Book Title: Dharmdoot 1950 Varsh 15 Ank 04
Author(s): Dharmrakshit Bhikshu Tripitakacharya
Publisher: Dharmalok Mahabodhi Sabha

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Page 22
________________ बौद्ध-जगत् अग्रश्रावकों की पवित्र अस्थियाँ arrant की पवित्र अस्थियाँ गत २६ मई को भारतीय वायुसेना के विमान में श्रीनगर से लेह पहुँचाई गईं और वहां उनका भव्य स्वागत हुआ । लद्दाख के प्रधान लामा श्री कुशक बकुला और भारतीय महाबोधि सभा के कुछ सदस्य उनके साथ-साथ गये थे । लेह में २ हजार लामाओं ने इन पवित्र अस्थियों का स्वागत किया। मिस गुम्बा के दस वर्षीय शिशु लामा ने प्रार्थना की और परम्परागत बौद्ध विधि से इनकी अभ्यर्थना करके जुलूस के साथ इन्हें शंकर गुम्बा पहुँचाया गया । लद्दाख के लगभग सभी प्रसिद्ध एवं बड़े बौद्ध विहारों (गुम्बों) में इन अस्-ि थयों का प्रदर्शन हुआ। लद्दाख के बौद्धों ने अपने धार्मिक नृत्य आदि के साथ इनका सर्वत्र स्वागत किया । लद्दाख से लौटकर पुनः पवित्र अस्थियाँ दिल्ली आयेंगी और वहाँ भी उनका कई दिनों तक स्वागत होगा । महामन्त्री को चोट उद्दाख यात्रा में घोड़े से जाते समय भारतीय महाबोधि सभा के महामंत्री ब्रह्मचारी श्री देवप्रिय वलिसिंह जी अचानक घोड़े से गिर पड़े जिससे उनके दायें हाथ में काफी चोट आई थी। आप कुछ दिनों तक श्रीनगर के अस्पताल में रहे और वहाँ से स्वस्थ होकर गत २२ जून को वायुयान द्वारा कलकत्ता वापस आ गये। अब आप पूर्ण स्वस्थ हैं , 1 - बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केन्द्र फ्रांस- फ्रांसीसी विद्वानों, प्रकाशकों और लेखकों ने अपनी सद्भावना के प्रतीकस्वरूप लंका के योदों को तीन सी पुस्तकें प्रदान की हैं। अधिकांश पुस्तकें बौद्ध धर्म पर लिखी गई हैं और उनमें धर्म, दर्शन, इतिहास, संस्कृति तथा कला की नवी नतम गवेषणाओं का उल्लेख है। यूरोप के देशों में फ्रांस में ही सर्वप्रथम बौद्ध धर्म का अध्ययन आरम्भ किया गया था और १८०० में यूजिन धर्मा का ग्रन्थ प्रकाशित हुआ था। आज पेरिस विश्वविद्यालय पश्चिम में बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केन्द्र है । परिगणित जाति वाले बौद्ध धर्म अपनायेंगे-गत ११ जून को मद्रास में होने वाले " तामिलनाद परिगणित जाति सम्मेलन" में सभापतिपद से भाषण करते हुए • · अखिल भारतीय परिगणित जाति संघ के महामन्त्री श्री पी० एन० राजभोज ने कहा कि केवल मन्दिरों और होटलों में प्रवेश की समानता से कुछ न होगा, हम हिन्दू जाति के अन्य वर्गों के समान ही राजनीतिक, सामाजिक एवं व्यक्तिगत अधिकार प्राप्त करना चाहते हैं । हमें सरकार में उचित अनुपात में प्रतिनिधित्व चाहिए। हिन्दू धर्म के पास जनता के लिए कोई कार्यक्रम नहीं है, अतः हम भारत में बौद्ध धर्म का प्रचार करेंगे क्योंकि उसी में हमारा हित है जब तक सामाजिक भेदभाव जारी है तब तक नये संविधान में की गयी व्यवस्थाओं से कुछ न होगा। सदियों से हम अछूत कहकर अनगिनत सामाजिक असमानताओं के शिकार रहे है और आज भी हमारे साथ वही व्यवहार हो रहा है। अल्पसंख्यकों के सम्बन्ध में हुए नेहरू-लियाकत समझौते की चर्चा करते हुए श्री राजभोज ने कहा कि उससे पाकिस्तान की परिगणित जातियों का कोई लाभ नहीं हुआ। इतनी बड़ी संख्या में वहां रहते हुए भी उन्हें उचित प्रतिनिधित्व नहीं प्राप्त है । एक अन्य नेता ने भी भाषण करते हुए कहा कि यदि आज हम लोग बौद्ध धर्म की बात करते हैं तो इसका कारण यह है कि हमें हिन्दू भाइयों से बहुत कष्ट सहने पड़े हैं। अतः यदि शीघ्र इस सामाजिक बुराई को दूर करने की रचनात्मक चेष्टा की गई तो हमें बौद्ध धर्म के अतिरिक्त कहीं और शरण न चाहिए । ( १०२ पृष्ठ का शेषांश ) भावना सहज रूप में परिलक्षित होती है। अस्तु इससे बढ़कर उनकी सफता के और क्या चिह्न हो सकते। अन्त में हम यही कहेंगे कि अतीत के अध्याय में यदि यह लिखा है कि अशोक ने बुद्ध धर्म के प्रचार में कोई भी कसर नहीं रखी तो वर्तमान के इन पृष्ठों में हमें यह लिखना होगा कि श्री मोसु ने भित्ति चित्र की कला से भगवान् बुद्ध के प्रति प्रेम भावना का मानव हृदय पर कम आकर्षण नहीं रक्खा ।

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