने सुख की चाह से जो दण्ड से मारता है, वह मरकर सुख नहीं पाता । सुख चाहने वाले प्राणियों को अपने सुख की चाह से जो दण्ड से नहीं मारता, वह मरकर सुख को प्राप्त होता है ।' भगवान् बुद्ध के इन कल्याणकारी सन्देशों में शील जब भी मैं कभी बर्मा का कोई समाचार सुनता हूँ तो मुझे उनकी याद आ जाती है, जिन्हें हम सब भूल गयें प्रतीत होते हैं। सन् १९२० की मद्रास कांग्रेस में ही शायद मैंने उन्हें सबसे पहले देखा था । मैं सिहल के रास्ते पर जैसेतैसे मद्रास पहुँचा था राहुलजी ने मथुरा बाबू (राजेन्द्र बाबू के निजी मन्त्री ) को लिख दिया था कि वह मुझे मद्रास पहुँचने पर सिंहल तक का किराया दे दें या शायद किसी से मिला दें। मेरा हाथ खाली था और मैं इस चिन्ता में था कि जब लोग अपनी-अपनी बोलियाँ । मिक्षु उत्तम भदन्त आनन्द कौसल्यायन ( सदाचार ), आत्म-विश्वास, आत्म त्राण, भावना एवं चित्त का एकीकरण (समाधि) का वह अद्भुत समन्वय है, जिससे व्यक्ति के उपर्युक्त सारे कष्ट दूर हो सकते हैं । यही कारण है कि ये सन्देश भारत ही नहीं, प्रत्युत विश्व के कोने-कोने में वायु- वेग के सदृश व्याप्त हो गये । आज भी बर्मा, लंका, चीन, जापान, साइवेरिया, तिब्बत, नेपाल आदि के अधिकांश मनुष्य या यों कहें कि संसार के एक तिहाई से भी अधिक मानव इन सन्देशों में आस्था रखते हैं। भारत यद्यपि कुछ दिनों इन सन्देशों के प्रबल प्रभाव से वंचित रहा है, फिर भी इनका अद्भुत प्रभाव अति वेग से अब व्याप्त होता दीख रहा है । हमारे नेता (डा० अम्बेडकर, पं. जवाहरलाल नेहरू आदि ) या राष्ट्र के कर्णचार इनमें पूरी आस्था करने लगे हैं। लंका में हुये बौद्ध मातृ मण्डल के अधिवेशन से अब यह बात स्पष्ट है कि इन सन्देशों के पुनः प्रसार का समय आ गया है और शीघ्र ही बड़े वेग से इनका सारे संसार में प्रसार होगा एवं मानवमात्र इसे अपने तथा जागतिक कल्याण का साधन समझने लगेगा कल्याण इसी में निहित है कि हम दिये गये इन सन्देशों को जो त्रिकाल तथा शीघ्र अपना लें । । वस्तुतः हमारा परम भगवान् बुद्ध द्वारा सत्य हैं - सहर्ष बोलकर उड़ जायेंगे अर्थात् मद्रास कांग्रेस समाप्त हो जायेगी तो मैं कहाँ जाऊँगा ? क्योंकि मैं कुछ बौद्ध भावना को लिये हुये सिंहल की ओर जा रहा था, इसलिये मुझे सूझा कि उस समय की कांग्रेस वर्किङ्ग कमेटी या शायद केवल अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य भिक्षु उत्तम से मिल लूँ उनसे जब भेंट मुलाकात हुई और उन्हें मेरी प्रवृद्धि मालूम हुई तो उन्होंने कहा कि चलो, मेरे साथ वर्मा चलो मैं रास्ते का सब खर्च आदि की 1 व्यवस्था कर दूँगा । किन्तु मैं तो सिंहल जाने के लिये हड़ मिश्री था।Page Navigation
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