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बौद्ध जगत्
उत्तर प्रदेश के परिगणित जातियों की बौद्ध की संस्कृति, एवं रहन-सहन ने विशेष रूपसे आकहोने की उत्सुकता-उत्तर प्रदेश के १ करोड २२ लाख र्षित किया। आप पवित्र अस्थियों के वापस चले आने हरिजनों के बौद्ध हो जाने की बात अभी हाल ही में श्री पर भी वहीं रह गये और एक मास ध्यान-भावना में तिलकचन्द कुरील ने कही है। कुरील महाशय उत्तर प्रदेश व्यतीत किये। आपको बर्मा में जो सबसे आकर्षक चीज के परिगणित जाति-संघ के अध्यक्ष हैं। उन्होंने कहा है मिली वह थी बौद्ध लोगों की श्रद्धा एवं वहाँ के भिक्ष कि इस राज्य के सवाकरोड़ हरिजन बौद्ध धर्म की दीक्षा लोगों की ध्यान-भावना की पद्धति । यद्यपि आप इस ले लेंगे। हम सभी बौद्ध धर्म की दीक्षा के लिए उत्सुक समय बर्मा से सारनाथ वापस आ गये हैं, किन्तु पुनः
बर्मा जाने की आपकी जिज्ञासा बनी ही हुई है। पं० नेहरू के जीवन पर बुद्ध धर्म का प्रभाव- विश्व बौद्ध धर्म की ओर-हाल ही में इटली के गत २१ जून को पं० जवाहरलाल नेहरू ने रंगून के एक
भिक्षु लोकनाथ ने लंका की एक सभा में भाषण देते हुए भोज में भाषण करते हुए कहा-'भारत भगवान बुद्ध के
कहा है कि अमेरिका-वासियों की दृष्टि बौद्ध धर्म की ओर उपदेशों से अत्यन्त प्रभावित है। भारत बुद्ध धर्म के
लगी है, वे वैज्ञानिक बौद्ध धर्म से अधिक प्रभावित हैं। निकटतम सम्बन्ध में आता जा रहा है। मैं स्वयं अपने
उन्होंने आगे 'मैं बौद्ध भिक्षु क्यों हुआ?' पर बोलते हुए बाल्यकाल से सिद्धार्थ के जीवन तथा उनकी शिक्षाओं से
कहा कि यद्यपि मेरा जन्म कैथोलिक धर्म में हुआ था, प्रेरणा पाता रहा हूँ।"
किन्तु भगवान् बुद्ध के उपदेशों का मेरे जीवन पर ऐसा ____ कंबोडिया के संघराज की तीर्थ-यात्रा-कंबो
प्रभाव पड़ा कि मुझे भिक्षु हो जाना पड़ा। अब सारा डिया के संघराज ने गत जून मास में लंका के अखिल
. विश्व बौद्ध धर्म की ओर आ रहा है। वह समय दूर नहीं विश्व बौद्ध सम्मेलन समाप्त होने पर भारत के बौद्ध तीर्थ ।
है कि हमलोग सम्पूर्ण विश्व में बौद्ध धर्म की महान् स्थानों की यात्रा की। उन्होंने बुद्धगया, राजगृह, नालंदा
प्रभुता देखेंगे।" एवं सारनाथ के दर्शन कर वायुयान द्वारा काशी से कलकत्ते के लिए प्रस्थान कर दिया। गर्मी के कारण कलकत्ता में ज्येष्ठ महोत्सव-गत ज्येष्ठ मास की
पूर्णिमा को कलकत्ता के धर्मराजिक विहार में स्थानीय सिंगापुर की चीनी-पार्टी भी तीर्थयात्रा के लिए आई बौद्धों द्वारा बड़ी धूमधाम के साथ ज्येष्ट महोत्सव मनाया और सब तीर्थस्थानों की यात्रा कर २७ जून को सारनाथ गया। इस अवसर पर भगवान बुद्ध की पुष्प, दीप, धूप से सिंगापुर के लिए प्रस्थान की।
आदि से पूजा की गई और भागत सभी बौद्धों को शांतिनिकेतन में बर्मी बौद्ध अनुसन्धान केन्द्र- पंचशील-अष्टशील आदि दिया गया। भीड़ काफी इकट्ठी शान्तिनिकेतन में बर्मा देशीय भिक्षु लोगों के अध्ययन हो गई थी। सन्ध्या समय भदन्त एम. संघरत्नजी ने एवं अनुसन्धान सम्बन्धी एक केन्द्र खोलने का आयोजन एक भाषण दिया तथा सबका स्वागत किया। उत्सव में हो रहा है। बर्मा के एक प्रमुख बर्मी पत्र के संचालक चीनी, सिंहली, बर्मी, नेपाली और बंगाली बौद्ध सम्मिलित यू. भांगमिन ने शान्तिनिकेतन में एक 'बर्मी-बौद्ध हुये थे। उक्त अवसर पर श्री जे. एन. चौधुरी ने इस विहार' के निर्माणार्थ तीस हजार रुपये भी प्रदान किया पवित्र दिन की महत्ता को बतलाते हुए कहा-"इस है। इस समय शान्ति निकेतन में कई भिक्षु इस योजना पवित्र दिन महामहेन्द्र स्थविर ने लंका में बौद्ध धर्मका को सफल बनाने में लगे हैं।
प्रथम उपदेश दिया था और उसे बुद्ध शासन का अधिभिक्ष संघरत्नजी की बर्मा यात्रा-भारतीय महा- कारी बनाया था। आज २२५७ वर्ष हुये कि तब से लेकर बोधि सभा के उपमन्त्री भिक्षु संघरत्नजी गत जनवरी आज तक वह परम कल्याणकारी बुद्ध धर्म लंका का जातीय मास में पवित्र अस्थियों के साथ बर्मा गये । आपको बर्मा धर्म बना हआ है"