Book Title: Devvandanbhashyam Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha View full book textPage 8
________________ III Shri M radhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailash d ri Gyanmandir भाष्य श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ andililil ५६ v illiAll | पावखवणस्थ इरिआइ वंदणयवत्तिाइ छ निमित्ता। पवयणसुरसरणत्थं उस्सग्गो इअ निमित्तह ५३ ४०० चउ तस्स उत्तरीकरणपमुह सद्धाइआ य पण' हेऊ । वेयावञ्चगरत्ताइ तिन्नि इअ हेउबारसग१२ ५४ ४०९ अनत्थयाइ बारसार आगारा एवमाइया "चउरो। अगणि पणिंदिच्छिदण बोहीखोभाहिडको य घोडग१ लयर खंभाई३ मालु४द्धी५ निअल६ सबरि७ खलिण८ वहू९ । लंबुत्तर१० थण११ संजइ१२ भमुहंगुलि१३ वायस१४ कविढे १५ सिरकंप मू७ वारुणि८ पेहत्ति चइज दोस उस्सग्गे। लंबुत्तर थण संजइ न दोस समणीण सबहु सड्रीणं ५७ , इरिउस्सग्गपमाणं पणवीसुस्सास अट्ट सेसेसु । गंभीरमहुरसई महत्थजुत्तं हवइ थुत्तं ૧૮ ક૨૮ पडिकमणे चेइय जिमण चरिम पडिक्कमण" सुअण' पडिबोहे चिइवंदण इअ जइणो सत्त उ वेला अहोरते ५९ ४३४ पडिकमओ गिहिणोवि हु सगवेला पंचवेल इअरस्स । पूआसु तिसंझासु अ होइ तिवेला जहनेणं ६. ४३६ तंबोल१ पाण२ भोयण३ वाणह४ मेहुन्न५ सुअण६ निठ्ठहणं । मुत्तु८च्चारं९ जूअं१० वजे जिणनाहजगईए ६१ ४४२ इरि नमुकार नमुत्युण अरिहं थुइ लोग सव्व थुइ पुक्ख । थुइ सिद्धा वेआ थुइ नमुत्थु जावंति थय जयवी ६२ ४५० | सब्बोवाहिविसुद्धं एवं जो वंदए सया देवे । देविंदविंदमहिअं परमपयं पावइ लहुं सो ६३ ४५३) प्रक्षिप्ताः काश्चिदत्र न चांकनियततोन्मुद्रणे इति मुद्रिता गाथाः, सोपयोगाश्च । For Private And PersonalPage Navigation
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