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तथागत का धर्मराज्य
राज्य के पुरोहित थे और उसके नागरिक थे- सूत्रों के जानने वाले, विनय को जानने वाले, अभिधर्म को जानने वाले, धर्म के उपदेशक, जातक कथाओं को कहने वाले पाँच निकायों को याद करने वाले, शील, समाधि और प्रज्ञा से युक्त, बोध्यङ्ग - भावना में लगे रहने वाले । वह धर्मराज्य बाँस या सरकण्डे के झाड़के समान भर्हतों से खचाखच भरा रहता था। राग, द्वेष और मोह रहित क्षीणाश्रव ( जीवन मुक्त ) तृष्णा रहित तथा उपादान को नाश कर देने वाले उसमें रहते थे। जंगल में रहने वाले, धुताङ्गधारी ध्यान करने वाले, रूखे चीवर वाले, विवेक में रत, धीर लोग उसमें बास करते थे धुताङ्गधारी ही उस राज्य के हाकिम थे । दिव्य चक्षु प्राप्त प्रकाश जलाने वाले थे । आगम के पण्डित चौकीदार थे और विमुक्ति प्राप्त थे माली । फूल बेचने वाले आर्य सत्यों के रहस्य को जानने वाले थे तथा शीलवान थे गंधी ।
ऐसे अनुपम धर्मराज्य के तथागत राजा थे, जो अपने विशाल एवं अद्भुत, आश्चर्यमयी राज्य सम्पत्ति पर अपनत्व नहीं रखते थे, उन्हें कभी भी ऐसा नहीं होता था कि मैं भिक्षु संघ को धारण करता हूँ और भिक्षुसंघ
शेरो-शायरी
[ उर्दू के १५०० शेर और १६० नज्म ] श्री अयोध्याप्रसाद गोयलीय
प्राचीन और वर्तमान कवियों में लोकप्रिय ३१ कलाकारों के मर्मस्पर्शी पद्यों का संकलन और उर्दू - कविता की गतिविधि का आलोचनात्मक परिचय | हिन्दी में यह संकलन सर्वथा मौलिक और बेजोड़ है । मूल्य ८) मुक्तिदूत
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मेरे उद्देश्य से है । वे जो कुछ भी कहते थे स्पष्ट कहते थे । आचार्य मुष्टि नहीं रखते थे वे बहुजन के हित-सुख का ध्यान रखते हुये ही किसी बात को कहते भी थे ।
भारतीय ज्ञानपीठ काशी के सुरुचिपूर्ण प्रकाशन
श्री वीरेन्द्रकुमार एम. ए. उपन्यास क्या है, गद्यकाव्य का fea निदर्शन है...... मर्मज्ञों ने मुक्तकंठ प्रशंसा की है......। मूल्य ४ ॥ )
तथागत का धर्मराज्य भीतर-बाहर सब प्रकार से परिशुद्ध, निर्मल औ एक समान आकर्षक था । वह House (लड्डू) के समान चारों ओर से सुन्दर और माधुर्य पूर्ण था । तथागत ने अपने श्रावकों को धर्मराज्य में भली प्रकार विचरण करने के लिये करुणा, प्रेम, दया और अनुकम्पा से प्रेरित हृदय हो यह आदेश दिया था“भिक्षुओ ! श्रावकों के हितैषी, अनुकम्पक शास्ता को अनुकम्पा करके जो करना चाहिए, वह तुम्हारे लिये मैंने कर दिया । भिक्षुओ ! यह वृक्षमूल हैं, यह सूने घर हैं, ध्यान रत होओ। भिक्षुओ ! मत प्रमाद करो, मत पीछे अफसोस करने वाले बनना - यह तुम्हारे लिये हमारा अनुशासन है ।"
तथागत के उस अनुपम धर्मराज्य की स्मृति को बार-बार प्रणाम है और प्रणाम है उसके अनुप्रर्वतक तथा सभी नागरिकों को। क्या वह 'तथागत का धर्मराज्य' स्वप्न में भी देखने को मिलेगा ?
यूपी सरकार से १०००) रु० पुरस्कृत - श्री शान्तिप्रिय द्विवेदी की अमरकृति पथचिह्न
इसमें लेखक ने अपनी स्वर्गीया बहिन के दिव्य संस्मरण लिखे हैं। साथ ही साथ साहि त्यिक, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक समस्याओं का मर्मस्पर्शी वर्णन भी किया है । पुस्तक मुख्यतः संस्कृति और कला की दिशा में है और युग के आन्तरिक निर्माण की रच नात्मक प्रेरणा देती है । सजिल्द मूल्य २)
केवल ज्ञान प्रश्न चूडामणि सं० नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य
इस ज्योतिष ग्रंथ के स्वाध्याय से साधारण पाठक भी ज्योतिष सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त कर सकता है ।
मूल्य - ४)
ज्ञानोदय [ मासिक ] वार्षिक मूल्य ६)
भारतीय ज्ञानपीठ काशी, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस ४